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सभी तड़कते-फड़कते हुए आशिक़ों और चाहने वाले दोस्तों को मेरा नमस्कार। जैसा कि आप सबको पता है होली आ गई है इसलिए मैं आपको आज मेरी होली की आप-बीती सुनाती हूँ। आजकल के लड़के जब किसी सुन्दर लड़की को देखते हैं तो दिल करता है जल्दी से लड़की के नीचे के कपड़े खोल लूँ और अपने पास जो औज़ार है उसे घुसा दूँ।
पर दोस्तो, यह सोच हमेशा अगर आपके ज़हन में रहेगी तो इसमें किसी की भलाई नहीं है, ना तो आपकी और ना ही उस लड़की की। इन्हीं वजहों से हमारे देश में देह शोषण केस की संख्या दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। जवान तो जवान आज कल के लोग तो छोटी बच्चियों को भी नहीं छोड़ते और इन सबको देखकर और सुनकर बहुत बुरा लगता है और मैं आप लोगों से विनती करना चाहूँगी कि ऐसे ख्याल दिमाग में ना लायें और ऐसे करने की सोचना भी पाप है जिससे किसी की ज़िन्दगी ख़राब हो।
क्योंकि मुझे बहुत सारे मेल आते हैं जिनमें लिखा रहता है मैं दिन भर सेक्स से बारे में सोचता रहता हूँ, पर ये आपकी शारीरिक और मानसिक ज़िन्दगी में परेशनियाँ ला सकता है। कभी-कभी ठीक है, पर हमेशा कतई सही नही। आप अपना दिमाग दूसरे कामों में लगायें जिससे आपका मन किसी और ओर आकर्षित हो जाए, जैसे कि कहीं घूमने चले जायें, अपनी फैमिली के साथ समय बितायें, थोड़ा बहुत एक्सरसाइज करने लगें, जिससे आपको फायदा हो।
अगर फिर भी आप इन सब चीजों को दिमाग से नहीं हटा पाते हैं तो मेरा नम्र निवेदन है आपसे आप तुरंत किसी डॉक्टर से मिलें और उससे अपनी परेशानी बतायें, बतायें कि दिन भर सेक्स के बारे में सोचना और फिर कोई गलती कर बैठना, जिससे सबका नुकसान हो। यह हम जैसे पढ़े-लिखे सभ्य समाज में रहने वालों को ज़रा भी शोभा नहीं देता।
ये तो थी थोड़ी से ज्ञान की बात, चलिए आगे बढ़ते हैं, अब मैं अपनी कहानी पर आती हूँ।
मेरी उम्र चौबीस साल की है, मैं एम.कॉम. सेकंड ईयर की छात्रा हूँ। जैसे-जैसे मेरी दोस्ती लड़कों में बढ़ने लगी और प्यार और सेक्स का मज़ा लेने लगी, तैसे ही मेरा ध्यान और अन्य लड़कों में लगने लगा। इसी हफ्ते में होली आने वाली थी और कॉलेज में छुट्टियाँ शुरू होने वाली थीं इसलिए हम लोगों ने तय किया कि छुट्टियों से पहले हम लोगों कॉलेज में अपने दोस्तों के साथ होलीमनाएँगे, फिर न जाने कब मौका मिले। क्योंकि ज्यादातर लड़के लड़कियाँ तो बाहर से थे और वो अमूमन त्योहारों के मौके पर घर चले जाते हैं।
हमने कॉलेज में नोटिस लगा दिया और सबको फ़ोन कॉल्स और मैसेज के जरिये भी बता दिया कि शनिवार को कॉलेज में होली फंक्शन है इसलिए जो भी छात्र इसमें रुचि रखते हों, प्लीज वे और उनके फ्रेंड्स भी आमंत्रित हैं।
सुबह हुई सबका आना-जाना शुरू हुआ और सब अपने ग्रुप्स में एक-दूसरे को गुलाल लगाने लगे।
हमने खाने का भी इंतज़ाम कर रखा था जिसमे स्नैक्स, ठंडाई, शरबत, समोसे, पोहा जलेबी और न जाने क्या-क्या आइटम्स थे। हम लोगों भी एक दूसरों को रंग लगाने लगे और धीरे-धीरे एक-दूसरे का चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था।
मेरे कुछ फ्रेंड्स अपने भाई बहनों को भी लेकर आये थे और अब जब हम लोग होली खेल कर थोड़ा थक गए तो वो लोग हम लोगों से सबको परिचय कराने लगे। अब मैं बात को ना बढ़ाते हुए सीधे मुद्दे पर पहुँचती हूँ।
