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दोस्तो, मेरी पहली कहानी चलती बस में समलिंगी अनुभव को आप लोगों ने बहुत पसंद किया और बहुत सारे मित्रों ने मुझे मेल लिखे, जिससे मुझे महसूस हुआ कि सभी लोगों ने मेरी सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानी को बहुत पसंद किया। प्रस्तुत है मेरी दूसरी सच्ची कहानी।
बात उन दिनों की है जब मेरी उम्र लगभग 25 वर्ष रही होगी। मैं अपने घर से लगभग 25 किलो मीटर दूर रोज अपनी मोटर साईकिल से जॉब करने जाता था। सुबह 7 बजे निकालता था और रात 9 बजे लौटता। मेरी शादी हो चुकी थी।
दोस्तों मुझे लड़कों की गांड मारना और अगर लंड पसंद आ जाये तो गांड मरवाने में भी कोई दिक्कत नहीं होती है, कहने का मतलब मैं सेक्स को हर हाल में एन्जॉय करता हूँ।
एक बार की मैं रात को फैक्ट्री से रात के लगभग नौ बजे वापिस आ रहा था कि मेरी मोटर साईकिल रास्ते में पंचर हो गई और आस-पास कही कोई पंचर बनाने वाला नहीं था।
मैं अपनी गाड़ी खींचता हुआ हाई-वे पर किनारे-किनारे आगे बढ़ा क्योंकि मैं वहाँ मोटर साईकिल छोड़ भी नहीं सकता था। आसपास कोई बस्ती या घर भी नहीं था।
लगभग 3 किलोमीटर गाड़ी खींचने के बाद एक ढाबे के किनारे एक पंचर वाले की दुकान पर पहुँचा तब तक रात के 11 बज चुके थे।
मैंने वहाँ गाड़ी खड़ी की और थका हुआ था तो उसी पंचर वाले के यहाँ चारपाई पड़ी थी उस पर बैठ गया। पंचर वाला आस-पास कहीं दिखा नहीं, तो मैं उसी चारपाई पर लेटकर उसका इंतजार करने लगा।
पंचर वाले ने अपनी दुकान छोटी सी झोपड़ी जैसी बनाकर रखी हुई थी और चारपाई झोपड़ी के बाहर पड़ी थी।
बारिश के दिन थे, थोड़ी देर में हल्की बारिश शुरू हो गई, मैंने चारपाई उठाकर झोपड़ी में डाल ली और उस पर मैं लेट गया।
मैं थका तो था ही, मुझे पता नहीं कब नींद आ गई। बारिश हो ही रही थी और ठंडी हवा भी चल रही थी। मैं न जाने कब तक सोता रहा।
जब नींद खुली तो अपनी घड़ी में देखा रात के एक बजे थे। मेरी नजर आसपास घूमी तो एक बीस साल का लड़का मेरी गाड़ी का पंचर बना चुका था और बैठ कर बीड़ी पी रहा था।
मैंने भी अपनी सिगरेट सुलगाई और पीने लगा उससे पूछा- कितने पंचर निकले और उसने बनाते समय मुझे जगाया क्यों नहीं?
वो लड़का बोला- बाबूजी आप बहुत गहरी नींद में थे तो मैंने सोचा आए तो पंचर बनवाने ही हो। पहले पंचर बनाता हूँ हो सकता है तब तक आप जग जाओ। और देखिये आप जाग ही गए।
उसने इतना कहा ही था कि उसी समय फिर बारिश शुरू हो गई। मैं बहुत बुरा फँसा गया था। घर अभी लगभग 15 किलोमीटर दूर था और मेरे पास कोई रेनकोट भी नहीं था। मैंने रुक कर इंतजार करना उचित समझा।
लड़के को उसके पंचर बनाने के पैसे दिए और बोला- ढाबे से चाय ले आओ। वो 5 मिनट में चाय लेकर लौटा हम लोगों ने चाय पी और इधर-उधर की बातें करते रहे।
तभी मेरे कमीने दिमाग में आईडिया आया कि क्यों न इसकी गांड मारी जाए। जब तक मैं यहाँ फँसा हूँ कुछ मस्ती ही हो जायेगी।
मैंने उसको अपने पास बुलाया और कहा- यही चारपाई पर क्यों नहीं बैठते हो, वहाँ इतनी दूर बैठे हो। ये तो तुम्हारी चारपाई है। तुम मालिक हो इसके।
वो बोला- नहीं बाबूजी आप लोग बड़े आदमी हैं। आपके बराबर में, मैं कैसे बैठ सकता हूँ?
