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कहानी का पिछला भाग: ससुर जी के दोस्तों ने मुझे पेला-1
प्रिंसिपल मुझे कमरे में बिठा कर मेरे लिए कोल्ड ड्रिंक लेकर आए, दरवाज़ा बंद किया और मुझे बाँहों में भर लिया और चूमने लगे, मैं हर सीमा लांघने को पूरी तरह तैयार थी। मैं चाहती थी वो मुझे लिटा कर सीधे-सीधे लंड मेरी चूत में डाल दें, लेकिन वो मुझे प्यार करना चाहते थे, आराम से मुझे चोदना चाहते थे।
मैंने बटन खोल दिए उन्होंने चूची निकालीं और चूसने लगे। मैंने उनके लंड को पकड़ लिया और सहलाने लगी। वो मेरी गांड सहलाने लगे और मैंने सलवार का नाड़ा खिसका दिया। सलवार गिर गई, वो मेरी चूत को पैंटी के ऊपर से ही रगड़ने लगे। मैंने वो भी खिसका दी। वो मेरी नंगी चूत रगड़ने लगे, नीचे बैठ कर चपर-चपर चाटने लगे।
मैं पागल हो रही थी, लेकिन उनकी मॉम ने आवाज़ लगा दी। सारे मूड की माँ चुद गई… मस्ती उतर गई। दोनों बहुत गुस्से में थे लेकिन उनको क्या कहते। जल्दी-जल्दी कपड़े दुरुस्त किए और मैं निकल आई।
मैं पागल हो रही थी, लेकिन उनकी मॉम ने आवाज़ लगा दी। सारे मूड की माँ चुद गई… मस्ती उतर गई। दोनों बहुत गुस्से में थे लेकिन उनको क्या कहते। जल्दी-जल्दी कपड़े दुरुस्त किए और मैं निकल आई। सर बाहर आए और बोले- गाड़ी से छोड़ देता हूँ।
वे मुझे गाड़ी में बिठा कर खाली रोड पर ले आए और उन्होंने अपनी जिप खोल दी। लंड निकाल लिया। मैं सहलाने लगी… हय कितना बड़ा था उनका लंड !
मैं झुकी और चूसने लगी। वो बहुत ही पागल हो गए और पूरा माल मेरे मुँह में निकाल डाला, मैं फिर अधूरी रह गई थी, जबकि मैं झड़ने के बिल्कुल करीब थी। उन्होंने मुझे वापस छोड़ कर जल्दी जगह देख मुझे मिलने का वादा किया।
मैं जब चुदास की प्यासी घर लौटी, वे तीनों दारु पी रहे थे। सासू माँ पास ही सोफे पर बैठी टी.वी देख रही थीं और ननद कमरे में थी। ससुर जी बोले- बहू ज़रा फ्रिज से बर्फ निकाल देना।
मैंने सब्जी शाम को बना दी थी और ससुर जी ने बाहर से मुर्गे का इंतजाम किया था।
सासू माँ बोली- बहू बगीचे में देख सभी पौधे सूख रहे हैं। वो बके जा रही थी और मैं सोच रही थी कि अगर मेरा ध्यान नहीं जाता तो बाकी सब का फर्ज नहीं बनता क्या?
मैं गांड मटकाती हुई रसोई से निकली बगीचे के लिए.. तीनों की नज़रें मुझ पर ही थीं, मैं मुस्कुरा कर चली गई।
पांच मिनट के बाद संधू अपना मोबाइल सुनता-सुनता बगीचे में आ गया। वहाँ पहुँच कर उसने मोबाइल जेब में डाला, मेरे करीब आने लगा। अँधेरा हो रहा था ननद कभी बगीचे में नहीं आती थी।
रात को ससुर जी नशे में धुत्त पड़े थे, पर उन तीनों के दिमाग में मैं बसी थी। हालाँकि उनको सभी को यह मालूम था कि आज मौका मिलना ना के बराबर है। “क्या कर रही हो बहू?” “पानी दे रही हूँ !” बोला- मेरे पास बहुत ख़ास पानी है !
