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यह कहानी मेरे एक दोस्त की है जो मैं आपसे शेयर कर रहा हूँ। इस कहानी का एक भाग शराबी की जवान बीवी आप पहले ही पढ़ चुके हैं, आगे की कहानी मेरे दोस्त की जुबानी…
धर्मकाँटे वाले अंकल की बीवी की जिस दिन से चुदाई मैंने शुरु की उस दिन से आँटी काफी खुश रहने लगी। मुझसे फोन पर अक्सर बातें करती और किसी न किसी बहाने मुझे घर बुलाकर खूब चुदाई करवाती।
धर्मकाँटे पर जब मैं बैठता तो मेरे कई दोस्त मिलने आते रहते थे। उनमें से एक दोस्त था अनिल जो मेरा खास दोस्त था। वो भी अपने परिवार को गाँव में छोड़कर यहाँ दिल्ली में नौकरी करता था।
एक दिन उसे मैंने आँटी वाली कहानी बताई तो उसका भी कामदेव जागने लगा। अपने लंड को मसलते हुए बोला- यार शिव, मेरा भी कहीं जुगाड़ करवा दे। मैंने कहा- यार, थोड़ा सब्र कर, मैं कुछ करता हूँ।
कई दिन बाद फिर अंकल ने कुछ ज्यादा पी ली, वो लड़खड़ा रहे थे अत: मुझे उनको घर तक छोड़ने जाना पड़ा। घर में फिर वही प्रोग्राम चला। रात में आंटी मेरे पास आई और हम चुदाई के काम में लग गए। उस रात हमने तीन बार चुदाई की।
तीसरी बार चुदाई के बाद जब आंटी जाने लगी तो जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला सामने अंकल की बेटी रीमा खड़ी थी, उसने आँटी को घूरा और आँटी का हाथ पकड़कर मेरे पास ले आई, मुझसे बोली- शिव यही वफादारी तुम पापा के साथ करते हो? कल ही मैं पापा से बोलकर तुम्हें नौकरी से निकलवाती हूँ। आँटी चुप, मेरी भी हालत खराब।
फिर भी मैंने मामले को संभालने की कोशिश की, मैंने कहा- रीमा जी आप मुझे नौकरी से तो निकलवा सकती हैं लेकिन अपने पापा को उस काबिल नहीं बना सकती जिससे तुम्हारी नई मम्मी की जरुरत पूरी हो सके और मैंने जो भी किया है किसी के साथ जबरदस्ती नहीं किया, इसलिए आपसे गुजारिश है कि मामले को यहीं दबा दीजिए आगे जैसी आपकी मर्जी !
मेरी बात सुनकर रीमा सोच में पड़ गई और बोली- ठीक है, मैं यह बात किसी से नहीं कहूँगी लेकिन मेरी भी बात तुम्हें माननी पड़ेगी। मैंने कहा- बोलो? रीमा शरमाते हुए बोली- मुझे भी चाहिए ! मैंने कहा- ओके, तुम्हें भी मिलेगा, अब अपना मोबाइल नम्बर दो और जाओ, मैं बाद में बताऊँगा।
रीमा नम्बर देकर चली गई, आँटी थोड़ा डर और आश्चर्य से मुझे देख रही थी और बोली- क्या इसके साथ भी करोगे? मैंने कहा- क्यों गलत है क्या? ‘नहीं वो बात नहीं है पर मैं?’ आंटी कुछ परेशान होकर बोली। ‘फिकर नाट, तुम्हारी खुराक तुम्हें मिलती रहेगी अब जाओ।’ आँटी चली गई मगर मेरे दिमाग में रीमा को चोदने का प्रोग्राम बनने लगा।
सुबह उठकर मैंने नाश्ता वगैरह किया और धर्मकाँटे पर आ गया। वहाँ पर कई ट्रकवाले मेरा इंतजार कर रहे थे, पहले सफाई वगैरह करके उनको निपटाया फिर मैंने अनिल को फोन करके बुलाया। अनिल करीब आधे घंटे बाद आ गया।
मैंने बगल के होटल से समोसा और कोल्डड्रिंक मंगाया और हम लोग बैठ गए चुदाई का प्रोग्राम बनाने। मैंने कहा- यार अनिल, तुझसे कुछ काम है, तू इस इतवर क्या कर रहा है? अनिल- कुछ नहीं भाई, खाली हूँ, काम बताओ। मैं बोला- चुदाई करनी है, बोल करेगा? अनिल उठकर खड़ा हो गया और अपनी बेल्ट में हाथ लगाते हुए बोला- कपड़े उतारूँ भाई? मैं- बैठ जा, बैठ जा, चुदाई करनी है मेरी गाण्ड नहीं मारनी, कपड़े मत उतार। हमारे बीच इस तरह की मजाकिया बातें अक्सर होती रहती हैं।
