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मेरा नाम आर्यन है। मैं कानपुर में रहता हूँ। यह मेरी काम-कथा है जो 2007 में घटित हुई, जब मैं अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा था। मैं एक रूम किराये पर लेकर रहता था। वहाँ पर और भी कई परिवार रहते थे लेकिन मैं मोनी नाम की एक लड़की को देख कर अपना कण्ट्रोल खो बैठता था। वो बहुत मस्त माल थी, लेकिन जब वो मुझे ‘भैया’ बोलती थी तो मुझे उस पर बहुत गुस्सा आता था, पर कर भी क्या सकता था..! एक दिन उसके पापा उसके छोटे भाई को लेकर अपने गाँव चले गए। उस दिन वो मेरे से बात करने के मूड में दिख रही थी। मैं तो इसका इंतजार ही कर रहा था। मैं ऊपर छत पर जा कर बैठ गया। मैने देखा कि थोड़ी देर में वो भी ऊपर आ गई। हमारी नज़र मिलते ही हम दोनों मुस्कुरा दिए। फिर वो मेरे पास ही आकर खड़ी हो गई और ऐसे ही इधर-उधर की बातें करने लगी। अभी थोड़ी रोशनी थी, इसलिए मैं चाह कर भी कुछ कर नहीं पा रहा था। मैं उससे उसके कॉलेज की बातें करने लगा। वो मुझसे मेरे बारे में कुछ भी नहीं पूछ रही थी। मैंने कहा- तुम जितनी शांत दिखती हो, उतना ही शांत तुम्हारा मन नहीं लगता मुझे..! मैंने यह इसलिए कहा कि देखें वो क्या उत्तर देती है, पर वो कुछ नहीं बोली। मेरी हिम्मत बढ़ रही थी और अँधेरा भी मेरा साथ देने के लिए तैयार था। अब मैं भी उसके और पास जाकर खड़ा हो गया। मैं बहुत देर से सोच रहा था कि असली बात कैसे चालू करूँ। थोड़ा डर भी रहा था कि अगर उसने मना कर दिया और या फिर भड़क गई तो क्या होगा..! मुझे तो साला रूम भी छोड़ना पड़ सकता है। लेकिन फिर मैंने सोचा अभी नहीं तो कभी नहीं और उससे पूछ लिया- क्या कभी तुम्हारा बॉय-फ्रेंड रहा है..! तो आगे तो वो कुछ नहीं बोली फिर धीरे से बोली- आप ये सब क्यों पूछ रहे हो..? मैंने कहा- बस ऐसे ही…! फिर मैं उसके और पास गया और वो कुछ भी नहीं बोली। मैंने उसका हाथ पकड़ लिया, इधर अँधेरा हो चुका था। हमें छत पर कोई नहीं देख सकता था। मैंने उससे कहा- मोनी तुम मुझे भैया मत कहा करो.. मुझे अच्छा नहीं लगता है…! वो बोली- फिर क्या कहूँ..? मैं बोला- मेरा नाम लिया करो…! फिर उसने थोड़ा नॉटी सा चेहरा बनाते हुए पूछा- भैया कहने में क्या खराबी है? मैं समझ रहा था कि वो सब जानबूझ कर कर रही है…! और मैंने झट से कह दिया- तुम मुझे अच्छी लगती हो.. मैं तुम्हें दूसरी नज़र से देखता हूँ…! सच में वो जितनी शांत थी, अन्दर से उतनी ही शरारती थी। वो शायद अपनी फैमिली के डर की वजह से चुपचाप रहती थी। मैं हाथ में उसका हाथ पकड़े था और मैंने झट से उसके हाथ को चूम लिया। तो वो बोली- इतने दिन से क्या तुम्हारी फट रही थी? मैं सुनकर दंग रह गया। मैंने आव देखा न ताव उसे अपने पास खींच लिया और उसके अधरों पर एक जबरदस्त चुम्बन कर दिया। मैंने कहा- फिर अभी तक यह भैया का नाटक क्यों कर रही थी? बोली- अगर भैया नहीं बोलती, तो पापा तुमसे बात भी नहीं करने देते.. खुद तो मम्मी को रात भर सोने नहीं देते.. उनके ऊपर ही चढ़े