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दोस्तो, मैं आपकी चहेती जूही एक बार फिर अपनी ज़िन्दगी की एक और घटना प्रस्तुत करना चाहती हूँ। आप लोगों को मेरी कहानियाँ अच्छी लगी और मुझे ढेर सारे मेल भेजने के लिए मैं आपका तहे-दिल से धन्यवाद करना चाहती हूँ और आशा करती हूँ आपका प्यार ऐसे ही बरक़रार रहेगा।
चलिए अब कहानी की ओर चलते हैं। यह घटना करीब तीन साल पहले की है जब मेरी चुदाई होना नई-नई शुरू हुई ही थी और धीरे-धीरे मज़ा लेना सीख रही थी। मेरी चूचियाँ भी उभर कर काफ़ी बड़ी-बड़ी हो चली थीं। मेरी चूत में अब पहले से अधिक खुजली हुआ करती है, क्यूँकि आपको तो पता है चुदाई एक ऐसी चीज़ है जिसका नशा एक बार चढ़ जाए तो सर चढ़ कर बोलता है और कुछ यही हाल मेरा भी था। मेरी चूत और फिगर पहले के मुकाबले सुडौल हो गए थे। मेरी गर्दन भी अब सुराहीदार और खूबसूरत हो गई थी और मेरा बदन भी काफी हष्ट-पुष्ट हो चुका था।
मेरी एक सहेली थी सविता ! वो मेरे और रणवीर के साथ ऑफिस में काम करती थी। रणवीर की कहानी तो आप पढ़ ही चुके हैं। हम दोनों काफी गहरी सहेलियाँ थी और एक-दूसरे से हर बात बताती थी। कुछ भी ऐसा नहीं था जो हम दोनों एक-दूसरे से छुपाते हों। जब तक हम साथ में रहे हमें एक-दूसरे के हर अच्छी-बुरी करतूत का पूरा पता था कि हमारा चक्कर किस लड़के से चल रहा है और हमने किस किस से चुद रही हैं, चुद चुकी हैं या चुदना चाह रही हैं।
हम लोग तीन साल तक एक साथ रहे। उसी बीच हमारे कई बॉय-फ्रैंड घर आए और कितने को हमने भगाया, पर हम दोनों ने एक-दूसरे को कभी मुसीबत में नहीं डाला बल्कि मुसीबत से बचाया ज़रूर, जैसे कि आप अपने बेस्ट फ्रेंड के लिए करते हैं। साल भर पहले उसकी शादी हो गई और वो दिल्ली चली गई। मैं फिर इंदौर में अकेली हॉस्टल में रहने लगी। हमारी सिर्फ फ़ोन पर कभी-कभी बात हुआ करती थी, पर मिलना नहीं हो पाता था। उसने मुझे कई बार दिल्ली बुलाया, पर काम के चक्कर में मैं जा नहीं पाती थी।
एक बार उसने मुझे फ़ोन किया और फिर से मुझे दिल्ली बुलाने लगी। मैं मना करने लगी पर उसने इस बार एक न सुनी और बहुत जोर देने लगी कि वो अभी अकेली है और उसका जन्म-दिन भी आ रहा है, आ जाओगी तो साथ में मना भी लेंगे। मैंने मना करने की पूरी कोशिश की, पर उसने इस बार मेरी एक न चलने दी और आख़िरकार मुझे दिल्ली आना ही पड़ा। मैं दिल्ली रेलवे स्टेशन आई तो सविता मुझे लेने आई और फिर हम दोनों उसके घर आ गए।
सविता ने कहा- तुम मुँह हाथ धो लो तब तक मैं नाश्ता लगाती हूँ, फिर बैठ कर ढेर सारी बातें करेंगे। मैंने कहा- बहुत थक गई हूँ जाकर नहा लेती हूँ तभी थोड़ी थकावट दूर होगी। मैं नहाने चली गई और फिर नहाने के बाद कपड़े सूखने के लिए जगह देखने लगी तो सविता ने बताया ऊपर छत है, वहीं जाकर कपड़े डाल दो। मैं ऊपर जाने लगी, मैं जैसे ही ऊपर पहुँची वहाँ एक काला नीग्रो हट्टा-कट्टा मर्द कसरत कर रहा था। मैंने तिरछी निगाहों से उसे देखा और मुँह घुमा कर कपड़े सूखने के लिए टांग दिए और नीचे चली गई।
