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दोस्तो, नमस्कार, मेरा नाम चित्रेश है, आपने मेरी कहानी चाँद की चांदनी में चाची की चूत चाटी का पहला भाग पढ़ा जिसमें मैंने आपको बताया था कि मैं अपने चाचा के साथ ही रहता था।
मेरे चाचा की नई-नई शादी हुई थी, चाची 26 साल की थीं और दिखने में भी खूबसूरत थी, चाची के साथ आपने मेरी आपबीती को पढ़ कर मुझे मेल किये उस के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया।
पेश है मेरी कहानी का आगे का भाग-
चाची अपने नाख़ून मेरी पीठ पर चुभो रहीं थीं, मैं चाची के स्तनों पर काट रहा था। तभी चाची ने मुझे कस लिया और तेजी से झटके मारने लगीं।
मैंने कहा- मेरा निकलने वाला है। वो बोलीं- अंदर ही छोड़ दो। कब से तरस रहीं थी इस पल के लिये इतना। मेरे धक्के चरम पर थे।
‘प्लीज चित्रेश, तेजी से करो! और जोर से! मेरा भी होने वाला है! तेज और तेज… हम्म्म्म हम्म्म्म…’ करते करते झड़ गईं।
मैं भी उनके साथ ही झड़ गया, हम दोनों पसीने लथपथ थे। ऐसा लग रहा था, मानो आग से निकले हों!
चाची के चेहरे पर ख़ुशी के भाव थे मानो उनकी प्यास कुछ शांत हो गई।
सुबह चाची और मैं एक दूसरे से नजरें नहीं मिला पा रहे थे।
चाची मेरी तरफ अपनी पीठ कर के लेटी थी। और हम दोनों अब भी नग्न अवस्था में थे। मुझे उनकी सुंदर चिकनी पीठ को देख कर फिर से वासना जागने लगीं थी।
मैं चाची की पीठ पर चिपक गया और उनकी गर्दन पर चुम्बन करने लगा। चाची की सिसकारियाँ निकलने लगीं वो ‘अह-अह्ह’ करने लगीं और बोलीं- चित्रेश नहीं, अब नहीं प्लीज़!
किन्तु मैंने छोड़ने के लिए नहीं पकड़ा था, मैं उनको चूमता रहा, और वो मना करती रहीं। वे मुझको खुद से दूर करने की कोशिश करती रहीं। मैंने अपना हाथ उनकी चूत पर रख दिया और उनकी चूत के अंदर उंगली डालने लगा।
चाची ने कुछ देर तो विरोध किया किन्तु बाद में वो शांत पड़ गईं, और मैंने अपने दो उंगलियाँ एक साथ चूत में डालने की कोशिश की तो उन्होंने खुद ही अपनी टाँगे फैला दीं।
शायद अब उनको भी मज़ा आने लगा था। देखते ही देखते चाची ने मुझे नीचे लेटा दिया और अपनी चूत को मेरे मुँह में रगड़ने लगीं।
अब मैं उनकी चूत चाट रहा था और उनके उभारों को दबा रहा था। कभी मैं उनके स्तन दबाता, कभी कमर को सहलाता, तो कभी उनके चूतड़ों पर हाथ फेरता।
फिर वो नीचे झुकीं और मेरे लंड को अपनी चूत पर रगड़ने लगीं और मेरे होंठों को चूसने लगीं। अब उनके सर पर भी वासना हावी हो चुकी थी। फिर उन्होंने मेरे लंड को पकड़ कर चूसना शुरू कर दिया।
मैं सम्भोग के सागर में जाने को आतुर था। तभी चाची मेरे लंड पर बैठ गईं, और ‘ओह्ह ओह्ह’ करते हुये दर्द का आभास करने लगीं।
मैं उत्तेजित हो चुका था, तो मैंने अपनी कमर को जोर का झटका दिया। ‘ओह्ह्ह्ह, धीरे करो चित्रेश!’ चाची दर्द भरी आह निकालते हुए बोलीं।
मैंने अपना काम चालू रखा। कुछ ही पलों में चाची मेरा साथ देने लगीं। वो मेरे ऊपर लेट कर ही तेजी से झटके मार रहीं थी।
जिस प्रकार वो मेरे साथ सेक्स कर रहीं थी, मुझे यह समझ नहीं आ रहा था कि वो मुझे चोद रही हैं या मैं उनको।
