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कहानी का पहला भाग: मौसेरे भाई बहन का खेल-1
मैंने कहा- तू जाकर बैठ, मैं भी पिशाब करके आता हूँ। वो बोली- तो कर ले न अभी। मैंने कहा- तू जायेगी तब तो? वो बोली- अरे, जब मैं लड़की होकर तेरे सामने मूत सकती हूँ तो क्या तू लड़का होके मेरे सामने नहीं मूत सकता? मैं बोला- ठीक है।
मैं हल्का सा मुड़ा और अपनी पैंट खोल कर कमर से नीचे कर दिया। फिर मैंने अपना अंडरवियर को ऊपर से नीचे कर अपने लंड को निकाला। दीपिका के चूतड़ और गांड को देख कर यह खड़ा हो गया था। मैंने अपने लंड के मुंह पर से चमड़ी को नीचे किया और जोर से पिशाब करना शुरू किया।
मेरा पेशाब लगभग तीन मीटर की दूरी पर गिर रहा था। दीपिका आँखें फाड़ मेरे लंड और पेशाब की धार को देख रही थी। वो अचानक मेरे सामने आ गई और बोली- बाप रे बाप! तेरा पेशाब इतनी दूर गिर रहा है?
मैंने अपने लंड को पकड़ कर हिलाते हुए कहा- देखती नहीं कितना बड़ा है मेरा औजार! यह लंड नहीं फायर ब्रिगेड का पम्प है। जिधर जिधर घुमाऊँगा उधर उधर बारिश कर दूंगा।
दीपिका हँसते हुए बोली- मैं घुमाऊँ तेरे पम्प को? मैंने कहा- घुमा!
दीपिका ने मेरे लंड को पकड़ लिया और उसे दायें बाएं घुमाने लगी। मेरे पेशाब जहाँ तहां गिर रहा था, उसे बड़ी मस्ती आ रही थी।
लेकिन मेरा लंड एकदम कड़क हो गया था.. मेरा पेशाब ख़त्म हो गया। लेकिन दीपिका ने मेरे लंड को नहीं छोड़ा। वो मेरे लंड को सहलाने लगी।
बोली- तेरा लंड कितना बड़ा है। कभी किसी को चोदा है तूने? मैंने- नहीं, कभी मौका नहीं मिला। मैंने कहा- तू भी अपनी चूत दिखा न दीपिका?
दीपिका ने अपनी पेंटी को नीचे सरका दिया और स्कर्ट ऊपर करके अपनी चूत का दर्शन कराने लगी। घने घने बालों वाली चूत एकदम मस्त थी। मैंने लपक कर उसकी चूत में हाथ लगाया और सहलाते हुए कहा- हाय, क्या मस्त चूत है तेरी। मुठ मार दूँ तेरी?
दीपिका- मार दे।
मैं उसके चूत में उंगली डाल कर उसकी मुठ मारने लगा। वो आँखे बंद कर सिसकारी भरने लगी।
मैंने कहा- पहले किसी से चुदवाई हो या नहीं? दीपिका- हाँ, कई बार। मैंने कहा- अरे वाह। तू तो एकदम एक्सपर्ट है।
अचानक उसने मेरी पेंट और अंडरवियर खोल दिया। और अपनी पेंटी को पूरी तरह से खोल कर जमीन पर लेट गई।
बोली- सचिन, मेरे चूत में अपना लंड डाल कर मुझे चोद! आज तू भी एक्सपर्ट बन जा!