मैंने अनिल को आंटी व रीमा वाली पूरी बात बताई और रविवार को चुदाई का कार्यक्रम तय कर दिया। फोन पर मैंने रीमा से बात की और रविवार को तैयार रहने को कहा। रीमा भी खुश हो गई।
अंकल से दो दिन पहले ही मैंने बता दिया कि मेरे दोस्त के यहाँ पार्टी है अत: आप संडे को धर्मकाँटा पर बैठ जाना। अंकल ने परमीशन दे दी। मुझे खुशी हुई कि चलो इनकी बीवी और बेटी को चोदने की परमीशन तो मिली। इतवार भी आ गया। अनिल को ग्यारह बजे तैयार रहने के लिए मैंने फोन पर कहा।
दस बजे तक अंकल जी आ गए मैंने शेविंग आदि की और अनिल को बुलाया। साढ़े दस बजे तक अनिल आ गया। मैंने धर्मकाँटा अंकल जी को सौंपा और अनिल के साथ निकल पड़ा।
आटो में बैठ कर हम करीब बीस मिनट में अंकल जी के घर पहुँच गए। मैंने कालबेल बजाई। पाँच मिनट बाद दरवाजा खुला। चुस्त और खुले गले की सफेद रंग की फ्रॉक पहन कर रीमा निकली। गोरे मुस्कुराते हुए गोल चेहरे पर गजब का आकर्षण था। उसने अनिल की ओर सवालिया नजर डाली। मैंने बताया- यह मेरा दोस्त है।
रीमा हमें अंदर कमरे में ले गई। हम दोनों सोफे पर बैठ गए। अनिल मेरे कान में बोला- यार, इतनी बढ़िया मछली कहाँ से फँसाई? मैंने कहा- कटिया डालकर मूंगताल से पकड़ी है।
हम दोनों हंसने लगे। इतने में रीमा हमारे लिए नाश्ता ले आई। हम नाश्ता करने लगे। मैंने पूछा- रीमा आंटी नहीं दिख रही? ‘मम्मी नहा रही हैं।’ रीमा ने बताया। रीमा ने मुझे अकेले में बुलाकर पूछा- अपने दोस्त को क्यों लाए हो? मैं- अरे यार जब चुदने वाली दो हैं तो चोदने वाले भी तो दो होने चाहिए, आज एक दूसरे के सामने ही चुदाई होगी। रीमा- नहीं मम्मी के सामने मैं नहीं करुँगी।
मैं- तो क्या हुआ, जब मम्मी को चुदाते हुए तुमने देख लिया तो वो भी तुम्हें देख लेगी तो क्या हो जाएगा, मैं तो कहता हूँ इसमें और मजा आएगा। काफी न नुकर के बाद रीमा मानी। मैं अनिल के पास आकर बैठा ही था कि रीमा ने आकर कहा कि मम्मी अपने कमरे में हैं और आपको बुला रही हैं।
मैं आँटी के बेडरुम में गया वो तौलिये से अपने बाल सुखा रही थी। मैंने अंदर जाकर आंटी को पीछे से कस कर पकड़ लिया और उनके कान की लौ चूमने लगा। आंटी- अरे रुको तो, इतनी बेचैनी क्यों है? कहीं रीमा आ गई तो? मैं- अगर नहीं भी आई तो मैं बुला लूँगा आज तुम दोनों एक साथ चुदोगी। मैंने अपना कार्यक्रम आंटी को समझाया। आंटी भी मान गई।
मैंने आवाज देकर अनिल और रीमा को बुलाया। दोनों आ गए। मैं और अनिल बेड पर बैठ गए। आंटी और रीमा को मैंने समझाया कि मैं जैसा कहूँ तुम लोग करती जाओ। दोनों ने सहमति में सिर हिलाया।
अब मैं जैसा आदेश करता जा रहा था वो करती जा रही थी। आँटी और रीमा ने पहले एक दूसरे को चुम्बन किया जिससे दोनों का संकोच कुछ कम हुआ, फिर दोनों ने एक दूसरे के कपड़े उतारने शुरु किए। आँटी ने पहले रीमा का फ्रॉक उतारा फिर सलवार उतारी। रीमा का गोरा बदन चमक उठा। लाल रंग की ब्रा में से गोरे-गोरे अनार बाहर आने को उतावले थे। इधर अनिल यह देखकर कसमसाने लगा।
