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नमस्कार दोस्तो, मेरा नाम पायल शर्मा है। आप लोगों ने मेरी कई कहानियाँ पढ़ी और बहुत पसन्द किया इसके लिए धन्यवाद।
दोस्तो, आप लोगों के बहुत सारे मेल आ रहे हैं सभी का जवाब देना मेरे लिए मुश्किल है। इसलिए मैं आपको बता देना चाहती हूँ कि मैं अब शादीशुदा हूँ और मेरे पति आर्मी में सर्विस करते हैं।
सुबह करीब ग्यारह बजे मेरी नींद खुली वैसे भी छुट्टियाँ चल रही थीं इसलिये मैं रोजाना ही देर तक सोती रहती थी, यह सोचकर किसी ने मुझे जगाया भी नहीं। जब मैं उठी तो मेरा पूरा बदन दर्द कर रहा था और मेरे होंठ भी कुछ भारी-भारी से लग रहे थे। जब बाथरुम जाने के लिए बिस्तर से उठी तो मेरे पैर लड़खड़ाने लगे।
मेरी योनि तो इतना दर्द कर रही थी कि मैं ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। मैं अपनी जाँघें चौड़ी करके चल रही थी। बाहर भैया-भाभी खड़े हुए थे।
भैया ने पूछा- बड़ी देर तक सोती हो !
मैंने झूठी मुस्कान चेहरे पर लाकर कहा- वो मेरी छुट्टियाँ चल रही हैं ना इसलिए !
और जल्दी से बाथरुम में घुस गई। शुक्र था कि मैं साड़ी में थी, अगर मैं सलवार-सूट में होती तो भैया-भाभी को पता चल जाता कि मैं जाँघें चौड़ी करके चल रही हूँ और क्यों चल रही हूँ?
जब मैं शौच करने लगी तो मेरे योनि द्वार में इतनी जलन हुई कि मेरी आँखो से आँसू निकल आए क्योंकि रात को महेश जी के लिंग से मेरी योनि जख्मी हो गई थी और जब उसमें मेरा नमकीन पेशाब लग रहा था तो वो जलन करने लगा। मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मेरे योनि द्वार से पेशाब नहीं बल्कि तेजाब निकल रहा है, जो मेरी योनि को जला रहा है।
मैंने ठण्डे पानी से अपनी योनि को साफ किया तो कुछ राहत मिली। मैं बिना नहाए ही बाथरुम से बाहर आ गई। भैया-भाभी अब भी बाहर खड़े बातें कर रहे थे।
इस बार भाभी ने पूछा- क्या बात है आज नहाई क्यों नहीं?
मैंने बताया, “आज थोड़ी तबियत खराब है !”
भाभी ने मुझे हाथ लगाकर देखा और कहा- अरे ! तुम्हें तो तेज बुखार है, चलो कुछ खा लो फिर डॉक्टर के पास चलते हैं।
मैंने मना कर दिया, और घर पर ही बुखार की दवा खाकर भैया-भाभी के कमरे में ही सो गई। मुझे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि मैंने यह क्या कर दिया। रात को मैं नीचे मम्मी-पापा के कमरे में सोई।
दो दिन तक मुझे बुखार रहा, मगर मैं भैया-भाभी और मम्मी-पापा के बार-बार कहने पर भी डॉक्टर के पास नहीं गई। मैं डर रही थी कहीं डॉक्टर को पता ना चल जाए कि मेरी तबियत कैसे खराब हुई है।
अब मैं नीचे मम्मी-पापा के कमरे में ही रहने लगी। जब महेश जी घर पर नहीं रहते, तब ही ऊपर भैया-भाभी के कमरे में जाती और जब वो घर पर रहते तो मम्मी-पापा के कमरे से बिल्कुल भी बाहर नहीं निकलती थी। क्योंकि जब भी उन्हें मौका मिलता था, वो मेरे साथ कोई ना कोई छेड़खानी कर देते थे।
कभी मेरे उरोज दबा देते तो कभी मेरी योनि को मसल देते और कहते, “फिर कब मौका दे रही हो?