मैं समझ तो गई थी, पर अनजान बनी रही। “कैसा पानी?” “छोड़ आज तुम बहुत मुस्कुरा रही थीं ! इन टाईट कपड़ों में सेक्सी लग रही हो ! “अंकल शर्म करो.. किसी ने हमारी ऐसी बातें सुन लीं तो में बिना कुछ किए ही बदनाम हो जाऊँगी।”
वो आगे बढ़े, मुझे कलाई से पकड़ अपनी तरफ खींचा, मैं उनके सीने से लग गई, “यह सब क्या कर रहे हो अंकल !” “साली माँ की लौड़ी… जब चूची दिखा रही थी… तेरी गांड पर भी हमने हाथ फेरे.. तब तो तुमने कोई विरोध नहीं किया बल्कि हमें बढ़ावा दिया, अब खड़े लंड पर डंडा मत मार मेरी जान !” उसने मेरे होंठ चूमते हुए कहा।
उसकी ऐसी हरकतों ने मुझमे रोमांच भर दिया था, “हाथ तो तुम तीनों ही फेर रहे थे।” “पर इस वक्त तो में ही हूँ।” मेरे मम्मे दबाने लगे और हाथ घुसा कर निप्पल मसलने लगे।
मैं पहले से ही प्यासी थी, मादरचोद प्रिंसिपल ने मूड बना कर मेरा दिल तोड़ा था। संधू मेरी सलवार में हाथ घुसा कर मेरी मस्त फुद्दी को सहलाने लगा। ऊपर से चुम्मा-चाटी, नीचे मेरी फुद्दी को ऊँगली से कुरेदना… मैं तो सी.. सी कर तड़पने लगी, “अंकल छोड़ दो.. यहाँ कोई मौका नहीं है.. कुछ देर अंदर ना गई तो सासू माँ आ जाएगी पहले भी तो आपने मुझे गर्म किया और तब भी सासू माँ आ गई थी।”
उन्होंने अपनी जिप खोली और लंड निकाल लिया बोले- पकड़.. सहला कर देख और चूम ले। “वाओ.. बहुत जबर्दस्त है आपका .. मेरे जैसी प्यासी के लिए पर आप तो चले जाओगे.. मैं पूरी रात तड़प कर निकालूँगी।” “चल दो मिनट के लिए सलवार खोल !” “नहीं अंकल प्लीज़… आप किसी और दिन उतरवाना.. ये सेफ जगह नहीं है, मैं इस घर की बहू हूँ और पापा जी की नज़र में आप गिर जाओगे।” “बस दो मिनट !”
मैंने सलवार खोली, उसने चूम लिया और सुपाड़े को रगड़ने लगा, मुझे घास पर लिटाया। “अंकल यहाँ नहीं.. हम बगीचे के एंट्री वाले हिस्से में हैं।” “चल फिर..।”
वो पीछे अँधेरे में मुझे लिटाते ही अंकल मुझ पर सवार हो गए। उन्होंने बिना समय गंवाए मेरी प्यासी फुद्दी में तहलका मचा दिया था। खूब जोर-जोर से पेल रहे थे। मैं आंखें मूँद कर स्वर्ग का नज़ारा देख रही थी। उनके मोटे लंड से मुझे सकून सा मिल रहा था।
पाँच मिनट उसी अवस्था में मुझे ठोकते गए फिर मुझे कुतिया बना कर लंड ठूँस डाला और अचानक से उन्होंने लंड निकाला मेरे मुँह के करीब लाकर हिलाया, कुछ माल मेरे मुँह में चला गया और कुछ से मेरी गालों की मसाज अपने सुपाड़े से कर दी।
फिर जल्दी से लंड साफ़ करवा कर वो अंदर गए। मैंने कपड़े दुरुस्त किए और धीरे से घर में घुसी। अंकल लोगों के अलावा सामने कोई नहीं था। मैं मुस्कुराती हुई अपने रूम में घुस गई।