हम दोनों एक-दूसरे से इस प्रकार लिपटे हुए थे जैसे एक जिस्म दो जान! शरीर तो मानो आग में तप रहा था।
कुछ देर पश्चात मैंने चाची को अपने नीचे लेटा दिया, और तेज़ी से झटके मारने लगा।
चाची मुझे पागलों के जैसे चूमने और काटने लगीं। उनके नाख़ून मेरी पीठ पर चुभते जा रहे थे। किन्तु सेक्स की हवस में दर्द का पता कहाँ चलता है।
‘चित्रेश, तेज़ी से करो प्लीज मैं जानी वाली हूँ हम्म हम्म्म, आह्ह, और करो आह्ह्ह…’ करते हुए चाची ने मुझे अपनी दोनों टांगों के बीच में कस लिया और झड़ने लगीं। मैं भी उनके साथ ही झड़ता चला गया।
सच में दोस्तो, सेक्स के अंतिम पल में जो मज़ा आता है, उसके आगे तो दुनिया की हर ख़ुशी बेकार सी लगती है।
मनुष्य स्वयं को सुंदर दिखाने के लिए कितने प्रकार के फैशनेबल कपड़े पहनता है, जिससे उसको ख़ुशी मिलती है, किन्तु वो यह भूल जाता है कि जिंदगी का परम सुख वह बिना कपड़ों में ही सम्भोग करके ही प्राप्त करता है।
वो अहसास मुझे उसी वक्त हुआ। अब हम दोनों एक-दूसरे की बाहों में पड़े थे। चाची मुझसे लिपटी हुई थी।
कुछ देर बाद मेरे मोबाइल में फोन आया, तो हम दोनों उठ खड़े हुए।
अब चाची अपने स्तनों को मुझसे छिपा रहीं थी। फोन मेरी बुआ के लड़के का था।
वो बोला- भैया, मम्मी की तबियत ख़राब है, तो दादी दो दिन के बाद आयेगीं। यह सुनते ही मैंने बोला- क्या दादी दो दिन के बाद आयेंगी?
मेरे मुँह से यह सुनते ही चाची की आँखों में भी चमक आ गई। मैंने बोला- ठीक है, जब आयेंगी तो बता देना! मैंने फोन रख दिया और मैं चाची को कामुक निगाहों से निहारने लगा।
चाची बोलीं- ऐसे क्या देख रहे हो? हटो मुझे जाने दो। मैंने बोला- कहाँ जाना है? वो बोलीं- नहाने जाना है। मैंने कहा- मैं भी चलता हूँ, दोनों साथ में नहाएंगे।
तो वो मना करने लगीं।
मैंने उन्हें पकड़ कर गोद में उठा लिया और बाथरुम में ले गया। फिर हम दोनों ने वहाँ पर एक-दूसरे को नहलाना शुरु कर दिया।
मैं चाची के शरीर पर साबुन लगा रहा था, और वो मेरे शरीर पर, उनके हाथों के स्पर्श से मेरे लंड में उतेजना आ गई, वो फिर से खड़ा हो गया।
चाची उसे पकड़ कर सहलाने लगीं, बोलीं- चित्रेश, तुम्हारी बीवी तुमसे खुश रहेगी, क्योंकि तुम्हारा लंड बहुत ही अच्छा है। किसी भी स्त्री की प्यास बुझा सकता है। मैंने उनसे कहा- फिलहाल तो आप मेरी प्यास बुझा दो। वो बोलीं- बस अब नहीं, मैं थक गई हूँ।
तो मैंने बोला- अब मैं इसका क्या करूँ? यह नहीं मानेगा। तो वो नीचे झुकीं और उन्होंने मेरा लंड मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। कभी मेरे आंड को चूसतीं कभी हाथ से सहलातीं।
मैं उत्तेजित हो चुका था। थोड़ी देर बाद मैं फिर झड़ गया।
अब हम दोनों नहा कर बाहर आ गये।
तभी दरवाजे की घण्टी बजी, देखा तो पड़ोस वाली भाभी आई थीं, फिर चाची और वो बातें करने लगीं।
जैसे-तैसे दिन बीता, मैं तो बेचैन था, फिर से सेक्स करने के लिये। 9 बजते ही मैं बिस्तर पर लेट गया। चाची आईं, अब उन्होंने टॉप और लोअर पहना था और लोअर में उनके नितम्ब मदहोश कर रहे थे।