मैंने उसको समझा बुझाकर अपने पास चारपाई पर बुला लिया और न जाने क्या हुआ उसी समय ही लाइट भी चली गई। जो उसके यहाँ एक बल्ब जल रहा था वो भी बुझ गया।
वो उठने लगा कि मोमबत्ती जला दे। मैंने मना कर दिया कि अभी यहाँ लाइट की किसको जरुरत है। इतनी रात को वो चुपचाप बैठे।
उधर ढाबे पर भी अँधेरा हो गया था। वहाँ लोगों ने एक-दो मोमबत्ती जला दी थीं, पर इतनी दूरी थी कि हम लोग क्या कर रहे हैं, कोई नहीं समझ सकता था।
अब मेरा घर जाने का इरादा गायब हो चुका था। बस किसी तरह उस लौंडे को पटाकर उसकी गांड मारने का था।
मैं अँधेरे में सरक कर उसके पास हो गया। अपना एक हाथ उसकी जाँघ पर रखा और इधर उधर की बातें करने लगा उसके परिवार की, कहाँ का रहने वाला है?
ये सब बात करते-करते और साथ ही साथ अपना हाथ थोड़ा-थोड़ा उसके लंड की तरफ भी बढ़ाता जा रहा था।
जब उसके लंड और मेरे हाथ की दूरी लगभग 4 इंच की रही होगी, मैंने उससे कहा- यार सुना है इस ढाबे पर चुदाई होती है, लड़कियाँ भी मिलती है?
मेरा मकसद अब सेक्सी बातें करके उसके लंड को खड़ा करना था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
वो बोला- नहीं बाबूजी यहाँ तो ऐसी कोई बात नहीं है। हाँ, कभी-कभी बड़े लोग अपनी कार में लड़की लेकर आते है और कमरा वगैरा लेना चाहते है तो ढाबे के मालिक का पास के बाग में 4 कमरे का घर बना है। वहाँ सब इंतजाम रहता है। वही वो किराये में दे देते हैं। लोग दो-चार घंटे रुक कर चले जाते हैं।
मैंने कहा- तुम्हारा दिल जब करता है चूत चोदने का, तो तुम क्या करते हो?
और इतना कह कर मैंने अपने हाथ से उसका लंड पकड़ कर दबाया और हाथ वहीं रखा रहने दिया।
वो अँधेरे में ही थोड़ा शरमाया और बोला- साहब मेरा तो घर बिहार में है, इतनी दूर पड़ा हूँ। यहाँ अगर चूत के चक्कर में पडूंगा तो क्या कमाऊँगा? क्या खाऊँगा? और क्या घर ले जाऊँगा? देखो जंगल में पड़ा हूँ, कोई पंगा हो गया तो यहाँ कोई बचाने वाला भी नहीं है।
ये सब कहते-कहते भी उसके लंड में थोड़ी सी जान आने लगी थी। मैंने फिर उसका लंड पैंट के ऊपर से ही दबाया और कहा- फिर इस पप्पू को कैसे शांत करते हो?
इतना कहते ही उसका लंड झटका खाया और उसने अपने लंड से मेरा हाथ उठाते हुए कहा- जाने दो बाबूजी आप ये सब बातें करके चले जाओगे और मेरी नींद हराम हो जायेगी।
मैंने फिर से उसके लंड पर हाथ रखा और कहा- यार चला नहीं जाऊँगा, तेरा पानी निकाल कर ही जाऊँगा। उसमें क्या है? हम लोग मर्द हैं ये बातें तो कर ही सकते है।
उसको और गर्म करने के लिए कहा- मेरा तो जब मन करता है, मैं मुठ मार के गिरा देता हूँ। या जब बीवी का महीना आने लगता है तब उससे भी मुठ मरवाता हूँ।
उसके लंड को मैंने पूरी तरह से अपने हाथों से पैंट के ऊपर से ही पकड़ लिया।
अब वो गरम तो हो चुका था और लंड का जूस भी निकालना चाहता था, ऐसा मुझे लगा।
मैंने उसको और गर्म करते हुए कहा- यार तेरा लंड तो बड़ा मस्त लग रहा है। ऊपर से निकाल न? जरा देखूँ तो कि बिहारी लंड कैसे होते है?
