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आपने मेरे इस सत्य घटना के पहले भाग में पढ़ा कि किस तरह मैंने योजना बनाकर पंचर वाले की गांड मारी।
अब मैंने उससे कैसे गाण्ड मरवाई, यह पढ़ें और मेल करें, मुझे अपने पाठकों के मेल का इंतजार रहता है।
जब मैंने पंचर वाले की गांड मारी और रात 4 बजे बिलकुल भीगा हुआ घर पहुँचा तो मेरी बीवी ने पूछा- इतनी देर कैसे लग गई?
मैंने कहा- एक तो रात में बारिश और ऊपर से गाड़ी पंचर हो गई जो 5 किलो मीटर खींचनी पड़ी। उसकी वजह से देर हो गई। शुक्र मनाओ कि एक बंदे ने इतनी बारिश में पंचर बना दिया तो मैं आ भी गया वर्ना वहीं से सुबह फिर काम पर जाना पड़ जाता।
यह सुनकर उसको थोड़ी तसल्ली हुई और उसने फटाफट एक कप चाय बनाकर दी और खाने के लिए दिया।
मैंने भी जल्दी-जल्दी खाना निपटाया और अपनी बीवी को बाहों में लपेटकर सो गया।
अगले दिन मैं फिर उसी रास्ते से होता हुआ अपने काम पर गया। जाते समय देखा कि वो पंचर वाला लड़का किसी ट्रक का टायर बना रहा था। उसने मुझे जाते नहीं देखा।
इसी तरह कई दिन बीत गए मैं रोज उधर से निकलता था, पर रुकने का टाइम नहीं मिला क्योंकि काम पर जाते समय जल्दी होती थी और लौटते समय देर होती थी।
दो हफ्ते के बाद एक रात जब मैं लौट रहा था तो फिर दिल हुआ चलो आज थोड़ी मस्ती हो जाये कम से कम लंड ही चूस लूँ या चुसवा लूँ।
मैंने उसकी दुकान के सामने अपनी बाइक रोकी।
उसने जैसे ही मुझे देखा दौड़ कर मेरे पास आया और बोला- बाबूजी उस दिन के बाद आज दिखाई दिए हो ! आप तो कह रहे थे कि यहाँ से रोज निकलता हूँ, पर मैंने कभी नहीं देखा।
मैं बोला- यार अहमद, तुमने नहीं देखा पर मैं तो रोज तुम्हें देखता हूँ। जब जाता हूँ तो तुम कुछ न कुछ काम में लगे होते हो। और जब लौटता हूँ तो रात हो जाती है। मैं भी काम की वजह से थका होता हूँ। तुम्हें देखते हुए निकल जाता हूँ। आज बड़ा मन हुआ कि तुम्हारे साथ बैठ कर चाय पीऊँ तो रुक गया।
थोड़ा रुक मैंने उससे बोला- जाओ चाय ले आओ, दोनों पीते हैं।
यह कह कर उसको एक पचास का नोट दिया वो लेकर चला गया और चाय ले आया। बाकि पैसे मैंने उसको ही दे दिए कि तुम रख लो बाद में और चाय पी लेना। उसने बचे हुए पैसे जेब में डाले और चाय पीने लगा।
इसी बीच मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा- क्या आज खाली हाथ जाऊँगा दोस्त कुछ मजे नहीं लेंगे हम लोग?
वो हंसा और बोला- बाबूजी, आज तो आपकी बारी है, मुझे खुश करने की।
मैंने कहा- भाई तुम जो चाहो अपने मन की कर लो। मैं तुम्हारे सामने खड़ा हूँ पर यहाँ कैसे हो पायेगा? अभी तो ढाबे में भी भीड़ है और इस समय तुम्हारी दुकान पर कोई भी आ सकता है। यहाँ किस तरह हम लोग मजे करेंगे?
