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नमस्कार दोस्तो मेरा नाम पायल शर्मा है। आपने मेरी पहले की कहानियाँ
मेरी आप बीती: पहला हस्तमैथुन और मेरी आप बीती: पहला मुखमैथुन
को पढ़ा और बहुत पसन्द किया इसके लिये धन्यवाद।
अब मैं इसके आगे की कहानी लिख रही हूँ। उम्मीद करती हूँ कि यह भी आपको पसन्द आयेगी।
आपने मेरी पहले की कहानी में यह तो पढ़ लिया होगा कि किस तरह से मुझे मजबूरी में महेश जी के कमरे में सोना पड़ा और महेश जी ने जबरदस्ती अपने मुँह से मेरी योनि का मैथुन किया।
मुखमैथुन में सच में मुझे इतना मज़ा अया कि मैं इस आनन्द को शब्दों में बयान नहीं कर सकती।
अब सब कुछ शान्त हो गया था। कुछ देर तक मैं आँखें बन्द करके ऐसे ही पड़ी रही और महेश जी के सर को भी अपनी जाँघों के बीच दबाए रखा मगर जब महेश जी अपने आप को छुड़वाने के लिये हिले तो मेरी तन्द्रा टूटी, मैंने महेश जी के सर को छोड़ दिया और धीरे से आँखें खोलकर उनकी तरफ़ देखा !
वो मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुरा रहे थे, उनका मुँह मेरी योनि से निकले पानी से गीला हो रहा था जिसे वो अपनी जीभ होंठों पर फ़िरा कर चाट रहे थे, मैंने शर्म के करण अपनी आँखें बन्द कर ली।
कुछ देर बाद फ़िर से मैंने आँखें खोल कर उनकी तरफ़ देखा, वो अब भी मुस्करा रहे थे मगर इस बार वो मेरी नंगी योनि और जाँघों की तरफ़ देख रहे थे, तभी मुझे अपने कपड़ों का ख्याल आया जो कि अस्त-व्यस्त हो चुके थे।
मैं जल्दी से अपनी साड़ी और पेटिकोट को ठीक करने लगी मगर जल्दी में मेरी पेन्टी नहीं मिल पाई शायद महेश जी ने बिस्तर से नीचे गिरा दी थी इसलिये मैं पेन्टी पहने बिना ही कम्बल लेकर सोने लगी मगर महेश जी ने कम्बल को पकड लिया और कहने लगे- अकेले ही मजा लेकर सोने का इरादा है क्या?
मैंने फ़िर से अपनी आँखें बन्द कर ली और बिना कुछ बोले ही करवट बदल कर सो गई क्योंकि अभी जो कुछ हमारे बीच हुआ, उससे मुझे बहुत शर्म आ रही थी और अपने आप पर गुस्सा भी आ रहा था।
महेश जी भी मेरे पास मेरी बगल में लेट गये और फ़िर से कहने लगे- कुछ हमारे बारे में भी तो सोचो !
उन्होंने कम्बल को खींच कर मुझ से अलग कर दिया और मेरी गर्दन व गालों पर चुम्बन करने लगे, उनके मुँह से मेरी योनि से निकले पानी की खुशबू आ रही थी। मैं अपने आपको छुड़वाने की कोशिश करने लगीं मगर महेश जी के आगे मेरा कहाँ जोर चलने वाला था, उन्होंने मेरे दोनों हाथों को मोड़ कर बिस्तर से सटा कर पकड़ लिया और मुझे सीधा करके जबरदस्ती मेरे गालों को चूमते चाटते रहे।
कुछ देर बाद महेश जी ने मेरे होंठों को अपने मुँह में भर लिया और बुरी तरह से चूसने लगे जैसे कि मेरे होंठों में से कोई रस आ रहा हो।
मुझे फ़िर से कुछ होने लगा था जैसे मुझे कोई नशा चढ़ने लगा हो, मैं अपनी सुध बुध खोने लगी यहाँ तक कि मैं महेश जी का विरोध करना भी भूल गई, कभी कभी जब वो मेरे होंठों में अपने दाँत गड़ा देते तो मैं कराह उठती और छ्टपटाने लगती।
इसी बीच महेश जी ने अपना पायजामा और अण्डरवियर निकाल लिया और पता नहीं कब उन्होंने अपने लिंग पर मेरा हाथ रखवा दिया।
जैसे ही मुझे इस बात का अहसास हुआ कि मेरा हाथ कहाँ पर रखा है तो मेरा दिल धक से रह गया, साँसें तेज हो गई और मैंने जल्दी से अपना हाथ खींच कर वहाँ से हटा लिया क्योंकि आज से पहले सिर्फ़ एक बार मैंने अपने भैया का लिंग देखा था, आज पहली बार किसी के लिंग को स्पर्श करके मैं घबरा गई।
मेरी आँखें बन्द थी फ़िर भी मुझे महेश जी के लिंग के विशाल आकार का अहसास हो गया।
एक बार फ़िर से महेश जी ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रखवा दिया मगर शर्म के करण मैंने फ़िर से अपना हाथ खींच लिया पता नहीं क्यों उनके लिंग को छूने के बाद मेरे शरीर में एक अजीब सी सरसराहट होने लगी और मन में गुदगुदी सी होने लगी।
