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दोस्तो, मैं रोहित! आपने मेरी पिछली कथा-श्रृंखला ‘मेरी सुप्रिया डार्लिंग’ पढ़ी।
आज मैं अपनी एक दूर की रिश्तेदार हनी के शानदार जिस्म के मजे लेने की कहानी बताने जा रहा हूँ।
मैं लखनऊ में रहता हूँ और बनारस अक्सर जाना होता है। वहाँ मेरे एक दूर के रिश्तेदार का घर है जिनसे मेरे बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं।
वे भी लखनऊ ही रहते हैं अतः जब मैं बनारस जाता तो वे अपने घर की चाबी मुझे दे देते थे और मैं आराम से वहाँ रहता था। उनके मकान से सटा मकान उनके भाई का था, दोनों घर आपस में छत से जुड़े थे जिससे आसानी से आया-जाया जा सकता था।
उस परिवार में एक लड़की थी जिसका नाम हनी था। उसकी उम्र लगभग 27 साल की थी, मांगलिक होने के नाते उसकी शादी तब तक नहीं हुई थी।
हनी एक शानदार जिस्म की मालकिन थी- लंबा कद, दूधिया रंग, पतली कमर, बेहतरीन चूचियाँ और मदमस्त चूतड़ यानि कूल्हे! कुल मिलाकर सर से पाँव तक चोदने लायक माल थी।
उसके परिवार में हनी के अलावा उसके माँ-बाप थे और एक भाई था जो बाहर नौकरी करता था। उस परिवार और हनी से मेरा बेहद औपचारिक रिश्ता था, केवल दुआ-सलाम का लेकिन मैं हनी के गदराये बदन का मजा लेना चाहता था।
मेरे दिमाग में यह बात थी कि इस उम्र तक शादी न होने से उसे भी लण्ड की जरूरत तो होगी ही, लिहाजा अगर यह पट जाए तो इसे भी लण्ड मिल जाएगा और मुझे भी बनारस में चूत मिल जाएगी। अब मैंने हनी को पटाने की ठान ली।
मैं उस मकान के ऊपरी हिस्से के कमरे में ही रहता था क्योंकि वो कमरा मेरे रिश्तेदार के बेटे-बहू का था जिनकी कुछ दिन पहले ही शादी हुई थी, लिहाजा उनका कमरा नवदम्पत्ति के हिसाब से सजा-सँवरा था। मैं इसी कमरे में हनी के साथ सहवास करना चाहता था।
हनी के पटाने के लिए ये कमरा इस वजह से भी मुफीद था क्योंकि उसका कमरा भी ऊपरी हिस्से में ही था अतः कभी-कभार दिख जाने पर हाय-हैलो हो जाती थी। एक बार मेरा बनारस का 8 दिन का कार्यक्रम था।
पहले ही दिन मेरा सामना हनी से हुआ तो मैंने उससे पानी माँगा। वो पानी लेकर आई और मुझे चाय की भी पेशकश की।
मैंने हनी की पेशकश तुरन्त स्वीकार कर ली। वो उठी और चाय लेने के लिए जाने लगी।
उसकी जीन्स में से उभरे चूतड़ देखकर मेरा लण्ड खड़ा हो गया और मैंने सोच लिया कि अगर यह पट गई तो इसकी गाण्ड भी जरूर मारुँगा। वैसे भी मैं अपने सम्पर्क में आने वाली सभी लड़कियों की गाण्ड जरूर मारता हूँ।
थोड़ी देर में वो चाय लेकर आई। मैंने चाय की खूब तारीफ की और कहा- चाय भी तुम्हारी तरह ही अच्छी है! तो वो मुस्कुराने लगी।
मैंने सोचा- हँसी तो फँसी। और वो वाकयी फँसने लगी।
शाम को उसने फिर चाय के लिए पूछा तो मैंने कुटिल मुस्कान के साथ उसकी चूचियाँ देखते हुए कहा- जो भी पिलाओ,सब पी लूँगा। वो फिर मुस्कुरा दी।
