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दोस्तो, मैं प्रेम, कैसे हैं आप सब? आप सभी ने मेरी कहानी ‘मार डालोगे क्या?’ पढ़ी ही होगी। मुझे आपके सभी मेल प्राप्त हुए, जिसमें आप सभी ने मुझे कहानी का अगला भाग लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। तो यह लीजिए हाजिर हूँ मैं कहानी का अगला भाग लेकर। जैसा कि आपने मेरी पिछली कहानी में पढ़ा कि कैसे मैंने भाभी को चोदा…!
उस दिन के बाद हम हमेशा अकेलेपन की तलाश में रहते और जब भी हमें मौका मिलता हम चुम्मा-चाटी कर ही लेते और पूरे दिन के दौरान हम इशारों की भाषा में बात होती रहती, हम दोनों को इसमें बहुत मज़ा आता था। हांलाकि मेरे रूममेट घर से वापस आ गए थे तो हमें ज्यादा समय नहीं मिलता था और मैं इस बारे में किसी को बता भी नहीं सकता था क्योंकि भाभी ने मुझे कुछ भी बताने को मना कर दिया था। अब तो मैं सप्ताहांत पर घर भी नहीं जाता था, ताकि मुझे भाभी के साथ और अधिक समय मिल सके। फिर एक दिन मेरी किस्मत चमक ही गई, वह शनिवार का दिन था मेरे रूममेट तो घर के लिए शुक्रवार को ही रवाना हो गए थे।
छुट्टी थी तो मैं थोड़ा देर से जागा था, तो बस अभी-अभी नहा कर आया था और कपड़े पहन ही रहा था कि मैंने दरवाजे पर एक दस्तक सुनी। मैंने फटाफट कपड़े पहने और जाकर दरवाजा खोला। यह कविता भाभी थी। वह गुलाबी नाईटी में मस्त लग रही थी। पतली नाईटी के ऊपर से ही उसके चूचुक दिख रहे थे।
मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसे अंदर खींच लिया और दरवाजा बंद कर दिया और उसे बाहों में भर लिया। मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए और उसके मधुर अधरों का रसपान करने लगा। वह भी मुझे बेतहाशा चूमे जा रही थी। न जाने कब उसकी लपलपाती जीभ मेरे मुँह में दाखिल हो गई, मैं उसे भी चूसने लगा। कुछ देर तक चूमने के बाद और एक लंबे आलिंगन के बाद मैंने उसे मुक्त किया !
मैंने भाभी को छेड़ते हुए कहा- क्या बात है भाभी… आज तो मेरा दिन ही बना दिया आपने…! तभी भाभी बोली- बस इतने में ही दिन बन गया? अभी तो पूरा दिन बाकी है बनाने को… अब तक तो मैं समझ चुका था कि आज जम कर ऐश होने वाली है।
फिर भाभी ने पूछा- चल वो सब बाद में… पहले बता कुछ खाया-पिया या नहीं..? मैंने कहा- नहीं तो, कुछ भी नहीं खाया आप ही कुछ खिला दो..! तो वो बोली- चल मेरे घर, अभी कुछ बना देती हूँ गरमा-गरम..!
और वो उठ कर जाने लगी, जब वो जा रही थी तो उसकी लचकती कमर और मटकती गान्ड मानो मुझे बुलावा दे रही थी, जैसे ही वो चली गई, मैं जल्दी से बाहर निकला और अपना फ़्लैट बन्द करके उसके घर चला गया। उसने दरवाजा खुला ही छोड़ रखा था।
मैं धीरे से अन्दर दाखिल हुआ, मुझे पता था कि वह जरूर रसोई में होगी। इसलिये मैं सीधा रसोई में गया, वो वहीं थी, पकोड़े और कॉफ़ी बना रही थी।
मैंने धीरे से जा कर उसको पीछे से उसकी कमर से पकड़ लिया। वो चौंक गई। फिर बोली- तुझसे जरा सा भी ‘सबर’ नहीं होता क्या.? “ना.. जब तेरे जैसा माल हाथ में हो, तो कौन सा गान्डू ‘सबर’ करेगा..!” मैंने उसकी गरदन चूमते हुए जवाब दिया। मेरे चुम्बन से उसकी सिसकारी निकल गई। फिर वो मेरी तरफ घूम कर बोली- रसोई में नही प्रेम..! तुम बाहर इन्तजार करो.. जब तक नाश्ता तैयार हो रहा है। फिर मैं बाहर टीवी रुम में जाकर बैठ गया और टीवी चला दिया।
थोड़ी ही देर में भाभी कॉफ़ी और पकोड़े के साथ हाजिर हुईं। हमने साथ में नाश्ता किया और यहाँ-वहाँ की बातें की। थोड़ी देर बाद वो मेरे पास आकर बैठ गई और मेरे लन्ड को पैन्ट के ऊपर से ही मसलने लगी, मेरी तरफ देखने लगी, जैसे कह रही हो कि… “आ जाओ और मुझे प्यार करो…”
