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मैं एक शाम घर में बैठा-बैठा बोर हो रहा था कि मुझे योगेश का एस एम एस आया।
“क्या कर रहा है बे?”
मैंने जवाब दिया कि मैं घर में खाली बैठा ऊब रहा हूँ। फिर उसका मैसेज आया- ‘यार, मेरा लण्ड चुसवाने का बहुत मन कर रहा है… क्या करूँ?’
बहुत बेबस था बेचारा ! उसका भाई उससे मिलने गांव से आया हुआ था। ऐसे में हम उसके कमरे पर कुछ नहीं कर सकते थे।
मेरे मम्मी पापा बाहर गए हुए थे, मैं घर में बिलकुल अकेला था। मैंने सोचा क्यूँ न योगेश को अपने घर बुला लिया जाये। मैंने उसे फ़ोन किया और वो फटाफट तैयार हो गया। मैं खुद ही अपनी बाइक से निकला उसे लेने के लिए। मेरा भी बहुत मन कर रहा उसका रसीला लण्ड चूसने का और उससे चुदवाने का।
योगेश अपने अपार्टमेंट के नीचे तैयार खड़ा था। मेरे पहुँचते ही वो लपक कर मेरे पीछे बैठ गया और अपना सर मेरे कन्धों टिका दिया और मुझे पीछे से दबोच लिया। मैंने उसका खड़ा लौड़ा अपनी गाण्ड पर महसूस किया। योगेश पीछे से मेरी छाती सहलाने लगा। उसका गाल मेरे गाल से सटा हुआ था।
हम दोनों सेक्स के लिए बेचैन थे। योगेश का कमरा मेरे घर से ज्यादा दूर नहीं था, और बिना हेलमेट ही गलियों से होते हुए मैं निकल पड़ा था। आप मेरी जल्दी को समझ सकते हैं। हम दोनों उसी तरह चिपके हुए बाइक पर चले जा रहे थे।
आपको एक बात और बता दूँ, हम दोनों शहर के छोर पर रहते थे, जिस रास्ते से जा रहे थे, वहाँ खेत और वीरान जंगल के अलावा कुछ नहीं था।
“सिद्धार्थ रुको।” अचानक योगेश बोला। मैंने तुरंत ब्रेक मारा।
“वहाँ, उस झुरमुट के पीछे चलो !”
“क्यूँ? क्या हुआ?” मैंने हैरान होकर पूछा।
“चलो यार… मुझसे रहा नहीं जा रहा है।”
मैं सड़क से हटकर एक झुरमुट के पीछे बाइक ले आया। आस-पास पेड़, ऊँची झाड़ियों के अलावा कुछ नहीं था।
योगेश गाड़ी से उतरता हुआ बोला- आओ चूसो।
उसने झट से अपनी ज़िप खोल कर अपना लौड़ा बाहर निकाला।
“लेकिन योगेश यहाँ? घर चलो। मम्मी-पापा बाहर गए हैं। आराम से करेंगे।”
“नहीं यार… मुझसे रहा नहीं जा रहा। चूस लो मेरा लौड़ा।”
मैं बाइक से उतर गया। आसपास नज़र दौड़ा कर देखा। कोई नहीं था सिवाय जंगल के। साँझ का झुटपुटा भी हो चुका था।
योगेश अपनी कमर बाइक पर टिका कर, टाँगें फैला कर खड़ा हो गया। उसका मोटा रसीला लौड़ा वैसा का वैसा खड़ा था।
योगेश का लौड़ा (अगर आपने पहला भाग पढ़ा है तो आपको मालूम होगा) बहुत मोटा और लम्बा था।
अगले ही पल उसने मुझे कन्धों से पकड़ कर अपने सामने बैठा दिया। मेरी भी हवस अब बेकाबू हो चुकी थी। ऊपर से योगेश के मोटे लम्बे लण्ड को देख कर मेरे मुँह में पानी आ गया था।
अब से पहले, न जाने कितनी बार मैं उसके गदराये लौड़े को चूस चुका था। उसका माल पी चुका था, लेकिन अभी भी उसका लण्ड देख कर मेरे मुँह में पानी आ जाता था।
मैं घुटनों के बल बैठ गया और उसकी कमर पर हाथ टिका कर उसका लौड़ा चूसने में मस्त हो गया।
जैसे ही मैंने उसका लण्ड अपने गर्म-गर्म, गीले, मुलायम मुँह में लिया उसकी आह निकल गई, “आह ह्ह्ह…!!”
