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प्रेषक : इमरान ओवैश
“क्या देख रहे हो? कभी कुछ देखा नहीं क्या?” उसने बड़े बेबाक अंदाज़ में पूछा।
“जी !” मैं एकदम से सकपका गया।
वह अजीब से अंदाज़ में हंसी… मैंने झेंप कर चेहरा घुमा लिया। इस वक़्त शाम के चार बजे थे मगर आकाश पर छाई घटाओं और बारिश ने दिन में ही रात कर दी थी। छुट्टी का दिन था इसलिए सड़कों पर ट्रैफिक भी न के बराबर था, मैं किसी काम से द्वारका आया था और इस वक़्त बस या ऑटो के इंतज़ार में एक सूने बस स्टॉप पर खड़ा था जो सेक्टर बारह के मेट्रो स्टेशन तक पहुँचा दे।
वह लड़की पास की एक बिल्डिंग से निकल कर आई थी और उसी स्टॉप पर आ खड़ी हुई थी… यहाँ तक आने में वो बुरी तरह भीग गई थी।
देखने में वो चौबीस-पच्चीस की उम्र की बेहद हसीं लड़की थी जो इस वक़्त एक चुस्त जींस और टी-शर्ट में थी। चुस्त कपड़ों की वजह से उसकी फिगर 36-30-38 के रूप में साफ़ नुमाया हो रही थी। उसके कपड़े भीग कर उसके तन से चिपक गए थे जिससे उसका ऊपरी हिस्सा साफ़ पता चल रहा था, ब्रा भी भीग गई थी जिससे उसकी तनी हुई चूचियों के चुचूक भी साफ़ दिख रहे थे और सच पूछिए तो मेरी नज़र उसी में अटकी थी। उसके बाल खुले हुए थे और भीग कर उसके कन्धों और पीठ पर फैल गए थे।
“सिग्रेट है?” उसने बड़ी बेतकल्लुफी से पूछा।
मैंने बड़ी शराफत से उसे सिग्रेट और लाईटर निकाल कर दे दिया। वह मेरे पास ही सरक आई और एक उत्तेजक परफ्यूम की खुशबू उसके भीगे तन की गंध के साथ मिक्स हो कर मेरे नथुनों से हो कर मेरे दिमाग में चढ़ गई, मैं मदहोश सा हो गया…
उसने सिग्रेट सुलगाई और पहले कश का धुआँ मेरे चेहरे पर छोड़ते हुए मुझे गौर से देखने लगी।
“कहाँ रहते हो?” उसके अंदाज़ में कुछ ऐसी बात थी जैसे मैं लड़की हूँ और वो लड़का।
“कृष्णा पार्क !” मैंने अपना संकोच और झिझक छोड़ कर उसकी गहरी काली आँखों में झाँका, मैं ये नहीं ज़ाहिर होने देना चाहता था कि मैं उससे कही कमज़ोर पड़ रहा था।
“इधर कैसे आ गए?”
“किसी काम के सिलसिले में आया था, मगर बारिश में फंस कर रह गया।”
“यहीं के रहने वाले हो? मेरा मतलब है दिल्ली के?”
“नहीं, भोपाल से हूँ, लेकिन यहाँ नौकरी करता हूँ।”
“गुड, जो देख रहे थे… पहले कभी देखे नहीं क्या, जो इतने गौर से देख रहे थे?”
“कई बार देखे हैं मगर हर बार नए लगते हैं…” जब वो खुद से बेशर्मी पे उतारू थी तो मैं कहाँ पीछे रहने वाला था- दरअसल भीगने की वजह से साफ़ दिख रहे थे इसलिए !
“हम्म… सुदेश को भी पसंद थे बहुत !” कहते हुए उसकी आँखे मुझ से हट के सड़क पर पड़ती बारिश में कही खो गईं जैसे किसी को देख रही हों।
“कौन सुदेश?” मैंने पूछ ही लिया.. जब वो खुद खुल रही थी तो मुझे खुलने में क्या ऐतराज़ था।
मौसम भी ऐसा मदहोश करने वाला था कि ऐसे में भी जो न बहके तो क्या?
