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आप लोग पिछले भागों में पढ़ ही चुके हैं कि मेरी उम्र उस वक़्त सिर्फ 18 साल थी, जब मैंने अपनी पहली चुदाई की थी। आपने पढ़ा कि कैसे मैंने कीर्ति दीदी और बबिता आँटी को चोदने के लगभग 6 महीने बाद पहली बार एक कुंवारी लड़की मेरी दोनों पैरों से अपाहिज मधु दीदी चोदी।
अगर उस दिन तख्त की कील में दीदी की स्कर्ट न अटकी होती तो मैं मधु दीदी को कभी नहीं चोद पाता। उस दिन दीदी को चोदने के बाद मैं झड़ कर दीदी के ऊपर ही लेट कर अपने चरम आनन्द को महसूस कर रहा था। मुझे पहली बार चोदने में इतना आनन्द मिला था, इतनी कामुक चुदाई हुई थी कि मैं मात्र 20 मिनट ही दीदी की चूत चोद पाया था।
दरअसल इतनी इच्छा थी दीदी को चोदने की कि जब दीदी ने खुद अपनी स्कर्ट उतारी तो मैं बेकाबू हो गया। दीदी के नंगे चूतड़ों को पहली बार हाथ से छुआ तो और आग लग गई। दरअसल दोस्तो, घोड़ी स्टाइल मेरा सबसे पसंदीदा स्टाइल है। घोड़ी बनी लड़की तो बड़ी ही कामुक लगती है। इसलिए मैं बहुत गर्म हो गया था और मैंने बिना दीदी के जिस्म को ठीक से प्यार करे, उनकी चुदाई कर डाली।
पर मुझे ख़ुशी इस बात की थी कि बाद के 10 मिनट दीदी आनन्द के मारे पागल हो रहीं थीं और ज़ोरों से मज़े से सिसकार भी रही थीं। दीदी मेरे साथ ही झड़ भी गई थीं। हम दोनों ही संतुष्ट थे।
10 मिनट दीदी के ऊपर लेटने के बाद मैंने धीरे से अपनी आँखें खोलीं। मुझे जैसे होश सा आया। मैं बिल्कुल नंगा अपनी लंगड़ी मधु दीदी के ऊपर लेटा था। मैं उठ कर खड़ा हो गया और देखा तो मेरे लंड पर खून लगा था। यह मेरे लिए बिल्कुल नया अनुभव था। खून देख कर मुझे बहुत संतुष्टि हुई। आख़िर मैंने पहली बार एक कुंवारी चूत जो चोदी थी।
अगले ही पल जैसे मुझे दीदी का ख्याल आया। अब मुझे समझ आया कि दीदी शुरू के 10 मिनट इतनी ज़ोरों से क्यूँ सुबक रही थीं। मुझे अहसास हुआ कि दीदी को शायद बहुत दर्द हुआ होगा। मैंने दीदी की तरफ देखा। दीदी अभी भी किसी मासूम सी बच्ची की तरह बिल्कुल नंगी उल्टी लेटी थीं। मेरी दीदी बड़ी प्यारी सी नंगी गुड़िया लग रही थी।
तभी मेरी नज़र बिस्तर पर लगे बहुत से खून के दाग पर पड़ी। मुझे अब दीदी पर प्यार आ रहा था। मैं दीदी के पास नंगा ही बैठ गया। दीदी उल्टी लेटी थीं और अपना चेहरा अपने हाथों पर रख रखा था। मैं थोड़ा झुका और दीदी की नंगी मुलायम कमर पर प्यार से हाथ फेरा और एक चुम्मी ली।
जैसे ही मैंने दीदी की कमर पर चूमा मुझे दीदी की हल्के-हल्के रोने की आवाज़ सुनाई दी। मैं थोड़ा डर गया कि कहीं दीदी को चुदाई के वक़्त ज़ोर से लग तो नहीं गई, क्यूंकि खून भी देख चुका था और दीदी अब सुबक भी रहीं थीं।
“दीदी मुझे माफ़ कर दो। आपको बहुत दर्द हुआ ना दीदी मेरे लंड से?” मैंने दीदी से माफ़ी सी माँगी।