योगेश हमेशा ज़ोर-ज़ोर से सिसकारियाँ लेता अपना लण्ड चुसवाता था, अपनी भावनाएँ बिलकुल नहीं दबाता था। आहें लेकर, मुझे और चूसने के लिए बोलता जाता। उसे कितना मज़ा आता था, आप उसकी आँहों से जान सकते थे।
मैं मज़ा लेकर चूसे जा रहा था। ऐसे जैसे कोई भूखी औरत आईस क्रीम खाती हो। मैंने उसका लौड़ा पूरा का पूरा अपने मुँह में ले लिया और खूब प्यार से चूसे जा रहा था।
मैं उसके लौड़े के हर एक भाग के स्वाद का आनन्द लेना चाहता था। मेरी जीभ उसके लण्ड का खूब दुलार कर रही थी।
योगेश भी मेरा सर दबोचे, मेरे बाल सहलाता, आँहें लेता चुसवाये जा रहा था।
“आह्ह्ह्ह… ह्ह्ह्ह !!”
“सिद्धार्थ… मेरी जान… चूसते जाओ…!”
“उफ्फ…चूसो मेरा लौड़ा…आह्ह्ह….!!”
उसका लंड मेरा गला चोक कर रहा था, लेकिन फिर भी मैं चूसने में लगा हुआ था।
मैंने करीब दस मिनट और उसका लण्ड चूसा और फिर वो हमेशा की तरह आँहें लेता मेरे गले में अपना वीर्य गिराने लगा।
“उह्ह्ह….!!”
“स्स्स्…हहा…!”
“उफ्फ…!!”
“मज़ा गया जानू… क्या मस्त चूसते हो। लो और चूसो।”
उसने अपना लौड़ा मेरे मुँह में घुसेड़े रखा, निकाला ही नहीं। जितना मज़ा योगेश को अपना लण्ड मुझसे चुसवाने में आता था, उतना ही मज़ा मुझे उसका लण्ड चूसने में आता था।
मैं उसका वीर्य गटकता हुआ फिर से लपर-लपर उसका लण्ड चूसने लगा।
मैंने एक पल के लिए नज़रें उठा कर योगेश की तरफ देखा। उसकी शक्ल ऐसी थी जैसे उसे कोई यातना दे रहा हो। लेकिन वो आनंदातिरेक में ऐसा कर रहा था। उसकी आँखें आधी बंद थी जैसे किसी शराबी की होती हैं। उसका मुंह खुला हुआ था और वो सिसकारियाँ लिए जा रहा था।
आम तौर पर लड़के और मर्द यौन क्रीड़ा में अपने आनन्द को इस तरह नहीं दर्शाते। लेकिन योगेश अपने आनन्द की अभिव्यक्ति खुल कर कर रहा था और मुझे उकसा भी रहा था।
“आह्ह्ह… मेरी जान… चूसते जाओ मेरा लौड़ा… बहुत मज़ा आ रहा है…!”
“सिद्दार्थ… ऊओह… और चूसो…!” चुसवाते-चुसवाते अचानक से उसने अपना लण्ड बाहर खींच लिया।
“आओ सिद्धार्थ तुम्हें चोदें…!”
“यहाँ?? इस जगह?” हालांकि वो जगह बिल्कुल सुनसान थी और अब अँधेरा घिर चुका था, लेकिन मैं झिझक रहा था।
“हाँ। जब चुसाई हो सकती है तो चुदाई क्यूँ नहीं? अपनी जींस उतारो।”
“लेकिन कैसे?”
“अरे बताता हूँ… जल्दी करो, जींस उतारो, मुझसे रहा नहीं जा रहा।”
उसने अपनी जींस का बटन खोल दिया और चड्ढी समेत अपनी जींस को नीचे घसीट दिया।
उसका विकराल लण्ड पूरी तरह आज़ाद होकर ऐसे दिख रहा था जैसे कोइ दबंग गुंडा जेल से छूटा हो।
वो कामातुर सांड की तरह अड़ा हुआ था। उसका लण्ड तोप की तरह खड़ा, चुदाई के लिए तैयार था।
मैंने अपनी जीन्स और चड्डी नीचे खिसका दी।
“तुम मोटरसाइकिल पर हाथ टिका कर झुक जाओ, मैं पीछे से डालूँगा।”
मैं मुड़कर बाइक पर झुक कर खड़ा हो गया। अपने हाथ बाइक पर टिका दिए।
वैसे योगेश को लण्ड चुसवाने में ज्यादा मज़ा आता था, लेकिन कभी कभी वो मेरी गांड भी मारता था।
“गांड उचकाओ।”
मैंने अपनी गांड ऊपर कर दी।
योगेश ने मेरी गांड के मुहाने पर थूका और उसको अपने लण्ड के सुपाड़े से मलने लगा।
उसने अपने दोनों हाथों से मेरे मुलायम-मुलायम, गोरे-गोरे चूतड़ फैलाये और फिर अपने लौड़े का सुपाड़ा टिका कर ‘सट’ से शॉट मारा।
उसका लौड़ा मेरी गांड में ऐसे घुसा जैसे कोई हरामी थानेदार पुलिस चौकी में घुसता हो।
“आह्ह्ह….!!!”
