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मूल लेखक : सिद्धार्थ वर्मा
सम्पादन सहयोग : उर्मिला
उसके बदन के पीछे के भाग का मालिश पूरा करने के बाद मैंने उसे सीधा किया और उसके गुप्तांगों पर एक बार फिर तौलियों से ढक दिया तथा जिस्म के सामने की ओर से उसकी मालिश शुरू कर दी।
पहले मैंने उसकी गर्दन पर क्रीम लगा कर हल्के हल्के हाथों से मला और फिर उसके कन्धों की कस कर मालिश की।
उसके बाद मैंने उसे अपनी आँखें बंद करने के लिए कहा और जैसे ही उसकी आँखे बंद हुई मैंने उसके स्तनों के ऊपर से तौलिया हटा दिया और उसके दोनों स्तन को खूब सारी क्रीम लगाई तथा गोल गोल मलते हुए स्तन की मालिश करने लगा जिससे वह कुछ ज्यादा ही उत्तेजित होने लगी और जोर जोर से सिसकारियाँ भरने लगी एवं अपने पैरों को आपस में भींचने लगी।
फिर मैं उसके स्तनों के चुचूकों को बारी बारी से क्रीम लगा कर मसलने लगा तथा उन्हें बाहर की तरफ हल्के हाथों से खींचने लगा। जब मैंने चार पाँच बार ऐसा किया तो उसकी आहें और भी अधिक तेज हो गई और उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक दिया।
मैंने उसके स्तनों को छोड़ दिया और उसके पेट की मालिश करने लगा, दस मिनट के बाद मैं उसके जिस्म के नीचे की ओर बढ़ गया। उसके बदन के सबसे खूबसूरत अंग के दर्शन करने की आशा में उसके नीचे के गुप्तांगों पर रखे तौलिया को भी हटा दिया और नाभि तथा उस से नीचे के भाग का मालिश करना शुरू कर दिया।
उसने दोनों टांगें और पैर एकदम सटा कर रखे थे जिस कारण मुझे उसकी योनि ठीक से दिखाई नहीं दे रही थी।
नाभि से नीचे उसके बाल रहित जघनस्थल पर मालिश करने के दौरान वह एक बार फिर उत्तेजित हो गई और उसने अपने दोनों पैर खोल दिए जिससे मुझे उसकी योनि एकदम साफ़ दर्शन होने लगे।
योनि के साइड की दीवारें एकदम पतली सी थी या यों कहें कि गुलाबी लब एकदम सफ़ाचट थे जिसे देख कर ऐसा लगा कि इसे अभी तक किसी ने छुआ ही न हो।
तभी मैंने देखा कि योनि के नीचे की जगह बैडशीट गीली हो गई थी मतलब वह एक बार चरम सीमा पर पहुँच चुकी थी।
तब मैंने हल्के हाथों से उसकी योनि कि तरफ बढ़ना शुरू किया और धीरे धीरे उसके भगांकुर को रगड़ना शुरू किया जिससे वह बहुत जोर जोर से आहें भरने लगी अपना सिर बार बार इधर-उधर करने लगी।
मैंने पांच मिनट तक वहाँ उसे बहुत तेज़ गति से रगड़ा और फिर मैं उसके योनि छिद्र के पास पहुँच गया और उसके अन्दर अपनी बड़ी उंगली डाल कर उसके जी-स्पॉट तथा अंगूठे से भगांकुर को रगड़ने लगा!
फिर क्या था देखते ही देखते वह उन्ह… उन्हह… आह्ह… आह्ह… की ऊँची ऊँची आवाजें निकालते हुए पुन: स्खलित हो गई।
जब मैंने उसकी मदभरी आँखों की ओर देखा तो उसने मुझसे कहा- सिद्धार्थ, मेरे पति मेरी ज़रूरतें पूरी करने के लायक नहीं है और मैं पिछले दो साल से तड़प रही हूँ ! वो इस काबिल ही नहीं है कि मुझे एक मर्द का एहसास दे पायें ! इसलिए प्लीज़ तुम मेरी मदद कर दो ! मैं बहुत दिनों से किसी ऐसे इंसान को ढूँढ रही थी जिस पर विश्वास कर सकूँ और जो मुझे संतुष्ट कर सके ! इतनी थोड़ी सी देर में तुमने तो मुझे सिर्फ अपने हाथों से ही तीन बार स्खलित कर दिया है, प्लीज़ मेरी मदद कर दो !
यह सब सुन मुझे थोड़ा बुरा भी लगा कि इतनी सुन्दर अप्सरा जैसी स्त्री को काम की देवी की तरह बनाया गया हो उसे ही यह सुख नहीं मिल रहा था लेकिन मैंने उसे कहा- मैं यह कैसे कर सकता हूँ, यह गलत होगा !
तो उसने जवाब दिया- गलत हो या सही, मैंने तो सोच लिया है ! बस अब तुम्हें मेरी मदद करनी ही होगी !