रहते हैं.. और मुझे कुछ भी करने का मौका नहीं देते। फिर उसने मुझे खींच कर एक चुम्मी ली। इस बार वो कुछ ज्यादा ही पास आ गई थी। उसके गोल-गोल मम्मे मेरी छाती में गड़ गए। मैंने उसकी मम्मों की ओर हाथ बढ़ाया तो उसने मना कर दिया। “बस हम यहीं तक सीमित रहेंगे.. नहीं तो मैं तुमसे बात भी नहीं करूँगी।” और वो जाने लगी मैंने उसको फिर से पकड़ कर चुम्बन करने लगा और वो छूटने के लिए छटपटा रही थी, लेकिन मैंने उसे नहीं छोड़ा। वो बोली- मम्मी मार्किट से आने वाली होंगी छोड़ दो.. नहीं तो कभी हम इतना भी नहीं कर पाएंगे..! मैंने कहा- पहले ये बताओ आज रात में यहीं पर मिलोगी..! वो बोली- कैसे? मम्मी जान गईं तो? तो मैंने कहा- फिर मुझे अभी अपनी प्यास बुझाने दो..! और मैं फिर से पागलों की तरह चूमने लगा और मैं इतनी तेज़ उसे पकड़े हुए था कि उसके पूरे खरबूजों का मज़ा आ रहा था। वो बोली- ठीक है रात को आऊँगी लेकिन अभी जाने दो ..! और जाते-जाते मैंने उसका हाथ पकड़ा और अपने लोहे की रॉड मतलब लंड पर रख दिया। उसने लौड़े को दबाते हुए मुस्कुरा कर कहा- इसे काट कर ले जाऊँगी.. फिर तू कहीं का नहीं रहेगा ..! मैंने कहा- इसके एक बार दर्शन कर लोगी तो इसी की हो जाओगी..! और वो हँसते हुए चली गई। थोड़ी देर में मैं भी नीचे आ गया। उसकी मम्मी ने पूछा- आर्यन, खाना बना लिया है? लेकिन मेरा मन तो उसकी सुपुत्री के मम्मों में खोया था। मैं उसकी मम्मी की बात न सुन कर छिपी नजरों से उसे ही बार-बार देख रहा था। मैंने सोचा मोनी के पापा के आने से पहले कुछ तो करना पड़ेगा, नहीं तो कैसे अपनी मुराद पूरी कर पाउँगा। मैंने आंटी से उदास मन से कहा- अरे आंटी बहुत दिन हो गए हैं, अब मुझे घर की बहुत याद आती है। बहुत दिन हो गए घर का खाना खाए हुए। आज मैं दोस्तों के कहने पर सोयाबीन लाया हूँ, पर समझ नहीं आ रहा कैसे बनाऊँ..! आंटी बोलीं- अरे हम तो बहुत दिन से खाना बनाते हैं पर इसको बनाने के बारे में हमें कुछ पता नहीं है, तुम मोनी को दे देना वो बना देगी..! बस यार मैं तो मन ही मन में पागल हो रहा था। मैंने कहा- नहीं रहने दीजिए.. मैं बना लूँगा। बस थोड़ी हिंट दे दीजिए। आंटी बोलीं- ठीक है जब बनाने लगो तब पूछ लेना। और मैं अपने रूम में चला गया। बाथरूम में जाकर पहले अपनी बगलें और झाटें साफ कीं, थोड़ा परफ्यूम डाल कर कमरे में आया और खाना बनाने लगा। मुझे भूख तो नहीं थी लेकिन मोनी के लिए तो करना ही था…! मैं खाना बनाने लगा और कुछ देर बाद मैंने आंटी को आवाज़ दी- आंटी जरा बताओ कैसे करें.. मैंने सब सामान तैयार कर लिया है..! यह सब मैं मोनी को बुलाने के लिए कर रहा था। तभी आंटी चिल्लाते हुए बोलीं- मोनी तू अभी तक भैया का खाना बनाने नहीं गई.. आज पहली बार वो कह रहा है, उसमें भी तुम नाटक कर रही हो..! दोस्तो, सिर्फ ‘भैया’ ही एक ही वर्ड था, जिसकी वजह से मोनी के मम्मी-पापा मोनी को मेरे पास बिना किसी रोक-टोक के आने देते थे। वो जैसे ही आई, मैं गेट पर ही खड़ा था। मैंने झट से उसे बाँहों में जकड़ लिया और फिर