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कहानी का पहला भाग : चाची की चूत की चिन्गारी-1
सुबह साढ़े पांच बजे जब मेरी नींद खुली और मैंने चाची को बिस्तर पर नहीं पाया तो उठ कर बैठ गया। तभी मुझे स्नानगृह से पानी बहने कि आवाज़ सुनाई आई तो समझ गया कि चाची नहा रही होगी।
मैं उठ कर स्नानगृह में घुस गया तथा चाची को नहाते हुए देखने लगा। चाची ने जब मुझे देखा तो अपने पास बुलाया और मेरे लंड को पकड़ कर चूमा और कहा- यह तेरे पास मेरी अमानत है, मेरे जाने के बाद इसे तंग मत करना, जब तू घर आएगा तो इसको जितना भी तंग करना है मैं ही करुँगी।
फिर वह उठ कर अपना बदन पोंछने लगी और मुझे कहा- अब जल्दी से यार हो जा, स्टेशन चलना है, देर हो गई तो गाड़ी छूट जाएगी। मैं भी जल्दी से नहा कर तैयार हो गया और चाची को साईकल पर पीछे बिठा कर स्टेशन छोड़ने चल पड़ा। चाची रास्ते में मुझे बताती जा रही थी- घर को साफ कर दिया है दो दिन तो झाड़ू पोंछे की जरूरत नहीं पड़ेगी और दोपहर की रोटी बना के रखी है, उसे खा लेना।
छह बजे हम स्टेशन पहुंचे तो पता चला कि गुर्जर आंदोलनकारियों ने सब रेल लाइन घेर रखी थी इसलिए अभी तक गाड़ियाँ चलनी शुरू नहीं हुई थीं। चाची ने वहाँ के स्टेशन मास्टर के पास जाकर बात की और अपने शहर के स्टेशन मास्टर को फोन कर के काम पर न पहुँच पाने की दुविधा बताई। उसके शहर के स्टेशन मास्टर ने भी बताया कि वहाँ भी गाड़ियाँ नहीं आ रहीं थी इसलिए वहाँ कोई काम ही नहीं है, और चाची छुट्टी कर सकती है, जब गाड़ियाँ चलनी शुरू हो जाएँ, तब काम पर आ सकती हैं।
फिर मैं चाची को घर पर छोड़ कर आठ बजे नाश्ता करके, कालेज चला गया और दोपहर को तीन बजे वापिस आया। चाची मेरा इंतज़ार कर रही थी, उसने अपने कपड़े तो धो दिए थे और मेरी लुंगी और बनियान पहन रखी थी। बनियान में से उसकी चूचियाँ उभर रहीं थीं तथा उसके के ऊपर लगी काली काली डोडियों की झलक दिख रही थी। मैंने भी लुंगी और बनियान पहन ली और फिर हम दोनों ने साथ बैठ कर खाना खाया।
खाना खाकर हम दोनों बिस्तर पर लेट गए और मैंने चाची कि बनियान के अंदर हाथ डाल कर उनकी चूचियाँ को दबाना तथा चुचूकों को मसलना शुरू कर दिया। चाची ने न तो कुछ कहा और न ही मेरे हाथ को रोका बल्कि हाथ बढ़ा कर मेरी लुंगी को हटा कर जब मेरा लंड पकड़ने लगी तो उन्हें मेरे जांघिये पहने होने का एहसास हुआ।
तब उसने कहा- इसे तो उतार देना था, देख मैंने तो नीचे कुछ भी नहीं पहना हुआ है। फिर उसने उठ कर मेरा जांघिया उतार दिया और मेरे लंड तथा टट्टों को पकड़ कर मेरे पास लेट गई, थोड़ी थोड़ी देर बाद वह उन्हें दबा तथा मसल देती थीं, उसके ऐसे करने से मेरा लंड एकदम तन गया और उसमें से रस निकलना शुरू हो गया था।
