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हाय दोस्तो, कैसे हो! मरा नाम मलाज है। मैं आपको एक सच्ची घटना बताने जा रहा हूँ।
यह बात उस समय की है जब मैं करीब 10-12 साल का था मैं अक्सर अपने चाचाजान के साथ ही रहता था। चाचा मुझे अपने साथ ही सुलाते थे। फिर अम्मी मुझे देर रात चाचा के पास से लेकर अपने पास सुलाती थी।
मैं अक्सर महसूस करता था कि जब अम्मी मुझे लेने आती थी तो कभी कभार मैं जाग जाता था तो लगता था कि चारपाई हिल रही है लेकिन मेरी समझ में कुछ भी नहीं आता था और कुछ देर बाद ही अम्मी मुझे लेकर अपने बिस्तर पर आ जाती थी।
खैर यह सब चलता रहा। मैं कभी कभार दिन में भी देखता था कि चचाजान अम्मी की ओर कुछ इशारा करते तो कभी तो वो चाचा के साथ भूसे वाले छप्पर में चली जाती थी और काफी देर बाद निकल कर आती थी।
मैं कभी अम्मी से पूछता कि आप वहाँ क्या करने गई थी तो वो कहती- कुछ नहीं बेटा, तेरे चाचा बैलों के लिये तूड़ी लेकर खेत में जा रहे हैं उन्हें तूड़ी बंधवाने गई थी।
लेकिन धीरे धीरे मुझे उन पर कुछ शक हो रहा था कि आखिर चाचाजान और मेरी अम्मी एक साथ करते क्या हैं।
एक दिन मुझे कुछ देखने का हल्का सा मौका मिला। चाचा उन दिनों भैंसों के बाड़े में सोते थे, जब मैं एक रात को चुपके से अपने घर की छत पर जाकर अम्मी का इंतजार करने लगा कि कब अम्मी चाचा के पास जाती है। बाहर ठण्ड भी थी, फिर भी मैं वहीं पर जमा रहा कि कब ये लोग अपना खेल शुरु करते हैं।
और मेरी मेहनत रंग लाई, रात के करीब 10 बज रहे थे, अम्मी ने घर का दरवाजा खोला और उसे धीरे से बंद करके चाचा जहाँ सो रहे थे उस बाड़े में चली गई।
अंदर काफी अंधेरा था और बाहर दरवाजे पर एक फूस का बना टाटा लगा था इस वजह से मुझे अंदर कुछ भी नहीं दिख रहा था। मैं चुपके से छप्पर के पीछे के आले जहाँ गोबर के बने कण्डे से उन्हें बंद किया गया था ताकि अंदर सर्दी ना जाए, उनके पास गया तो केवल अंदर की खुसर फुसर की आवाज सुन रहा था। कभी चाचा तो कभी अम्मी की हल्की-हल्की सिसकारी निकल रही थी।
मैं किसी भी तरह अन्दर का नजारा देखना चाहता था लेकिन मुझे आज वो नसीब नहीं हुआ।लेकिन एक बात तो मेर दिमाग में घर कर बई कि चाचा अम्मी कुछ ऐसा वैसा करतें जरूर हैं। बस मेरे दिमाग में हमेशा उनका ही ख्याल रहने लगा।
आगे की कहानी बताने से पहले मैं आपको अपने बारे में बता देता हूँ कि मेरे परिवर में चाचा, अम्मी-अब्बू, मैं एवं मेरी दादी हैं। अब्बाजान शहर में काम करते हैं।
गांव में खेतीबाड़ी का काम है जो चाचा और अम्मी संभालते हैं। तब अब्बू-अम्मी की शादी हुए करीब 13 साल हुए थे जिनके मैं इककौती औलाद हूँ। उन दिनों मैं कक्षा 6 में पढ़ने पास के ही एक गाँव में जाता था। चाचा की उम्र करीब 32 साल हो चुकी थी लेकिन शादी तब तक नहीं हुई थी।
अम्मी दसवीं तक पढ़ी हैं, चाचा एकदम अनपढ़ गंवार आदमी है। अम्मी गौरी पतली है, पतली कमर, गोरे-गोरे गाल, गोरा रंग! चाचा उल्टे तवे जैसे काले रंग के, चौड़ी छाती उस पर काले-काले घुंघराले बाल।
दादी अक्सर घर पर ही रहती थी।
उस दिन के बाद तो मेरा मन पढ़ाई में बिल्कुल भी नहीं लगता था, मन करता था कि हमेशा अम्मी के साथ ही रहूँ। मैं किसी भी तरह उनका खेल देखना चाहता था और हर संम्भव प्रयास कर रहा था कि उनका खेल देखूँ।