वो शर्माता हुआ बोला- जाने दो बाबूजी। और फिर से मेरा हाथ अपने लंड से हटा दिया।
मैंने कहा- यार अगर तेरे जैसा मेरा लंड होता तो न जाने कितनी लौंडियाँ चोद चुका होता। और तू दिखाने में नखरे कर रहा है। जैसे मैं कोई लड़की होऊँ?
और फिर से मैंने उसके लंड को अबकी बार ऐसा पकड़ा कि वो हटाना भी चाहे तो हटे न, और अपनी मुट्ठी में लेकर उसको हल्का-हल्का रगड़ने भी लगा।
वो अब पूरे शवाब में आ चुका था। मैंने दूसरे हाथ से उसके पैंट की चैन खोली और उसका लंड बाहर निकाला।
वास्तव में उसका लंड 7” का मोटा सा कटा हुआ जबरदस्त लंड था। मैंने उससे पूछा- तुम मुस्लिम हो क्या? वो बोला- हाँ।
ये मेरे जीवन का पहला मुस्लिम कटा हुआ लंड मेरे हाथ में था और ये सब करते हुए कब मेरा लंड खड़ा हो गया मुझे पता ही नहीं चला।
मैंने उससे कहा- यार तेरा लंड इतना मस्त है और इसको देख कर ही मेरा लंड खड़ा हो गया। अगर तुम बुरा ना मानो तो मैं यहीं मुठ मार लूँ और तुमको भी मुठ मार दूँ।
वो कुछ नहीं बोला बस हल्की-हल्की ‘उह्ह उह्ह’ की आवाज़ निकाल रहा था।
मैंने उसको हल्का सा धक्का देकर चारपाई पर लेटा दिया और मैंने अपना लंड भी दूसरे हाथ से निकाल कर सहलाना शुरू किया।
वो चुपचाप ‘ऊई-ऊई’ कर रहा था।
मैं उसके लंड से जो प्रीकम निकल रहा था उसको ही उसके टोपे पर लपेट कर टोपे को हल्का-हल्का मसाज दे रहा था।
अभी मैंने धीर-धीरे पोजीशन लेकर अपना लंड उसके हाथ के पास करके बार-बार हल्का स्पर्श करवा रहा था। ऐसा करते करते उसने मेरे लंड को आखिर में पकड़ ही लिया और मुठी में लेकर जोर से दबाया।
मैं आनन्द के सागर में गोते लगाने लगा, पर अभी मेरा मकसद बहुत दूर था। मुझे उसकी गांड मारनी थी।
लगभग 5 मिनट मैं हल्के हाथ से उसके लंड को मसाज देने के बाद बोला- यार तेरा लंड चूसने के लायक है। अगर तुम्हें कोई दिक्कत न हो तो मैं इसको चूस लूँ?