इसके बाद महेश जी ने मेरे ब्लाउज के बटन खोल दिये और मेरी ब्रा को ऊपर खिसका कर मेरे छोटे छोटे उरोजों को मसलने लगे, इससे मुझे दर्द भी हो रहा था और मज़ा भी आ रहा था। पता नहीं क्यों मैं उनका कोई विरोध नहीं कर रही थी।
कुछ देर बाद महेश जी मेरे एक निप्पल को अपने मुँह में भरने लगे, मगर एक बड़े नींबू से बस कुछ ही बडे आकार के मेरे उरोज थे इसलिये पूरा का पूरा उरोज ही उनके मुँह में समा गया और वो किसी छोटे बच्चे की तरह से उसे चूसने लगे।
उनकी इस हरकत ने मेरे तन-बदन में आग लगा दी और मैं फ़िर से उत्तेजित हो गई।
इसके साथ साथ महेश जी एक हाथ से मेरे दूसरे उरोज को मसलने लगे और एक हाथ से कपड़ों के ऊपर से ही मेरी योनि को सहलाने लगे, मेरे मुँह से फ़िर से सिसकारियाँ फ़ूटने लगी। उत्तेजना का मुझ पर एक नशा सा हो गया और पता नहीं कब महेश जी ने मेरी साड़ी और पेटीकोट को उतार दिया।
अब मैं नीचे से बिल्कुल नँगी हो गई थी क्योंकि पेंटी तो मैंने ना मिलने के कारण पहनी ही नहीं थी इसलिये शर्म के कारण मैं अपने दोनों हाथों से अपनी योनि को छुपा लिया।
इसके बाद महेश जी ने मेरे उरोजों को छोड़ दिया और मेरे बदन को चूमते हुए धीरे धीरे मेरे पेट की तरफ़ बढने लगे।
मैं शर्म और उत्तेजना से दोहरी हो रही थी।
जब महेश जी मेरी नाभि से नीचे की तरफ़ बढ़ने लगे तो पूरे शरीर में एक सिहरन सी दौड़ने लगी इसलिये मैंने अपने घुटने मोड़ लिये। महेश जी ने उन्हें सीधा करना चाहा मगर मैंने नहीं किये इसलिये वो उठ कर मेरे घुटनों के पास आ गये और मेरी जाँघों को चूमते हुए मेरी योनि की तरफ़ बढ़ने लगे।
मगर मैंने अपनी जाँघों को भींच रखा था इसलिये महेश जी ने अपने हाथों से दबाकर फ़िर से मेरे घुटनों को सीधा कर दिया और मेरी योनि को चूमने लगे। मेरे पूरे बदन में एक आग सी भड़क उठी और मेरी योनि तो भट्टी की तरह से तपती महसूस हो रही थी।
इसके बाद महेश जी अपनी जीभ को निकाल कर मेरी योनि के ऊपर के हिस्से को जीभ से सहलाने लगे।
मैंने अपनी जाँघों को भींच रखा था इसलिये उनकी जीभ ठीक से मेरी योनि तक नहीं पहुँच रही थी मगर फ़िर भी जब महेश जी अपनी जीभ को नीचे मेरी योनि तक पहुँचाने की कोशिश करते तो मेरी जाँघों में कंपकंपी सी होने लगी और उत्तेजना के कारण अपने आप ही मेरी जाँघें खुल गई।
अब महेश जी की जीभ मेरी पूरी योनि पर घूमने लगी। मेरी योनि फ़िर से पानी से लबालब हो गई जिसे महेश जी अपनी जीभ से चाट चाट कर साफ़ करने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे और कभी कभी तो वो मेरी छोटी सी योनि को साबुत ही अपने मुँह में भर कर इतनी जोर से चूस लेते कि मैं छटपटाने लगती और मेरे मुँह से ईइइइशशश… अआआहहहह… की जोर से आवाज निकल जाती।
महेश जी अपनी जीभ को मेरे दाने पर और योनि द्वार के चारो तरफ़ घुमा रहे थे जिससे मेरे रोम रोम सुलग उठा और मेरी योनि से पानी रिस रिस कर बाहर आने लगा।
उत्तेजना से मेरी हालत खराब हो रही थी इसलिये मैं जोर जोर से सिसकारियाँ भरने लगी। मैं चाह रही थी कि उनकी जीभ मेरी योनि में प्रवेश कर जाये और पहले की तरह ही वो अपनी जीभ से मेरी इस आग को शांत कर दें मगर महेश जी ऐसा नहीं चाहते थे वो तो जानबूझ कर मुझे तरसा रहे थे।
जब कभी महेश जी मेरी योनि के प्रवेश द्वार में हल्का सा डालते तो मेरे मुँह से इईशश..श… श… अआआ..ह…ह.. की आवाज निकल जाती और अपने आप मेरे कूल्हे ऊपर उठ जाते ताकि उनकी जीभ मेरी योनि में गहराई तक समा जाये मगर महेश जी तुरंत अपना मुँह मेरी योनि पर से हटा लेते और मुस्कुराने लगते।
कुछ देर ऐसे ही तड़फाने के बाद महेश जी ने मेरी योनि को छोड़ दिया और अपनी टी-शर्ट उतार कर मेरे ऊपर लेट गये।
कहानी जारी रहेगी।
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