दरअसल चुदाई के पहले भी दीदी और मैं एक-दूसरे के बड़े अच्छे दोस्त टाइप के थे, पर वो सब सही कहते हैं न कि एक लड़के और लड़की में दोस्ती किसी भी पल चुदाई में बदल सकती है और आज दीदी और मेरी दोस्ती चुदाई में बदल गई थी। मुझे अब दीदी के रोने से बहुत दुःख भी हो रहा था कि मैंने अपनी इतनी प्यारी दीदी को चोद डाला।
मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मैंने दीदी के विकलांग होने का फ़ायदा उठाया। दीदी और मैं एक-दूसरे के बहुत करीब थे पर अब मुझे डर लग रहा था कि अब दीदी पता नहीं मुझसे बात करेंगी कि नहीं। मैं शर्मिंदा होकर तख्त से उठने लगा, तो दीदी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और घूम कर मेरे बदन से लिपट गईं और मेरे होंठ चूम लिए और फिर मेरी गोदी में चढ़ने की कोशिश करने लगीं।
मैं तुरंत बिस्तर से खड़ा हुआ और दीदी को नंगी हालत में किसी बच्ची की तरह उठा कर गोद में ले लिया। दीदी तुरंत मेरे सीने से लिपट गईं। मैं समझ गया कि बात कुछ और है। दीदी चुदाई से नाराज़ नहीं हैं बल्कि कुछ और बात है। दीदी का चुदने के बाद अभी भी इस तरह मेरी गोदी में बिल्कुल नंगी हालत में मुझसे लिपटना मुझे बड़ा अच्छा लगा।
दीदी का वज़न इतना कम था कि मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैंने किसी 11-12 साल की बच्ची अपनी गोद में उठा रखी हो। कल तक जिस दीदी को नंगा तक देखना बस कोरी कल्पना लगता था आज वही दीदी बिल्कुल नंगी मेरी गोद में चढ़ी हुई थीं। दीदी अभी भी मेरे सीने में मुँह छुपाए धीरे-धीरे सुबक रहीं थीं। मैं दीदी की नंगी कमर और मुलायम चूतड़ों पे हाथ फेर रहा था, जैसे उन्हें चुप कराने की कोशिश कर रहा होऊँ।
“क्या हुआ… है दीदी आपको…? अब बताओ भी…पुन्च्छ… पुन्च्छ… पुन्च्छ… पुन्च्छ…।” मैं दीदी के कन्धों पे चूमता और दीदी की परेशानी पूछ रहा था।
मैंने 4-5 बार दीदी से इस तरह पूछा पर दीदी ने जवाब देने के बजाये मुझे और कस कर जकड़ लिया और फिर उनकी पकड़ ढीली हुई और वो मेरी गोदी से उतर कर फिर से तख्त पर उल्टी लेट गईं।
“क्या हुआ दी…?” “तू अब घर जा वीर… प्लीज…!” “दीदी आओ पहले तुम्हारी चूत को गुनगुने पानी से धो दूँ और विको टर्मरिक लगा दूँ। देखो थोड़ा खून भी निकल गया था तुम्हारी चूत से।” मैंने हिम्मत करके उन नाज़ुक पलों में दीदी की मदद करने के लिए कहा। “मैं कर लूँगी वीर पर अभी तू जा… मुझे शर्म आ रही है।”
“अच्छा बड़ी आईं अपने आप करने वाली, बताना ज़रा चूत की सिकाई कैसे होती हैं?” मैं खुद हैरान था कि दीदी को चोदने के बाद मैं दीदी का इतना ख्याल रख रहा था।
बबिता की तो मैं चोद-चोद कर हालत ख़राब कर देता था और फिर कभी इस तरह उसकी चूत की सिकाई नहीं करता था, पर आज दीदी की वजह से ही मैं इतना ज्यादा ध्यान रखता हूँ किसी को भी चोदते वक़्त कि लड़की को ज़रा सी भी परेशानी न हो।