चाची ने जब यह देखा तो अपने मुँह को लंड के सुपारे पर रखा और उस रस को चूस लिया, सुपारे के छिद्र में भी जो रस था उसे भी खींच कर पी लिया। उनके मुँह मेरे लंड से छूते ही मुझ को जोश चढ़ गया और मैंने चाची की लुंगी में हाथ डाल कर उनकी चूत में ऊँगली डाल दी। इस पर चाची ने कहा- ऐसे आनन्द नहीं आएगा, अगर सही आनन्द चाहते हो तो तुम उलटे हो कर चूत को चूसो और मैं तुम्हारा लंड चूसती हूँ, फिर आनद ही आनन्द मिलेगा।
चाची के मुँह से यह बात सुन कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई, मैं उठ कर चाची के तथा अपने कपड़े उतार कर नग्न हो गया और पलटी होकर चाची की टांगें चौड़ी करके उनकी चूत पर अपना मुँह लगा कर उसे कस कर चूसने लगा। चाची भी मेरे लंड का सुपारा अपने मुँह में डाल कर चूसने लगी।
तब मैंने चाची से कहा- मेरा पूरा लंड मुँह में डाल कर चूसिये। उसने कहा- जब सुपारा चूस कर मेरा मन भर जायेगा, तभी मैं पूरा लंड भी मुँह में डाल लूंगी।
फिर मैंने उसकी चूत पर ध्यान दिया और उसके भगांकुर को अपनी जीभ से रगड़ने लगा, उसकी चूत के अंदर जीभ डाल कर घुमाने लगा और उसकी चूत के होंटों को जोर से चूसने लगा। चाची भी धीरे धीरे मेरा पूरा लंड मुँह के अंदर ले कर चूसने लगी, मुझे भी बहुत मजा आने लगा, मैं हिलने लगा तथा उनके मुँह को चूत समझ कर चोदने लगा।
चाची भी हिलने लगी और अपनी चूत को मेरे मुँह पर रगड़ने लगी। दस मिनट तक ऐसे ही चूसा चुसाई करने के बाद चाची ने कहा- अब मुझसे और नहीं रहा जाता, तू भी तैयार है और मैं भी तैयार हूँ, अब अपने लंड को मेरी चूत में डाल कर मेरी चुदाई कर दे, खूब अच्छी तरह से चुदाई कर दे।
चाची के कहने पर मैं उठा और चाची के ऊपर लेट गया, चाची ने मेरे लंड को पकड़ा और अपनी चूत के मुँह पर रख दिया और कहा- अब हल्का सा धक्का मार। मैंने हल्का सा धक्का दिया और सुपारा चाची की चूत के अंदर सरका दिया।
चाची ने एक बार सी सी की और बोली- शाबाश, तू तो बहुत समझदार हो गया है, अब हल्के धक्के मारता रह और पूरा लंड चूत अंदर घुसेड़ दे। मैंने वैसा ही किया और पांच-छह धक्कों में ही अपना सात इंच लम्बे और ढाई इंच मोटे सुपारे वाला लंड चाची की चूत में फिट कर दिया। चाची सी सी तो करती रही पर उसने मुझे रोका नहीं।
जब पूरा लंड उनकी चूत फिट हो गया, तब चाची ने कहा- मैं आज की चुदाई का बहुत आनन्द लेना चाहती हूँ, इसलिए अहिस्ता अहिस्ता अंदर बाहर कर। रात की तरह दस मिनट में नहीं छूट जाना, आज तो कम से कम आधा घंटा, मेरी चूत की रगड़ाई ज़रूर होनी चहिये। मैंने ‘अच्छा’ कह कर चाची के कहे अनुसार धक्के लगाने शुरू कर दिए, लंड सुपारे तक बाहर आता और फिर अंदर घुस जाता।
