This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000
प्रेषक : जूजा जी यह बात उस समय की है, जब मैं 18 साल का एक नवयुवक था। मेरा शारीरिक सौष्ठव काफी सुदृढ़ था। मैं उन दिनों पहलवानी भी किया करता था। अखाड़े में मैं प्रतिदिन 800-1000 दण्ड पेलता था। दिखने में भी मैं काफी सुन्दर था। देखने वाले कहते थे कि तुम्हारी आंखें बहुत ही आकर्षक हैं। कुल मिलाकर मेरे बारे में यह कहा जा सकता है कि मैं काफी दिलकश लगता था। पहलवानी के साथ-साथ मैं ऐसा नहीं था कि आधुनिक जीवन शैली को नापसन्द करता होऊँ। मुझे सज-संवर कर रहना अच्छा लगता था। खासकर तब कोई लड़की या महिला मुझे देखती थी तो मैं और भी इतराने की कोशिश करता था। दोस्तों के साथ बैठ कर सिगरेट या शराब पीने में भी मुझे कोई ऐतराज नहीं था, पर ईमानदारी की बात यह है कि मुझे भांग खाना ज्यादा पसंद था, क्योंकि अक्सर अखाड़े में मैं जब भांग खा कर दण्ड पेलता था, तो भांग का नशा मुझे थकान का अहसास नहीं कराता था। ये तो हुई मेरी परिचय कथा, अब जो मेरे साथ हुआ वो आप सुनिए। मैं अपने शहर में एक दुकान चलाता हूँ। इसी सिलसिले में मुझको अक्सर बाहर खरीद करने जाना पड़ता है। यह घटना भी ऐसी ही एक यात्रा की है। अक्टूबर के महीने की घटना है, मैं पास के एक बड़े शहर में गया था। दिन भर की खरीददारी के बाद जब मैं बापिस अपने गृह-नगर के लिए रेलवे स्टेशन पहुंचा तो थकान सी हो रही थी। अस्तु मैंने भांग के ठेके से 10 रूपए की भांग की ‘माजुम’ खरीद कर खा ली। मुझे मालूम था कि 20 मिनट बाद ये जब अपना असर दिखाएगी तब कुछ मजा आएगा। मैं टिकट लेकर सीधे प्लेटफार्म पर पहुंच गया। स्टेशन लगभग खाली था। रात को 9.30 हो चुके थे। जनता एक्सप्रेस के आने का संकेत हो चुका था। मैं भी प्लेटफार्म पर सबसे आगे की ओर जा कर खड़ा हो गया था। तभी गाड़ी आ गई और उसके रूकते ही मैं उस में चढ़ गया। मैंने देखा कि पूरा डिब्बा खाली पड़ा था, हालांकि मुझे इस बात से कोई चिन्ता नहीं थी। मैं एक सीट पर बैठ गया। अभी गाड़ी ने सीटी दी और धीरे-धीरे सरकना शुरू ही हुआ था कि मुझे कुछ जनाना आवाजों के चढ़ने की आहट आई। मेरा अनुमान सही था, आगन्तुक यात्री तीन लडकियाँ थीं। वे लोग अपना सामान मेरे सामने की सीट पर रख कर वहीं बैठ गईं। गाड़ी ने रफ्तार पकड़ ली थी। मैं उनसे बेखबर नहीं था और उनको नजर भर कर देखा। वे तीनों लगभग 20-22 वर्ष की उम्र की रही होंगीं। तीनों ही मार्डन थी और उन सब ने जींस और टॅाप पहन रखा था। उन तीनों के नयन-नख्स तीखे और शोख थे। तभी उनमें से एक उठी और डिब्बे के अन्दर की ओर चली गई। कुछ ही पलों के बाद वो आई और अपनी दोनों सहेलियों से बोली, “यार ये तो पूरा डिब्बा ही खाली है।” तभी उन में से एक ने मेरी तरफ मुखातिब हो कर कहा- क्या आपको मालूम था कि डिब्बा खाली है। मैंने कहा- नहीं मुझे नहीं मालूम, मैं तो आया और सीधे यहीं बैठ गया, क्यों कोई बात है क्या? उसने कहा- नहीं यूँ ही पूछा। इस बात के बाद वो आपस में एक-दूसरे को देखने लगीं। मुझे भांग की खुमारी चढ़ने लगी थी, अस्तु मैं अपनी तरंग मैं मस्त था। मुझे कुछ गरमी सी लगने लगी थी, सो मैंने अपनी शर्ट के ऊपर वाले दो बटन खोल लिए थे, मैं अन्दर बनियान नहीं पहनता हूँ, सो मेरा चौड़ा सीना दिखने लगा था। पहलवानी के कारण छाती पर बाल नहीं थे, सो बिल्कुल चिकनी छाती थी। मेरी छाती देख कर उनको शायद कुछ लगा वो आपस में कुछ खुसुर-पुसुर करने लगीं। तभी उनमें से दो उठी और डिब्बे के गेट की तरफ चली गईं। मुझे दरवाजा बंद होने की आवाजें आने लगीं। मुझे लगा शायद ये लोग डिब्बे के खाली होने के कारण कुछ भयभीत हैं, सो मैंने कहा- आप लोग घबराएं नहीं, मैं हूँ किसी बात की चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं हैं। मेरी बात सुनकर उन में बची एक मुस्करा कर बोली- और अगर चिन्ता आप से ही हो तो? मैं अकबका गया। मुझे उनसे ऐसे