हाँ… बबिता को कई बार मैंने अपनी बुरी तरह चुदी हुई चूत की सिकाई करते देखा था। वो अपनी चूत की सिकाई गरम हल्दी के पानी में रोटी का टुकड़ा डुबा कर करती थी। बबिता कहती है कि इससे चूत ज्यादा चुदने से काली भी नहीं पड़ती और हमेशा चूत मुलायम और कसी बनी रहती है।
मुझे उस समय दीदी की इतनी चिंता हो रही थी कि मैं खुद ही नंगा रसोई में गया और कैसरोल से सुबह की एक रोटी और हल्दी वाला गर्म पानी ले आया। “चलो दीदी सीधी लेट जाओ… आओ… मुझे सिकाई करने दो अपनी इस तितली की।” दीदी ने फिर अपने आँसू पोंछे और सीधी होकर लेट गईं। “ले तू मानेगा नहीं… और ये रोटी का क्या करेगा?” “अरे दीदी इस रोटी से ही तो सिकाई होगी तुम्हारी इस बुलबुल जैसी चूत की।”
दीदी शर्मा गईं और अपनी आँखें बंद कर लीं। मैंने रोटी का एक बड़ा टुकड़ा तिकोने आकार का तोड़ा जैसे पिज़्ज़ा का टुकड़ा होता है और उसे हल्दी वाले गरम पानी में डुबो दिया। फिर 1 मिनट बाद टुकड़ा बाहर निकालकर पहले हाथ पर रख कर देखा कहीं ज्यादा गरम तो नहीं है और फिर दीदी की नंगी सूजी हुई चूत पे रख दिया। “आआह्ह… वीर…!” “बस बस दीदी… इस रोटी की सिकाई से तुम्हारी चूत को काफी आराम मिलेगा।”
मैंने दीदी की आँखों से फिर से एक आँसू निकलता देखा और उन्होंने फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं।
मैंने करीब 20 मिनट तक रोटी को हल्दी के पानी में डुबो-डुबो कर दीदी की चूत की सिकाई की। उसके बाद जब मैंने दीदी की चूत को अपने बनियान से पोंछना चाहा तो दीदी ने फिर से कहा, “ओह्ह्ह…वीर…अब जा तू…मैं ठीक हूँ…!”
मैंने वहाँ और रुकना ठीक नहीं समझा। दीदी के आँसू अभी भी आ रहे थे। मैंने अपने कपड़े पहने और जल्दी से दीदी के घर से निकलकर अपने घर आ गया। वापस आकर मैं थोड़ा परेशान हो गया। मुझे लग रहा था कि शायद दीदी बहक गई थीं और उन्होंने मदहोशी में मुझसे अपनी चूत चुदवा ली।
पर अब क्या हो सकता था ! अब तो दीदी की चूत चुद चुकी थी। मुझे घर आकर भी विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं अभी अभी एक लंगड़ी और कुंवारी लड़की की चूत चोदकर आ रहा हूँ। मैं अपने बिस्तर पर लेट गया और उन हसीन पलों को याद करने लगा, जब मैं दीदी को पहली बार घोड़ी बना कर चोद रहा था।
और तभी लगा कि क्या सही में मैंने एक लंगड़ी लड़की को बहकाया और चोदा। यही सब सोचते सोचते मुझे नींद आ गई।
हालाँकि रात को डिनर के बाद हमारी बबिता आँटी मेरी मम्मी से कहने आईं कि मैं आज रात उनके पास ही सो जाऊँ ताकि वो सुबह को मुझे भूगोल पढ़ा सकें, पर मैंने मना कर दिया। मुझे पता था कि वो मुझे कौन सा भूगोल पढ़ाएंगी पूरी रात।