मैं अब आश्वस्त था कि जल्दी ही यह कुंवारी कन्या मेरे लंड के नीचे होगी। मैं बाथरूम में मूठ मारने चला गया। बाथरूम से निकलते ही वो चाय लेकर आ गई।
इस बार वो हम दोनो के लिए चाय लाई थी। चाय पीते हुए इधर-उधर की बातें करते हुए उसने अपने अकेलेपन का अप्रत्यक्ष रूप से ज़िक्र कर ही दिया।
उसने आगे रात को खाने की बात कही कि रात को मैं खाना लेकर आ जाऊँगी। मैंने कहा- हो सकता है कि तुम्हारे मम्मी-पापा को अच्छा न लगे? तो उसने कहा- वे नीचे ही रहते हैं और मैं अपने खाने को बढ़ा कर अपने कमरे में खाने के लिए लेती आऊँगी।
अब इसमें कोई संदेह नहीं रहा कि हनी अब कुँवारी नहीं रहने वाली थी। मैं आज रात को ही उसे चोदने के मूड में था।
रात दस बजे जब उसके माँ-बाप खाना खाकर सोने चले गये तो हनी अपना खाना लेकर ऊपर अपने कमरे में आ गई। थोड़ी देर बाद वो मेरे कमरे में आ गई और हम दोने ने खाना खाया।
खाते वक्त मैंने उसे अपने बगल में बिठाया और किसी न किसी बहाने से उसे छूने लगा। उसने कोई विरोध नहीं किया तो खाना खत्म होने तक मेरी हिम्मत और बढ़ गई। खाना खत्म करने के बाद वो जाने लगी तो मैंने उससे कुछ देर रुकने को कहा। वो अपने कमरे में बर्तन रख कर फिर मेरे पास आ गई।
मैं अचानक उठा और हनी को अपनी बाँहों में कस कर जकड़ लिया। जब तक वह कुछ समझ पाये, मैं उसे दीवाल से लगा कर अपने होठों से उसके होठों को अपनी गिरफ्त में ले चुका था। उसकी मस्त चूचियाँ मेरे सीने से दब कर पिस रही थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
मैंने हनी के रसीले होठों को भरपूर चूसा। मेरा खड़ा लण्ड हनी की चूत के ऊपर रगड़ खा रहा था।
हनी ने कुछ देर तो मेरी पीठ पर मुक्कियाँ मार कर खुद को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन उसे कोई फायदा नहीं मिला। अन्त में उसके हाथ मेरी पीठ को सहलाने लगे और उसने भी मुझे अपनी बाँहों में कस लिया।
मैं समझ गया कि यह साली अब कंट्रोल में आ गई। मैंने उसके होठों को आजाद किया। वो आँखें बंद करके जैसे हाँफ रही थी।
अब मैंने हनी के दोनों पैरों के बीच से उसकी गाण्ड में हाथ डाल कर उसे टाँग लिया और उसे बिस्तर के चार फुट ऊपर लाकर छोड़ दिया। मुलायम गद्देदार बिस्तर पड़ते ही उसकी आँखें खुली।
वो कुछ बोलने जा रही थी कि मैं उस पर चढ़ बैठा और फिर उसके होंठ चूसने लगा। यह चुम्बन करीब 5 मिनट चला, मेरे इस प्रगाढ़ चुम्बन ने हनी को बेसुध कर दिया।
अब मैं हनी के ऊपर से उतर कर उसके बगल में लेट गया और उसके सिर को अपनी बाँयी बाजू पर रख कर उसके गालों को चूमते हुए उसकी जाँघ सहलाने लगा।
वो उस वक्त एक लम्बी स्कर्ट और टॉप पहने थी, मैंने उसके स्कर्ट को ऊपर कर दिया और उसकी चिकनी जाँघों का मजा लेते हुए पैंटी के ऊपर से ही चूत को सहलाने लगा।
हनी की साँसें तेज हो गई, कुछ देर ऐसे ही करने से उसकी चूत गीली हो गई।