उत्तर की अपेक्षा नहीं थी। मैंने संभल कर कहा- भला मुझसे क्या चिन्ता? “क्यों आप क्या मर्द नहीं हो?” मेरा दिमाग भन्ना गया। मैंने भी कह दिया, “असली मर्द हूँ, पर छिछोरी हरकतें नहीं करता हूँ।” इस पर वो तनिक इतरा कर बोली- तो फिर आप कैसी हरकतें करतें हो? मैं निरूत्तर था। मैंने कहा- आप लोग बेफ्रिक रहें, किसी बात की कोई चिन्ता मत करें। अब वो तनिक हंस कर बोली- अरे यार मैं तो मजाक कर रही थी। आप अन्यथा न लो। मैंने भी उनकी ‘मस्ती’ को भांप लिया था। मैंने कहा- मजाक तो अपने किसी खास से किया जाता है। मैं तो आपका अभी खास बना नहीं हूँ। इस पर वो खिलखिला कर हंस दी। उसने सीट से झुक कर नीचे रखे अपने एअर बैग को कुछ सरकाने की चेष्टा की, और अपनी दूधिया घाटी के दर्शन कराए। मैं बड़े गौर से उसकी गेंदों को देखने लगा। क्या टॉप का माल छुपा रखा था साली ने अपने टॉप के नीचे…! मेरा मन में कुछ गुदगुदी होने लगी। मैं एकटक उसकी दरार को घूर रहा था, मैं भूल गया कि वो भी मेरी नजरों को देख रही है। अचानक वो सीधी हुई और मेरी ओर देख मुस्करा कर बोली- जरा हाथ लगाना। मैंने अचकचा कर कहा- किधर? वो हंस दी और बोली- किधर लगाने की कह रही हूँ? क्या कुछ देख नहीं रहे हो, मैं किधर हाथ लगाने की कह रही हूँ! मैं संयत हुआ और कटाक्ष करता हुआ बोला- अब मुझसे हाथ लगवाने में डर नहीं लग रहा है। कहते हुए मैंने उसके बैग को उठाया और उससे पूछा, “किधर लगा दूँ?” उसने शोखी से कहा- क्या यार तुमको तो ये भी नहीं मालूम कि किधर लगाया जाता है? मैं अब समझ गया कि ये सब चालू आइटम हैं, और मुझसे मस्ती करना चाहती हैं। मैं भी बेफ्रिक था, क्यूंकि मेरे पास भी काफी समय था, और मुझे भी टाइम पास करने के लिए ये सब ठीक लगा। तभी उनकी दोनों साथिनें भी वापिस आ गईं। वो फिर मुझसे बोली- आपका क्या नाम है? मैंने कहा- मेरा नाम सुनील है.. और आप सब का? वो बोली- मैं सीमा हूँ, ये नीलू और ये शबनम है। मुझे उनका व्यवहार काफी खुला लगा, क्योंकि उन तीनों ने बड़ी गर्मजोशी से मुझ से हाथ मिलाए। तभी मैंने उनसे पूछा- क्या मैं एक सिगरेट पी सकता हूँ, अगर उनको बुरा न लगे तो? सीमा बोली- जरूर, और एक मुझे भी देना। मैं उसके इस बिंदासपन पर फिर हक्का-बक्का रह गया। मैंने अपनी जेब से ‘गोल्ड-फ्लैक’ की डिब्बी निकाली और उसे सीमा की ओर बढ़ा दी। उसने डिब्बी ली और उसमे से एक सिगरेट निकाल ली और डिब्बी मुझे वापस कर दी। मैंने कहा- नीलू और शबनम तुम लोग नहीं पीओगी क्या? इस पर नीलू बोली- नहीं हम लोग एक से ही काम चलाते हैं। मैंने कहा- वाह… क्या सोच है। अब तो मैं भी सोचता हूँ कि यह काम हम सब को एक साथ ही एक डण्डी से ही निपटा लेना चाहिए। शबनम खिलखिला कर बोली- डण्डी नहीं हम इसे डण्डा कहते हैं, और जो मजा एक ही डण्डे से आता है वो अलग-अलग में कहां है ? उसकी इस बात पर तीनों जोर-जोर से हंसने लगीं। मैं समझ गया कि सब चालू माल हैं। मैंने माचिस निकाली और सीमा की तरफ बढाई और हंस कर कहा- लो आग लगाओ। वो तपाक से बोली- हम तो ऐसे नहीं, ऐसे आग लगवाते है। वो उठी और मेरे बगल में आकर बैठ गई और अपनी छातियों का पूरा भार मेरे ऊपर डाल कर, अपने रसीले होठों में सिगरेट दबा बोली- लो लगाओ आग, मैं तैयार हूँ। मेरे शरीर में 440 बोल्ट का करंट दौड़ गया। मैंने माचिस का तीली जलाई, पर तेज हवा के कारण वो बुझ गई। मैंने कहा- सीमा मुझे खिड़की बंद कर लेने दो फिर आग लगाता हूँ। मैंने खिड़की बंद कर दी और तीली जला कर सीमा की सिगरेट को जला दिया। सीमा ने बडे़ ही मादक अन्दाज से सिगरेट का एक कश खींचा और मुझसे बोली- तुम्हारा डण्डा तो बहुत मजेदार है। मैं सोचने लगा कि अभी तूने देखा ही कहाँ है मेरा डण्डा? मुझसे फेसबुक पर भी जुड़ सकते हैं और ईमेल आईडी भी लिख रहा हूँ। कहानी जारी है।
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: storyrytr@gmail.com. Starting price: $2,000