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प्रेषक : आशिक असलम
मेरा नाम आशिक असलम है, मैं आपको अपना पहला सेक्स का अनुभव बताना चाहता हूँ। मैं जोधपुर राजस्थान से हूँ, मेरी उम्र 28 साल है।
बात तब की है जब मैं बीस साल का था, मेरे घर में एक शादी थी, शादी मेरे बड़े अब्बू (अब्बू के बड़े भाईजान) के लड़के की थी, मेरा मन शादी के काम में बिल्कुल नहीं लगता था। मेरे बड़े अब्बू के एक मरहूम दोस्त की बीवी और बेटी दिल्ली से आने वाली थी, उनको स्टेशन से लाने के लिये बड़े अब्बू ने मुझे कहा था।
मैं सुबह जल्दी उठकर रेलवे स्टेशन गया, ट्रेन आ चुकी थी, बड़े अब्बू ने मुझे उनका कोच नंबर और सीट नंबर पहले ही बता दिया था, मैं उनके पास गया तो शायद वो मुझे ही ढूंढ रही थी, मैंने जाकर उनको सलाम किया और बताया कि मैं उन्हें लेने आया हूँ।
उनका नाम हुस्ना था, वो बहुत ही खूबसूरत आंटी थी, उम्र करीब चालीस थी, बिल्कुल फिल्म एक्ट्रेस नीलम की तरह दिखती थी।
उन्होंने थोड़ा ढीला शलवार कमीज़ पहनी थी इसलिए अपनी नजरों से उनका फिगर नाप नहीं पाया था। उनके साथ उनको बेटी भी थी, उसका नाम ज़ारा था, वो थोड़े मोडर्न लिबास में थी, उसके चूचे और चूतड़ मस्त लग रहे थे लेकिन मुझे कम उम्र से ज्यादा बड़ी उम्र की आंटियाँ पसंद हैं इसलिए मैं तो सिर्फ आंटी को ही देखे जा रहा था।
उनका सामान लेकर मैं टैक्सी लेकर घर पहुँचा, उनका कमरा दिखाया और नाश्ता करने लगा। बड़ी अम्मी ने उनका नाश्ता उनके कमरे में ही भिजवा दिया था।
लंच के वक़्त बड़े पापा ने कहा- मेहमानों को बुला ला !
मैं जब उनके कमरे में गया तो वहाँ कोई नहीं दिख रहा था, ज़ारा शायद मेरे परिवार की हमउम्र लड़कियों के साथ थी, आंटी बालकनी में नहा कर अपने बाल सुखा रही थी। इस बार आंटी ने फिट शलवार कमीज़ पहनी हुई थी, आंटी के कूल्हे मस्त दिख रहे थे और उनके सीने की उठानों को मसलने का मन कर रहा था।
मैंने उन्हें कहा- बड़े अब्बू आपको लंच के लिए बुला रहे हैं।
तो वो बोली- ज़ारा अभी आती ही होगी, उसके साथ में दस मिनट में आ रही हूँ।
मैं वापिस आने लगा तो वो बोली- आशिक, क्या तुम मेरा एक काम कर दोगे?
तो मैं बोला- हाँ आंटी, कहो ना क्या काम है?
वो बोली- क्या तुम मुझे बाज़ार ले चलोगे, मुझे कुछ शॉपिंग करनी है।
मैंने कहा- ठीक है आंटी, लंच के बाद चलते हैं।
हमने लंच किया और फिर मैं उन्हें लेकर मार्केट पहुँचा, वो एक दुकान में गई, और मेकअप का सामान लेने लगी। फिर वो अन्डरगारमेंट्स लेने गई, मुझे शर्म आने लगी, तो मैं बाहर आकर खड़ा हो गया। मैंने देखा कि वो ब्रा पसंद कर रही हैं, उन्होंने एक काली ब्रा पसंद की और पैक करवा ली।
फिर मेरे पास आकर उन्होंने कहा- बहुत प्यास लगी है, चलो जूस पीते हैं।
उन्होंने जूस की दूकान पर दो जूस आर्डर किये।
हुस्ना सच में बहुत ही खूबसूरत हैं, मेरा लण्ड तो यह सोच सोच कर झूम रहा था कि उसके गोरे गोरे बदन पर वो काली ब्रा क्या मस्त लगेगी। मेरी उनसे कुछ ज्यादा बात करने की हिम्मत नहीं होती थी क्योंकि उनका रवैया थोड़ा सख्त था।
फिर भी मैंने उनसे अंकल के बारे में पूछ लिया तो वो बोली- वो दस साल पहले ही गुज़र गए !