इतना कह कर वह उठ कर मेरे पास आ गई और मुझ से लिपट गई ! उसकी आँखों में आँसू थे जिन्हें मैं नहीं देख सका और उसे जो चाहिए था वो देने को सहमत हो गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मैंने उसका चेहरा ऊपर किया उसके आँसू पोंछे और अपने लबों को उसके लबों से सटा दिया और जोर जोर से चूसने लगा। वह भी मेरा पूरा साथ दे रही थी।
पांच मिनट के बाद मैं उसे गोदी में उठा कर बैडरूम ले गया जहाँ पहुँचते ही उसने मेरे कपड़े उतारने शुरू दिए और मेरे लिंग को हाथ में लेकर उसे बहुत देर तक निहारती रही फिर बोली- मैं तुम्हें अपनी सबसे कीमती चीज़ देने जा रही हूँ ! मेरी अभी तक सील भी नहीं टूटी है और मैं अभी तक कुँवारी ही हूँ !
इतना कह कर वह मेरा लिंग को हिलाने लगी जिस कारण मैं काफी उत्तेजित हो गया और जब मैंने उसे लिंग को मुँह में डालने को कहा तो उसने किसी बिना विरोध किए उसे अपने मुँह में ले लिया और जोर जोर से चूसने लगी।
उसके द्वारा दस मिनट तक मेरा लिंग चूसने के कारण मेरा वीर्य निकलने के लिए तैयार हो गया था लेकिन मैंने अति-अधिक उत्तेजित होने के कारण उसको बताने से पहले ही उसके मुँह में ही सारा वीर्य रस निकाल दिया।
उसने भी बिना कुछ कहे वह सारा वीर्य रस पी लिया। यह देख मुझे भी बहुत अच्छा लगा क्योंकि अधिकतर स्त्रियाँ पहली बार में ऐसा नहीं करती हैं।
फिर हम दोनों ने बाथरूम में जाकर एक दूसरे को नहलाया और वापिस बैडरूम में आ गए।
नहलाते समय उसके और मेरे विभिन अंगों को छूने और मसलने के कारण मेरा लिंग फिर से खड़ा हो चुका था इसलिए मैंने उसे फिर से बैड पर लिटाया और उसके ऊपर लेट कर उसका एक स्तन को मुँह में लेकर जोर जोर से चूसने लगा।
उत्तेजना की वजह उसकी आँखे बंद हो गई थी, तब मैंने एक हाथ उसके स्तन के नीचे लगाया ताकि स्तन और ज्यादा ऊपर हो जाए। मेरा ऐसा करना शायद उसे भी अच्छा लगा और उसने मेरा दूसरा हाथ पकड़ कर अपनी योनि पर रख दिया।
मैंने उसके भग्नशिश्न को हल्के हल्के रगड़ना शुरू किया करीब दस मिनट के बाद उसने मुझ से कहा- सिड, अब रहा नहीं जाता ! प्लीज़ जल्दी से अपने लिंग को मेरी योनि के अंदर डाल दो और मेरी प्यासी योनि की प्यास बुझा दो !
उसकी यह बात सुन कर मैं उसके ऊपर से उठा और उसकी योनि के पास पहुँचा और उसे चाटने लगा ताकि वह पूरी तरह से गीली हो जाए ! उसके बाद मैंने उसके मुँह के पास जाकर अपने लिंग को गीला करने को कहा तो उसने बड़े प्यार से उसे ऊपर से नीचे तक चूस कर गीला कर दिया।
फिर मैंने उसे बैड के साइड में लिटाया और उसके दोनों पैर खोल कर और अपना लिंग योनि के मुँह में रख कर एक हल्का सा धक्का दिया जिससे वह एकदम से बहुत जोर से चिल्लाई तो मैं रुक गया। मैंने उसके हाथों को अपने हाथों में अच्छी तरह से पकड़ लिया तथा उसकी उँगलियों को अपनी उँगलियों में जकड़ा और उसके स्तन को चूसने लगा।
थोड़ी देर बाद जब वो फिर से ज्यादा उत्तेजित हो गई तो मैंने थोड़ा जोर से धक्का दिया जिससे लिंग के आगे का मुण्ड भाग पूरा उसकी योनि में घुस गया। वह शायद इसके लिए पहले से ही तैयार थी क्योंकि उसने अपने होंटों को कस कर बंद कर दर्द को सहन करने की कोशिश तो की लेकिन वह दर्द उसकी आँखों से आँसू बन कर बाहर आ गया। उसके साथ ही उसकी योनि में से खून का एक छोटा सा फव्वारा भी निकल पड़ा! मैं थोड़ी देर तो रुका और उसके चेहरे और गले को चूमता रहा जिससे उसे कुछ अच्छा लगा और उसने मुझे आगे बढ़ने को कह दिया! मैंने धीरे धीरे उसकी योनि पर अपने लिंग का दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया ओर एक और जोर का धक्का दे दिया जिससे मेरा पूरा लिंग उसकी योनि के अंदर चला गया। इस बार उसकी एक बहुत ही ज़ोरदार चीख निकल गई लेकिन जल्द ही अपने को काबू में कर के शांत भी हो गई!
