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अन्तर्वासना के सभी पाठकों को आदाब ! आपकी सेवा में मैं अपनी एक ऐसी दोस्त की कहानी लेकर हाज़िर हूँ, जिसके पास बताने को कहानियाँ तो कई हैं मगर लिखने का हुनर नहीं। शब्दों का गढ़न भी एक कला है, जो हर एक के पास नहीं होती। बहरहाल उनकी कहानी उन्हीं के शब्दों में लिख रहा हूँ, कहानी कैसी लगी, उन्हें ज़रूर बताएँ।
इस मंच पर मैं अपना नाम तो नहीं बता सकती, मिसेज सिद्दीकी कह सकते हैं। बाकी चीज़ें वैसी की वैसी लिख रही हूँ। मेरी उम्र पच्चीस साल है, सामान्य लम्बाई, रंग साफ़, फिगर भी साधारण, 34 नंबर की ब्रा पहनती हूँ और कबूल सूरत हूँ। शादी हुए तीन साल हो गए, डेढ़ साल की बेटी है। पति सरकारी नौकरी में हैं, अच्छे हैं, सीधे-सादे, वैसे तो मैं लखनऊ की रहने वाली हूँ और पति गोरखपुर के, पर नौकरी के चलते इधर-इधर होते रहते हैं और अब फ़िलहाल हम कानपुर में हैं।
यह तो हुआ मेरा परिचय और अब आते हैं असली कहानी पर।
कानपुर मुझे तो कोई खास नहीं लगा, मगर मेरे पति को पसन्द है, वो यहीं रहना चाहते हैं तो खुद का मकान भी खरीद लिया था और उन दिनों उस नए घर में पहले की वायरिंग हटा कर नई अन्डरग्राउंड वायरिंग करा रहे थे रफीक नाम के एक मिस्त्री से। इन्हीं दिनों में मेरे जीवन में किसी पराये मर्द की परछाई पड़ी, वरना मेरी बाईस की उम्र में शादी होने तक किसी ने मेरे यौनांग की झलक भी नहीं पाई थी और सील भी पति ने ही तोड़ी थी जो मुझसे उम्र में तेरह साल बड़े हैं।
हालांकि वो बहुत कम सेक्स कर पाते हैं और जल्दी ही शिथिल पड़ जाते हैं मगर चूंकि मैंने कभी किसी और के साथ शरीर का सुख नहीं भोगा था इसलिए न जानने की वजह से शिकायत भी कभी नहीं हुई।
बहरहाल, रफीक तीस के आस-पास का साधारण शरीर और ठीकठाक सूरत वाला युवक था, पति सुबह चले जाते और वो दिन भर छेनी-हथौड़ी से दीवार तोड़ता रहता। मैं घर के कामों में मसरूफ़ रहती या बेटी के साथ मस्त रहती।
वैसे तो मुझे वो नज़रें झुकाए रहने वाला, सीधा सादा शरीफ इन्सान लगा, पर एक दिन दोपहर को नहाते वक़्त मैंने महसूस किया क़ि मुझे वो चाबी के छेद से देख रहा है। मैंने तौलिया लपेटा और दरवाज़े तक आई। मुझे ऐसा लगा जैसे वो दरवाज़े के पास से हटा हो।मैंने दरवाज़ा खोल कर बाहर झाँका तो वो सामने की दीवार पर कुछ करता दिखा। मेरी नज़र उसकी पैंट पर गई तो वहाँ उभरी हुई नोक साफ़ नज़र आई।
गुस्से से मेरे तन बदन में आग लग गई, दिल तो किया के अभी तबियत से झाड़ दूँ, पर जैसे-तैसे सब्र करके वापस दरवाज़ा बंद किया और स्नान पूरा किया। उस दिन वो मुझसे नजरें ही चुराता रहा और मुझे रह-रह कर गुस्सा आता रहा। अगले दिन भी उसने वही पर हरकत की जब मैं अपने बेडरूम में कपड़े बदल रही थी।
मैंने महसूस किया मेरे अंदर दो तरह की विरोधाभासी कशमकश चल रही थी, एक तरफ तो मुझसे गुस्सा आ रहा था और दूसरी तरफ मन में यह अहंकार भी पैदा हो रहा था कि मैं हूँ देखने लायक… वह मुझे देखे और ऐसे ही जले। इससे ज्यादा क्या कर लेगा मेरा।ज़िन्दगी में पहली बार किसी पराये मर्द के द्वारा खुद को नंगी देखे जाने का एहसास भी अजीब था। शादी से पहले ऐसा होता तो शायद एहसास और कुछ होता पर अब तो मैं कुँवारी नहीं थी।