आखिर मैंने एक दिन स्कूल ना जाकर उनका खेल देखने का फ़ैसला किया क्योंकि मैं जानता था कि अम्मी-चाचा का खाना लेकर खेत पर जाती हैं, अब तो सरसों भी बड़ी हो रही है इसलिये ये दोनों पक्का वहाँ कुछ करते होंगे, यही सोच कर मैं स्कूल ना जाकर चुपके से खेत पर पहुँच गया जहाँ सरसों के खेत के बीच एक बड़ा भारी पेड़ है, उसके नीचे काफी दूर तक सरसों नहीं थी। मैं उस पर चढ़ कर बैठ गया।
लेकिन मेरे काफी इंतजार के बाद भी उन्होंने कुछ नहीं किया और अम्मी घर वापस आ गई। मैं आज फिर निराश ही लौटने वाला था। इस तरह तीन-चार दिन बीत गये और उन्होंने कुछ भी नहीं किया। मैं सोच रहा था कि यह शायद मेरी गलत फहमी है।
करीब चार दिन बाद मैंने चाचा को अम्मी से कुछ कहते देखा, अम्मी कह रही थी- ठीक है, आज रात को मैं खेत पर ही आ रही हूँ।
मेरे दिमाग में फिर से कीड़ा कुलबुलाने लगा।
शाम को अम्मी ने खाना बनाकर हमें खिलाया और दादी से कहने लगी- सासूजी, आज रात को देवर जी का खाना खेत पर ही जायेगा क्योंकि रात को बिजली का नम्बर है।
दादी बोली- ठीक है बहू, मलाज को मेरे पास ही छोड़ जाना, बच्चा इतनी दूर क्या करेगा।
अम्मी चाचा का खाना लेकर खेत पर चली गई, इधर मैं भी वहाँ जाना चाहता था लेकिन दादी मुझे अकेले वहाँ नहीं भेजती तो मैंने एक बहाना बनाया और कहा- अम्मा, हमारे पेपर आने वाले हैं आप कहो तो मैं मेरे दोस्त के यहाँ पढ़ने चला जाऊँ?
पहले तो दादी नहीं मानी लेकिन काफी मनुहार करने के बाद उन्होंने जाने की अनुमति दे दी। मैं जल्दी-जल्दी अपने खेत की ओर चल दिया जो गांव से काफी दूरी पर थे।
मुझे रास्ते में डर भी लग रहा था पर मैं किसी धुन में उधर खिंचा चला जा रहा था। बाहर काफी अंधेरा व सर्दी थी। मैं जैसे तैसे करके हमारे ट्यूबवैल के पास पहुँच गया तो सोचने लगा कि शायद अम्मी चाचा खेत में पानी मोड़ रहे होंगे।
मैं जैसे ही टयूबवैल के पास पहुँचा तो देखा कि मोटर तो बंद है और कोठरी भी बंद है, कोठरी में अन्दर बल्ब जल रहा है। मैं धीरे-धीरे कोठरी के पास पहुँचा तो लगा कि अम्मी चाचा अंदर ही हैं।
मैं अंदर देखना चाहता था कि वे दोनों क्या कर रहे हैं। यही सोच कर मैं टयूबवैल की तरफ एक छोटी सी खिड़की जहाँ से मोटर को देखते थे, उसके पास जाकर अन्दर देखा तो मेरा शक यकीन में बदल गया।
चाचा और अम्मी तख्त पर आपस में एक दूसरे से लिपटे पड़े हैं।
कोठरी ज्यादा बड़ी नहीं थी, केवल 8X8 फीट की ही थी, उसमें एक छोटा तख्त डाल रखा था जिस पर चाचा अम्मी लिपटे पड़े थे। चाचा अम्मी के गालों पर अपना मुंह टिका कर चूम रहे थे। अम्मी ने भी चाचा को कसके जकड़ रखा था।
यह सब देख कर एक बार तो दिल में आया कि इन दोनों को मार डालूँ लेकिन मैं तो यह सब कई दिनों से देखना चाहता था और आज वह मौका मिल ही गया।
दोनों काफी देर तक इसी अवस्था में पड़े रहे, फिर चाचा ने अम्मी को छोड़ा और बोले- भाभी, कितने दिनों से तुम्हारी चूत मारने को मन कर रहा है, एक तुम हो कि अपने देवर का जरा भी ख्याल नहीं रखती हो।
अम्मी- देवर जी, मैं भी क्या करुँ, यह साला पीरियड भी तो आ जाता है।
चाचा- भाभी, अब जल्दी से कपड़े उतार डालो।
