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एक दिन मैं ऑफिस में बैठा था शाम को हरिया के नंबर से फोन आया।
मैंने उठाया तो किरण बोली- बाबू हरिया गांव गए कछु काम रही, आज चौकीदारी का कैसन करूँ?
ठीक है मैंने कहा- देखता हूँ।
फिर फोन बंद कर दिया। अब तक अँधेरा सा हो चला था। ऑफिस बंद करके साईट पर गया और अपना कमरा खोल कर बैठ गया। तभी किरण भी वहाँ आ गई।
मैंने कहा- टॉर्च ले आओ। देख लेते हैं, कुछ सामान बाहर तो नहीं छोड़ दिया मिस्त्री लोगों ने।
वो टॉर्च लेकर आई, तो नवनिर्मित मकान में उसको लेकर गया। उबड़-खाबड़ जगह और बेतरतीब बिखरे मटेरियल के कारण किरण गिरते गिरते बची। तो उसका एक हाथ मैंने पकड़ लिया और पूरे मकान का जायजा उसके हाथ को मसलते हुए लेता रहा। फिर हिम्मत करके मैंने किरण को अपनी और खींचकर उससे लिपट गया उसके रसीले चूचे सहला दिए।
किरण- इ का करत हो बाबू छोड़ दो हम का, हम ऐसन नाहि हैं।
तब तक मैंने उसके उसके होंठों को अपने होंठों से दबा लिया और उसे आगे बोलने का मौका ही नहीं दिया।
उसके सारे शरीर को तब तक सहलाया मसला जब तक उसकी सिसकारी निकलने लगी। अब उसने अपने आपको ढीला छोड़ दिया तो मैंने उसके ब्लाउज से उसके स्तन को निकाल कर चूसना शुरू कर दिया।
किरण- इ का बाबू छोड़ दो… आह्ह… बाबू छोड़ दो का करत हो… स्स्स्स।
उसके स्तन से दूध निकलने लगा तो दूसरा स्तन थाम लिया। जब यकीन हो गया कि अब यह गर्म हो रही है, उसे लेकर कमरे में आ गया और तख्त पर बिठा दिया।
एक बार फिर उसको गर्म करते हुए वहीं लिटा दिया, उसकी टाँगें तख्त से नीचे लटक रही थीं, उसकी साड़ी को कमर के ऊपर तक उठा दिया। कच्छी वो पहनती नहीं है, तो उसकी चिकनी बुर मेरी आँखों के सामने थी। फिर उसकी जाँघों को चूमते हुए उसके पेड़ू और उसकी बुर पर चुम्बन अंकित करते हुए उसकी गीली हो चुकी बुर का अंगुल-चोदन करने लगा।
साथ ही एक हाथ से उसके स्तनों को दबाने लगा जिससे निरंतर दूध निकल रहा था। उसके मुँह से कामुक ‘आहें’ निकलने लगीं।
मैंने अपना पैन्ट और चड्डी निकाल कर अपना लंड उसके हाथों में थमा दिया। मेरे लंड को मुट्ठी में थामकर भी कहने लगी “बाबू छोड़ दो हमका।”
फिर मैंने देर न करते हुए जमीन पर खड़े-खड़े ही उसकी जाँघों को फैला कर उसकी बुर के निकलते रस से लंड को भिगोकर, उसकी चूत के मुहाने पर लंड के टोपे को रखकर धीरे-धीरे अन्दर गाड़ने लगा।
बुर से निकले रस से चिकना होकर लंड का टोपा ही अन्दर गया था, किरण की सिसकारी निकल गई “स्स्स्सई… बाबू… अईई”
उसकी सांसें तेज हो गई मेरी भी धड़कन बेकाबू थी। फिर मैंने लंड को थोड़ा पीछे खींचकर जोर का झटका लगाते हुए लंड को अन्दर तक गाड़ दिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
“आईईइ… बाई… मरी गई ..रीईई…आःह्ह”
मुझे पता था कोई सुनने वाला आसपास नहीं होगा। मैंने उसका मुँह बंद करने की जरूरत नहीं समझी। फिर उसके स्तनों की चुसाई करने लगा।
मैंने कहा- किरण जब से तुम्हें नहाते हुए देखा था, तुम्हारे दूद्दू और तुम्हारी सुन्दर बुर देखी है, तब से तुम्हें चोदने को दिल कर रहा था। तुम्हारी चूत चोदने की मेरी चाहत तुमने पूरी कर दी आज।
किरण- बाबू तुम भौत अच्छे से करत हो, जब तुमारे हाथ मारे जौवन का दबाई के मस्त करत रही, तबही म्हारी चुत्ति में गुदगुदी हो रई हती।
