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दोस्तों मेरा नाम दलबीर सिंह है और दिल्ली में रहता हूँ। और पेशे से डाक्टर हूँ। मेरी उम्र अब 35 साल है। मैं अंतरवासना का पिछले 4 साल से पाठक हूँ।
अपनी कहानियाँ मैं भेजना चाहता था, पर हिंदी टाइप नहीं आने के कारण ऐसा नहीं कर पाता था। यूँ तो मेरे कई किस्से हैं पर धीरे-धीरे ही मैं उन्हें भेज पाऊँगा। कम उम्र में ही मुझे मस्तराम की कहानियों का चस्का पड़ गया था और मुठ मारने की भी आदत हो गई थी।
तब मैं 11वीं क्लास में पढ़ता था। मेरी माँ की एक सहेली थीं, मिसेज़ हांडा, उनकी बहू का नाम था नीता। नीता भाभी का फिगर कमाल का था। साइज़ तो मैं नहीं बता सकता पर खूब भरी-भरी छातियाँ भारी कूल्हे व बीच में पतली कमर, कसम से नीयत ख़राब हो जाती थी।
आंटी जी को अपने बड़े बेटे के पास काशीपुर जाना था और उनका छोटा बेटा यानी वरुण भैया भी अपने काम से देर रात को लौटते थे। आंटी जी जाते वक्त मेरी माँ को बोल कर गई थीं कि आप अपने बेटे को शाम को हमारे घर भेज दिया करना।
मेरी माँ ने उन को इस काम के लिए हाँ बोल दिया था। शाम को जब मैं स्कूल से लौट कर आता था तो माँ मुझे उन के घर भेज देती थीं। उन का घर हमारे घर से थोड़ी दूरी पर था। उस तरफ ज्यादा घर भी नहीं थे।
मैं रोज़ शाम को उनके घर चला जाता था, अपनी किताबें भी साथ ले जाता था। कुछ देर पढ़ने के बाद भाभी जी के साथ गप्पें मारने बैठ जाता था। कभी-कभी उनके घर पर पड़ी हुई मैंग्जीन्स भी पढ़ता था।
एक दिन मैं उनके घर पर था तो भाभी जी ने मुझे एक मैगजीन दी जिस पर पूरी तरह तो नहीं, हाँ कुछ अर्धनग्न तस्वीरें थीं। मैं तस्वीरें देख कर गर्म होने लगा पर क्योंकि मैं उम्र में उनसे छोटा था, इसलिए किसी तरह की पहल न कर सका।
मुझे मैगज़ीन दे कर वो अपने काम निपटाने लगीं। कुछ देर बाद मेरे से बोलीं- दलबीर क्या तू मेरे लिए ऐसी ही एक मैगज़ीन ला सकता है? जिसमें ऐसी ही और इससे बढ़िया तस्वीरें होती हैं? या फिर कहानियाँ होती हैं?
मैं तुरंत समझ गया कि भाभी जी को क्या चाहिए। मगर मैं फिर भी पहल न कर सका।
मैं बोला- भाभी जी मैं पता करूँगा और अगर मिल गई तो ला दूँगा।
इतने में ही भैया के स्कूटर की आवाज़ आ गई और मैं थोड़ा संभल गया। भैया के आने के बाद भाभी जी ने चाय बनाई जो कि मैंने भी पी और मैं अपने घर आ गया।
उस रात मैं ठीक से सो नहीं पाया और रात में हाथ को तकलीफ देनी पड़ी यानि मुठ मारनी पड़ी। सुबह उठ कर अपने कामों में लग गया पर ध्यान तो वहीं पर था।
जैसे-तैसे दिन निकला और शाम हुई तो मैं मस्तराम की एक किताब लेकर भाभी जी के घर पहुँचा।
घर पहुँचते ही खबर मिली कि आज भैया रात को नहीं आएँगे क्योंकि उनकी फैक्टरी में कोई मशीन खराब हो गई थी जिसमें सारी रात लग सकती थी।
मेरी तो ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।
भाभी बोलीं- आज तुझे यहीं पर रहना पड़ेगा।
मैं बोला- पहले मैं यह बात घर बता कर आ जाऊँ।
मैंने भाभी जी को वो किताब पकड़ाई और घर आकर माँ को बताया कि आज भैया घर नहीं आ रहे और मैं उन के घर पर ही सोने वाला हूँ।
इस आने-जाने में मुझे आधा घंटा लग गया।
जब मैं वापिस लौटा और घन्टी बजाने के लिए हाथ बढ़ाया ही था तभी मैंने खिड़की में से देखा कि भाभी जी कुछ पढ़ रही थीं।
जब गौर से देखा तो भाभी जी वही किताब पढ़ रही थीं जो मैं लाया था।
मैंने घंटी का बटन दबाया और भाभी जी दरवाज़ा खोलने आईं, उनकी आँखें लाल लग रही थीं, वासना के डोरे साफ़ दिख रहे थे।
मैं घर में आया तो पूछा- क्या हुआ? आँखें लाल क्यों हैं?
वो बोलीं- कुछ नहीं सर में दर्द है।
मैं बोला- लाओ मैं दबा दूँ?
तो उन्होंने कहा- पहले खाना खा लो।
वो खाना लगा कर ले आई। मैं हैरान था कि वो खाना एक ही प्लेट में लगा कर लाईं थीं।
उन्होंने कहा- आओ खाना खा लो।
मैंने बोला- एक साथ?