नीचे जाते ही मैं सविता से पूछा- यह कालिया हब्शी कौन है? तो सविता ने बताया- वो हमारे घर में पेइंग-गेस्ट है, कीनिया से आया है, ऊपर का रूम खाली था और हम दो ही लोग रहते हैं, इसलिए सोचा ऊपर का कमरा भाड़े पर दे दें। इसी बहाने थोड़े पैसे भी मिल जायेंगे। वो करीब एक महीने से यहीं रह रहा था।
मैंने पूछा- ये अफ्रीकन लोग कितना हट्टा-कट्टा होते हैं ! इतने लम्बे पता नहीं क्या खाते हैं कि ऐसा जो इतना लम्बे हो जाते हैं..! सविता बोली- ये तो है.. पर सिर्फ ये ही लम्बे नहीं होते.. इनका लण्ड भी बाकियों के मुकाबले बहुत लम्बा होता है और ये जल्दी गिरते भी नहीं, इनका बहुत स्टैमिना होता है। मैं समझ गई सविता ने लगता है खूब चखा है इसका स्टैमिना। मैं झट के पूछा- ओ हैलो डियर..! कितनी बार से चल रहा है ये स्टैमिना..! तो सविता हँसने लगी और बोली- अरे ज्यादा दिन नहीं हुए एक हफ्ता ही हुआ होगा।
मैं बोली- क्या ठाठ हैं तुम्हारे..! ‘घर-वाले’ और ‘बाहर-वाले’ दोनों से खूब मज़े ले रही हो।
सविता बोली- हाँ.. यह तो है। तुम्हारे जीजा जी काम से ज्यादातर बाहर रहते हैं मैं भी अकेली बोर हो जाती हूँ। आखिर कब तक ऐसे अच्छा लगेगा मुझे? तुम्हें तो पता ही है, हम लोग जब साथ में रहते थे हमारी क्या ऐश थी? अब इतनी पुरानी आदत है.. जाने में टाइम तो लगेगा..! और वैसे भी एक सच्ची बात बताऊँ तो मैंने आज तक जितनों से चुदवाया है इस अफ्रीकन का लंड उन सब से लम्बा और मोटा है ऊपर से ये बहुत देर तक चोदता भी है और मज़ा भी बहुत आता है। साथ ही साथ ये अपनी लम्बी जीभ से जब चाहे चूत गांड चाटने लगता है और बहुत अन्दर तक चाटता है। बड़ा मज़ा आता है इसके साथ। इसके अलावा उसमें चुदाई की सारी अच्छाईयाँ कूट-कूट कर भरी हैं। तुम भी एक बार उसकी चुदाई देख लोगी तो वो सब पुरानी चुदाइयाँ भूल जाओगी।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! फिर हम लोग अपनी बातों में लग गई और इंदौर में अपने दोस्तों की बातें करने लगे और सविता अपनी शादी की कहानियाँ सुनाने लगी। एक बज गया और खाने का टाइम हो गया। सविता बोली- मैं खाना लगाती हूँ .. तू ऊपर से उसको भी बुला ले, फिर साथ में खाना खाते हैं। मैं ऊपर गई और उसे इशारों में कहा कि खाना खा लो और नीचे आ कर टेबल पर बैठ गई।
थोड़ी देर बाद वो नीचे आया और हमारे साथ खाना खाने लगा। खाना खाकर वो फिर से ऊपर चला गया और हमने फिर से अपनी बातें शुरू कर दी। घूम फिर के हमारी बातें उसी अफ्रीकन पर आ गईं तो सविता बोली- रुक तुझे इसके लंड और चुदाई की एक झलक दिखाती हूँ। सविता अन्दर गई और ब्लू-फिल्म की सीडी ले आई और मूवी लगा दी। ब्लू-फिल्म में जैसे ही लड़की ने लड़के का अंडरवियर नीचे किया उसमें से करीब आठ इंच का तना हुआ लंड बिल्कुल काला कोबरा जैसे तन गया। मैंने जैसे ही टीवी में लंड देखा और सविता की तरफ चेहरा घुमाया तो वो अपनी जीभ होंठों पर घुमाने लगी।
सविता बोली- देखा, यह तो टीवी पर है, ऊपर तो जीता-जागता लंड है..! सोच जब ये लंड अन्दर जाएगा तो कितना मज़ा आएगा। मैं बोली- और दर्द भी बहुत आएगा..! तो सविता बोली- तू तो ऐसे बोल रही है जैसे ये दर्द पहली बार होगा..! हाँ.. मुझे पता है इतना मोटा पहली बार घुसेगा तो दर्द तो होगा, पर सोच पहली बार कोई इतनी अन्दर तक लंड डालेगा तो..कितना अच्छा लगेगा..!
