सायबर-कैफ़े में वंदना की चुदाई

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प्रेषक : सबीर

मेरा नाम सबीर है और मैं भोपाल का रहने वाला हूँ।

मैं बहुत समय से निरंतर अन्तर्वासना का पाठक हूँ। बहुत समय से सोच रहा था कि कभी अपनी कहानी भी आप सबको बताऊँ।

वैसे तो दिखने में बहुत शरीफ हूँ, पर असलियत तो मेरे साथ समय बिताई हुई लड़कियाँ ही बता सकती हैं।

मैं एक प्राइवेट बैंक में टीम लीडर हूँ और एक टीम लीडर के लिए लड़कियों की कभी कमी नहीं रहती है।

कई लड़कियाँ अपना कैरियर बनाने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती हैं। ऐसे ही मेरी मुलाकात हुई भोपाल में एक लड़की से जो जॉब की तलाश कर रही थी। मैंने उसकी मदद की और अपने बैंक में जॉब दिला दी।

उस लड़की का नाम वंदना है। वंदना एक बहुत खूबसूरत और चुदक्कड़ लड़की है। उसे रंडी बनने का काफी शौक है, पर बाजारू रंडी का नहीं।

मैंने उसे जॉब दिलाई तो वो मुझसे काफी करीब हो गई थी। बस फिर क्या था हम दोनों लीड का बहाना लेकर हमेशा बैंक के बाहर रहने लगे।

वो तो पता नहीं कब से मुझसे सेक्स करना चाहती थी। एक दिन हम बैठे हुए थे।

मैंने उससे पूछा- मैं तुम्हें कैसा लगता हूँ? और पूछते हुए उसकी आँखों में देखने लगा और उसका हाथ पकड़ लिया।

वो मुझे देखती रही और प्यार से मुस्कुरा कर कहा- आप पर तो सारे ब्रांच की लड़कियाँ मरती हैं, पर शायद मैं लक्की हूँ कि आप मुझसे ये पूछ रहे हो।

बस इतना कह कर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे किस करने लगी।

मैंने जितना सोचा था, वंदना उससे कही ज्यादा बड़ी चुदक्कड़ थी। उसने मुझे इस कदर चूमना शुरू किया की मैं दंग रह गया।

वो मेरे होंठों के अंदर अपनी जीभ डालकर इतना अच्छे से किस कर रही थी।

मैं तो पागल होने लगा था, फिर मैंने भी धीरे से उसकी कुर्ती में हाथ घुसाना चालू किया।

जब मैंने देखा कि वो मना नहीं कर रही है, तो मेरा भी हौसला बढ़ गया और मैंने अपना हाथ अंदर डाल कर उसके गोल-गोल दुग्धउभारों को दबाना शुरू कर दिया।

वो पागल सी होने लगी और जोर-जोर से साँसें लेने लगी और मचलने लगी।

मैंने सोचा कि आज मौका अच्छा है, इसे कहीं पर ले चलता हूँ। मेरा रूम उस दिन खाली नहीं था।

मैंने उससे कहा- मेरे साथ चलोगी? जहाँ हम बिना किसी के डर के सब कुछ कर सकें।

तो उसने हाँ कर दी। पर कोई भी जगह मुझे नहीं मिली, वो तड़फ रही थी और मेरा भी हाल खराब हो रहा था।

मैं उसे अपने एक दोस्त के सायबर-कैफ़े पर ले गया। वहाँ केबिन में जाकर मैंने उसे चूमना शुरू किया और वो पागलों की तरह मेरा साथ देने लगी। वो अपने हाथों से मेरा लंड दबाने लगी। मेरी जीभ से अपना जीभ टकरा कर मेरा सारा रस पीने लगी। वो एकदम पागल हो चुकी थी।

उसने कहा- तुम मुझे चोद दो।

वो जगह चोदने के लिए सही नहीं थी। फिर भी मैंने पहले उसके कुर्ती को निकाला। उसके मस्त मम्मे देख कर ऐसा लगा कि खा जाऊँ। उसके दूध के कलश बहुत प्यारे थे।

मैंने प्यार से उनके नाम ‘मोनू’ रख दिए और उसके एक दूध को जब मैं चूस रहा होता, तो दूसरे को अपने हाथों से मसल रही होती।

सेक्स कूट-कूट कर भरा था साली में, उसने खूब दूध चुसवाए। हम बहुत समय तक चूसने का काम ही करते रहे।