चुम्बन करने लगा। अब मुझे मोनी को चूसने का चस्का जो लग गया था। बहुत ही नमकीन थी वो…! मस्त माल..! पहले किसी ने भी नहीं छुआ था उसे ! मैंने गेट बंद कर दिया। वो बोली- ये क्या कर रहे हो..! मम्मी को शक हो जाएगा..! गेट खोलो और धीरे-धीरे करो..! लेकिन मैंने कहा- तो हम फिर कैसे करेंगे…! वो मेरी तरफ तिरछी नज़रों से देख के बोली- अभी सुन लो हम सिर्फ ऊपर-ऊपर ही करेंगे ! मुझे गुस्सा आ रहा था कि साली अच्छे खासे मौके की ‘माँ-बहन’ कर रही है.. मैंने गुस्से में उससे पूछ लिया- चुदने के लिए कोई और देख रखा है क्या? वो भड़क गई और जाने लगी ! मैंने उसका हाथ पकड़ा और अपने करीब खींच कर धीरे से कहा- यार क्यों तड़पा रही हो.. इससे तो तुम कुछ भी ना करतीं तो ठीक था। “तुझे क्या लगता है मैं तुझे जान-बूझ कर तड़पा रही हूँ..! मुझे डर लगता है कहीं मेरे पेट में कुछ …!” अब मैं समझ गया था कि वो क्यों डर रही है, मैंने उसको जोरदार चुम्मी ली और कहा- जो लड़कियाँ हर रोज अपने बॉय-फ्रेंड से चुदती हैं.. क्या वो माँ बन जाती हैं..! मैं तुम्हें एक दवा लाकर दूंगा…! हम जब चुदाई कर लेंगे.. उसके बाद तुम उसे खा लेना ..अभी क्या तुम चाहो तो शादी के बाद भी माँ नहीं बनोगी…! और वो खुश हो गई…और बोली- अब छोड़ो नहीं तो अभी मम्मी आवाज़ देने लगेंगी..! लेकिन मैं फिर भी उसे पीछे से पकड़ कर उसे अपने लंड का एहसास उसकी गाण्ड पर करा रहा था। वो मुझे पीछे हटाती हुई बोली- अभी हट जाओ नहीं तो ये गरम आयल से तेरे टोपे में आग लगा दूंगी…! मैंने कहा- मोनी डार्लिंग, यह आयल का नहीं तुम्हारी चूत के पानी का प्यासा है ..कब पिला रही हो इसे..! वो बोली- अगर ऐसे ही मेरी पैन्टी गीली करते रहोगे… तो कभी नहीं पिलाऊँगी..! मैंने कहा- कहो तो बदल दूँ ..! वो भी कम नहीं थी, उसे भी बहुत मज़ा आ रहा था। बस नखरे दिखा रही थी। बोली- फिर क्या तुम अपनी जॉकी पहनाओगे …! “जरुरत क्या है ऐसे ही रहो ना…!” थोड़ी ही देर में आंटी की आवाज़ आई, “मोनी खाना बना दिया..!” मोनी बोली- बस दस मिनट और मम्मी…! फिर मैंने गैस बंद कर दी। वो बोली- ये क्या किया …! मैंने कहा- आज मुझे भूख किसी और चीज की ही है.. मुझे वो पी लेने दो बस..! और उसको झट से अपने बिस्तर पर गिरा लिया …और चूमने लगा। वो भी मुझे चूम रही थी। मैं उसको चूमते हुए नीचे बढ़ा तो वो फिर से मना करने लगी। मैं जबरदस्ती उस के मम्मों को अपने हाथों से दबाने लगा। वो मुझसे छूटने की कोशिश करने लगी लेकिन मैं उसके ऊपर था उसने अपने मुँह पर हाथ रख लिया। मुझे अब गुस्सा आ गया मैंने कहा- साली चुड़ैल…! चाहती क्या है बोल दे..! लेकिन..ऐसे मत कर हरामजादी..!” वो तो बहुत ही बड़ी वाली थी, बोली- साले तू दस मिनट में क्या कर लेगा…! मैं गरम तो हो जाऊँगी फिर ठंडा क्या तेरा बाप करेगा..! और वो हुए चली गई और उस रात भी नहीं आई ..! आपको मेरी कहानी का पहला भाग कैसा लगा, मुझे [email protected] पर जरुर बताएं। कहानी अगले अंक में समाप्य है।
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