चाची कह रही थी- शाबाश मनु शाबाश, बस इसी तरह धक्के लगाते रह, अपनी चाची को ऐसा मज़ा दे जैसा कभी न मिला हो, मेरी पिछले दस साल की प्यास बुझा दे। तेरा लंड तो तेरे चाचाजी से अधिक लम्बा और मोटा तथा जवान भी है इसलिए इससे ज्यादा आनन्द मिलना चाहिये। तेरे चाचाजी का लंड तो सिर्फ 6 इंच लंबा और डेढ़ इंच मोटा था, इसलिए कभी कभी भरपूर आनन्द नहीं दे पाता था। इसके बाद चाची मेरे धक्कों से मेल मिला कर उछलने लगी और जब मैं लंड को अंदर कि ओर धक्का देता तो वह भी उचक कर चूत ऊपर को उठाती और जब मैं लंड को बाहर खींचता तो वह नीच हो जाती, ऐसी चुदाई करने से हम दोनों को चुदाई का दुगना आनन्द आने लगा।
पन्द्रह मिनट तक ऐसे ही चुदाई करते रहने के बाद चाची की चूत सिकुड़ने लगी थी और मेरे लंड पर उसकी पकड़ मज़बूत होती जा रही थी जिससे मेरे लंड को रगड़ भी अधिक लग रही थी। चाची आह्ह… आहह्ह्ह… उंहह…. उंम्ह… की तेज आवाजें निकालने लगी थी। मैंने चाची की आवाजों की परवाह नहीं की तथा उसी तरह चाची की चुदाई चालू रखी।
कुछ समय के बाद जब चाची की चूत एकदम सिकुड़ गई और मुझे लंड अंदर बाहर करने में मुश्किल होने लगी, तभी चाची का बदन एकदम अकड़ गया और वह जोर से चिल्ला पड़ी- आईई… ईईईई… माईईई… ईईईईए… मर गईईई….. मनु बहुत अच्छे… बहुत अच्छे… तुमने बहुत बढ़िया धक्के मारे, मुझे बहुत आनन्द आया। मैं समझ गया कि चाची की चूत ने पानी छोड़ दिया था।
इससे पहले मैं चाची से कुछ कहता, चाची बोल पड़ी- अब थोड़ा रुक जाओ और साँस ले लो, नहीं तो जल्दी छूट जाएगा, मेरे को भी थोड़ा आराम मिल जाएगा, हमें अभी जीवन की सब से बढ़िया चुदाई का आनन्द भी तो लेना है। मैं रुक गया और अपने लंड को चाची की चूत में फंसे रहने दिया तथा बोला- चाची आपको तो कहना चाहिए जीवन की पहली सबसे बढ़िया चुदाई का आनन्द भी तो लेना है। अभी तो मैं आपको इससे भी बढ़िया चुदाइयों का आनद देने के लिए चोदूंगा कि आप सब चुदाइयाँ भूल जायेंगी। तब चाची बोली- जीता रह मनु, तेरी इच्छा पूरी हो और तू सदा मेरे को इसी तरह चोदता रहे।
पांच मिनट रुकने के बाद चाची ने कहा- अब चुदाई शुरू कर सकते हो, पहले आहिस्ते आहिस्ते धक्के देना, फिर थोड़ा तेज कर देना और अंत में पूरा जोर लगा कर बहुत तेज तेज चोदना। मैंने चाची की बात मान कर आहिस्ते आहिस्ते धक्के देने शुरू किये, जब चाची ने मेरे साथ हिलना शुरू किया तो मैंने तेज धक्के देने लगा। चाची भी तेज हिलने लगी और उसके मुँह से आह्ह… आहह्ह्ह… उंहह…. उंम्ह… आवाजें निकलनी शुरू हो गईं थी।
हमें तेज चुदाई करते हुए दस मिनट हो चुके थे, जब मुझे महसूस हुआ कि मैं अपनी चरम सीमा पर पहुँचने वाला था, तो चाची से बोला- मैं छूटने के करीब हूँ। तब उसने कहा- मैं भी छूटने करीब ही हूँ, बहुत तेज धक्के लगा दे। मैंने वैसा ही किया और फिर क्या था, पूरे कमरे में हम दोनों की आवाजें आह… उह… ह्ह्ह… उंहह… उंह… आह… उंहह्ह… आह.. उंह ह्ह्ह… गूंजने लगी। मेरा लंड फूल गया और चाची की चूत सिकुड़ गई और हम दोनों एक दूसरे की रगड़ से बहुत उत्तेजित हो गए। मैं पूरे जोर और तेज़ी से चाची को चोदने लगा।