हम फिर ब्लू-फिल्म देखने लगे और कैसे वो जानवरों की तरह लड़की को उठा-उठा कर चोद रहा था। यह सब देख कर और सविता से काले मूसल से चुदाई की बात सुनकर चुदाई का मन तो मेरा भी होने लगा था, पर गांड भी फट रही थी कि पता नहीं वो मेरा और मेरी चूत का क्या हाल करेगा? यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
आख़िरकार मुझे अपनी चूत की ही सुननी ही पड़ी और मन ही मन मैंने ‘हाँ’ कर दिया.. पर मैंने अभी ये बात सविता को नहीं बताई। सविता ने मुझे पूछा- आज रात का क्या प्रोग्राम है? कहीं घूमने चलना है? मैंने कहा- नहीं यार आज बहुत थक गई हूँ कल देखते हैं। सविता फिर खाना बनाने चली गई और मैं टीवी देखने लगी। रात हुई हम तीनों खाने खाने लगे और खाने की टेबल पर सविता मुझे घूर-घूर कर इशारे करने लगी और अपना मुँह पीटर की तरफ करने लगी। पीटर उस अफ्रीकन का नाम था। वो चुपचाप खाना खा रहा था और हम दोनों इशारों में बात कर रहे थे।
थोड़ी देर देर बाद खाना खाने के बाद पीटर ऊपर चला गया और हम दोनों सोफे पर बैठ कर बातें करने लगे। बात करते करते करीब दस बज गए थे, तो सविता बोली- चल ऊपर चलते हैं थोड़ी देर मज़े करते हैं। मैंने बोला- मज़े या चुदाई..! वो बोली- दोनों। मैं बोली- तुम ही जाओ मज़े करने.. मैं यहीं बैठ कर टीवी देखती हूँ।
सविता बोली- अरे चल न..! ठीक है चल तो, तू वहाँ बैठना और टीवी देखना, मैं मज़े करूँगी.. ठीक है.. अब तो चल..! वो मेरा हाथ पकड़ कर ऊपर पीटर के कमरे में आ गई। पीटर लैपटॉप पर कुछ काम कर रहा था। जैसे ही हम दोनों पहुंचे, दरवाजा खुला हुआ था, उसने लैपटॉप बंद कर दिया और हमसे बात करने लगा।
सविता ने हम दोनों का आपस में परिचय करवाया और फिर पीटर के कान में कुछ फुसुर-फुसुर करने लगी। फिर सविता ने कहा- तुम यहीं बैठो और पिक्चर के मज़े लो और हम लोग अपनी पिक्चर बनाते हैं। सुबह तो तुमने सिर्फ मूवी में देखा था आज तुम लाइव अफ्रीकन चुदाई के मज़े लूटो।
सविता और पीटर एक-दूसरे को चूमने लगे और मैं कोने में बैठकर कभी उनको तो कभी इधर-उधर देखने लगी। पीटर सविता के होंठों को चूस रहा था। फिर दोनों बिस्तर पर लेट गए और एक-दूसरे को चूमने लगे।
पीटर के बड़े बड़े हाथ सविता के बदन को मसल रहे थे और मसलते-मसलते ही उसने सविता की साड़ी की गांठ खोल दी और चूमते-चूमते उसकी साड़ी निकालने लगा। कुछ ही समय के भीतर सविता सिर्फ ब्लॉउज और पेटीकोट में थी। पीटर अपने होंठ नीचे की तरफ लेकर आया और पेटीकोट के ऊपर से ही सविता की चूत को चूमने लगा और अपने हाथ उसके जाँघों पर फेरने लगा। कुछ ही देर में उसने पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और अब नीचे सिर्फ पैन्टी ही बची थी।
मुझे लगा अब पीटर उसको भी अपने हाथों से निकाल देगा, पर उसका तो अंदाज़ ही निराला था उसने सविता की पैन्टी को अपने दाँतों में दबाया और नीचे खींचने लगा। वो कभी दांतों से उसकी चूत से पैन्टी नीचे खींचता तो कभी उसकी जाँघों से और उसने सिर्फ अपने दाँतों से ही उसकी पैन्टी घुटने तक खींची और फिर हाथों से निकाल दिया। उसने फिर अपना रुख सविता की चूत के तरफ किया और अपनी लपलपाती जीभ को सविता की चूत से सटा दिया और चाटने लगा। उसने दोनों हाथों से सविता की जाँघों को पकड़ कर चीर दिया और अपनी जीभ से उसकी चूत चाटने लगा और जीभ अन्दर घुसाने लगा।
सविता की सिसकारियाँ सुन मेरा भी मूड बनने लगा था, पर मैंने ऐसा कुछ उन दोनों के सामने ज़ाहिर नहीं किया। कहानी जारी रहेगी। आपसे आग्रह है कि कहानी को अन्तर्वासना पर रेट जरूर कीजियेगा।
मुझे मेल भी कीजिएगा। [email protected]
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