मैं धीरे-धीरे लौड़े को अन्दर-बाहर चलाने लगा। किरण को मजा आने लगा। उसकी मस्ती भरी ‘आहें’ निकलने लगीं, साथ ही उसने अपनी टाँगों को ढीला छोड़ दिया।
मैंने लयबद्ध तरीके से ताबड़तोड़ शॉट लगाना शुरू कर दिया।
“ओह्ह… बाई…हाय..दैया री…बाबू… स्स्स्स… ” करते हुए अपनी गांड को ऊपर नीचे उछालते हुए बोली- बाबू कछु होत है बुर में हलचल हो रई… कछु निकलत है। और बुर के संकुचन के साथ उसका माल निकल गया।
चूत में अतिरिक्त चिकनापन आ जाने से लंड तो पिस्टन सा चलने लगा। कुछ ही झटकों के बाद मेरा वीर्य भी उसकी चूत में भरने लगा।
किरण ने मेरी कमर में अपनी टाँगों को ऐसे लपेट लिया कि मेरा लंड उसकी चूत में स्थिर हो कर शहीद होता रहा।
मैं उसके चेहरे को थामकर चूमने लगा। जैसे ही मेरा लंड पिचककर बाहर निकला तो वो अपनी योनि को बड़े गौर से देखने लगी बोली- बाबू म्हारी इ में से कछु निकला, म्हारे को लागा जैसन पूरी बुर पलटी लगायके बहिर निकल गई होय। पर अच्छा लागत रही पर इ तो ठीक है।
शायद किरण ने पहली बार चरमोत्कर्ष प्राप्त किया हो।
मैंने कहा- तुम्हारी बुर को कुछ नहीं हुआ ऐसा पहले हुआ कभी?
तो बोली- नाही बाबू जब हरिया करत है, तो लागत रही कि तनक से देर और कर देवे पर ऊ जादा देरी न लगात जल्दई कर लेत।
मैंने पूछा- तुम्हें अच्छा लगा कि नहीं?
बोली- भोत मजा आई बाबू।
फिर तो जब भी मौका मिलता किरण को स्खलित करते हुए खूब चोदता। उसे लंड चूसना भी सिखा दिया था।
अब तक मकान की छत भी तैयार हो गई थी जिस पर से मित्तल साहब के आँगन में किरण क्या कर रही है सब दिखता था। इसलिए वो काम लगने से पहले सुबह ही नहाने लगी थी।
एक दिन दोपहर में मकान में प्लास्टर का काम चल रहा था। हरिया भी वहीं था।
मैंने कहा- हरिया मैं कमरे में आराम कर रहा हूँ। जरुरत हो तो आवाज लगा देना। फिर कमरे में आकर लेट गया।
मौका देख मैं किरण की चाहत में कमरे के दरवाजे से आँगन में आ गया और पीछे से उसे पकड़कर उसके मस्त चूचे मसलते हुए उसके गालों को चूमने लगा।
वो खिलखिलाते हुए मेरी पकड़ से छूटने का प्रयास कर रही थी। तभी आँगन में बिखरी धूप में किसी की परछाई देखकर मैंने ऊपर देखा, तो मेरे हाथ के तोते ही उड़ गए।
मैंने किरण को छोड़ दिया। वो भागकर अन्दर चली गई। वो इस बात से अंजान थी कि छत पर खड़ी मंजू मैडम ने हम दोनों को आपत्ति-जनक अवस्था में देख लिया है।
फिर मैडम वहाँ से चली गईं। मैं अपने कमरे में आ कर बाहर का दरवाजा खोल कर बैठ गया। कुछ देर में मंजू मैडम भी वहीं आ गईं। मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था, आते ही बोली- रोनी आप ये क्या कर रहे थे? वो भी एक गांव की देहातन मजदूर की बीवी के साथ?
मैंने कहा- मुझे माफ़ कर दो मैडम, आपका काम तो मैं जिम्मेदारी से कर ही रहा हूँ और यह मेरी निजी जिन्दगी की बात है। आप किसी से कहना मत। नहीं तो किरण बदनाम हो जाएगी।
मंजू- रोनी, मैं तो तुम्हें बहुत ही भला इन्सान समझती थी, पर तुम तो बहुत चालू निकले। बहुत चाहते हुए भी मैंने भी तुमसे अपने दिल की बात नहीं बताई कि कहीं तुमने मेरी बात को नकार दिया तो मैं अपनी ही नजरों में गिर जाऊँगी। रोनी, तुम मुझे अच्छे लगते हो। और मैडम ने मेरा हाथ पकड़ लिया।
कहानी जारी रहेगी।
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