मेरा दिल करता कि उनका नाखूनों से मुँह नोच लूँ मगर खून का घूँट भर कर रह जाती, क्योंकि ऐसा करने से सबको पता चल जाता कि हमारे बीच क्या चल रहा है।
तीन हफ्ते इसी तरह निकल गए और एक दिन उनको मौका मिल ही गया। उस दिन भाभी भैया के साथ अपने मम्मी-पापा से मिलने मायके गई हुई थीं। पापा बैंक में कैशियर हैं इसलिए वो बैंक में थे, और महेश जी अपनी कम्पनी में थे। घर पर बस मैं और मम्मी ही थे।
मम्मी ने टीवी पर देवी-देवताओं की फिल्म लगा रखी थी, जो मुझे पसंद नहीं थी। इसलिए मैं ऊपर भैया-भाभी के कमरे जाकर टीवी देखने लगी। वैसे भी ऊपर कोई नहीं था, मगर पता नहीं इस बात की भनक महेश जी को कैसे लग गई। शायद भाभी ने बताया होगा कि वो मायके जा रही हैं।
मुझे जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि महेश जी इस समय भी घर आ सकते है। करीब डेढ़ बजे महेश जी घर आए और घर आते ही वो सीधे मेरे पास आ गए।
उन्हें देखते ही मैं घबरा गई और भागने लगी, मगर उन्होंने मुझे पकड़ लिया और मुस्कुराते हुए कहने लगे,”तुम मुझसे इतना डरती क्यों हो?”
मैंने कहा- देखो मुझे जाने दो नहीं तो मैं शोर मचा दूँगी।
महेश जी ने अपने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लाकर कहा- मचाओ, मेरा क्या है मुझे तो बस ये घर छोड़ कर ही जाना पड़ेगा, मगर तुम्हारी तो पूरे मोहल्ले में बदनामी हो जाएगी।
और जबरदस्ती मेरे गालों व गर्दन पर चूमने लगे। मैं डर गई, कहीं सच में ऐसा ना हो जाए इसलिए मैंने शोर तो नहीं मचाया। मगर अपने हाथों से उन्हें हटाने की कोशिश करने लगी।
अपने आप को छोड़ देने की विनती करने लगी। मगर महेश जी पर कोई असर नहीं हुआ और उन्होंने सूट के ऊपर से ही मेरे एक उरोज को बेदर्दी से मसल दिया।
मैं दर्द से कराह उठी और उनकी छाती में अपनी सारी ताकत से धक्का मार दिया, जिससे वो गिरते-गिरते रह गए और मैं दरवाजे की तरफ भागी, मगर महेश जी ने मुझे दरवाजे के पास ही पकड़ लिया और दरवाजा बँद करके कुण्डी लगा दी।
मुझे दीवार से सटा कर फिर से मेरी गर्दन व गालों पर चूमने लगे, वो मेरे होंठों को अपने मुँह में भर लेते और कभी मेरे उरोजों को दबा देते।
मैं अपने घुटनों पर बैठ गई और उनसे बार-बार छोड़ने और जाने की विनती करने लगी। मैं उन्हें हटाने के लिए उनके सर के बाल खींचने लगी।
मगर तभी उन्होंने मेरी सलवार का नाड़ा खींच दिया और नाड़ा खुलते ही सलवार मेरे पैरों में गिर गई। मैंने नीचे पैन्टी भी नहीं पहन रखी थी। इसलिए जल्दी से महेश जी के सर के बालों को छोड़ कर मैंने दोनों हाथों से अपनी योनि को छुपा लिया और उनसे विनती करने लगी, “प्लीज मुझे छोड़ दो…प्लीज मुझे जाने दो..”