यह आह मेरी थी जो योगेश का लण्ड घुसने से निकली थी। मैं अब तक कई बार योगेश से चुद चुका था, लेकिन अभी भी जब उसका लण्ड घुसता था, मेरी दर्द के मारे आह निकल जाती थी। वैसे उसका लण्ड था भी खूब मोटा और गदराया हुआ।
योगेश ने अपना पूरा लण्ड मेरी गांड में पेल दिया था और हिलाने लगा था।
अब आहें लेने की बारी मेरी थी, “अह्ह्ह्ह…. ह्ह्ह….!! “ऊऊह्ह्… !”
लेकिन अब मुझे दर्द होना बंद हो गया था, बस योगेश का मस्त लौड़ा मेरी गांड में मीठी-मीठी खुजली कर रहा था जिससे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था।
मैं अब आनन्द में सिसकारियाँ ले रहा था, “आअह्ह… आह्ह्ह आह्ह्ह…. !!”
“उफ्फ… ओ ओओहह्… !!”
योगेश अपने दोनों हाथों से मेरी कमर थामे मुझे सांड की तरह चोद रहा था और मैं अपनी बाइक पर कोहनियाँ टिकाये, झुका हुआ, कुतिया की तरह चिल्लाता, चुदवा रहा था।
उसका रसीला गदराया लौड़ा मुझे जन्नत की सैर करवा रहा था। मन कर रहा था कि बस योगेश मुझे यूँ ही चोदता ही चला जाए।
बीच-बीच में योगेश मेरे चूतड़ों पर चपत भी जड़ देता था। ये उसने ब्लू फिल्मों से सीखा था।
योगेश मेरे ऊपर पूरा लद गया। कमर छोड़ कर उसने मुझे कंधों से पकड़ लिया और अपना गाल मेरे गाल से सटा दिया और गपागप चोदे जा रहा था।
कोई प्रेमियों का जोड़ा इस तरह से यौन क्रीड़ा नहीं करता होगा जैसे मैं और योगेश कर रहे थे।
उसके थपेड़ों से मेरी मोटरसाइकिल भी हिलने लगी थी।
मैंने पीछे मुड़ कर देखा, योगेश की जींस टखनों तक आ गई थी और उसकी चड्डी उसकी मोटी-मोटी माँसल जाँघों में अटकी थी। उसकी विशालकाय चौड़ी कमर मेरी कमर लदी हुई पिस्टन की तरह हिल रही थी।
मेरे मुँह से सिस्कारियाँ निकले चली जा रहीं थी, “आह्ह्ह… योगी… ऊह्ह्ह…!!”
“ऊह्ह… आह्ह्ह… उह्ह !”
बीस मिनट तक योगेश का बदमाश लौड़ा मेरी गांड को मज़े देता रहा।
“जानू अब मैं झड़ने वाला हूँ…” योगेश चोदते हुए बोला और मुझे कस कर दबोच लिया।
अगले ही पल अपना लौड़ा पूरा अंदर घुसेड़ कर रुक गया। स्थिर होकर वो भी सिस्कारियाँ लेने लगा।
“अहह… ह्ह्ह…!” वो मेरी गांड में स्खलित हो रहा था।
उसकी सिसकारियाँ मेरी ‘आहों’ के पलट बिल्कुल मद्धिम और मर्दाना थीं। करीब दो तीन मिनट तक वो यूँ ही मेरे ऊपर लदा रहा, फिर हट गया।
हम दोनों ने झटपट अपनी जींस चढ़ाई और वहाँ से निकल लिए।
मैं योगेश को अपने घर ले आया। उस हवस के मारे सांड ने सारी रात मुझसे अपना लौड़ा चुसवाया और मेरी गांड मारी।
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