मैं मधु दीदी की वज़ह से काफ़ी परेशान था, पर जब मैंने बबिता को बाहर आकर मम्मी से बात करते देखा तो लंड एकदम कूद के खड़ा हो गया। कुतिया पूरी तैयारी से आई थी। एक सॉफ्ट सा पजामा और टी-शर्ट डाल रखी थी, बाल खुले, नाखूनों पे नेल पॉलिश और पैरों में पाज़ेब। छम-छम करती कुतिया रसोई में मम्मी की मदद कर रही थी। मैं भी जाकर रसोई के दरवाज़े पर जाकर खड़ा हो गया और अपनी घोड़ी को इतने कामुक लिबास में इधर-उधर फुदकते हुए देखने लगा।
साली बिल्कुल गिट्ठी सी थी बबिता ! सांवला रंग और तीखे नयन नक्श।
मैंने हाथ वाली वीडियो गेम अपने हाथ में पकड़ रखा था। जब मम्मी मेरी तरफ देखती तो मैं वीडियो गेम की तरफ देखने लगता, वरना अपनी उस प्यारी घोड़ी बबिता की तरफ, जिसे आज फिर से बुरी तरह चोदने का मन करने लगा था। मेरी हालत पहले ही ख़राब थी जब मधु दीदी बिल्कुल नंगी मेरी गोद में चढ़ गई थीं।
मेरा फिर से दीदी को चोदने का मन था पर दीदी मुझे बार-बार जाने को कह रही थीं। सच कहूँ तो मुझे दीदी की गाण्ड मारने का मन कर रहा था। बबिता ने मुझे गाण्ड का दीवाना बना दिया था। इसलिए जब मैं दीदी को घोड़ी बनाकर उनकी पीछे से चूत चोद रहा तो दीदी की गाण्ड का छेद उनके कूल्हों की दरार से बार-बार झाँक रहा था।
पर मेरी ना जाने क्यूँ दीदी की गाण्ड को छूने तक की हिम्मत नहीं हुई। मैं सोच रहा था कि एक दिन इस लंगड़ी घोड़ी की गाण्ड का बैंड भी मैं ही बजाऊँगा, पर दीदी के रोने से ऐसा लगा, जैसे अब पता नहीं दीदी की चूत भी मिल पाए कि नहीं।
खैर इन हालातों में मैंने भी सोचा कि आज रात फिर से बबिता का भूगोल चोदा जाये और कल तबियत ठीक नहीं होने का बहाना कर के स्कूल नहीं जाऊँगा और दिन में फिर से अपनी गुड़िया सी लंगड़ी दीदी को चोदूँगा।
“हाँ आँटी, मेरा भूगोल का टेस्ट है 2 दिन बाद। आप मेरी तैयारी करवा दो।” मैंने बबिता से कहा और आँख मारी। “ठीक है आ जाना ऊपर, खाना खा कर। एक-दो घंटे अब पढ़ा दूँगी, फिर बाक़ी सुबह जल्दी उठ कर।” “पर आँटी मेरा कल केमिस्ट्री का प्रैक्टिकल है। मैं तो आज रात पीछे खेत वाले कमरे में सोऊँगा।” मैंने नया प्लान बनाया।
दरसल हमारे घर के पिछले हिस्से में खेत था जहाँ हमने मुंडेर बना कर एक बड़ा दरवाज़ा भी लगवा रखा था। उसी खेत के आखिरी कोने में एक कमरा बना हुआ था, जहाँ मैंने एक छोटी सी लैब बना रखी थी। स्कूल में मुझे केमिकल एक्सपेरिमेंट का शौक था। जब मैं अपने खेत वाले रूम में होता था तो मेरे घर वाले भी मुझे डिस्टर्ब नहीं करते थे। खेत का दरवाज़ा भी बंद रखना पड़ता था ताकि खेत में कोई गाय वगैरह न घुस जाये।
“तुझे तो बस पढ़ाई से बचने के बहाने चाहिए। बबिता तू आज पढ़ाएगी इसे। ये कोई खेत वाले कमरे पे नहीं जाएगा। तेरे पास ऊपर आकर ही पढ़ेगा।” मम्मी ने मुझे डांटते हुए कहा। “पर मम्मी मेरी फाइल अभी तक तैयार नहीं हुई और लैब में घंटे भर का कुछ काम भी है। भूगोल कल पढ़ लूँगा।” “अरी बबिता तू भी चल आज वहीँ खेत वाले कमरे पर ही सो जाना और इसे सुबह पढ़ा भी देना।” “ये ठीक रहेगा… अब फंस गए बच्चू !” बबिता ने चहकते हुए कहा। मम्मी को शायद बिल्कुल भी शक नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है कि मैं बबिता को चोद भी सकता हूँ।