अब महेश जी बिल्कुल आजाद थे, क्योंकि मेरे दोनों हाथ अपनी योनि को छुपाने में व्यस्त थे। उन्होंने मुझे खींच कर बेड पर गिरा दिया।
मैं बेड पर गिरी तो मेरे पैर बेड से नीचे लटकते रह गए, जिनमें मेरी सलवार फंसी हुई थी। महेश जी ने मेरी सलवार को एक पैर से दबा लिया और झुक कर मेरी जाँघों को चूमने लगे। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मेरी सलवार मेरे पैरों में फंसी हुई थी, इसलिए मैं अपने पैरों को हिला भी नहीं पा रही थी और मैंने दोनों हाथों से अपनी योनि को छुपा कर जाँघों को पूरी ताकत से भींच रखा था। इसलिए मैं अपने हाथ भी नहीं हिला सकती थी।
महेश जी धीरे-धीरे मेरी जाँघों को चूमते हुए ऊपर की तरफ बढने लगे। उन्होंने मरी जाँघों को चौड़ी करके मेरे हाथों को योनि पर से हटाने की कोशिश तो की, मगर मैंने ना तो अपनी जाँघें चौड़ी कीं और ना ही अपने हाथ योनि पर से हटाए।
इसलिए वो मेरा सूट ऊपर खिसका कर एक हाथ से मेरे उरोजों को सहलाने लगे। धीरे-धीरे मेरी जाँघों व पेट को चूमते हुए महेश जी मेरे ऊपर लेट गए। जिससे वो मेरे उरोजों तक पहुँच गए और मेरे एक उरोज को अपने मुँह में भरकर चूसने लगे।
अब तो मुझे भी कुछ-कुछ होने लगा था। मेरी साँसें फूलने लगी, मुँह से धीरे-धीरे सिसकारियाँ निकलने लगीं और मेरी योनि से निकलने वाली नमी को मैं हाथों पर महसूस करने लगी थी।
मगर फिर भी मैं उनका विरोध कर रही थी। मैंने हाथों को अपनी जाँघों के बीच से निकाल कर महेश जी को अपने ऊपर से हटाने लगी, जिससे उनके मुँह से मेरा उरोज निकल गया।
मगर तभी उन्होंने मेरे हाथों की कलाइयों को पकड़ लिया और अपने दोनों पैर मेरे दोनों घुटने के बीच फँसा दिए, जिससे मेरी जाँघें थोड़ा खुल गई।
अब महेश जी पीछे खिसक कर मेरी योनि के पास आ गए और अपना मुँह मेरी योनि पर सटा दिया। ना चाहते हुए भी मेरे मुँह से, “इईशशश..श…श…अआ..आ…ह…” की आवाज निकल गई।
धीरे-धीरे महेश जी की जीभ मेरी योनि पर हरकत करने करने लगी। वो कभी जीभ से मेरे दाने को सहलाते तो कभी योनि द्वार के चारों तरफ जीभ घुमा देते।
मेरी योनि से पानी आने लगा और मुझे मेरी योनि में चिंगारियाँ सी सुलगती महसूस होने लगीं। ऐसा लग रहा था जैसे महेश जी अपनी जीभ से कोई करेंट मेरी योनि में छोड़ रहे हैं, जो उनकी जीभ से निकल कर मेरी योनि से होता हुआ, मेरे पूरे शरीर में दौड़ रहा हो।
मेरा विरोध कम हो गया और वैसे भी मैं विरोध करते-करते थक गई थी। इसलिए मैंने विरोध करना बंद कर दिया और शरीर को ढीला छोड़ दिया।
मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और समर्पण कर दिया। बस मेरे मुँह से सिसकारियों के साथ ‘ईशश… ऊहह… पलईज… ईशश… मउझए… छओड़… दओह… ईशश…श…बस… कअ रओनआ…’ की आवाजें निकल रही थीं।
जैसे ही मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ा, महेश जी ने मेरे हाथों को छोड़ दिया और दोनों हाथों को मेरी जाँघों के बीच डाल कर उन्हें थोड़ा और अधिक फैला दिया। जिसका मैंने कोई विरोध नहीं किया।
उनका पूरा सर मेरी जाँघों के बीच समा गया और उनकी जीभ अब आसानी से मेरे योनि व गुदा द्वार पर भी पहुँच पा रही थी।