वो चुपचाप किसी दूसरी दुनिया की सैर कर रहा था।
मैंने उसके लंड को अपने मुँह में भर लिया पर उसका लंड इतना बड़ा था कि मेरे मुँह में पूरा नहीं आया।
मैं जितना अंदर तक लेकर चूस सकता था, उतना लेकर चूसना शुरू किया।
उसने भी मेरे लंड को हल्का-हल्का सहलाना शुरू किया।
मैं तो अपनी प्लानिंग के हिसाब से उसको तैयार कर रहा था पर वो बेचारा नहीं जानता था कि मैं अभी उसी का शिकार कर रहा हूँ।
मैं उसके लंड को चूसता जा रहा था और उसकी पैंट को खोल कर नीचे खींचता जा रहा था।
वो अब इस समय इस स्थिति में नहीं था कि विरोध करे। मैंने उसकी पैंट और जाँघिया दोनों निकाल दीं।
उसकी बड़ी-बड़ी झाँटें थीं। लगता था कि उसने सालों से इनको नहीं काटा है। मैं लंड को चूसते हुए उसकी गोलियों को ही हल्के हाथ से मसल देता था।
वो सिसकारियाँ ले रहा था और जब लंड मेरे मुँह से निकालने वाला होता तो गांड उठाकर धक्का लगा कर फिर मुँह में पूरा डाल देता।
मैंने उसके दोनों पैर उठाकर उसकी गोलियों को भी अच्छे से चाटा और धीरे-धीरे चाटते हुए उसकी गांड के छेद में उंगली से सहलाना शुरू किया। कभी कभी जीभ से उसकी गांड को भी अपनी जीभ से टुनया देता।
जब मैं उसकी गाण्ड में जीभ लगाता तो वो काँपने लगता और बड़ी जोर से मेरे लंड को अपने हाथ से कस लेता। मैं समझ गया कि इसको गांड चटवाने में सबसे ज्यादा मजा आ रहा है।
अब मैंने अपने दायें हाथ में उसका लंड पकड़ा और जीभ उसकी गांड में लगाकर मुँह से खूब थूक लगाकर गीला करते हुए गांड के छेद को ढीला करने की कोशिश शुरू की। वो मस्ती में था और अपनी रात को दिन बना रहा था।
मैंने अब जीभ गांड के अंदर की तरफ घुसानी शुरू की, तो वो गांड के छेद को कस लेता था।
मैंने धीरे से उसको बोला- गांड को ढीला रखे तब मजा आएगा।
उसने वैसा ही किया और गांड का छेद अब मेरी जीभ को अंदर तक जाने दे रहा था। मैंने अब अपने बायें हाथ की एक उंगली भी उसकी गांड में डालने की कोशिश की और वो मस्ती में अंदर भी चली गई।
मैंने धीरे-धीरे करके दो उंगली अंदर डाली तो उसने मेरे हाथ को पकड़ लिया।
मैं बोला- अब जब पूरी मस्ती का टाइम आया है तो हाथ मत पकड़ो, चुपचाप लेते रहो। इतना मजा दूँगा कि तुम रोज मुझे बुलाओगे। वो चुप हो गया।
मैंने उसको पलट जाने को कहा- वो पलट गया तो मैंने उसके चूतड़ की दोनों फांके खोल कर दोनों हाथों से पकड़ लीं और उसकी गांड पर ही चाटने में पूरा जोर लगा दिया।
तभी वो बोला- बाबूजी मेरा माल निकलने वाला है। मैंने कहा- नहीं, अभी रोकने की कोशिश करो।
उसकी गांड चाटना बंद करके मैंने अपने लंड को उसके मुँह के पास कर दिया। वो चुपचाप आँखे बंद किये लेटा रहा।
मैंने हिम्मत करके उसके होंठ पर अपना लंड लगाया तो उसने आँखे खोलीं और फिर से मेरा लंड पकड़ कर खाल को ऊपर नीचे किया।
एक बार जीभ से टोपे को छुआ। उसको मजा आया और तुरंत ही लंड के टोपे को मुँह में ले लिया, और च्यूंगम की तरह टोपे को चबाने लगा।
मैं भी आनन्द में भर उठा। मैंने उसकी गीली गांड में पुनः एक उंगली डाल कर चुदाई शुरू कर दी।
मैंने अब उससे झूठ बोला- यार तुम तो लंड बड़ा मस्त चूसते हो। पहले कितने लोगों का चूसा है?