तो मैं बोला- आंटी, आप इतनी खूबसूरत हैं और दस साल पहले आप और भी खूबसूरत रही होंगी, आपको तो कोई भी अच्छा लड़का मिल जाता?
अपनी तारीफ़ सुनकर वो चौंकी, मुझे लगा कि मैंने कुछ गलत कह दिया लेकिन वो बोली- ज़ारा की परवरिश की वजह से इस ओर ध्यान नहीं गया मेरा।
और फिर उन्होंने जल्दी से जूस ख़त्म किया और चलने को कहा। मुझे कुछ अजीब लगा लेकिन उसके बाद वो मुझे कुछ अजीब नज़रों से देखने लगी। मुझे अच्छा लगा, शायद उसको अपनी तारीफ़ अच्छी लगी थी।
शाम को संगीत का प्रोग्राम था, सभी लड़के लड़कियाँ स्टेज पर डांस कर रहे थे, वो जब तैयार हो कर आई तो मैं हैरान हो गया, फिट सलवार कमीज़ में क्या मस्त लग रही थी हुस्ना आंटी ! हमारी नज़रें मिली तो वो मुस्कुरा पड़ी।
बड़े अब्बू उनका हाथ पकड़कर स्टेज तक ले आये और वो भी डांस करने लगी। मैं हुस्ना आंटी के पास जाकर नाचने लगा, मौका पाकर मेंने धीरे से उनके चूतड़ों पर हाथ फेर दिया। वो चौंकी लेकिन मैं मस्ती में डांस करने का नाटक करता रहा, मैंने तीन चार दफा उनके कूल्हों पर हाथ फेरा था।
थोड़ी देर में हुस्ना आंटी जोश में आ चुकी थी और वो मस्ती में डांस करने लगी थी। स्टेज पर मेरे अलावा मेरे कुछ चचेरे भाई-बहन, ज़ारा, हुस्ना आंटी थे, आंटी और मैं बीच में डांस कर रहे थे, हुस्ना आंटी अपनी गांड हिला हिला कर डांस कर रही थी, मैं रोमांचित हो रहा था।
अचानक हुस्ना आंटी ने दो पल के लिए अपनी गांड मेरे लंड से सटा दी, मेरे लंड को झटका लगा, शायद ऐसा उन्होंने जानबूझ कर किया था, शायद मेरा उनकी गांड छूना उन्हें अच्छा लगा था।
संगीत ख़त्म हो चुका था, सब लोग थक गए थे, औरतें सब सो गई थी और बाकी आदमी हॉल में ताश खेल रहे थे। मुझे नींद नहीं आ रही थी इसलिए मैं छत पर चला गयाम वहाँ कोई नहीं था। हुस्ना आंटी के कमरे की लाइट जल रही थी, शायद वो नहीं सोई थी, ज़ारा तो मेरी बहन के साथ ही सो गई थी।
इतने में हुस्ना आंटी बाहर आई और इधर उधर ढूंढने लगी, मैं समझ गया कि वो मुझे ही ढूंढ़ रही हैं। मैंने सोचा इसका ध्यान अपनी तरफ कैसे करूँ, मुझे लग रहा था अगर वो मुझे ही ढूंढ़ रही है तो मेरे पास जरूर आएँगी क्योंकि मौका अच्छा था और छत पर कोई नहीं था। मैं जोर से छींका और पलट गया। हुस्ना आंटी ने मेरे छींकने की आवाज़ सुनी और उन्हें पता लग गया कि मैं ऊपर हूँ।
उन्होंने थोड़ी ढीली शलवार कमीज़ पहनी थी, फिर भी वो कातिल लग रही थी।
वो छत पर आ गई, बोली- आशिक, इतनी रात को ऊपर क्या कर रहे हो?