उत्तेजना से मेरी बुरी हालत होने लगी और मेरी योनि से तो पानी की जैसे बाढ़ ही आ गई। मेरी योनि से निकला पानी चादर को भी गीला करने लगा था।
और अचानक महेश जी ने अपनी जीभ को मेरे योनि छिद्र में घुसा दिया। मेरे मुँह से बहुत जोर से ‘अ…आ…ह…अ…उ…च…” की आवाज निकल गई और मैंने अपनी जाँघों से उनके सर को भींच लिया।
महेश जी ने मेरी बगल में रखे रिमोट को उठाकर टीवी की आवाज को तेज कर दिया और मेरी जाँघों को फैला कर फिर से अपनी अपनी जीभ को मेरे योनि द्वार में घुमाने लगे।
शायद महेश जी को भी डर था कि मेरी आवाज नीचे मेरी मम्मी तक ना पहुँच जाए। मगर मेरी मम्मी ने तो शायद कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि ऊपर महेश जी मेरे साथ ये सब भी कर रहे होंगे।
महेश जी ने जीभ की हरकत को बढ़ा दिया। अब वो जीभ को मेरे योनि द्वार के अंदर-बाहर करने लगे और मेरी सिसकारियाँ तेज हो गईं।
उत्तेजना के कारण मैं भी अपने कूल्हे ऊपर-नीचे उचकाने लगी और पता नहीं कब मेरे हाथ उनके सर पर पहुँच गए, मैं उनके सर को अपनी योनि पर दबाने लगी और जोर-जोर से सीत्कार करने लगी।
मैं बस चरम पर पहुँचने ही वाली थी कि महेश जी ने अपना मुँह मेरी योनि पर से हटा लिया। मैं उन्हें पकड़ने की कोशिश करने लगी। क्योंकि उत्तेजना के कारण मैं जल रही थी, और मेरा बदन तो भट्टी की तरह तपता हुआ महसूस हो रहा था। इसलिए मैं जल्दी से जल्दी अपनी मंजिल पर पहुँच कर अपनी योनि में लगी आग को शाँत करना चाहती थी।
मगर महेश जी खड़े हो गए। कुछ देर तक कोई भी हरकत ना होने पर मैं झुँझलाहट से आँखें खोलकर महेश जी को देखने लगी। महेश जी बिल्कुल नँगे मेरे सामने खड़े मुस्कुरा रहे थे। उनके शरीर पर कपड़े का एक तार भी नहीं था और उनका करीब छः इन्च लम्बा काला लिंग उनकी नाभि को छू रहा था।
मुझे शर्म आने लगी, इसलिए फिर से मैंने अपनी आँखे बँद कर लीं। महेश जी ने मेरे पैरों में फँसी सलवार को निकाल कर अलग कर दिया और मेरी कमर के नीचे हाथ डालकर मुझे बेड के बीच में ले आए।
इसके बाद मेरे साथ क्या होने वाला है और उसमें होने वाले पीड़ा का भी मुझे अहसास था, इसलिए मुझे डर भी लग रहा था। मगर फिर भी पता नहीं क्यों मैं ऐसे ही पड़ी रही जबकि अब तो मैं बिल्कुल आजाद भी थी।
महेश जी मेरी जाँघों को चौड़ा करके उनके बीच घुटनों के बल बैठ गए और एक हाथ से अपना लिंग पकड़ कर मेरी योनि पर रगड़ने लगे।
पानी निकलने से मेरी योनि इतनी गीली हो गई थी कि आसानी से उनका लिंग मेरी योनि पर फिसल रहा था।
मैं पहले ही काफी उत्तेजित और डरी हुई भी थी। मगर अब तो महेश जी के गर्म लिंग का स्पर्श अपनी योनि पर पाकर मेरे हाथ पैर काँपने लगे और अब भी मेरे मुँह से उत्तेजना के कारण, ‘इईश…श… प..अ…ल…ई…ज… म..उ…झ..ऐ… छ..ओ…ड़…द..ओ…ह…’ निकल रहा था।
और अचानक महेश जी ने अपने लिंग को मेरे योनि द्वार पर रखा और एक जोर का झटका मारते हुए मेरे ऊपर लेट गए।
इससे उनका आधे से ज्यादा लिंग मेरी योनि मे समा गया।
मैं दर्द के कारण चीख पड़ी ‘अ.आ..आ…आ…आ…ह… आ…उ…च…’ और छटपटाने लगी।
अगर दरवाजा बंद ना होता और टीवी की आवाज इतनी तेज ना होती तो शायद मेरे चीखने की आवाज मम्मी तक पहुँच जाती।