“मेरा एक्स ब्वायफ्रेंड… उसे बहुत पसंद थे ये !” एक पल के लिए मुझे ऐसा लगा जैसे उसकी आवाज़ में कोई मायूसी हो, किसी को खो देने वाली लेकिन उसने अगले पल में खुद को संभल लिया और एक विद्रूप पूर्ण मुस्कराहट के साथ मुझे देखने लगी- पर वो औरों की तरह पजेसिव होने लगा था… बात बात पर शक करना, टोकना, चिड़चिड़ाना, मेरी जासूसी करना… आई डोंट लाईक इट। मैं जयपुर से हूँ और यहाँ नौकरी करती हूँ, अकेली रहती हूँ और आज़ाद ज़िन्दगी जीती हूँ। मुझे शादी और उसके बाद की बंधी टकी ज़िन्दगी बिलकुल नहीं पसंद। मेरी नज़र में ज़िन्दगी मौज मस्ती है न के कोई ज़िम्मेदारी। मैं किसी पुरुष को अपने ऊपर अधिकार नहीं दे सकती … मेरे लिए वो ‘यूज़ एंड थ्रो’ आइटम है, इस्तेमाल करो और जब जी भर जाए, फेंक दो।
कमाल है… ऐसे मौसम में जब मैं घर पहुँचने के लिए फिक्रमंद हो रहा था मुझे एक सूने बस स्टॉप पर मेरे जैसी ही कमीनी लड़की मिल गई थी जो खुद से चाँद मिनटों की मुलाक़ात में ही खुली जा रही थी।
“क्या सोच रहे हो?” उसने जैसे मेरी आँखों में उतर कर मेरे मन को पढ़ने की कोशिश की- मैं इतनी जल्दी खुल कैसे गई.. मैं ऐसी ही बिंदास हूँ। वैसे एक बात और भी है… सामने वाला भी मुझे पसंद आना चाहिए।
मेरा दिल जोर से धड़का… क्या कह रही थी वह?
मैं उसे पसंद आ रहा था !
“सुदेश के बाद से खाली हो?” मैंने होंठों पे जुबां फेरते पूछा।
“हाँ… वीक हो गया और कोई मिला ही नहीं अब तक। तुम्हें खुले दिमाग की लड़कियाँ पसंद हैं या वो शर्मीली, सकुचाई जो सम्भोग के आनन्ददायक पलों में आँखें बंद कर के धीरे धीरे सिसकारती हैं?”
“सच कहूँ तो मुझे वो लड़की पसंद आती है जो बाहर भले खुद को नकाब में छुपाये रखे और किसी को जल्दी छूने तक न करने दे लेकिन सम्भोग के पलों में किसी रंडी की तरह व्यवहार करे !” मैंने भी सीधे मन की बात कह दी और यह सुन कर उसकी आँखें चमक उठीं।
“और खुद नेचर में कैसे हो… सुदेश की तरह पजेसिव?”
“नहीं, मैं आम खाने से मतलब रखता हूँ, गुठलियाँ गिनने से नहीं। मुझे लाइफ में पहली बार मेरी बीवी ने यूज़ किया और मुझे उस तरह यूज़ होने से ऐतराज़ हुआ लेकिन उसके बाद से मैं खुद को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि मैं भी इस यूज़ होने से अपना उल्लू साधूँ।”
“मतलब शादीशुदा हो?”
“नहीं, तलाकशुदा ! जिस लड़की के साथ शादी हुई थी वो किसी से सेट थी और उससे शादी होने में कई अड़चने थीं, सो उसने घर वालों के जोर डालने पे मुझसे शादी कर ली लेकिन मुझे तो हाथ भी न लगाने दिया और अपने यार से ठुकती रही.. उसका मतलब ही यही था कि मैं सब जान कर उसे तलाक दे दूँ और वो एक सेकेण्ड हैण्ड सामान की तरह अपने यार के घर पहुँच जाए और उसके घरवाले भी ऐतराज़ न कर पायें। मैंने उसकी मर्ज़ी पूरी कर दी लेकिन अब शादी से नफरत हो गई… मेरी ज़िन्दगी का उसूल भी ‘यूज़ एंड थ्रो’ हो गया है अब। बल्कि अब मैं तो खुद ही कहता हूँ कि आओ… मुझे यूज़ करो। मुझे कोई परमानेंट रिलेशन नहीं चाहिए, बस कैजुअल रिलेशनशिप ही ठीक है और मैं इसी लाइन पे चलता हूँ।”
“हम्म, मतलब मेरे ही जैसे हो।” उसने सिगरेट का काम तमाम कर के उसे बहार की भीगी हवा में उछाला और मेरी तरफ देखते हुए अर्थपूर्ण स्वर में कहा, “साइज़ क्या है?”