मुझे अपनी सोच पर शर्म और हंसी दोनों आई। खैर उस दिन भी मैंने कुछ नहीं कहा और तीसरे दिन नहाते वक़्त मैं मानसिक रूप से पहले से ही देखे जाने के लिए तैयार थी।
मैं खास उसे दिखाने के लिए नहाई मल-मल कर, अपने वक्षों को उभार कर, मसल कर, यौनांग के बालों को भी दरवाज़े की ओर रुख करके ही साफ़ किया ताकि वो ठीक से देख सके। मैं ये सोच-सोच कर मन ही मन मुस्कराती रही कि पता नहीं बेचारे का क्या हाल हो रहा होगा।
उस दिन उसने नज़रें नहीं चुराईं, बल्कि देख कर अर्थपूर्ण अंदाज़ में मुस्कराया, पर मैंने तब कोई तवज्जो नहीं दी।
उसी दिन चार बजे के करीब मैं बेटी के साथ लेटी टीवी देख रही थी, तब बाहर उसका शोर बंद हुआ तो मुझे कुछ शक सा हुआ, मैंने बाहर झांक कर देखा तो वो नहीं था, बाथरूम का दरवाज़ा बंद दिखा, शायद वो उसमें था। मैंने चाबी वाले छेद से वैसे ही देखने की कोशिश की जैसे वह मुझे देखता होगा।
वह कमोड के सामने अपना लिंग थामे खड़ा उसे सहला रहा था, पता नहीं पेशाब कर चुका था या करनी थी अभी, पर उसका लिंग अर्ध-उत्तेजित अवस्था में था और उसके लिंग का आकार देख कर मेरी सिसकारी छूट गई।
मेरे पति का लिंग करीब चार साढ़े चार इंच लम्बा और डेढ़ इंच मोटा था और बेटी के जन्म से पहले वो भी बहुत लगता था। उससे बड़े तो सिर्फ पति की दिखाई ब्लू फिल्मों में ही देखे थे जो किसी और दुनिया के लगते थे। बेटी के जन्म के बाद से योनि इतनी ढीली हो गई थी कि सम्भोग के वक़्त पानी से गीली हो जाने पर कई बार तो घर्षण करते वक़्त कुछ पता ही नहीं चलता था।
अब इस वक़्त जो लिंग मेरे सामने था वो ब्लू फिल्मों जैसा ही कल्पना की चीज़ था। अर्ध-उत्तेजित अवस्था में भी दो इंच से ज्यादा मोटा और आठ इंच तक लम्बा, पूर्ण उत्तेजित होने पर और भी बढ़ता होगा।
मेरे पूरे बदन में सिहरन दौड़ गई और ऐसा लगा जैसे एकदम से किसी किस्म का नशा सा चढ़ गया हो। जिस्म पर पसीना आ गया। योनि में भी अजीब सी कसक का एहसास हुआ और मैं वह से हट आई। अपने कमरे में पहुँच कर बिस्तर पर लेट कर हांफने लगी।
तब से लेकर पूरी रात और अगली सुबह तक उसका स्थूलकाय लिंग मेरे दिमाग में चकराता रहा और अगले दिन जब वह काम पर आया तो मेरी नज़र किसी न किसी बहाने से उसकी पैंट पर ही चली जाती, उसने भी इस चीज़ को महसूस कर लिया था।
अगले दिन मैंने पति के जाने के बाद उससे पूछा- तुम्हारा काम कब तक का है?
उसने बताया कि अभी तीन दिन और लगेंगे। फिर मैं अपने कामों में लग गई। मतलब अभी तीन दिन उसे और झेलना पड़ेगा, मेरी अब तक की ज़िंदगी एक पतिव्रता स्त्री की तरह ही गुजरी थी, मगर अब वो मेरे दिमाग में खलल पैदा कर रहा था। जैसे-तैसे करके दोपहर हुई, मैं बार-बार ध्यान हटाती, मगर रह-रह कर उसका मोटा सा अंग मेरी आँखों के आगे आ जाता। दोपहर में मैं नहाने के लिए बाथरूम में घुसी तो दिमाग में कई चीज़ें चल रही थीं। दिमाग इतना उलझा हुआ था कि दरवाजे की कुण्डी लगाना तक न याद रहा।
फिर नहाने के वक़्त भी दिमाग अपनी जगह नहीं था, झटका तब लगा जब किसी के दरवाज़े पर जोर देने से वो खुल गया। मैंने पीछे घूम कर देखा तो सामने ही रफीक खड़ा उलझी-उलझी साँसों से मुझे देख रहा था।
“क्या है? तुम अन्दर कैसे आये?” मुझे एकदम से तो गुस्सा आया पर साथ ही एक डर भी समा गया मन में।
कहानी जारी रहेगी।
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