तभी जल्दी से महेश जी ने एक हाथ से मेरा मुँह दबा लिया और मेरे गालों पर चुम्बन करते हुए अपना लिंग थोड़ा सा बाहर खींच कर एक जोर का धक्का और मारा। इस बार उनका पूरा लिंग मेरी योनि में समा गया।
यह सब महेश जी ने अचानक और इतनी जल्दी से किया कि मैं कुछ समझ ही नहीं पाई। मैंने अपने दोनों हाथों से महेश जी की कमर को पकड़ लिया और मुँह से ‘उउउई उऊऊऊ.ऊँ..ऊँ…ऊँ… गुँ..गुँ… गुँ…’ की आवाज करने लगी।
महेश जी ने अपने हाथ से मेरा मुँह दबा रखा था इसलिए मैं कुछ बोल तो नहीं पा रही थी। मगर दर्द के कारण मेरी आँखों में आँसू भर आए। कुछ देर तक महेश जी बिना कोई हरकत किए ऐसे ही मेरे ऊपर पड़े रहे।
जब मैं कुछ शाँत हुई तो उन्होंने मेरे मुँह पर से अपना हाथ हटा लिया और अपने दोनों हाथों से मेरे आँसू पौंछ कर गालों पर चूमने लगे।
महेश जी का हाथ मेरे मुँह से हटते ही मैं रोते हुए उनसे अपने आप को छोड़ देने की विनती करने लगी, “आह… बहुत दर्द हो रहा है… प्लीज मुझे छोड़ दो… अब बस करो… मैं मर जाऊँगी… प्लीज मुझे जाने दो…”
मगर महेश जी ने मेरे हाथों को पकड़ कर बेड से सटा दिया और मेरी गर्दन पर चुम्बन करते हुए कहा- बस जान, अब तो हो गया, बस अब और दर्द नहीं होगा।
मगर मुझे अब भी दर्द हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई गर्म मोटा लोहे का डण्डा मेरी योनि में घुसा रखा हो।
इसके बाद महेश जी धीरे-धीरे धक्के लगाने लगे और मैं अब भी कराहते हुए उनसे ‘आ..आ…ह…ह… बस करो… आ..आ…ह… प्लीज मुझे छोड़ दो…’ कह रही थी।
मगर महेश जी लगातार धक्के लगाते रहे। धीरे-धीरे मेरा दर्द कम होने लगा, और कुछ देर बाद तो मेरा दर्द बिल्कुल गायब ही हो गया और मुझे भी मजा आने लगा, इसलिए मैंने अपने घुटने मोड़ लिए और जाँघों को पूरी तरह से फैला दिया।
मेरे कराहने की आवाज सिसकारियों में बदल गई और मैं भी मजे से धीरे-धीरे अपने कूल्हों को उचकाने लगी।
इसके बाद महेश जी ने भी मेरे हाथों को छोड़ दिया और अपने एक हाथ से मेरे उरोजों को सहलाने लगे। मेरे हाथ आजाद होते ही अपने आप महेश जी की पीठ पर चले गए और मैं उनकी पीठ को सहलाने लगी।
धीरे-धीरे महेश जी ने गति पकड़ ली और वो तेजी से धक्का लगाने लगे। मेरी भी सिसकारियाँ तेज हो गईं और मैं भी उत्तेजना के कारण तेजी से अपने कूल्हे उचका-उचका कर महेश जी का साथ देने लगी।
जब महेश जी धक्का लगाते तो उनकी जाँघें मेरी जाँघों से टकरा जाती जिससे ‘पट-पट’ की आवाज निकल रही थीं, और अब तो मैं भी नीचे से धक्के लगा रही थी।
इसलिए पूरा कमरा मेरी सिसकारियों और ‘पट-पट’ की आवाजों से गूंजने लगा। ऐसा लग रहा था, जैसे हम दोनों में एक-दूसरे को हराकर पहले चरम पर पहुँचने की होड़ लगी हो।
क्योंकि जितनी तेजी और जल्दी से महेश जी धक्का लगाते उतनी ही तेजी और जल्दी से मैं भी अपने कूल्हों को ऊपर नीचे कर रही थी। उत्तेजना से मैं पागल सी हो गई।
महेश जी ने मेरे ऊपर के होंठ को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगे। उत्तेजना के कारण पता नहीं कब, उनका नीचे का होंठ मेरे मुँह में आ गया जिसे मैं भी चूसने लगी।