मैंने एक हाथ से उसकी चूची को हल्के से दबाया, वो हल्की हल्की मुस्कुराने लगी। मैंने उसकी चूची को और थोड़ी जोर से दबाया वो कुछ नहीं बोली। अब मैं आराम से उसकी दोनों चूचियों को दबाने लगा। धीरे धीरे मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर ले गया और उसे चूम किया। उसने भी मेरे होठों को जीभ से चाटा और हम दोनों एक दूसरे के होठों को दस मिनट तक चूसते रहे। इस बीच मेरा हाथ उसकी चूचियों पर से हटा नहीं। अच्छी तरह उसके होंठ चूसने के बाद मैंने उसे छोड़ा, उसकी चूचियों पर से हाथ हटाया। उसके चूची के ऊपर के कपड़े पर सिलवटें पड़ गई थी।
अब मेरी भी वासना का कोई ठिकाना नहीं था, मैंने अपना लंबा लंड उसके चूत के डाला और अन्दर की तरफ धकेला। पहले तो कुछ दिक्कत सी लगी लेकिन मैंने जोर लगाया और पूरा लंड उसके चूत में डाल दिया।
अचानक उसकी चीख निकल गई। लेकिन मैंने उसकी चीख की परवाह नहीं की और उसकी चुदाई चालू कर दी। वो भी मेरे लंड से अपनी चूत की चुदाई के मज़े लेने लगी। थोड़ी देर में उसकी चूत ने माल निकाल दिया। मेरे लंड ने भी उसके चूत में ही माल निकाल दिया। हम दोनों अब ठन्डे हो गए थे, दोनों ने कपड़े पहने और झाड़ियों में से निकल कर पेड़ के नीचे चले गए। वहाँ हम दोनों ने सिगरेट का सुट्टा मारा। लेकिन मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया था।
मैंने कहा- दीपिका, चल न एक बार फिर से करते हैं, इस बार मज़े ले ले कर करेंगे। दीपिका- चल!
हम दोनों फिर से एक विशाल झाड़ियों के बीच चले गए। उस झाड़ियों के बीच मैंने कुछ झाड़ उखाड़े और हम दोनों के लेटने लायक जमीन को खाली करके पूरी तरह नंगे हो गए। फिर हम दोनों ने एक दूसरे के अंगों को जी भर के चूमा चूसा। उसने मेरे लंड को चूसा। मैंने उसके चूत को चूसा। मैंने उसकी दोनों नंगी चूचियों को जी भर कर मसला।
फिर आधे घंटे के चूमने चूसने के बाद मैंने उसकी चुदाई चालू की। बीस मिनट तक उसकी दमदार चुदाई के बाद मेरा माल निकला। फिर थोड़ी देर सुस्ताने के बाद हम दोनों ने कपड़े पहने और वापस घर चले आये। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
अगले दिन रोहित, दीपिका और मैं उसी अड्डे पर आये। आज मन में बड़ी उदासी थी। सोच रहा था कि आज अगर रोहित साथ ना होता तो आज भी मज़े करता। दीपिका भी यही सोच रही थी।
रोहित ने कहा- क्या बात है आज तुम दोनों बड़े खामोश लग रहे हो? मैंने कहा- नहीं तो, ऐसी कोई बात नहीं है। रोहित- कल भी तुम दोनों यहाँ आये थे? दीपिका- हाँ, कल भी यहाँ आये थे हम दोनों!
रोहित- तब तो बड़ी मस्ती की होगी तुम दोनों ने? इसलिए आज सोच रहे होगे कि रोहित ना ही आता तो अच्छा था… क्यों सच कहा ना मैंने? मैंने अकचका कर कहा- नहीं रोहित, ऐसी कोई बात नहीं। हम दोनों कल यहाँ आये जरूर थे लेकिन सिर्फ सिगरेट पीकर जल्दी से घर वापस चले गए। लेकिन दीपिका ने कहा- हाँ रोहित, सचिन झूठ बोल रहा है, तुम सच कह रहे हो, कल मैंने इससे चुदवा लिया था!
मेरा तो मुँह खुला का खुला रहा गया। अब तो रोहित हम सबकी बात सब को बता देगा। मेरे तो आँखों से आँसू निकल आये। मैंने लगभग रोते हुए कहा- रोहित भैया माफ़ कर दो मुझे। कल पता नहीं क्या हो गया था। अब ऐसी गलती कभी नहीं होगी।
रोहित- अरे पागल चुप हो जा, इसने मुझसे पहले ही पूछ लिया था। मैंने इसे परमिशन दे दी थी। अरे यही दिन तो हैं मस्ती करने के! फिर ये जवानी लौट कर थोड़े ही ना आने वाली है? जा जा कर फिर से कर ले, जो कल किया था, मैं यहाँ हूँ, जा, जा कर लूट मेरी बहन की जवानी!