वो अब एकदम पागल होकर जोर-जोर से साँसें लेने लगी और मुझसे अपने आप को चिपकाने लगी। फिर वो मेरे लड़ को पकड़ कर अपने बुर में घुसाने के लिए जिद करने लगी।

तो मैंने उसे कंप्यूटर टेबल पर बैठाया और उसके पजामे को उतार दिया। अपने हाथ से उसकी चूत को मसलने लगा, तो वो और पागल हो गई।

“जान अब तो चोदो मुझे।”

मैंने पहले उसकी पैंटी उतारी और उसकी चूत में अपनी ऊँगली चलानी शुरू कर दी। उसे ऐसा लगा जैसे वो जन्नत में पहुँच चुकी है।

वो और तड़पने लगी। फिर मैंने उसकी चूत पर अपनी जीभ रखी और उसकी दरार में घुमाने लगा।

वो मेरे सर को पकड़ कर जोर-जोर से अपनी चूत पर दबाने लगी और अपनी दोनों टाँगों को फैला कर अपनी चूत में मेरा मुँह घुसाने लगी।

मैंने भी अब अपने जीभ की रफ़्तार बढ़ा दी। कभी मेरी जीभ उसकी चूत के अंदर होती तो कभी उसके होंठों पर होती।

उसने मुझे चोदने को कहा तो मैंने कहा- ठीक है। और मैं अपने कपड़े उतरने लगा तो उसने मेरा हाथ पकड़ा और खुद मेरे कपड़े उतारने लगी।

मेरी चड्डी निकलते ही अपनी दोनों टाँगे चौड़ी करके मेरे लंड को अपने बुर में घुसाने लगी।

मैं उसे अच्छे से चोद नहीं पा रहा था, क्योंकि सायबर-कैफ़े के केबिन में जगह बहुत कम थी। सो मैंने अपनी ऊँगली उसके चूत पर घुसा दी।

साली का चूत था या भोंसड़ा। मैंने अपनी तीन उंगलियाँ घुसा दीं, फिर भी उसे दर्द नहीं हुआ। और अपने चूतड़ हिला-हिला कर मेरी ऊँगली से चुदती रही।

जब वो झड़ने वाली थी तो, ‘आह.. अह.. ओह.. उह.. आह..’ की आवाज निकाल कर तेज रफ़्तार से चूतड़ हिलाना शुरू कर दिए।

मैंने भी अपनी उंगलियों की रफ़्तार बढ़ा दी और मैं जोर-जोर से उसकी चूत में अपनी तीनों उंगलियाँ अंदर-बाहर करने लगा।

“आई लव यू जान.. आई लव यू और जोर-जोर से।” कहते हुए झड़ गई।

उसके सारे निकले हुए माल को मैंने अपनी जीभ से चाट कर साफ़ किया।

उसने मेरा लंड पकड़ा और उसे मुँह में लेकर आइस क्रीम की तरह चाटने लगी और हिलाने लगी। साली पूरी तरह पकी हुई खिलाड़ी थी।

ऐसे ही मेरा भी माल निकला। जब मैं झड़ने वाला था तो मैंने आँखें बंद कर लीं और उसके सर को जोर-जोर से अपने लंड पर दबाने लगा।

जब मैं झड़ा तो वो भी मेरा सारा माल पी गई।

उसने कपड़े पहने और मुस्कुराते हुए मेरे गले लग गई और बोली- अपने लंड से मेरी चूत को शाँत कब करोगे?

मैंने कहा- कल।

तो उसने मुझसे अपनी कसम खाने को कहा तो मैंने कहा- हाँ, कसम से मैं कल तुम्हें अपने रूम पर ले जाकर चोदूँगा।

तो उसकी चेहरे की खुशी का जवाब ही कुछ और था।

हम दोनों शाम के करीब सात बजे दस नम्बर मार्केट गए। मैंने उसे गुलाब-जामुन लेकर दिए।

उसने कहा- इसके शीरे से मीठा तो आपके टोनू का शीरा है।

मैंने उसे उसके घर पर छोड़ दिया और दूसरे दिन सुबह-सुबह ही उसका फोन आ गया।

‘कितने बजे ले चल रहे हो मुझे …..!’

बाकी की कहानी अगले भाग में लिखूँगा। पहले ये बताइए कि आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी। मुझे मेल करें !

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