तभी चाची एकदम अकड़ गई तथा जोर से चिल्लाई ‘उंहह… उंह्ह्ह… ओह्ह… मैं गईईई.. मैं गईईई.. गईईईई.. गईईईईईई..’ और उसके साथ ही चाची की चूत में फुआरा छूटा तथा मेरी पिचकारी भी छूट गई।
दो मिनट तक तो हम वैसे ही लेटे रहे और जब चाची शांत हो गई तब मैंने जैसे ही लंड को बाहर निकाला चाची की चूत से एक दरिया सा बह निकला और बेड पर फ़ैल गया। चाची उठ कर बैठ गई और हैरानी से चूत में से रस का रिसना देखती रही और मुझे बोली- मनु, तेरे टट्टों में रस की फ़ैक्ट्री है क्या, जो इतना ज्यादा रस बन रहा है। रात को तूने एक कप रस निकला था और अभी चौबीस घंटे भी नहीं हुए और तूने फिर से एक कप भर रस की पिचकारी मार दी।
हमने उठ कर अपने को धोया, चाची ने बेड की चादर धो दी और मैंने बेड पर नई चादर बिछा दी। इसके बाद हम दोनों एक दूसरे से लिपट के सो गए। शाम छह बजे हम जागे तब चाची ने चाय बना कर पिलाई। फिर हम तैयार हो कर बाजार गए। क्यूंकि चाची अपने साथ कपड़े नहीं लाई थी इसलिए वहाँ से चाची को दो साड़ी और उनके साथ के ब्लाउज और पेटीकोट खरीदे, फिर चाची ने दो जोड़ी ब्रा और पेंटी भी ली।
मैंने चाची से गाउन भी लेने को कहा पर चाची ने कहा कि वह मेरी लुंगी और बनियान से ही काम चला लेगी, क्यूंकि उनमे उनको गर्मी कम लगती है और आराम अधिक मिलता है। उसके बाद हमने एक होटल में जाकर खाना खाया और रात नौ बजे के बाद घर पहुचे। वापिस आकर मैं कपड़े बदल कर पढ़ने बैठ गया, चाची ने तो पहले अपने नए खरीदे हुए कपड़ों को पहन कर देखा, फिर सिर्फ मेरी लुंगी पहन कर अर्ध-नग्न ही रसोई का काम समेटने लगी।
दस बजे चाची काम खत्म करके कमरे में आई और अर्धनग्न अवस्था में ही बेड पर लेट गई। मैं ग्यारह बजे तक पढ़ाई करने के बाद चाची के पास लेटने लगा तो चाची ने कहा- कपड़े उतार कर ही लेटना ! और उसने अपनी लुंगी भी खोल कर मुझे पकड़ा दी।
मैं भी अपने कपड़े उतार कर अपनी नग्न चाची के पास नंगा ही लेट गया और उसके बदन पर हाथ फेरने लगा। चाची भी मेरे लंड और टट्टों को हाथ में लेकर उनको मसलने लगी। मैंने चाची को उसके होंटों पर चुम्बन किया तो उसने पूरा सहयोग दिया और अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर चूसने दी तथा मेरी जीभ को भी अपने मुँह में ले कर चूसा, फिर मुझे चूचियाँ चूसने को कहा।
मैंने बारी बारी उसकी दोनों चूचियों को चूसा तथा चूत में ऊँगली भी करी, चाची ने भी मेरे लंड को हिलाया तथा लंड के ऊपर के मॉस को कभी सुपारे के ऊपर से उतारती और कभी चढ़ाती रही। हम दोनों की ऐसी हरकत से दोनों ही गर्म हो गए तब मैंने चाची से कहा- मैंने तुम्हें लेट कर तो सुबह चोदा था, अब मैं तुम्हें खड़े होकर चोदना चाहता हूँ। उसने कहा- अच्छा ठीक है, पर पहले हम एक दूसरे को चूस के तैयार तो कर लें।