“6×2” कहते हुए मेरे स्वर में हीनता का पुट था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
“इम्प्रेसिव… मैंने अक्सर लोगों को कहते देखा है कि मेरा 7, 8, 9, इंच तक है… अन्तर्वासना पर भी कहानियों में अक्सर लोगों को यही लिखते देखा है जबकि एशियन कॉन्टिनेंट में यह साइज़ नहीं होता, कुछ अपवाद ज़रूर होते हैं। हालाकि सेक्सुअल सैटिसफिक्शन का लम्बे अंग से लेना देना नहीं होता… योनि बोतल जैसी होती है पहले मुंह, फिर गर्दन और आगे बोतल का पेट … योनि में घर्षण को महसूस करने वाली सारी मांसपेशियाँ इसी गर्दन टाइप डेढ़ दो इंच के संकरे पैसेज में होती हैं जिसे 4 इंच के अंग से भी महसूस किया जा सकता है।”
मैंने राहत महसूस की।
“तुम्हारे घर में कोई टोका टोकी करने वाला तो नहीं… मतलब देर से क्यों आये? रात में कहाँ थे? वगैरा वगैरा…?”
“नहीं ! मैं अकेला रहता हूँ यहाँ।”
“गुड, ऑटो आ रहा है… फैसला तुम्हारे हाथ में है, मेट्रो स्टेशन जाना है या मेरे फ्लैट पर !”
अब ऐसी मिलती चीज़ को कोई भला यूँ ही छोड़ता है। उसने ऑटो रुकवाया और मैं भी उसके साथ ही बैठ गया। ऑटो वाला शीशे में बार बार उसे देख रहा था लेकिन वह बाहर कहीं बारिश में देख रही थी। ऑटो ने कुछ मिनट में हमें सेक्टर बारह की एक बिल्डिंग तक पहुँचा दिया जिसमें उसका फ्लैट था।
उसकी रिहाइशगाह उसके जैसी ही डीसेंट और सुसज्जित थी।
“तुम टीवी देखो, मैं बुरी तरह भीग गई हूँ… चेंज करके आती हूँ।”
वह चली गई और मैं बैठ कर टीवी देखने लगा… करीब दस मिनट बाद वो वापस अवतरित हुई तो सिर्फ सिल्क के गाउन में थी और ऐसी सेक्सी लग रही थी कि मेरे पप्पू को सर उठाना ही पड़ गया। मैं टीवी से निगाहें हटा कर उसे देखने लगा। वो मेरे पास ही आकर बैठ गई।
“कैसी लग रही हूँ?”
“बहुत खूबसूरत… पर मेरे ख्याल से इन कपड़ों के बगैर ज्यादा अच्छी लगोगी।”
उसने मुस्कराते हुए गाउन को अपने जिस्म से अलग कर दिया… एक पल के लिए भी ऐसा न लगा वो असहज हुई हो। मेरी आँखें चमक कर रह गई… कुंदन सा बदन आवरण रहित होकर मेरी आँखों को चुन्धियाने लगा… पूरा जिस्म जैसे संगमरमर की तरह तराशा हुआ था। दिलकश चेहरा, खुली घनेरी जुल्फें, पतली सुराहीदार गर्दन, गोल मांसल कंधे, भरी और कसे हुए वक्ष, जिनके अग्रभाग पे गुलाबी सी नोक और आसपास बड़ा सा कत्थई घेरा, उनके नीचे नाज़ुक सी कमर और पेडू के नीचे बेहद हल्के रोयें जैसे अभी परसों ही शेव की हो और उनकी घेराबंदी में वो ज्वालामुखी का दहाना… जिसके गहरे रंग का ऊपरी हिस्सा मुझे मुँह चिढ़ा रहा था।
“बेचारा परेशान हो रहा है।” उसने मेरे पप्पू की तरफ इशारा किया जो पैंट में तम्बू की तरह तन गया था।
मैंने उसका आशय समझ कर अपने कपड़े उतारने में देर नहीं लगाई। चूँकि मैं एक अच्छे कसरती शरीर का स्वामी था इसलिए उसे पसंद न आने का सवाल ही नहीं था… बाकी मेरा पप्पू ज़रूर मेरे हिसाब से छोटा था लेकिन वो उसके साथ संतुष्ट थी तो ठीक ही था। मैं उसके पास ही बैठ गया।
“कुछ खाओगे?”
इस हालत में भी खाना?
“हाँ ! तुम्हें।”
उत्तर तो देना ही था और सुन कर वो मादक अंदाज़ में हंस पड़ी।
अब मेरा एक हाथ उसके एक कंधे पर था और दूसरा स्पंजी चूचियों को सहला रहा था और उसने मेरे पप्पू को अपने हाथ से पकड़ कर अंगूठे से टोपी को रगड़ना शुरू कर दिया था।
कहानी जारी रहेगी।
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