बबिता शायद मुझसे भी ज्यादा उतावली थी मुझे भूगोल पढ़ाने के लिए। मैंने उसे 3 दिनों से नहीं चोदा था। उसकी चाल ही बता रही थी कि वो कितनी कुलबुला रही थी। वो नहाई हुई लग रही थी और मुझे पूरा विश्वास था कि उसने एनीमा लेकर अपनी गाण्ड भी बिल्कुल साफ़ कर रखी होगी।
और फिर मम्मी परचून की दूकान से जीरा लेने के लिए गई, तो बबिता ने तुरंत अपना पजामा नीचे खींच दिया। उसे पता था कि मम्मी 10 मिनट से पहले वापस नहीं आयेंगीं और उनके आने की आहट भी पहले ही सुनाई पड़ जाएगी।
मौका मिलते ही मैं अपने घुटनों पर बैठ गया और बबिता की गाण्ड चाटने लगा। उस कुतिया की गाण्ड से बड़ी प्यारी खुशबू आ रही थी। शायद उसने गाण्ड में आम के स्वाद वाला एनीमा लगाया था।
मैं मज़े से चाट रहा था और बबिता की सिसकारियाँ फूटने लगीं। उसने अपने दोनों हाथ अपने घुटनों पर रख लिए और अपनी मस्त नंगी गाण्ड को और पीछे को निकाल दिया। ऐसा करने से बबिता की चूत भी पीछे से उभर आई। मैंने उस मोटी को चूत तुरंत अपने मुँह में दबा लिया। बबिता की तो टाँगें कांप गईं और उसने मेरे मुँह में चूत के अमृत की कुछ बूँदें टपका दीं।
मैं उसकी मस्त पपोतों वाली चूत को ऐसे चूसने लगा जैसे आम की गुठली को कोई भूखा चूसता है। तभी बबिता ने अपना एक हाथ पीछे करके मेरे बाल पकड़े और मेरे सर को ऊपर की तरफ़ खींचने लगी। मैंने उसकी चूत अभी भी अपने मुँह में दबा रखी थी। मेरे बाल खींचे तो मैंने उनकी चूत के दोनों पपोतों को अपने दांतों में दबा लिया और उसकी चूत भी खींच गई।
उसके मुँह से ज़ोरों की निकली, “उईई उईई… राजा… थोड़ा मेरी गाण्ड भी चाट ना… तेरे से गाण्ड चटवाने में बड़ा मज़ा आता है रीईईए।”
मैंने चूत छोड़ दी और अपने हाथों से उसके पूरे चूतड़ फैला लिए। बबिता ने फिर से अपने दोनों हाथ अपने घुटनों पर रख लिए और बेसब्री से मेरे से अपनी गाण्ड चटवाने के लिए चूतड़ और पीछे को निकाल दिए। मैंने बहुत सारा थूक उसकी गाण्ड की दरार में थूका तो थूक फिसलकर नीचे गिरने लगा, तो मैंने उसके दोनों चूतड़ झट से आपस में चिपका दिए।
फिर जब मैंने उसके चूतड़ों को फिर से खोला तो उसका मस्त भूरा छेद थूक से गीला होकर चमक रहा था। मैंने छेद में झट से अपनी जीभ घुसेड़ दी। बबिता एकदम से सिसकार पड़ी।
तभी बबिता ने मेरे हाथ अपने नंगे चूतड़ों से हटाए और झट से पजामा ऊपर खींच लिया। उसे शायद मम्मी की आहट आ गई थी। वो तुरंत रसोई में घुस कर पानी पीने लगी। तभी मम्मी आ गईं।
मुझे आप अपने विचार यहाँ मेल करें। कहानी जारी रहेगी। [email protected]
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