उसने लंड मुँह से निकाल कर कहा- बाबूजी, मैं ये सब काम नहीं करता पर आपने इतना गर्म कर दिया है कि मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि ये हो क्या रहा है। पर अच्छा लग रहा है। अब जल्दी से मेरा माल निकाल दो।
मैंने कहा- अच्छा ठीक है।
उसकी गांड की तरफ आकर पोजीशन लेकर बैठ गया और अपने लंड के सुपाड़े को उसकी गांड के छेद पर रगड़ने लगा। वो तो उल्टा लेटा हुआ था।
मुँह घुमाकर बोला- क्या आप मेरी गांड मारोगे बाबूजी? मैंने कहा- नहीं पर अगर तुम कहो तो मैं मार सकता हूँ। वो बोला- पर बाबूजी मैं भी तुम्हारी गांड मारूंगा। अगर मंजूर हो तो ठीक है। मैंने कहा- ठीक है। तुम्हारा लंड इतना मस्त है कि तुमसे तो रोज मरवाने का दिल करेगा।
उसके बाद मैंने अपने लंड की टोपी को उसकी गांड के छेद पर दबाया तो गांड इतना खुल चुकी थी कि टोपा अंदर हो गया।
उसने एक सिसकारी ली और बोला- बाबूजी धीरे-धीरे करना पहली बार है। मैंने कभी गांड नहीं चुदाई है, आप पहले आदमी हो।
मैंने कहा- चिंता न करो मैं बहुत गांड मार चुका हूँ। जरा भी तकलीफ नहीं होगी। आहिस्ता-आहिस्ता उसको बातों में लगाये हुए अपना लंड उसकी गांड में पूरा डाल कर बैठ गया।
उसको घोड़ी की तरह गांड उठाने को कहा। जब उसने गांड उठाई तो मैंने नीचे से हाथ डालकर उसका उसका लंड पकड़ा और मुठ मारना शुरू किया और हल्के-हल्के झटकों से चुदाई शुरू की।
वो आहें भरता रहा था और सर को चारपाई पर दबाए, गांड को हवा में उठाये किसी मस्त चुदक्कड़ औरत की तरह चुदने लगा।
मैंने भी उसके लंड को और गांड को हल्के-हल्के लगभग 10 मिनट तक चुदाई की और इतनी देर में उसके लंड की नसें फूलने लगीं और गांड को वो सिकोड़ने लगा।
मैं समझ गया कि इसका जूस निकालने वाला है। मैंने उसके लंड के सुपाड़े की तेज मसाज शुरू कर दी और आधे मिनट में ही उसका गाढ़ा जूस मेरे हाथ में आने लगा।
मैंने मुट्ठी मारना बंद करके टोपे को रगड़ते हुए उसका सारा जूस निकालने के बाद अपने हाथ में लिया और अपने लंड में अच्छे से लगाकर फिर से पूरा लंड उसकी गांड में डाल दिया और तेज चुदाई चालू कर दी।
उसके जूस की वजह से लंड बिलकुल चिकना होकर मुझे बड़ा आनन्द दे रहा था। मैंने लगभग 5 मिनट की चुदाई की होगी कि मेरे लंड का पानी उसकी गांड में निकल पड़ा और मैं धक्के मारते हुए उसके ऊपर ही गिर गया।
मैं उसकी पीठ पर 5 मिनट लेटा रहा। उसके बाद वो कसमसाया- बाबूजी, अब उतरो मुझे दर्द होने लगा है।
मैं उसकी पीठ से हटा और अपने पैंट से रुमाल निकाल कर अपना लंड साफ किया और उसका लंड भी साफ किया। उसके बाद हम दोनों ने कपड़े पहने।
बारिश अभी भी हो रही थी। मैंने घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के तीन बज रहे थे। अब मुझे घर की याद आ रही थी कि बीवी चिंता में होगी। मैं अभी तक ऑफिस से लौटा नहीं।
तब मोबाइल फोन नहीं होते थे। मैं ढाबे पर गया और पूछा कि उनके पास फोन है क्या?
उन्होंने कहा कि एक किलोमीटर आगे पी सी ओ है। जो इस समय बंद होगा।
मैं लौट कर उस पंचर वाले के पास आया और उससे कहा- मुझे अब जाना होगा क्योंकि सुबह फिर ऑफिस जाना है।
उसने कहा- बाबूजी आपने तो अपना काम बना लिया पर आपने वादा किया था कि मुझे भी अपनी गांड चुद्वाओगे।
मैंने कहा- दोस्त, मैं रोज सुबह शाम यहीं से निकलता हूँ। जब दिल करे बता देना मैं रुक जाऊँगा और तुम गांड मार लेना पर अभी समझने की कोशिश करो, बहुत देर हो गई है।
वो समझदार था, मान गया। मैंने अपनी मोटर साईकिल उठाई और अपने घर की तरफ चल पड़ा।
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