मैंने बिना वक्त गंवाए उसको बाँहों में भर लिया और हर जगह चूमने लगा, उसकी गरम सांसें मेरे चहरे पर टकरा रही थीं और मुझे और भी ज्यादा उत्तेजित कर रही थीं। उसने कहा- चलो, अन्दर के कमरे में चलते हैं। हम ऐसे ही खड़े हुए और बगल वाले कमरे में चले गए।
वो अभी भी मेरी बाँहों की गिरफ्त में ही थी, अन्दर पहुँचते ही मैंने उसे छोड़ा और सामने की दीवार से सटा दिया और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए, साथ ही मेरे हाथ उसके पूरे बदन पर रेंग रहे थे, जो थोड़ी देर बाद उसके स्तन पर जा कर रुके और वहाँ अपना जादू चलाने लग गए। उसने अन्दर ब्रा नहीं पहनी थी।
भाभी ने तो जैसे अपने आप को मुझे सौंप दिया था। जब मैं उसको चूम रहा था, तब तक उसने मेरे सारे कपड़ों के बटन खोल दिए थे। फिर हम अलग हुए तो उसने मेरे बचे-खुचे कपड़े भी उतार फेंके। अब मैं पूरा नि:वस्त्र था, पर वो नहीं। मैं भी उसकी नाईटी उतारने की कोशिश करने लगा, उसने अपने हाथ ऊपर करके मेरा काम आसान कर दिया। अब वह सिर्फ़ पैन्टी में थी। अब तो मेरा रुकना मुश्किल था। मैं उस पर टूट पड़ा।
वो लेट गई और मैंने उसके पैरों से चाटना शुरु करके जाँघों से होते हुए उसकी चूत तक आ पहुँचा और पैन्टी के ऊपर से ही चूत चाटने लगा, जो पूरी तरह से भीग चुकी थी। मेरे होंठ उसकी चूत पर रखते ही वह उछ्ल पड़ी और मेरे सिर को अपने पैरों के बीच में जकड़ लिया। थोड़ी देर चाटने के बाद मैंने उसे छोड़ा तो उसने उठ कर मेरा लन्ड पकड़ लिया और मुँह में लेकर चूसने लगी।
वो जोर-जोर से चूसे जा रही थी और मेरे लन्ड को आगे-पीछे कर रही थी। वो ऐसा ही लम्बे समय तक करती रही और मैं झड़ गया। मेरा सारा माल उसके मुँह में चला गया, वो उसे निगल गई। मैं तो वहीं निढाल हो गया, भाभी भी मेरे पास आकर लेट गई। कुछ पलों बाद वो मेरे होंठों को चूसने लगी, मैं भी उसका साथ देने लगा। हम आपस में फिर से लिपट गए।
मेरा लन्ड फिर से उफान पर आने लगा, मैंने उसके चूचे दबाने शुरु किए और चूचुकों को उँगलियों से मसलने लगा, वो ‘आहें’ भरने लगी। अब मैंने उसकी पैन्टी निकाल दी और चूत को और जोर से चाटने लगा, पूरा कमरा उसकी सिसकारियों से भर गया। अब मैं वापिस ऊपर की ओर आया और फिर से उसके होंठों को चूसने लगा। मेरा खड़ा लन्ड उसकी चूत की दरार पर दस्तक देने लगा, मैं चुदाई के लिये बिलकुल तैयार था। जैसे ही मैंने अपना लन्ड उसकी चूत में डाला उसकी चीख निकल गई। थोड़ी देर बाद मैंने दूसरा धक्का लगाया और लन्ड पूरा अन्दर चला गया।
मैं थोड़ी देर रुका फिर हल्के-हल्के धक्के लगाना शुरु किया। अब तो वो भी अपनी कमर उठा कर मेरा साथ दे रही थी। मैंने धक्कों की गति बढ़ा दी। वो सिसकारियाँ ले रही थी और कुछ न कुछ बके जा रही थी।
थोड़ी देर में वो झड़ गई, लेकिन मैं तो पूरी तरह चुदाई में लगा था। 15 मिनट के बाद मुझे लगा कि मेरा भी गिरने वाला है, तो मैंने भाभी से पूछा- क्या करूँ..! तो उसने कहा- अन्दर ही छोड़ दो..! मैंने वैसा ही किया, अपना सारा माल उसकी चूत में डाल दिया और वहीं उस पर ढेर हो गया। थोड़ी देर हम ऐसे ही एक-दूसरे की बाँहों में पड़े रहे।
कुछ देर सोने के बाद वो उठी, अपनी पैन्टी पहनी और जैसे ही वो नाईटी पहनने लगी, मैं उठा और उसको पकड़ लिया और कहा- आज तुम सिर्फ़ ब्रा और पैन्टी ही पहनोगी मेरे लिए..! थोड़ी सी ना-नुकुर के बाद वो मान गई। अभी तो पूरा दिन था चुदाई के लिए, आगे भी बहुत कुछ हुआ, लेकिन वो कहानी अगली बार।
तब तक मुझे मेरी इस कहानी के बारे में जरूर लिखें। [email protected]
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