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दोस्तो, नमस्कार।
मेरा नाम चित्रेश है, मैं देहरादून, उत्तराखंड का रहने वाला हूँ। मैं अन्तर्वासना का नियमित पाठक हूँ। काफी समय से मन में था कि मैं भी अपना प्रथम अनुभव आप सब के समक्ष रखूँ।
अभी मेरी उम्र 25 वर्ष है, ये मेरे जीवन की सत्य घटना है, जो 4 वर्ष पहले मेरे साथ घटी।
उस वक्त जब मैं स्नातक में था, मैं अपने चाचा के साथ ही रहता था। मेरे चाचा की नई-नई शादी हुई थी। चाची 26 साल की थीं और दिखने में भी खूबसूरत थीं।
चूँकि मेरे चाचा आर्मी में थे, तो वो शादी के एक माह के बाद ही अपनी जॉब पर चले गए। उनके जाने के बाद चाची गुमसुम सी रहने लगीं थीं। रात को भी बेचैन रहती थीं।
अब मुझ पर भी जवानी छा चुकी थी। पोर्न-मूवी देख-देख कर और सैक्स स्टोरी पढ़ कर मैं सैक्स के बारे में काफी कुछ जान चुका था इसलिए मैं चाची की तड़प को समझ सकता था।
मगर मजबूर था चाह के भी कुछ नहीं कर सकता था। घर पर मैं, चाची और दादी रहते थे।
चाची के आने के बाद मैं भी चाची के साथ रहने लगा क्योंकि वो पढ़ाई में मेरी मदद करती थीं। धीरे-धीरे हम दोनों एक दूसरे के साथ घुल मिल गए।
देखते-देखते 6 माह गुजर गए। अब हम अच्छे दोस्त बन चुके थे।
एक दिन चाची कहने लगीं- चित्रेश यहीं मेरे साथ में सो जाया करो। मैं तुम्हें सुबह उठा दिया करुँगी और तुम पढ़ाई कर लेना। मैं भी चाची के कमरे में सोने को राज़ी हो गया। इसी बहाने उन्हें पास से जी भर के देखने का मौका जो मिल रहा था।
जब हम सोने लगे, तो चाची ने लाईट बंद कर दी, वे अपना सूट उतारने लगीं और मैक्सी पहनने लगीं। मुझे उनकी सफ़ेद रंग की ब्रा दिख रही थी और उनका जिस्म भी चमक रहा था।
मैंने खुद को कंट्रोल किया और चुपचाप देखता रहा। वो मेरे बगल में लेट गईं और सो गईं। यह सिलसिला कुछ दिनों तक यूँ ही चलता रहा।
एक दिन रात को मेरी नींद खुली तो मैंने महसूस किया कि चाची ने मुझे अपनी बांहों से जकड़ रखा है। शायद वो मुझे नींद में चाचा समझ रही थीं।
मैं चुपचाप लेटा रहा था मगर कब तक! उनकी जाँघ मेरे लिंग के ऊपर थीं और मेरा लिंग खड़ा होता जा रहा था।
मैंने डरते-डरते उनकी जाँघ पर हाथ रख दिया और सहलाने लगा। उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की तो मेरी भी हिम्मत बढ़ती चली गई। वो सोने में मस्त थीं और मैं उन्हें छूने में।
फिर मैंने अपना हाथ उनके शर्ट को उठा कर उनकी पजामी के अंदर डालने की कोशिश की तो उनकी नींद खुल गई, उन्होंने मेरे हाथ को झटके से हटा दिया।
उस वक्त मेरी तो गांड फट गई। एक पल के लिए तो लगा आज तो मरा? मैं ऐसे पड़ा रहा, जैसे बहुत गहरी नींद में होऊँ।
पर वास्तव में तो मेरी आँखों से नींद गायब हो चुकी थी यह सोच कर कि सुबह क्या होगा।
परंतु सुबह चाची ने मुझसे सामान्य तरह से ही बात की जैसे और दिन करती थीं, मैं खुश था कि बच गया। पर अब रात को मेरी उन्हें छूने की हिम्मत नहीं थी।