ससुर जी बोले- यार संधू कहाँ गायब था? तुझे तो तेरे फ़ोन ही बैठने नहीं देते। मैं उनकी बातें सुन रही थी।
संधू अंकल बोले- क्या बात करता है? हमें फ़ोन नहीं आयेंगे ऐसा कैसे हो सकता है! एक रंडी ने फ़ोन किया था.. वो बाहर से निकल रही थी कि मेरी गाड़ी देख रुक गई साली को कार में ठोक कर आया हूँ।” ससुर जी नशे में थे, “साले हमें भी मिलवा दे ऐसी से, मेरा लंड कहाँ बैठता है इस उम्र में भी घोड़े जैसी जान है।” “तुझे भी मिलवा देंगे… जल्दी दारु पियो सभी।”
ससुर जी की तड़प जायज थी। सासू माँ बहुत मोटी हैं, वैसे भी उसकी फुद्दी लेने से ससुर जी खुद कतराते होंगे। ससुर जी ने बैठे-बैठे अपना लंड पकड़ दबाया बोले- यह देख साला बातों से ही खड़ा हो गया है। “वाह वाह वाह..!” सभी बोले।
मैं दूर दरवाजे के पीछे कड़ी सब देख रही थी और मुझे सिर्फ संधू देख रहा था उसने बोला- अबे तेरा औजार भले खड़ा हो गया हो पर तेरी बुद्धि कभी नहीं खड़ी होती है।” “क्या मतलब है बे तेरा संधू।”
खन्ना और शर्मा समझ गए थे सो वे हँसने लगे और खन्ना बोला- संधू ठीक कह रहा है.. तू अपने औजार का कुछ करता क्यों नहीं है? ससुर जी बोले- अब मेरी बीवी तो किसी काम की है नहीं.. मैं अपनी प्यास किससे बुझाऊँ?
संधू बोला- चल एक माल है मेरी निगाह में कल तुझे उससे मिलवाते हैं लेकिन एक बात है…! “क्या?” “एक शर्त है तुझे अपनी आँख पर पट्टी बाँध कर निशाना लगाना होगा..।” संधू ने मेरी तरफ एक आँख मारते हुए उससे कहा। “ओ कोई गल नईं..!” “तो ठीक है फिर कल मिलता हूँ तुझसे।” महफ़िल खत्म हो गई। अब मुझे कल का इन्तजार था।
दूसरे दिन मुझे संधू का फोन आया कि तू आज उसके घर आजा, मैंने भी चूत की भूख शान्त करने की ठान ली थी सो सासू माँ से स्कूल जाने की कह कर घर से निकल गई। संधू गली के नुक्कड़ पर ही मिल गया उसने अपनी कार में मुझे बिठाया और अपने फार्म पर ले गया।
उधर बाकी के दोनों मादरचोद सुबह से ही दारू चढ़ाने में लगे थे। मुझे देखते ही मेरे ऊपर कुत्ते की तरह टूट पड़े। मैंने चिल्ला कर खुद को छुड़ाया, “कुछ तो सब्र करो मेरी ड्रेस फट गई तो मैं घर कैसे जाऊँगी?”
खैर साब मुझे भी चुदने की पड़ी थी तो तीनों के लौड़ों को खूब चूसा और दम से चुदी.. दो दो राउंड में मेरी चूत का बाजा बज गया, थक कर चूर हो गई थी सो एक पटियाला पैग मैंने भी खींच लिया।
अब ससुर का नम्बर था, पर उसका कोई अता-पता ही नहीं था। मैंने संधू से पूछा तो बोला उसको एक बजे बुलाया था आता ही होगा।
अभी 12.3बजे थे, सो मैंने सोचा एक बार और नहा लूँ, नहा कर फ्रिज में से निकाल कर कुछ खाया और ससुर से चुदने को तैयार हो गई। यह दास्तान मैं फिर कभी सुनाऊँगी.
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