तो वो बोलीं- क्यों मैं तुम्हें कड़वी लगती हूँ क्या?
मैं शरमा कर बोला- वो बात नहीं है, खाना तो मियां-बीवी साथ में खाते हैं।
वो बोलीं- ऐसा कुछ भी नहीं है, आओ खाना खा लो।
मैं उनके साथ खाना खाने लगा।
वे बड़े ही अनोखे अंदाज़ से मुझे देख रही थीं।
खाना खाने के बाद वो दो गिलासों में दूध गर्म कर के ले आईं और बोलीं- लो दूध पी लो और अब मेरा सर दबा दो।
मैं उनके बिस्तर पर बैठ गया और सर दबाने लगा।
वो मुझसे बोलीं- जाओ पहले कपड़े बदल लो।
मैंने कमीज़ उतार कर खूंटी पर टांग दी और पैंट उतार कर भैया की लुंगी बांध ली और फिर से भाभी जी का सर दबाने लगा। जैसे-जैसे मैं उन का सर दबा रहा था, वो मेरे और नज़दीक होती जा रही थीं, मेरी लुँगी में मेरा हथियार फनफना रहा था।
भाभी जी बोलीं- दलबीरे, अब सर रहने दे, जरा मेरे कंधे दबा दे।
मैंने कहा- ठीक है भाभी जी, पर आप अपने कपड़े बदल लो फिर मैं ठीक से दबा दूंगा।
भाभी बोलीं- ठीक है तू रुक।
वे उठीं और मेरे सामने ही उन्होंने अपने सलवार सूट को उतार कर एक फ्रंट ओपन होने वाली नाईट-ड्रेस पहन ली। मैंने तो उनको जब ब्रा-पैन्टी में देखा तो गनगना गया।
उनकी छोटी सी पारदर्शी फ्रॉक जैसी ड्रेस देख कर बहुत ही उत्तेजित हो गया। उनने मेरी ओर गौर से देखा और मेरे उभार को भी देखा जो लुँगी में अपना फन उठा रहा था।
वे मुस्कुरा कर बोलीं- क्या हो रहा है तुझे?
मैंने कहा- कुछ भी तो नहीं भाभी, मुझे क्या होना है।
वो कुछ नहीं बोलीं, बैड पर आकर लेट गईं। जब वो लेटी थीं, तो उनकी गोरी और चिकनी टाँगे मस्त लग रहीं थीं। मैं उनके कन्धे दबाने लगा। मैंने उनके सिरहाने की तरफ बैठा था। मुझे उनकी चूचियाँ साफ़ दिख रही थीं।
मेरी साँसे बहुत तेज चल रही थीं, उन्होंने अपनी आँखें मूँद ली थीं। तभी अचानक उनका हाथ मेरे लौड़े के पास आया। मुझे लगा कि शायद नींद में उनका हाथ इधर को आ गया है।
एकाध मिनट तक ऐसे ही रहा फिर अचानक उन्होंने मेरे लौड़े को स्पर्श किया। मेरा लंड तो खड़ा था ही, उनके छूने से वो और फनफना गया।
मैं कुछ समझ पाता तब तक तो उनने मेरे लौड़े को अपने हाथों में पकड़ लिया।
मैं अवाक था।
उन्होंने कहा- दलबीरे, तूँ इत्थे आ मेरे कोल।
मैं उनके पास लेट गया। उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में जकड़ लिया। मैंने भी उनका पूरा साथ देना शुरू कर दिया।
वो मुझसे बोलीं- मुझे चोदना चाहता है न? चल आज चोद ले।
मैं भी अब उन्माद में आ गया था मैंने उनके मस्त दुद्दुओं को अपने हाथों में लेकर भंभोड़ना चालू कर दिया।
उनकी मादक सिसकारियाँ मुझे पागल बना रही थीं। मैंने उनके सब कपड़े उतार दिए और उनके ऊपर आ गया।
मेरा लौड़ा देख कर वो भी मचल गईं, बोलीं- कब से तेरा लण्ड का इन्तजार कर रही हूँ, आज घुसेड़ दे मेरे राजा।
मैंने भी देर न की और एक ही झटके में पूरा लण्ड उनकी चूत में घुसेड़ दिया। मेरे इस अचानक हमले से वो एकदम से चीख पड़ीं, मुझसे कहा- अबे, जान लेगा क्या मेरी?
मैं बोला- भाभी, पहले फ़ुद्दी तो ले लूँ, बाकी की बाद में देखेंगे !
मैंने अपने धक्के कुछ आहिस्ता से लगाए पर फ़िर भी कुछ ही देर बाद मेरा शरीर अकड़ने लगा। मैंने भाभी की तरफ देखा। उनका भी इशारा था।
मैंने पूछा- किधर?
बोलीं- अंदर ही गिरा दे।
मैंने भाभी को खूब जोर से भींच लिया और ताबड़तोड़ आठ दस धक्के मारे और अपना लावा उनकी चूत में छोड़ दिया। मैं ठण्डा होकर उनसे ही चिपक गया और भाभी भी मेरे बालों में प्यार से अपने हाथ फेरने लगीं।
उसके बाद कई बार भाभी के साथ मेरा चुदाई कार्यक्रम बना। आज तक उनके साथ हुई मेरी पहली चुदाई की यादें मेरे मन में ताजा हैं।
आप सभी के कमेंट्स का मुझे इन्तजार रहेगा।
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