मैं बोला- नींद नहीं आ रही थी तो ऊपर आ गया।
तो वो बोली- मुझे भी नींद नहीं आ रही !
थोड़ी देर हम इधर उधर की बातें करते रहे, वो मेरी बातें गौर से सुन रही थी। तभी मैंने उनको कहा- एक बात कहूँ?
तो वो बोली- कहो !
मैं बोला- आप बुरा तो नहीं मानोगी?
वो बोली- नहीं मानूंगी !
मैंने कहा- आप इतनी खूबसूरत हैं, आपका कोई बॉयफ्रेंड तो होगा?
तो वो बोली- नहीं है, क्यूंकि ज़ारा की परवरिश करते करते मेरा ध्यान शादी या अफेयर की ओर नहीं गया। लेकिन मैं अब चालीस की हूँ शायद अब मैं यह नहीं सोच सकती, अब ज़ारा भी बड़ी हो चुकी है, शायद अब ये सब करना अब ठीक नहीं होगा।
मैं उनसे अब खुल चुका था, मैंने पूछा- क्या आप अपनी लव लाइफ मिस कर रही हैं?
तो वो बोली- बहुत !
वो बोली- मेरे शौहर मुझसे बहुत प्यार करते थे।
फिर मैंने पूछा- क्या आप अपनी सेक्स लाइफ मिस कर रही हैं?
वो कुछ नहीं बोली !
काफी देर हम चुप ही रहे। थोड़ी देर बाद मैंने हिम्मत की, उनके करीब गया और उनसे कहा- क्या मैं आपसे अपनी दिल की बात कहूँ?
तो वो बोली- कहो !
मैंने कहा- आप बहुत ही खूबसूरत हो, मैं आपको चाहने लगा हूँ !
इतना कहकर मैंने उनके कंधे पर हाथ रख दिया और फिर धीरे से गाल पर चूम लिया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
वो मुस्कुरा दी, मेरी हिम्मत बढ़ी तो मैंने उनके होंठों पर किस किया। वो कुछ नहीं बोली, मैं उन्हें किस करता रहा, काफी देर तक उनके होंठ चूसता रहा लेकिन आंटी ने खुद से मेरा साथ नहीं दिया, उनके होंठ स्थिर थे लेकिन मैं उनके होंठों को चूसे जा रहा था।
मैं अपना हाथ उनके कंधे से हटा कर उनकी कमर तक ले गया और फिर धीरे धीरे उनके कूल्हों पर हाथ फेरने लगा, उनके चूतड़ों को मैं धीरे धीरे सहला रहा था, उनके चूतड़ बहुत उभरे हुए और गोल थे।
मेरा लंड काबू में नहीं था लेकिन आंटी अब भी मेरा साथ नहीं दे रही थी, वो सिर्फ स्थिर हो कर खड़ी थी।
मैंने अपने होंठ हटा कर उनकी आँखों में देखा तो वो खुश लग रही थी। मैंने उन्हें कहा- मैं आपको चाहने लगा हूँ !
वो बोली- आशिक, मुझे दस साल बाद फिर एक प्यारा सा एहसास मिला है, मैं भी तुम्हें चाहने लगी हूँ पर हमारी उम्र का फासला कुछ ज्यादा है, बेहतर होगा कि तुम मुझे भूल जाओ, मैं भी तुम्हें भूलने की कोशिश करूँगी।
और इतना कहकर वो चली गई, मेरा दिल टूट गया, रात भर मैं सो नहीं सका सिर्फ हुस्ना के बारे में सोचता रहा !
कहानी जारी रहेगी।
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प्रकाशित : 09 जनवरी 2014
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