मैंने रीमा को निर्देश दिया। रीमा ने आंटी की साड़ी खोल दी। अब आंटी सिर्फ ब्लाउज व पेटीकोट में थी। रीमा ने आँटी की छातियाँ पकड़ ली और आंटी ने रीमा की, कुच-मर्दन शुरु हो गया, लब से लब मिलकर एक दूसरे को चूमने लगे। दोनों हसीनाओं पर मस्ती सवार होने लगी।
फिर दोनों ने एक दूसरे की छातियाँ नंगी कर दी। रीमा आँटी की छाती का अग्रभाग चाटने लगी, आंटी रीमा की छातियाँ जोर से दबाने लगी। मैं अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा, मैंने कहा- अब बाकी कपड़े भी उतारो ! अनिल बोल पड़ा- भाई, मैं उतार दूँ? ‘अबे चुप, थोड़ा सबर कर !’ मैंने डांटा।
रीमा ने आँटी का पेटीकोट व आंटी ने रीमा की पैंटी उतार दी। अब दोनों पूरी तरह नंगी हो चुकी थी। दोनों की छातियाँ टाइट थी व दोनों की बुर एकदम क्लीन-शेव थी। मेरे कहने पर दोनों एक दूसरे की चूत में उँगली डालकर अंदर-बाहर करने लगी। अनिल बार-बार अपने लंड को मसल रहा था। रीमा व आँटी के मुँह से मादक सिसकारियाँ निकल रही थी।
मैं उठा और उनके करीब गया और उन्हें पकड़कर बेड पर ले आया। मैंने आँटी को सीधा लिटा दिया और रीमा को उनके ऊपर ऐसा लिटाया कि 69 की अवस्था बन गई। दोनों एक दूसरे की चूत चाटने लगी। मुँह तो दोनों का व्यस्त था पर नाक से ऊँऽऽ ऊँऽऽ की आवाजें आ रही थी। दोनों गर्म हो चुकी थी।
इधर हमारा हाल भी बुरा था। हमने अपने अपने कपड़े उतार दिए और उन दोनों के पास गए। सब्र करना मुश्किल हो रहा था अत: मैंने एक ही झटके में रीमा को उठा कर बाहर किया और अपना लंड उसके मुँह में डाल दिया। रीमा गपागप अपना मुँह चुदवाने लगी। उधर आंटी के मुँह में अनिल का लंड कबड्डी खेल रहा था।
अधिक उत्तेजना के कारण हम ज्यादा देर न ठहर सके और दोनों का मुँह भर दिया। दोनों ने चाट कर लंड की सफाई की। अब हमने साथियों की अदला बदली की। आँटी को मैंने व रीमा को अनिल ने लिटाया और उनकी चूतों को बेरहमी के साथ चूसने लगे। दोनों अपनी अपनी छातियाँ मसल रही थी और ‘आऽऽह ओऽऽह आऽउच’ की आवाजें निकालने लगीं। दोनों अपनी कमर बार बार उठा देती थी।
करीब 5 मिनट बाद दोनों चुदाई के लिए गिड़गिड़ाने लगी। मैंने अनिल को इशारा किया। हम दोनों ने लगभग एक साथ ही लंड को चूत में ठेल दिया।
आऽऽह की आवाज दोनों तरफ से आई। धीरे धीरे हमने चुदाई शुरु की। फिर हमने गति तेज कर दी। चारों मुखों से मादक सिसकारियाँ फूट रही थी। ऐसा लगता था जैसे दो जिस्म एक में ही समा जाएँगे। करीब 5-6 मिनट बाद दोनों का बदन ऐंठने लगा, आऽ… ओऽऽह… के साथ दोनों झड़ गई लेकिन हमारा काम अभी बाकी था।
हमने दोनों को बेड से बाहर खड़ा करके झुका दिया यानि घोड़ी बना दिया, फिर पीछे से लंड डालकर चुदाई शुरु कर दी। 5-7 मिनट की धक्कमपेल चुदाई के बाद हमारा भी पानी निकल गया। आँटी ने पानी अपनी चूत में व रीमा ने मुँह में लिया। हम लोग काफी थक चुके थे और प्यास भी लगी थी। आँटी फ़्रिज से ठण्डे की बोतल व नमकीन ले आई। खाने पीने के बाद एक बार फिर हमने चुदाई की। रीमा व आँटी काफी खुश थी। अनिल तो फूला नहीं समा रहा था। उसके बाद करीब 4 बजे हम लोग अगले रविवार का वादा करके वापस चले आए।
दोस्तो, इस कहानी पर अपनी राय जरूर दें।
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