मुझे काटो तो खून नहीं वाली स्थिति थी लेकिन मैं खुशी के मारे पागल हो गया। दीपिका ने मेरा हाथ थामा और मुझे पकड़ कर वहीं झाड़ियों के पीछे ले गई। पूरे एक घंटे तक हम दोनों ने चुदाई कार्यक्रम किया। दीपिका भी पस्त हो कर नंगी ही लेटी हुई थी। मैंने कपड़े पहने और दीपिका को भी तैयार होने को कहा, उसने भी अपने कपड़े पहने और हम दोनों वापस पेड़ के नीचे आ गए।
रोहित- क्यों, हो गई मस्ती? हम दोनों ने कहा- हाँ, अब घर चलें?
हम तीनों घर आ गए। मैं बहुत खुश था अपनी मौसेरी बहन दीपिका की फ़ुद्दी की चुदाई करके, वो भी उसके सगे भाई के सामने!
रात को लण्ड खड़ा होने से एक बजे मेरी नींद खुल गई, कमरे में घुप्प अँधेरा था, दीपिका को चोदने का मन कर रहा था। मैं, दीपिका और रोहित एक ही कमरे में सो रहे थे।
तभी मैंने कुछ आवाजें सुनी। ध्यान से सुना तो दीपिका की कराहने की आवाज थी। थोड़ा और ध्यान से सुना तो किसी मर्द की गर्म गर्म सांसों और सिसकारियों की आवाजें भी थी। मैंने अपने पास सोये रोहित को टटोला तो वो वहाँ नहीं था। मैं तुरंत ही समझ गया। वो अपनी बहन की चुदाई कर रहा है।
मेरा मन बाग़ बाग़ हो गया। मैंने अँधेरे में अपने लंड को निकाला और मसलने लगा।
तभी दोनों की हल्की हल्की चीख सुनाई पड़ी। समझ में आ गया कि रोहित झड़ चुका है। थोड़ी देर में वो मेरे पास बिस्तर पर आकर लेट गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैं धीरे से बोला- यार, मेरा लंड फिर से चूत खोज रहा है, वो भी दीपिका की। क्या करूँ? रोहित ने कहा- दिल कर रहा है तो जा मार ले उसकी, मुझसे क्या पूछता है?
मैं उठ कर दीपिका के बिस्तर पर गया, उसे धीरे से जगाया, वो उठी, बोली- कौन है? मैंने धीरे से कहा- मैं हूँ सचिन! दीपिका- अरे सचिन.. आ जा… तेरे ही बारे में सोच रही थी। मैंने उसकी चूची दबाते हुए कहा- क्यों अभी अभी तो रोहित ने तेरी ली ना?
दीपिका- अरे, उसे तो पिछले डेढ़ साल से दे रही हूँ। लेकिन तेरी तो बात ही कुछ और है, तेरे साथ ज्यादा मज़ा आया मुझे! मैंने- तो आ ना, फिर से एक दो राउंड हो जायें? दीपिका- हाँ… आ जा मेरी जान, लेकिन मेरी ये चारपाई काफी छोटी है। इस पर खेल ठीक से होगा नहीं। एक काम करते हैं, रोहित को थोड़ी देर के लिए इस पर भेजकर हम दोनों उस पलंग पर चलते हैं। मैंने कहा- ठीक है।
हम दोनों रोहित के पास गए, दीपिका ने धीरे से रोहित से कहा- रोहित, थोड़ी देर के लिए मेरी वाली चारपाई पर चले जाओ ना। मुझे सचिन के साथ थोड़ी मस्ती करनी है। रोहित- ठीक है बाबा, लेकिन देख, ज्यादा शोर शराबा मत करना। जो करना है आराम से करना।
फिर वो उठ कर छोटी चारपाई पर चला गया और मैंने और दीपिका ने उस घुप्प अँधेरे में दो घंटे तक मस्ती की।
फिर अगले दिन झाड़ी में मैंने और रोहित ने मिल कर दीपिका की चुदाई की।
फिर ऐसा कार्यक्रम तब तक चलता रहा जब तक मामा की शादी के बाद हम सभी अपने अपने घर नहीं चले गए। फिर मैं बाद में बहाना बना बना कर जयपुर भी जाता था और दीपिका के साथ खूब मस्ती किया करता था।
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