उसके शांत होते ही मैंने अपने लिंग को धीरे धीरे उसकी योनि के अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया और वह भी अपनी पहली सुहागरात का आनन्द लेने लगी !
वह मेरे हर धक्के का बराबर उत्तर देती रही और ‘आःह… आःहह… ओह्ह.. ओह्ह येस… ओह्ह येस… फक्क मी सिड… आःह्ह… आ:ह्ह… फक्क हार्ड… बोलती रही।
उसकी यह पुकार सुन कर मैं कुछ जोश में आ गया और मैंने अपनी गति तेज कर दी, लगभग पच्चीस मिनट तक उसके साथ संसर्ग करता रहा तब उसने आँखें बंद किये हुए ही बोला- सिड आई एम कमिंग, कम ऑन डू इट फास्ट डार्लिंग !
यह आदेश सुन मैंने अपने धक्कों की गति बहुत तेज़ कर दी और उसके साथ सम्भोग क्रिया करता रहा ! कुछ ही क्षणों में उसने मुझे जोर से पकड़ लिया और आःह्ह… आःह्ह… आ… आह्ह्ह… करते हुए स्खलित हो गई।
उसी समय मुझे भी महसूस किया कि मेरा भी स्खलन होने वाला था तो मैंने उस से पूछा- मेरी जान, मैं अपना वीर्य रस कहाँ पर निकालूँ?
तो उसने कहा- मेरी योनि के अंदर ही निकाल दो जानेमन !
तीन या चार झटके और मारने के बाद मैंने अपना सारा वीर्य रस उसकी योनि के अन्दर ही स्खलित कर दिया और निढाल होकर उसके ऊपर ही लेट गया।
कुछ देर यथास्थिति बनाये रखने के बाद मैंने अपने लिंग को उसकी योनि से बाहर निकाला और उसके बाजू में लेट गया !
वह भी सरक कर मेरे पास आई और मेरे सीने में सिर रख कर लेट गई और मुझसे बातें करने लगी। उसने बातों ही बातों में यह बताया कि जब मैं उसकी मालिश कर रहा था तब उसका तीन बार स्खलन हुआ था !
उसके बाद मुख मैथुन करते समय उसका में सिर्फ एक ही बार स्खलन हुआ था लेकिन यौन संसर्ग में उसका चार बार स्खलन हुआ था ! आधा घंटा सुस्ताने के बाद जब मैं जाने के लिए उठ कर तैयार होने लगा तब उसने मुझे रात भर उसके घर में उसके पास ही रुकने को कहा।
पहले तो मैंने मना कर दिया लेकिन जब उसने बहुत मिन्नत करी तो मैं मान गया। उस पूरी रात में मैंने उसके साथ चार बार यौन संसर्ग किया जिसमें उसे सबसे ज्यादा मज़ा तब आया जब मैंने उसे गोदी में उठा कर उसके साथ सम्भोग किया।
उसकी सुहागरात समाप्त होते होते सुबह के चार बज गए और तब हम दोनों थक कर एक दूसरे से लिपट कर सो गए।
सुबह दस बजे मैंने उससे विदा ली तब उसने जाते समय मुझे पैसे देने चाहे पर मैंने मना कर दिया और बोला- पैसा ही सब कुछ नहीं है उससे ऊपर भी बहुत कुछ है !
और उसके घर से निकलने से पहले उसे एक वादा देकर उससे विदा ली कि वह जब भी मुझे बुलाएगी मैं उसकी मालिश करने और उसकी प्यास बुझाने ज़रूर आऊँगा !
प्रिय मित्रो, आपको मेरी यह रचना कैसी लगी, कृपया मुझे सन्देश भेज कर ज़रूर अवगत कराएँ ताकि मैं अपनी अगली रचना में आपके सुझाव को शामिल करके उसे और भी अच्छे से प्रस्तुत कर सकूँ !
अंत में मैं अपनी सहयोगी श्रीमती उर्मिला जी को इस रचना के अनुवाद, सम्पादन, शुद्धिकरण और सुधार करने में उनके द्वारा दिए गए योगदान के लिए अपने दिल से आभार व्यक्त करता हूँ ! अगर उर्मिला जी मेरी रचना को अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने का बीड़ा नहीं उठाती तो शायद आप इस रचना को कभी भी नहीं पढ़ पाते !
अन्तर्वासना के पाठको एवं मित्रो, सिद्धार्थ वर्मा की रचना को पढ़ने के लिए उर्मिला का सप्रेम धन्यवाद स्वीकार करें ! आप सबको सिद्धार्थ की यह सत्य घटना पर आधारित रचना कैसी लगी?
आप अपनी प्रतिक्रिया सिद्धार्थ को तथा मुझे मेल आई डी [email protected] gmail.com एवं [email protected] gmail.com पर भेज सकते हैं ! 3947
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