मेरी सहेली आँचल भी अपने भाई अजय को लेकर होली फंक्शन में आई थी और वो काफी हट्टा-कट्टा एंड स्मार्ट सा था और उसने सफ़ेद टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहने था, सो काफी डैशिंग सा लग रहा था। मैंने उसे ‘हाय’ किया और फिर अपनी सब अपनी मस्ती में लग गए। इस बीच कुछ बदमाश लड़कों ने जो कि हर कॉलेज में होते ही है उनने टेरेस से सब लोगों पर पानी डाल दिया और सब गीले हो गये। शुरू में तो सबने खूब गलियाँ दीं, पर थोड़ी देर बाद फिर सब अपनी-अपनी मस्ती में लग गए।
मैं भी अपने दोस्तों से बचते-बचते अचानक अजय से जाकर जोर से टकरा गए। हम दोनों इतनी जोर टकराए कि अजय गिरते-गिरते बचा। मैं उससे ‘सॉरी-सॉरी’ बोलने लगी और वो उठा मुझे पकड़ा और बोला- कोई प्रॉब्लम नहीं, इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं।
मैंने सोचा बंदा अच्छा है, थोड़ी देर इससे बात करती हूँ। मैं उससे साथ एक कोने में आ गई ताकि हम शांति से बात कर सकें। फिर हम दोनों से एक बार फिर इस बार खुद अपना-अपना परिचय दिया और फिर एक-दूसरे को देखने लगे।
मैंने अजय से पूछा- तुम आँचल के साथ इससे पहले तो कभी नहीं दिखे।
तो उसने बताया कि वो दिल्ली में पढ़ाई करता है, इसलिए यहाँ उसका बहुत कम ही आना होता है।
मैंने बोला- ओह, तो तुम दिल्ली में पढ़ते हो तो तुम्हें तो यहाँ ज्यादा अच्छा नहीं लगता होगा? कहाँ दिल्ली और कहाँ ये शहर !
अजय बोलने लगा- ऐसी कोई बात नहीं, मैं बचपन से यहीं रहता हूँ और हर सिटी की अपनी खासियत होती है और इंदौर हर सिटी के मुकाबले में सबसे अलग और बेहतर है।
मैंने पूछा- ऐसी क्या बात है जो तुम्हें इंदौर अलग लगता है?
वो बोला- यहाँ के लोग, उनका अपनापन, शांत वातावरण जो कि दिल्ली जैसी सिटी में कभी नहीं मिल सकता क्योंकि वहाँ इतनी भीड़ और ट्रैफिक है कि लोग अपनी ही दौड़ में लगे हैं, उन्हें दूसरे से कोई मतलब नहीं।
मुझे उसके ख्यालात उसकी और आकर्षित करने लगे। जैसे कि मेरी आदत है जब मुझे कोई अच्छा लगने लगता है। फिर हम लोग यूं ही इधर-इधर टहलने लगे और फिर एक पेड़ के नीचे जा कर बैठ गए।
अजय ने मुझसे पूछा- तुम अकेले होली खेल रही हो, तुम्हारा बॉय-फ्रेंड कहाँ है?
मैंने मन ही मन कहा ‘बॉयफ्रेंड तो एक भी नहीं पर फ्रेंड्स जो कि बॉयज हैं उनको तो गिन पाना भी सम्भव नहीं।
मैंने जवाब दिया- मेरा कोई बॉय-फ्रेंड नहीं।
अजय बोला- इतनी सुन्दर लड़की का बॉय-फ्रेंड नहीं है, झूठ मत बोलो।
मैंने बोला- अरे सच्ची, मेरा कोई बॉय-फ्रेंड नहीं, तुम चाहो तो अपनी बहन से पूछ सकते हो।
अजय बोला- ओके… ओके मान लेते हैं कि जूही मैडम का कोई बॉय-फ्रेंड नहीं, तो क्या अब हम जूही मैडम को अपनी गर्ल-फ्रेंड बना सकते है? क्यूंकि अभी हम दोनों सिंगल हैं।
मैंने पूछा- हम दोनों?
यह सुनकर वो हँसने लगा और बोला- आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया।
मैंने बोला- इतनी जल्दी क्या जवाब दूँ?
अजय बोला- या तो आप ‘हाँ’ कर दीजिये और हमारे साथ बैठकर होली मना लीजिये या न कहकर चली जायें और अपनी सहेलियों के साथ होली की मस्ती करें जो कि आप अभी कर रही हैं।
मैं सोचने लगी, बॉय-फ्रेंड बना लूँ तो क्या? थोड़ा बहुत जानने का और मेरी दोस्त का भाई है, तो कोई टेंशन की बात भी नहीं है और फिर दोस्तों का क्या है इसके साथ तो जब चाहे होली मना सकती हूँ। वैसे भी होली में अभी एक हफ्ता है और फिर पंचमी भी तो है मनाने के लिए।
मैंने बोला- ठीक है अजय, बना लेते है आपको अपना बॉय-फ्रेंड।
अब हम लोग पेड़ के नीचे पेड़ का टेका लेकर पैर फैला कर बैठ गए और बातें करने लगे।
क्या बातें की होगीं, ये तो आप सबको पता है, आफ्टर आल बॉय-फ्रेंड शुरू-शुरू में क्या बातें करते हैं ! ये सबको मालूम है।
बातों-बातों में आखिर उसने मुझसे वो बात पूछ ही ली जो हर लड़के को पूछने की सबसे ज्यादा जल्दी होती है कि क्या तुमने कभी सेक्स किया है?