वो आते ही मुझ पर टूट पड़ीं और मैं उन पर एक दूसरे को चूमने चाटने में ऐसे खो गये कि कब शरीर से सारे कपड़े निकले, पता भी नहीं चला। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
और देखते ही देखते हम दोनों ने एक चुदाई का सफर खत्म कर एक-दूसरे की प्यास को थोड़ा शांत कर दिया।
चाची पेट के बल लेटी थी, और उनकी उभरी हुई पिछाड़ी को देख के मेरा मन में दुबारा चुदाई की इच्छा होने लगी। मैं उनके ऊपर लेट गया और उनकी पीठ पर चुम्बन करने लगा। वो भी आपने हाथों से मुझे सहला रहीं थी।
मैंने अपना लंड उनकी गांड पर रख के थोड़ा सा धक्का दिया। चाची चिहुँक उठीं और बोली- चित्रेश, यह क्या कर रहे हो? पीछे से मत करो, मुझे डर लगता है। मैंने उन्हें बोला- आप मुझ पर विश्वास रखो, ज्यादा दर्द नहीं होने दूंगा। वो मान गईं।
मैंने थोड़ा सा तेल उनकी गांड के छेद पर लगा के ऊँगली को अंदर डाला, तो वो मना करने लगीं- नहीं चित्रेश प्लीज़ दर्द हो रहा है।
पर मैंने उनकी बातों को अनसुना कर के अपने लंड पर तेल लगाया, और उन्हें घोड़ी बना कर अपने लंड को उनको गांड के छेद पर रख दिया।
मैं दोनों हाथों से उनके स्तनों को दबाने लगा उनको मज़ा आने लगा, वो भी अपनी गाण्ड को मेरे लण्ड पर रगड़ने लगीं।
मैंने लंड को उनकी गांड में डाल दिया। चिकनाई अधिक होने से लंड आधा घुस गया था। वो चिल्ला पड़ीं- ऊईई आह्ह्ह … चित्रेश छोड़ दो, मुझे मुझसे नहीं सहा जा रहा है।
मैंने एक हाथ उनकी चूत पर रख दिया और उंगली को चूत अंदर-बाहर करने लगा जिससे उन्हें राहत मिली और वो मुझे किस करने लगीं।
मैंने जैसे ही देखा कि वो अब थोड़ा मजे ले रहीं हैं तो एक जोर का झटका मारा। वो झटके को सहन नहीं कर पाईं और बेड पर गिर पड़ीं। उनकी आँख में दर्द के आँसू थे और गाण्ड में से खून निकल रहा था।
यह देख कर और मेरे चेहरे पर खुशी थी कि चूत नहीं तो गांड तो फाड़ने को मिली।
मैं उनको किस करने लगा। उनके शरीर को सहलाते हुए धीरे-धीरे धक्के मारता रहा।
कुछ देर बाद लंड असानी से उनकी गांड में अंदर-बाहर करने लगा, अब वो मेरा साथ दे रहीं थी। उनको भी मज़ा आने लगा था, वो खुद ही घोड़ी बन अपनी गांड को आगे-पीछे करने लगीं।
मैंने लंड बाहर निकाल दिया और उन्हें पलटा कर उनके स्तनों चूसने लगा, उनकी टाँगें अपने कन्धों पर रख लीं और अपना लंड दुबारा से उनकी गांड में डाल दिया।
मैं अब और धक्के मारने लगा, उन्हें चूमने लगा, मेरे धक्के तेज़ हो गये, मैंने उन्हें कस लिया और मैं कुछ देर उनकी गांड मारने के बाद, उनकी गांड में ही झड़ गया।
वो भी थक चुकी थी और मैं भी।
गांड मारने का मज़ा भी अलग ही है यारो! किसी स्त्री को मज़ा आ जाए तो खुश हो कर देती है और दर्द हो तो जबरदस्ती ना करें।
यह थी मेरी आपबीती, आज हम दोनों अपनी जिन्दगी में खुश हैं। आपको मेरी कहानी कैसी लगी? मुझे आपके कमेंट्स का इंतजार रहेगा!
लेखक के आग्रह पर इमेल आईडी नहीं दी जा रही है.
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