हम दोनों के शरीर पसीने से भीग गए और साँसें उखड़ने लगी। मेरे मुँह पर महेश जी का मुँह था फिर भी मैं उत्तेजना में, जोर-जोर से सिसकारियाँ भर रही थी।
कुछ देर बाद ही अपने आप मेरे हाथ महेश जी की पीठ से और पैर उनकी कमर से लिपटते चले गए, मेरे मुँह में महेश जी का होंठ था जिसको मैंने उत्तेजना के कारण इतनी जोर से चूस लिया कि मेरे दाँत उनके होंठ में चुभ गए और उसमें से खून निकल आए।
पूरे शरीर में आनन्द की एक लहर दौड़ गई और मैं महेश जी के शरीर से किसी बेल की तरह लिपट गई। एकदम से सीत्कार करते हुए शाँत हो गई और मेरी योनि ने ढेर सारा पानी छोड़ दिया।
इसके बाद महेश जी ने भी मेरे शरीर को कस कर भींच लिया और उनके लिंग से रह-रह कर निकलने वाले गर्म वीर्य को अपनी योनि में महसूस करने लगी। जो मेरी योनि से निकल कर मेरी जाँघों पर भी बहने लगा। और वो निढाल होकर मेरे ऊपर गिर गए।
कुछ देर तक वो ऐसे ही मेरे ऊपर पड़े रहे और फिर उठ कर अपने कपड़े पहनने लगे। मगर मैं ऐसे ही शाँत भाव से पड़ी रही और महेश जी को कपड़े पहनते देखती रही। कपड़े पहन कर महेश जी कमरे से बाहर निकल गए।
महेश जी के जाने के बाद टीवी को बन्द करने के लिए मैं रिमोट देखने लगी, तो मुझे अपने कूल्हों के नीचे कुछ गीला-गीला व चिपचिपा सा महसूस हुआ।
मैंने देखा तो चादर पर मेरी योनि से निकला पानी और महेश जी का वीर्य पड़ा हुआ था। कहीं कोइ देख ना ले ये सोचकर मैं घबरा गई इसलिए मैंने जल्दी से चादर को बदल दिया और टीवी को भी बंद कर दिया। धुलाई के लिए मैंने उस चादर को उठा लिया, मगर नीचे से मैं नंगी थी इसलिए मैंने उस चादर को ही अपने शरीर से लपेट लिया और अपनी सलवार उठा कर जल्दी से बाथरूम में घुस गई।
जब मैंने बाथरूम के दरवाजे को बंद करके कुण्डी लगा ली, तब जाकर चैन की साँस ली और मेरा डर कम हुआ। मैंने चादर को खोल कर नीचे डाल दिया व आदत के अनुसार अपने सारे कपड़े उतार कर बाथरुम में लगे शीशे के सामने जाकर नंगी खड़ी हो गई और खुद के शरीर को देखने लगी।
मेरे शरीर पर काफी जगह महेश जी के पकड़ने से उनकी उँगलियों के निशान बने हुए थे और पेट के नीचे का योनि क्षेत्र व मेरी जाँघें तो बिल्कुल लाल हो गई थीं।
मेरी योनि से अब भी महेश जी का वीर्य एक लम्बी लार की तरह रिस कर मेरी जाँघों पर बह रहा था, जिसमें थोड़ा सा मेरी योनि का खून भी मिला हुआ था।
इसके बाद मैंने उस चादर की धुलाई की और नहाकर अपने कपड़े पहन कर बाहर आ गई। बाथरुम से बाहर निकलते ही मैं सीधे नीचे मम्मी के पास चली गई।
मम्मी अब भी टीवी पर वो ही फिल्म देख रही थीं। मुझे उन पर गुस्सा आ रहा था, क्योंकि ऊपर मेरे साथ इतना कुछ हो गया और गया। उनको इस फिल्म से ही फुर्सत नहीं है।
इसके बाद तो मैंने ऊपर जाना बिल्कुल ही बंद कर दिया चाहे ऊपर कोई हो या ना हो। मैं कभी भी ऊपर नहीं जाती थी।
इसी तरह एक सप्ताह बीत गया, भैया की छुट्टियाँ खत्म हो गईं और भैया चले गए। भैया के जाने के बाद भाभी और मम्मी-पापा के दबाव के कारण मैं ऊपर भाभी के कमरे में सोने लगी और इसका फायदा महेश जी को मिला।
उनके उस फायदे को आपसे फिर कभी शेयर करूँगी।
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