एक दिन दादी बुआ के घर चली गईं। अब चाची और मेरे अलावा घर पर कोई नहीं था।
रात को खाना खाने के बाद चाची ने कहा- चित्रेश, आज सासू माँ नहीं थीं तो सारा काम मुझे करना पड़ा। जिसके कारण मेरी कमर में दर्द हो रहा है। तू थोड़ा मूव लगा दे प्लीज। मैंने हाँ कर दी, मैंने उँगलियों पर थोड़ी मूव ली और उनके कमीज के अंदर हाथ डाल कर मलने लगा।
वो बोलीं- कैसे लगा रहा है? अच्छे से लगा ना! मैंने कहा- आपके कमीज के अंदर हाथ नहीं जा रहा है तो कैसे लगाऊँ? वो बोली- रुक मैं कमीज उतार देती हूँ।
यह कहानी आप अन्तर्वासना पर पढ़ रहे हैं।
उन्होंने पहले लाईट बंद की फिर कमीज उतार कर अलग रख दिया। मगर बाहर से खिड़की से चाँद की चान्दनी कमरे में आ रही थी, जिससे मैं उनके जिस्म को देख सकता था।
वो बेड पर पेट के बल लेट गईं और बोलीं- चल अब मालिश कर दे। मैं मूव लगाने लगा तो वो बोलीं- थोड़ा कमर के नीचे से ऊपर तक लगा।
मैंने उनकी ब्रा पर हाथ रखते हुए बोला- आपकी ये बीच में आ रही है खोल दूँ? उन्होंने बोला- हाँ खोल दे।
मैं उनके कूल्हों पर बैठ कर उनकी कमर की मालिश करने लगा। वो चुपचाप लेटी रहीं।
मेरा लिंग भी खड़ा होने लगा, और चाची की गांड की दरार पर लगने लगा। उन्हें भी इस बात का अहसास हो गया था। मगर वो कुछ नहीं बोलीं तो मेरी हिम्मत भी बढ़ने लगी।
मैं अपना हाथ उनके स्तनों के पास फेरने लगा। वो गर्म होती जा रही थीं। मेरा लिंग भी उनकी गांड पे दबाव बनाता जा रहा था।
धीरे-धीरे मैंने अपना लंड उनकी गांड पर रगड़ना शुरु कर दिया। अपना हाथ उनके स्तनों की तरफ ले गया तो चाची ने अपनी छाती को बेड से ऊपर को उठा दिया, ताकि मैं उन पर भी मालिश कर सकूँ।
मैंने देखा कि लोहा गर्म है, हथौड़ा मार देना चाहिए!
मैं उनकी चूचियाँ मसलने लगा और उन्हें किस करने लगा, उन्हें अपनी तरफ को घुमा कर उनके ऊपर लेट गया।
मैंने उनकी पजामी उतार दी, अब वो केवल पैंटी में थीं।
मैंने अपने कपड़े भी उतार दिये, बस फ्रेंची रहने दी, चाची को गर्म करता रहा।
जैसे ही मैंने अपना हाथ चाची की पैंटी के अंदर डालने की कोशिश की, चाची ने हाथ पकड़ लिया, ये कह कर उठने लगीं कि ‘प्लीज चित्रेश नहीं ये सब सही नहीं है।’
किन्तु अब मैं कंट्रोल से बाहर हो चुका था, मैंने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की कि बस एक बार करने दो।
उनके स्तनों, गाल, गर्दन, कान चूमता रहा, वो मुझे खुद से हटाने की कोशिश करती रहीं।
मैंने उनकी जाँघों पर चूमना शुरू कर दिया।
फिर उनके दोनों हाथों अपने एक हाथ से पकड़ लिया और उनकी पैंटी के अंदर अपनी उंगलियाँ डालते हुए उनकी चूत पर रगड़ने लगा, उनकी चूचियाँ चूसता रहा।
मैंने अपनी उंगली उनकी चूत के अंदर घुसाई तो उनकी सिसकारी निकलने लगी- आई ईईइ… ईईऽऽ ओऽऽ ओssओ आयाई ऱाऽऽ चित्रेश क्या कर रहे हो? छोड़ दो, मुझे प्लीज।
मगर मैंने एक ना सुनी और उनकी दोनों टाँगों के बीच में लेट कर उनकी पैंटी को साइड से हटा कर जीभ से उनकी चूत चाटने लगा.