मैं मन ही मन मुस्कुराते हुए उठा और हनी की टॉप के बटन खोल कर उसे उसके हसीन बदन से अलग कर दिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
हनी बेसुधी के आलम में थी लेकिन जब मैंने उसकी ब्रा खोल कर निकाल दिया और उसकी 34 इन्च की गोरी चूचियाँ अनावृत हुई तो उसे जैसे होश आया और वो अपने दोनो हाथों से अपनी चूचियों को छिपाने लगी, हालांकि मुँह से कुछ नहीं कहा।
मैंने उसकी चूचियों का रसपान करना चाहता था लेकिन वो अपने हाथ ही नहीं हटा रही थी।
अब मैंने उठकर उसकी स्कर्ट खोल कर नीचे कर दिया, हनी अपनी चूचियाँ छिपाने में लगी रही और मैंने उसकी कच्छी खींच कर उसकी चूत नंगी कर दिया।
उसने अपनी जाँघों पर जाँघ चढ़ा कर चूत छिपाने की कोशिश की लेकिन मैंने उसकी जाँघों को चौड़ा कर उसकी एक न चलने दी। उसकी चूत पर छोटी-छोटी झाँटें थी, लगता था कुछ दिन पहले उसने साफ किया था।
अब हनी का शानदार चिकना ज़िस्म उद्घाटन के लिए मेरे सामने पड़ा था। मैंने हनी के हाथों को उसकी चूचियों से हटा कर उन्हें अपने कब्जे में कर के धीरे-धीरे दबाने लगा। कुछ देर दबाने के बाद मैंने बारी-बारी से उसकी चूचियों का रसपान किया। हनी मेरे बालों को सहलाती रही।
थोड़ी देर तक चूचियों का मजा लेने के बाद मैं उठा और एक तकिया हनी के मस्त चूतड़ के नीचे रखा और उसकी अनचुदी योनि पर अपने होंठ रख कर मजा लेने लगा। हनी के लिए यह पहला और नया अनुभव था, वो अपने हाथों से मेरा सर अपनी चूत पर दबाने लगी।
मैं हनी की चूत की फाँकों को चौड़ाकर अपनी जीभ को नुकीला कर अन्दर तक छेड़ने लगा। कुछ ही देर में हनी का चूतामृत मेरे मुँह में भर गया। कुँवारी चूत का अमृत पीने के बाद मुझमें और ऊर्जा आ गई।
अब मैं हनी के बगल में लेटकर उसके सर को फिर अपनी बाँह पर रखकर उसके गालों को चूमने लगा और दाहिने हाथ से उसकी जाँघ और चूत को सहलाने लगा।
कुछ देर बार मैंने हनी के होठों को अपने होठों की गिरफ्त में लिया और दाहिने हाथ की उंगली उसकी चूत में डाल दिया। हनी चिहुँक उठी लेकिन मैंने उसे मजबूती से जकड़ लिया और उंगली अंदर-बाहर कर लंड जाने की जगह बनाने लगा। कुछ मिनट बाद मैं उठा तो हनी के होठों से कराह निकल रही थी।
मैं अपना काम करता रहा। मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं मक्खन की टिकिया में उंगली धाँसे हूँ।
मैंने हनी को पुचकारते हुए कहा- हिम्मत बनाये रखो मेरी जान, अभी तो इसमें और भी मोटी चीज डालनी है। हनी कुछ न बोलकर मेरे हाथ पकड़ कर अपनी चूत से हटाने लगी लेकिन मैं चूत में उंगली करते रहा।
कुछ देर बाद वो भी इसकी अभ्यस्त हो गई। हनी लगातार अपनी गाण्ड उछाल रही थी।
मैं उसका चेहरा देख रहा था, साफ लग रहा था कि वो अपनी चूत में और भी मोटी चीज डलवाने के लिए उद्यत है। अब मैंने अपने सारे कपड़े उतारे और हनी की चूत की चीड़फाड़ के लिए तैयार हो गया।