वो बोला- बाबूजी उस दिन की तरह तो मजे नहीं कर पाएंगे पर अगर आप चाहो तो पीछे खेत है। उधर चलते हैं और 10 या 15 मिनट में निपट कर आ जायेंगे।
मुझे कोई आपत्ति नहीं थी, मैं तो रुका ही इसीलिए था, उसने एक बोतल उठाई उसमें पानी भरा और बोला- बाबूजी मैं जा रहा हूँ, आप भी 5 मिनट के बाद उधर आ जाना।
उसके जाने के बाद मैं भी खेतों की तरफ चल पड़ा और लगभग 100 मीटर जाने के बाद उसने मुझे आवाज़ लगाई तो मैं उसकी तरफ चला गया।
वहाँ पर एक बाग था। उसने एक पेड़ के नीचे अपनी लुंगी बिछाई और अपने सारे कपड़े उतार दिए। उसका 7″ का लंड बिल्कुल तीर की तरह सीधा था।
चांदनी में बिना टोपी का सुपाड़ा चमक रहा था। मैं तुरंत झुका और उसके लंड को अपने मुँह में भर लिया और बैठ कर तगड़ी चुसाई शुरू कर दी।
वो भी अपनी गांड हिला-हिला कर झटके दे-दे कर ज्यादा से ज्यादा लंड मेरे मुँह में घुसाने की कोशिश कर रहा था।
उसने मेरे सर को दोनों हाथों से पकड़ लिया और मेरे मुँह को जोर-जोर से चोदना शुरू कर दिया। एक बार तो उसने पूरा लंड मेरे मुँह में घुसा दिया जिससे मेरा गला चोक हो गया, मैं सांस नहीं ले पा रहा था।
उसके लंड से हल्का-हल्का कामरस भी निकल रहा था जिसका नमकीन स्वाद मुझे भी और गर्म कर रहा था।
कहने की बात नहीं कि मेरा लंड भी खड़ा हो चुका था, मैं अपने लंड को अपने हाथ में लेकर मुट्ठी मार रहा था।
लगभग 5 मिनट की चुसाई के बाद वो बोला- बाबूजी अब पैंट और जाँघिया निकाल कर पेड़ को पकड़ कर झुक जाओ।
उसने जैसा कहा मैंने वैसे ही किया। मेरी पहली चुदाई से उसको अच्छा अनुभव हो गया था। वो नीचे बैठ कर मेरी गांड का छेद चाटने लगा और मेरी गांड भी चाटने से ढीली हो गई थी।
उसने एक उंगली डाल कर देखा कि मेरी गांड अब चोदने लायक हुई या नहीं। ढेर सारा थूक अपने मुँह से निकाल कर अपने लौड़े पर लगाया।
उसने मेरी गांड के छेद पर टोपा टिकाकर जोरदार झटका मारा, मेरी तो चीख निकल गई। वो घबरा कर बोला- बाबूजी क्या हुआ?
मैं कहा- अबे यार, तुमने इतनी जोर से एक बार में ही पूरा लंड पेल दिया। मेरी गांड की ऐसी-तैसी हो गई। जरा धीरे-धीरे करके मजे लो।
उसने अब ऐसा ही करना शुरू किया। मैं एक हाथ से पेड़ पकड़े था और दूसरे हाथ से अपने लौड़े को मुठिया रहा था।
वो अपनी चुदाई में लगा था। उसके दोनों हाथ मेरी कमर को जोर से पकड़े थे। वो धकाधक पूरा लंड टोपे तक निकालता और फिर गांड में पूरा ठूँस देता।
हम दोनों ही जन्नत का मजा खेतों में ले रहे थे।
तभी वो रुक गया और बोला- बाबूजी, उस दिन आपने मेरे माल को निकाल कर अपने लंड में लगाकर मेरी गांड मारी थी। मुझे भी अपना माल दो तो आपकी कसी हुई गांड चोदने में मजा आएगा।
मैंने कहा- ठीक है मेरे लंड को चूसकर निकाल लो। उसके बाद जो मर्जी आये मेरे जूस के साथ करो।
वो बोला- ठीक है बाबूजी।
मैं घूम गया, उसने मेरा लंड चूस-चूस कर आखिर में सारा माल निकाल ही लिया।
उसे अपने हाथ में थूका और बोला- बाबूजी, आज तक मैंने किसी का लंड नहीं चूसा और माल तो मैंने अपने लंड का अपने मुँह में नहीं लिया। पर आपने मुझे पूरा रण्डा बना दिया है। इतना कहकर उसने सारा माल अपने लंड में लपेटा और मैं घूम गया।