अम्मी तो जैसे चाचा के कहने का ही इंतजार कर रही थी, झट उठी और एक एक कर सारे कपरे उतार कर एकदम नंगी हो गई।
मैं पहली बार अम्मी को नंगी देख रहा था। क्या गजब का बदन था मेरी अम्मी का! एकदम गोरी छाती पर गोलगोल चूचियाँ, उनके ऊपर गुलाबी रंग की निप्पल तो मैंने पहले भी कई बार देखी है। लेकिन उससे नीचे का भाग पहली बार देख रहा था।
कोठरी काफी छोटी होने की वजह से और उसमें 200 वाट का बल्ब जलने के कारण अन्दर काफी रोशनी ओर गर्मी थी।
चाचा ने अम्मी को पकड़ कर तख्त पर डाल लिया और अम्मी की चूचियाँ मसलने लगे। अचानक ही अम्मी के मुँह से सिसकारी निकल गई- सीइइ अई इइइ क्या कर रहे हो देवर जी, जरा धीरे भींचो ना! कितना दर्द कर रहे हो।
चाचा- अरे भाभी, मेरी जान, आज कितने दिनों बाद मौका मिला है तुम्हे चोदने का।
अम्मी- हाँ देवर जी, मैं भी तो तुम्हारे लण्ड की दिवानी कई सालों से हूँ।
मैंने अम्मी को पहली बार नंगी देखा था, अम्मी की पतली कमर के नीचे दोनों जांघों के बीच में हल्के-हल्के काले बाल दिखाई दे रहे थे। जहाँ चाचा का हाथ बार बार फिसल रहा था। अम्मी तो मस्त होती जा रही थी।
फिर चाचा उठे ओर अपने कपड़े उतारने लगे। जैसे ही चाचा ने अपना लंगोट खोला।
चाचा लंगोट पहनते थे क्योंकि वो पहले पहलवानी करते थे, तो मेरी तो आँखें फटी की फटी रह गई, चाचा का क्या गजब लण्ड था। करीब 11 इंच लम्बा और करीब 4 इंच मोटा, काला खूसट उस पर लाल रंग का सुपारा जो बिल्कुल आलू के आकार का था।
उसे चाचा ने अम्मी के हाथ में पकड़ा दिया, बोले- भाभी, लो तुम्हारा दीवाना।
अम्मी उसे हाथ में पकड़ कर हिलाने लगी।
कुछ देर बाद चाचा ने अम्मी को तख्त पर चित लिटा दिया और बोले- भाभी, चलो चुदाई करते हैं, अब और सहन नहीं हो रहा है।
अम्मी- हाँ देवर जी, मैं भी तो कब से तडप रही हूँ इसे लेने को।
तभी चाचा ने अम्मी को चित लिटा कर दोनों टांगों को चौड़ा किया तो मैंने देखा कि उनके बीच काले बालों के बीच में एक लाल रंग की दरार है जिसे मैं अब स्पष्ट देख रहा था।
तभी चाचा ने अपने लण्ड का सुपारा अम्मी की चूत के मुँह पर रगड़ा तो अम्मी गनगना उठी। चाचा लगातार उसे रगड़ते रहे।
थोड़ी देर बाद अम्मी की चूत से चिपचिपा पानी दिखने लगा।
अम्मी- हाय देवर जी, क्यों तडपा रहे हो, इसे जल्दी से अन्दर डाल दो ना।
चाचा- ठीक है मेरी जान, अभी इसे तुम्हारे अन्दर करता हूँ।
मुझे बिल्कुल विश्वास नहीं हो रहा था कि अम्मी इतने विशाल लण्ड को अपने अन्दर ले जायेगी और अगर चाचा ने जबरदस्ती अंदर डाल भी दिया तो क्या अम्मी इसे सम्भाल पायेगी।
तभी चाचा ने अम्मी की टाँगों को थोड़ा ऊपर करके लण्ड का सुपारा अम्मी की चूत के मुंह पर रखा तो अम्मी ने अपने दोनों हाथों से चूत के होंठ फ़ैला दिये, अब चाचा ने नीचे खड़े होकर अम्मी के चूतड़ों को तख्त के किनारे पर रखा और अपनी कमर का दबाव बढ़ाया तो लण्ड आधा अन्दर सरक गया और अम्मी के मुँह से एक मस्ती भरी सिसकारी निकली- सी ईइइ इइइ… उउउइइइ!
तभी चाचा ने दूसरे झटके में तो पूरा का पूरा लण्ड ही अंदर घुसेड़ दिया। अब लण्ड जड़ तक अम्मी की चूत की गहराई में समा चुका था। अम्मी के मुँह से फिर से सिसकारियाँ निकलने लगी- आहह हहह… सीइइइ उइई!