पूरी तरह नंगा होने के बाद मैं हनी की जाँघों के बीच बैठा। हनी ने मेरे लंड को देखकर घबराते हुए कहा- प्लीज इससे कुछ मत करो।
मैंने मुस्कुरा कर कहा- एक बार मज़ा लो तो, ऐसे ही लंड के लिए तो लड़कियाँ तरसती हैं। फिर मैंने अपनी उंगलियों पर थूक लिया, आधा थूक अपने लंड के सुपारे पर लगाया और आधा हनी की चूत पर। वैसे उसकी चूत पहले से ही गीली थी।
हनी चुपचाप देखती रही। फिर मैंने हनी की चूत की फाँक अलग कर उसपर अपने लंड का सुपाड़ा रखा।
सुपाड़े के स्पर्श के से हनी सिहर उठी। अब मैंने अपने लंड को आगे बढ़ाया।
बहुत चीखी और रोई हनी लेकिन मैंने बेरहमी से पूरा लंड हनी की चूत में पेलना जारी रखा और पूरा लंड पेलने के बाद उसको अपनी बाँहों में कसकर लंड अंदर-बाहर करने लगा। हनी को चोदने का मेरा सपना अब पूरा हो रहा था।
हनी रोती-चिल्लाती रही और अपने मेरी पीठ पर मुक्कियाँ मारती रही, मैं उस वक्त उसे राक्षस नज़र आ रहा था। लेकिन मैं उसे बहरा बनकर चोद रहा था। मुझे दुनिया के सारे मजे हनी की चूत में इकट्ठे लग रहे थे। हनी चिल्लाती रही, अपनी गाण्ड हिलाती रही और झड़ती रही।
करीब बीस मिनट की जोरदार चुदाई के बाद हनी को भरपूर मजा आने लगा। जो हाथ मेरी पीठ पर मुक्कियाँ बरसा रहे थे वे ही अब गलबहियाँ करने लगे।
मैं कुछ देर पहले जो राक्षस नज़र आ रहा था, वही देवता लगने लगा। हनी बार-बार अपने गालों को चुम्मी के लिए मेरे होठों से सटाने लगी।
मैंने चुदाई रोकी और हनी से कहा- लग रहा है मेरी जान तुम्हें भी खूब मजा आ रहा है? हनी ने मेरी पीठ पर मुक्कियाँ मारते हुए कहा- तुम्हें मेरे मजे से क्या लेना? तुम अपना काम करो। ‘लो मेरी जान!’ कहते हुए मैंने हनी की ताबड़तोड़ ठुकाई करने लगा।
पाँच-सात मिनट बाद हनी का शरीर एक बार और अकड़ा और उसके मुँह से आवाज आई- रो…हित ! ‘हन्नी !’ मेरे मुँह से भी आवाज निकली, फिर हम दोनो साथ ही झड़ गये।
फिर मैं उसके बदन के ऊपर से नीचे उतर गया। हनी की चूत से खून निकलने लगा जिसे देखकर वो घबरा गई।
मैंने उसे समझाया कि यह उद्घाटन है, इसमें ऐसा ही होता है। फिर वो मेरे साथ ही चिपक कर सो गई।
करीब दो घंटे के बाद वो अपने कमरे में चली गई। अब क्या था, अगले दिन से हनी मेरे कमरे में रोज रात आने लगी।
कभी-कभी मौका मिलने पर दिन में भी। उसे अब लंड का चस्का लग गया था। पूरे आठ दिन तक मैंने उसे खूब चोदा, उसकी गाण्ड मारी, लंड चुसवाया। जैसे मन किया वैसे ठोंका। बनारस का यह ट्रिप मेरे लिए हनीमून ट्रिप साबित हुआ।
अगले छः महीने तक मैं बनारस जाने पर उसे बीवी की तरह इस्तेमाल करता रहा, मतलब पेलो-खाओ। बाकी दिन नियमित रूप से उसके साथ फोन सेक्स करता।
खैर मेरा लंड उसके लिए भाग्यशाली रहा और छः महीने बाद उसकी शादी हो गई। आज वह एक बच्चे की माँ है और अपने पति के साथ खुश है। अब मुझसे उसका कोई सम्पर्क नहीं है।
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