उसने कहा- बाबूजी थोड़ा घोड़ी की तरह झुक जाइये। हाथ जमीन पर रख लीजिए तो गांड खुल जायेगी और आपको दिक्कत भी नहीं होगी।
मैं तुरंत चौपाया हो गया और उसने लंड पकड़ कर फिर से पूरा का पूरा मेरी गांड में उतार दिया।
अबकी मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई और मैं भी पीछे की तरफ धक्के मारने लगा। उसको यह अदा बहुत पसंद आई और उसकी स्पीड बढ़ गई।
वो तेज-तेज धक्के मार रहा था और हम दोनों ही सिसकारियाँ ले-ले कर चुदाई का परम आनन्द ले रहे थे।
मेरा लंड घंटी की तरह हिल रहा था। और उसका पूरे फार्म में चुदाई में लगा था। वो कभी-कभी मेरे पेट के पास से हाथ निकाल कर मेरे लंड को भी मुठिया देता था।
उसकी इस हरकत से मेरा लंड एक बार फिर खड़ा होने लगा था। मैं भी उसके गांड के अंदर लंड डालने के वक्त गांड को कस लेता था जिससे उसको बहुत मजा रहा था।
लगभग 10 मिनट की लगातार चुदाई के बाद हम दोनों ही पसीने-पसीने हो गए थे।
वो भी झड़ने वाला था क्योंकि उसकी पकड़ मेरी गांड के दोनों तरफ कड़ी होती जा रही थी।
अचानक उसके लंड ने मेरी गांड के अंदर गर्म-गर्म पानी छोड़ दिया।
वो मेरी गांड में पूरा लंड डालकर पीछे से चिपक गया। दो मिनट बाद उसने अपने को सम्हाला और मेरी गांड से सिकुड़ा हुआ लंड पच की आवाज़ के साथ निकाला।
उसका माल गांड से निकाल कर मेरी जाँघ पर बहने लगा।
मैंने उससे कहा- मेरी पैंट से रुमाल निकाल कर पोंछ दे। उसके पोंछने के बाद मैंने कहा- मेरा दिल अभी भरा नहीं है यार।
वो बोला- बाबूजी क्या मेरी गांड मारोगे? काफी देर हो गई है दुकान में कोई नहीं है। आप कल आना। कल मेरी चुदाई कर लेना।
मैंने कहा- नहीं, यह बात नहीं है। तुम मेरे लंड को मुट्ठ मार कर जूस निकाल दो।
उसने कहा- ठीक है बाबूजी।
वो मेरे पास आकर मेरे लंड को पकड़ कर जल्दी-जल्दी मेरे लंड की खाल को आगे-पीछे करते हुए मुठ मारने लगा। मैं उसकी लुंगी पर अपने पैर फैला कर बैठा हुआ था। वो बड़ी शिद्दत से अपना काम कर रहा था। लगभग 5 मिनट के बाद मुझे लगा कि मेरा निकालने वाला है।
मैंने उससे कहा- मेरा जूस मुँह में निकालो।
मैं जल्दी से खड़ा होकर अपने हाथ से मुठ मारने लगा और उसने मुँह खोल दिया। मैंने अपने लौड़े का सारा रस उसके मुँह में गिरा दिया।
पर जैसे ही मैंने अपने लौड़े का आखिरी बूंद उसके मुँह में गिराकर लंड हटाया, उसने सारा जूस जमीन पर थूक दिया।
मैंने कहा- यार तुमने थूक क्यों दिया?
वो बोला- बाबूजी इसका क्या करता मैं?
मैंने कहा- इसको पी जाते, यह बहुत प्रोटीन वाला होता है।
वो बोला- बाबूजी क्यों मजाक करते हो।
मैंने कहा- भाई मैं मजाक नहीं करता। अगली बार मैं तुम्हारे लंड का सारा जूस पियूँगा, तब बताना मैंने मजाक किया था या सच बोला था।
इसके बाद हम लोग वापस दुकान पर आ गए और मैं अपने घर को चला गया।
दोस्तो, मेरी कहानी पर अपनी राय जरूर मेल करें।
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