मैं अपनी जीभ को चाची की चूत में अंदर डालने लगा तो चाची छटपटाने लगीं। अब उन्हें भी कंट्रोल नहीं हो रहा था। वो बेड से उठतीं तो मैं उनकी चूत में जीभ डाल के जोर-जोर से चूसने लगता।
वो जोश में आ गईं और चादर को अपनी मुट्ठी में कसने लगीं। अब वो बेकाबू हो चुकी थीं, उनका विरोध अब चुदाई की भूख में बदल गया था।
उन्होंने अपनी एक टाँग को मेरे लंड पर रख दिया और रगड़ने लगीं।
मैंने उनकी पैंटी को उतारने की कोशिश की तो उन्होंने अपने चूतड़ उठा कर पैंटी निकलवाने में मेरी मदद की।
पैंटी निकलते ही मैंने उनकी दोनों टाँगें थोड़ी सी खोल दीं जिससे उनकी चूत को चाटने में आसानी हो। मैं उनकी चूत चाटने लगा। उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरे सर पर रख कर मुझे अपनी चूत पर दबाना शुरू कर दिया मानो मेरा पूरा सर अपने अन्दर समा लेना चाहती हों।
उनका पैर भी मेरे लंड से रगड़ खा रहा था।
उनकी मादक सिसकारियाँ निकलने लगीं और एक झटके में उन्होंने मुझे अपने नीचे दबा लिया।
अब उनकी चूत मेरे मुँह पर थी, वो जोर-जोर से उसे रगड़ रही थीं।
आज मुझे एहसास हुआ कि गर्म औरत क्या होती है।
वो पलटीं, अब उनका मुँह मेरे लंड की तरफ था। हम दोनों 69 की पोजीशन में आ गये थे, उन्होंने अपना हाथ मेरी फ्रेंची के अन्दर डाला और मेरा लंड निकाल लिया।
‘आह, कब से तरस रही हूँ मैं, आज तूने मेरी वासना भड़का दी है। अब इसे शांत भी तू ही कर!’ और मेरे लौड़े को चूसने लगीं, कभी लंड चूसतीं, कभी मेरे अन्डकोशों को।
सच में दोस्तो, 69 का अपना ही अलग मज़ा है। यह बात मुझे उसी दिन पता चली। हम दोनों एक दूसरे को चाट-चाट कर और सुलगा रहे थे।
मेरा फर्स्ट-टाइम था, जब मैं किसी के साथ ये सब कर रहा था। मुझे लगा कहीं मैं कुछ करने से पहले ही न झड़ जाऊँ, मैंने उनके मुँह से लंड बाहर निकाला और चाची के ऊपर छा गया।
चाची से भी रहा ना गया, उन्होंने मेरा लंड पकड़ा और अपनी चूत पर रगड़ने लगीं।
मैंने जैसे ही थोड़ा जोर लगाया, वो सिसकारी लेने लगीं- चित्रेश धीरे-धीरे करो, तुम्हारा लंड तुम्हारे चाचा से बड़ा है। मैंने कब से चुदाई नहीं करवाई है।
पर मैंने उनकी बात को अनसुना करते हुए जोर से झटका मारा तो वो चिल्लाने लगीं- आह आआअ ईई मार्र डाल्ला.. बसऽऽऽ बसऽऽऽ धीरे करो प्लीज!
मैंने धक्के लगाना जारी रखा और फिर कुछ ही मिनटों में उनका दर्द मज़े में बदलने लगा।
वो भी अपनी कमर को तेजी से झटके देने लगीं। अब शायद उनकी कमर का दर्द या ख़त्म हो गया था या सेक्स के नशे में वो अपनी कमर का दर्द भूल चुकी थीं।
हम दोनों एक दूसरे के अन्दर समा जाना चाहते थे। चाची अपने नाख़ून मेरी पीठ पर चुभो रही थीं, मैं चाची के स्तनों पर काट रहा था।
तभी चाची ने मुझे कस लिया और तेजी से झटके मारने लगीं। मैंने कहा- मेरा निकलने वाला है। वो बोलीं- अंदर ही छोड़ दो। कब से तरस रही थी इस पल के लिये इतना।
मेरे धक्के चरम पर थे।
‘प्लीज चित्रेश, तेजी से करो! और जोर से! मेरा भी होने वाला है! तेज और तेज! हम्म्म्म हम्म्म्म!’ करते करते झड़ गईं।
मैं भी उनके साथ ही झड़ गया हम दोनों पसीने लथपथ थे। ऐसा लग रहा था, मानो आग से निकले हों।
चाची के चेहरे पर ख़ुशी के भाव थे मानो उनकी प्यास कुछ शांत हो गई।
आगे क्या हुआ यह अगली कहानी में लिखूँगा।
आप सबको मेरी यह सच्ची आप-बीती कैसी लगी, बताइयेगा जरूर, मुझे आपके कमेंट्स का इंतज़ार रहेगा।
लेखक के आग्रह पर इमेल आईडी नहीं दी जा रही है.
कहानी का अगला भाग: चाँद की चांदनी में चाची की चूत चाटी-2
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