यह सुन कर मैंने उठ कर अपना लंड चाची के मुँह में दे दिया और खुद चाची की चूत को चूसने लगा। सुबह की तरह जब चाची एक बार छूट गई तब मैंने चाची को नीचे खड़ा कर, उसका ऊपर का हिस्सा बेड पर झुका के घोड़ी बना दिया और उनके पीछे खड़ा हो कर चाची की चूत का मुँह को खोला और उसमें अपने लंड को टिका कर के धक्का दिया। मेरा आधा लंड चूत के अंदर चला गया, दूसरे धक्के से मेरा पूरा लंड अंदर चला गया।
चाची की चूत अब मेरे लंड के साइज़ की आदि होने लगी थी इसलिए सिर्फ हल्की हल्की सी सी करी और उनकी चूत बड़े आराम से मेरे लंड को गप कर गई। फिर मैंने आहिस्ते आहिस्ते धक्के देने शुरू किये, चाची ने मेरे साथ हिलना शुरू कर दिया। दस मिनट के बाद मैं तेज धक्के देने लगा। चाची ने भी मेरी स्पीड के साथ मेल करते हुए तेज हिलने लगी और उसके मुँह से आ… आह… उंह… उंह… की आवाजें निकलनी शुरू हो गईं।
उस तेज चुदाई को करते हुए जब दस मिनट और बीत गए तब मैं बहुत तेज धक्के लगाने लगा। अब कमरे में हम दोनों की आहें-आवाजें गूंजने लगी। एकदम से चाची की चूत सिकुड़ने लगी और मेरा लंड भी फूलने लगा। देखते ही देखते हम दोनों एक दूसरे की रगड़ से उत्तेजित होने लगे। मैं चाची को पूरे जोर शोर और तेज़ी से चोदने लगा।
दो मिनट में ही चाची एकदम अकड़ गई और जोर से चिल्लाई ‘उंहह्ह्ह्ह… उंहह्ह्ह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह… मैं तो गईईईई.. मैं तो गईईईई..’ इसके बाद चाची की चूत ने मेरे लंड को बहुत कस के जकड़ लिया और अंदर खींच लिया तथा अपना फुआरा छोड़ दिया। उसी समय मेरा लंड भी फड़का और उसमें से छह-सात पिचकारी की धारा छूटीं।
देखते ही देखते चाची की चूत में हम दोंनो का रस लबालब भर गया और बाहर बहने लगा। बदन के अकड़ने और चूत में खिंचाव की वजह से चाची की टाँगें कांपने लगी थी, जिससे मेरा लंड बाहर आ गया और चाची वहीं, नीचे जमीन पर ही बैठ गई। मैं भी चाची से पास बैठ गया और उसकी टाँगें पकड़ कर दबाने लगा।
कुछ देर के बाद वह संभल गई और फिर हमने शौचालय में जा कर एक दूसरे को साफ़ किया तथा बिस्तर पर आकर लेट गए। जब मैंने चाची को अपने साथ चिपका कर पूछा कि उसे क्या हो गया था तब उन्होंने बताया- मुझे आज तक की सबसे बड़ी सिकुड़न एवं खिंचावट हुई है, सुबह से भी अधिक, बहुत अधिक।
मैंने पूछा- आनन्द तो मिला होगा? तब वह बोली- मनु औरत को सबसे ज्यादा आनन्द तो इस खिंचावट के समय ही आता है और आज मुझे उस अत्यंत आनन्द का अनुभव हो गया है। मैं महसूस कर रही हूँ कि मैंने तुझसे चुदाई करा कर कोई गलती नहीं की और अब तो मैं तुझ से किसी भी कीमत तथा किसी भी हालात में चुदाई कराने को तैयार हूँ।
इसके बाद चाची मुझसे लिपट गई और हम दोनों उस रात के लिए नींद के आगोश में खो गए। अन्तर्वासना के पाठको, आप सबको यह रचना कैसी लगी? आपसे अनुरोध है कि आप अपनी टिपण्णी एवं विचार मुझे [email protected] पर ज़रूर भेजें।
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