मैंने कहा- हाँ, बस एक बार किया है !
उसका प्रमाण है मेरा पहला सांड !
जब उसने पूछ लिया तो मैं भला क्यों पीछे रहती, मैंने भी उससे पूछा- तुमने तो जरूर किया होगा। और जैसा मुझे लग रहा था, उसका जवाब ‘हाँ’ था। बातों-बातों में वो मेरे गीली जाँघों को सहलाने लगा क्योंकि मैं भी भीगी थी इसलिए मेरे भी लगभग पूरे कपड़े गीले हो गये थे।
वो सहलाये जा रहा था फिर वो एकदम से अपने होंठ मेरे होंठों के पास लाया तो मुझसे भी कण्ट्रोल नहीं हुआ और मैंने भी उसके होंठों से होंठ सटा दिए और फिर गन्दा वाला स्मूच वाला ‘फ्रेंच-किस’ होने लगा हम दोनों से बीच। कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं था।
वैसे भी आज का दिन तो मस्ती करने के लिए और मस्ती भरा दिन था। सब अपने-अपने में मस्त थे इसलिए हमने भी किसी और की तरफ ध्यान नहीं दिया और अपनी होंठों की चुदाई में लगे रहे। करीब दस मिनट बाद जब हमने इस बार का एहसास हुआ कि हम लोग झड़ने वाले हैं, मेरा मतलब चूमा-चाटी बहुत हो चुकी सो इस पर ब्रेक लगाते हुए एक-दूसरे से अलग होने लगे।
पर लड़के कहाँ मानने वाले हैं, उसने तो अपने हाथ मेरे मम्मों पर फेरने शुरू कर दिए थे और धीरे-धीरे अपनी पकड़ और तेज़ कर रहा था। हम दोनों को पता था और एहसास भी कि बस बहुत हुआ पब्लिक प्लेस में ये सब शोभा नहीं देता इसलिए हम लोगों ने इसको विराम देना ही ठीक समझा।
पर अब न अजय का लंड अब शांत होने वाला था और न मेरी चूत। मैं भी खुली होने लगी थी। आखिर अगर कोई आपको उंगली कर के छोड़ दे तो बड़ा अजीब सा लगता है। यहाँ उंगली से मेरा तात्पर्य था कि अगर कोई आपको कोई किसी चीज़ का लालच दे और आप जब उसके करीब पहुँच जायें, तो वो उसे बगैर दिए चला जाये तो ऐसा लगता है अब तो लेकर ही मानूंगी। कुछ वैसी ही हालत मेरी भी हो रही थी।
इसलिए अजय ने कहा- कहीं और चलते हैं।
तो मैंने पूछा- कहाँ?
उसने कहा- मेरे घर तुम कपड़े भी बदल लेना, तब तक आँचल भी आ जाएगी और हम थोड़ी देर आराम से बैठकर बात कर लेंगे, फिर सब लोग कहीं बाहर घूमने चलेंगे।
मैंने कहा- ठीक है।
और हम दोनों आँचल के पास चले गए और उससे कहा- मेरी तबियत थोड़ी ठीक नहीं लग रही इसलिए मैं तुम्हारे घर चली जाती हूँ। थोड़ी देर में जब तुम लोग घर आओगे फिर प्लान करते हैं कहीं पार्टी-शार्टी का।
आँचल ने कहा- ठीक है, तुम दोनों जाओ और आराम करो। मैं फ्रेंड्स के साथ थोड़ी देर में आती हूँ।
अजय ने अपनी कार निकाली और हम दोनों बैठ कर उसके घर चल दिए। रास्ते भर अजय की छेड़खानियाँ जारी रहीं। जैसे कि गियर बदलते वक़्त मेरा हाथ पकड़ना कभी बालों के साथ खेलना, कभी मेरे बदन पर हाथ फेरना। मैं भी इशारे समझ गई थी और मुझे भी देखना था आखिर दिल्ली वालों में कुछ खास है या वही सब कुछ, जो बाकी मर्दो में।
हम घर पहुँचे।
कहानी अगले भाग में समाप्त होगी। मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें।
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