चाचा ने अब दोनों हाथों से अम्मी की कमर पकड़ी और लगे लण्ड को अन्दर बाहर करने! पहले चाचा लण्ड को धीरे से बाहर खींचते फिर एक ही झटके में पूरा अन्दर कर देते।
फिर चाचा ने अपनी स्पीड बढ़ाई और लगे ठाप पर ठाप मारने। अम्मी चूतड़ उचका-उचका कर हर ठाप का स्वागत कर रही थी। अम्मी रह रह कर हाय यय उईइ इइ सीइ मर गई रे! देवररर जजजी मजा आरहा है पेलो और जोर से पेलो मेरे रररेरे रा जा हाय ययय!
चाचा भी ठाप मारने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। लण्ड चूत की फांकों तक आता, आकर एक ही झटके में अंदर चला जाता।
अचानक अम्मी के मुँह से जोरदार सिसकारियाँ निकलने लगी, अम्मी ने अपने दोनों पैर चाचा की कमर पर लपेट लिये और चाचा से लिपट कर सीइ इइ सीइइइ हायय उईइ करने लगी।
मैंने देखा कि चूत से फचाफच की आवाज निकलने लगी। चाचा के साण्ड जैसे अण्डकोष अम्मी की गाण्ड पर टकरा रहे थे। फिर थोड़ी देर में ही अम्मी शांत हो गई, कहने लगी- देवर जी, थोड़ा आराम करने दो, मैं तो कई बार झड़ गई हूँ।
लेकिन चाचा कहाँ मानने वाले थे, चाचा ने एक बार अम्मी को छोड़ा और उसको तख्त पर ही सीधा करके खुद भी ऊपर ही आ गये। मैंने देखा कि चाचा का विशाल लण्ड अम्मी की चूत का पानी पीकर तो ओर भी ज्यादा भंयकर लग रहा था। दोनों इतनी सर्दी में भी पसीने से नहा रहे थे। फिर चाचा अम्मी के ऊपर सवार होकर पेलने लगे।
अब चूत एक छल्ले की तरह लण्ड पर कस रही थी। चाचा अम्मी की दोनों टाँगों को अपने हाथों में लेकर धक्के मारने लगे। अम्मी के मुँह से फिर सिसकारियाँ निकलने लगी।
चाचा इसी तरह करीब आधा घंटा तक अम्मी को पेलते रहे। तभी चाचा ने अपनी स्पीड और तेज कर दी तो अम्मी बोली- देवर जी, अंदर मत डालना प्लीज! देवर जी अंदर मत डालना!
और चाचा 10-12 जोरदार ठाप मारकर अम्मी और चाचा एक दूसरे से लिपट गये। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं
‘हाय देवरजी, आपने यह क्या कर दिया? मैंने मना किया था ना अन्दर डालने के लिये।’
दोनों बुरी तरह हाँफ रहे थे जिसमें अम्मी की तो हालात ही खराब हो रही थी। करीब 5 मिनट बाद चाचा अम्मी के ऊपर से उतरे तो मैंने देखा कि अब उनका विशाल लण्ड थोड़ा नरम हो गया था। चाचा ने जैसे ही चूत से लण्ड बाहर निकाला तो पूरा का पूरा एक लिसलिसे पदार्थ से लथपथ हो रहा था।
अम्मी की चूत मेरी तरफ होने से मैं स्पष्ट देख रहा था कि जो छेद थोड़ी देर पहले काफी छोटा दिख रहा था, वही अब काफी चौड़ा हो गया था, उसमें से सफेद रंग का पदार्थ रिस रहा था जो काफी गाढ़ा था।
चाचा अम्मी के बगल में ही निढाल होकर लेट गये। चाचा सांड की तरह हाँफ रहे थे।
अम्मी- देवरजी, तुमने ये क्या किया? अपना पानी अंदर क्यों डाला? अगर मेरे बच्चा ठहर गया तो?
चाचा- भाभी, क्या करता मुझसे तो रुका ही नहीं गया। तुम्हारी चूत ही इतनी मजेदार है।
अम्मी- देखो तुम्ही ने तो मेरे मना करने के बाद भी मलाज को पैदा कर दिया और अब दूसरा भी शायद तुम ही करोगे। तुम्हें पता है ना मेरा कल ही पीरीयड खत्म हुआ है।
चाचा- भाभी, तुमने भी क्या गजब चूत पाई है। जी तो चाहता है कि अपना लण्ड इसी में फंसा कर पडा रहूँ।
अम्मी- मेरे राजा, तुम्हारा लण्ड भी तो कोई मामूली नहीं है। पता है ना जब तुमने पहली बार सरसों में चोदा था तो इसकी क्या हालत बनाई थी?
ऐसे ही बातें करते-करते चाचा का लण्ड फिर से तन कर खम्बा बन गया और फिर चाचा अम्मी के ऊपर सवार हो गये।
इसी तरह उस रात को चाचा ने अम्मी को 4 बार चोदा। अब तो मैं देख रहा था कि अम्मी की चूत का कचूमर निकल गया था। फिर दोनों ने अपने कपड़े पहने।
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