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प्रेषक : रंगबाज़
समस्त पाठकों मेरा नमस्कार। प्रस्तुत है मेरी नई रचना, यह कहानी काल्पनिक है और मैंने इसे प्रथम पुरुष में लिखा है।
मेरा नाम धनन्जय है, उम्र बाइस साल, रंग गहरा गेहुँआ है, लम्बाई पांच फुट ग्यारह इंच और शरीर सामान्य है। मैं वैसे इटावा, उत्तर प्रदेश रहने वाला हूँ, पिछले दस साल से लखनऊ में अपनी मम्मी-पापा और बहन के साथ रह रहा हूँ।
कुछ संगत का असर कहिये या प्रवृत्ति, मेरे अंदर हवस बहुत है और मुझे लड़कों के साथ सेक्स करने में बहुत मज़ा आता है। मैं जब स्कूल में था, तबसे दोस्तों के साथ गंदे मज़ाक करना, ब्लू फ़िल्म देखना, सेक्स की बातें करना, एक दूसरे के अंगों छूना-पकड़ना शुरू कर दिया था।
बी कॉम में आते-आते मैंने अपने कई दोस्तों से अपना सड़का मरवाया लिया था, एक आध की गाण्ड भी मार ली थी, ब्लू फ़िल्म देखना तो आम बात थी। और अब तो मैं गे यानि समलिंगी ब्लू फिल्में देखता था अपने दोस्तों के साथ लैपटॉप पर।
अपने दोस्तों के साथ रह कर ही मुझे पता चला मेरा लण्ड बहुत बड़ा है। इसीलिए मेरा नाम मज़ाक में ‘प्रचण्ड’ रख दिया गया था। दोस्तों का सड़का मारते हुए, उनसे अपना मरवाते हुए मुझे पता चला कि मेरा लण्ड औसत से बहुत बड़ा है। मेरे दोस्तों के लौड़े खड़े होने पर साढ़े छह इंच के होते थे। मेरा नौ इंच से भी ऊपर था और भुट्टे की तरह मोटा। ऐसा लगता था जैसे कोइ विशालकाय खीरा मेरी जांघों के बीच से लटक रहा हो।
उन्नीस-बीस का होते होते मेरा लण्ड साढ़े दस इंच का हो गया था।
लेकिन अब मैं आपको मतलब की बात बताता हूँ। हमारे पड़ोसी थे मिश्राजी, उनके परिवार में और मेरे परिवार में घनिष्ठ सम्बन्ध थे। और मिश्राजी का एक लड़का है विनय जो मुझसे तीन साल छोटा है।
शुरुआत में मेरा विनय पर ध्यान कम जाता था, सिर्फ हेल्लो-हाय होती थी। लेकिन मेरे साथ विनय भी जवान हो रहा था। जैसे जैसे विनय बड़ा होता गया, मेरा ध्यान उस पर जाने लगा। अब वो पूरा उन्नीस साल का हो चुका था और बहुत सुन्दर हो गया था- गोरा चिट्टा रंग, इकहरा, चिकना शरीर, पतले-पतले होठ, बड़ी बड़ी काली आँखें।
मुझे विनय पसंद आ गया। उसके साथ सेक्स करने का मन होता था। उसको देख कर मेरा लौड़ा बेकाबू होकर मेरी चड्डी में उछलने लगता था।
मैंने विनय से मेलजोल बढ़ाना शुरू किया। वैसे उसका स्वभाव भी बहुत प्यारा है। धीरे धीरे मैं उससे गंदे मज़ाक करने लगा, उसके लण्ड और गाण्ड छूने लगा। विनय मेरे मज़ाक का बुरा नहीं मानता था बल्कि और मज़ाक करता था। मैंने देखा कि अगर मैं उसका लौड़ा छू लेता तो वो हल्का सा शरमा जाता था और हंस कर टाल देता था, लेकिन कभी बुरा नहीं मानता था।
एक दिन मैंने विनय को अपने घर बुलाया। उस वक्त घर में मैं अकेला था। विनय तुरंत ही आ पहुँचा। थोड़ा हँसी-मज़ाक के बाद मैंने उसे अपने लैपटॉप पर ब्लू फ़िल्म दिखानी शुरू की- विनय आओ तुम्हें कुछ मज़ेदार चीज़ दिखाएँ !
मैं उसे अपने स्टडी टेबल पर ले गया और लैपटॉप ब्लू फ़िल्म चालू कर दी। ब्लू फ़िल्म लड़की और लड़के की थी। वैसे मुझे यकीन था कि जवान छोरे ने पहले देखी तो ज़रूर होगी और अभी शुरुआत के लिए लड़की और लड़के की फ़िल्म दिखाई। गे ब्लू फ़िल्म बाद में दिखाता।
वो टेबल के सामने खड़ा होकर फ़िल्म देखने लगा। लड़की लड़के का लौड़ा लपर-लपर चूस रही थी। मैं धीरे से विनय के पीछे खड़ा हो गया और उसके कंधे पर अपना ठोड़ी टिका दी, मेरे गाल से उसका गाल सट गया। उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। मैं उसके कंधे पर सर रखे, अपना हाथ उसके दूसरे कंधे पर टिकाए उसके पीछे खड़ा रहा। वो आँखे फाड़े-फाड़े ब्लू फ़िल्म की चुदाई और चुसाई देख रहा था।
“पहले कभी देखी है?” मैंने उसकी ओर गर्दन घुमा कर पूछा। उसने सिर्फ गर्दन ‘हाँ’ में हिला दी। मैं समझ गया कि वो पूरी तरह गर्म हो चुका है।
मैंने अपनी कमर उसकी कमर से सटा दी। मेरा फड़कता हुआ खड़ा लौड़ा विनय की कमर से चिपक गया।
“मज़ा आया?”
इस बार विनय मुझे देख कर मुस्कुराया। मैंने देखा कि उसकी आँखों में हवस तैर रही थी।
मेरी हिम्मत अब और बढ़ गई। मैंने उसका लण्ड उसकी जींस के ऊपर से ही सहलाना शुरू दिया और अपना वाला उसके चूतड़ों पर हल्के-हल्के रगड़ना शुरू दिया।
“पिंकू भैया !”
मेरे घर का नाम पिंकू था।
“क्या बे?”
“पिंकू भैया… आह्ह…!!”
यह उसकी पहली प्रतिक्रिया थी। लेकिन मैं जान गया था कि उसे मज़ा आ रहा था। हम दोनों की जवानी चढ़ रही थी और हवस पूरे उफान पर थी।
मैंने उसके कहे कि परवाह किये बिना अपना लौड़ा उसकी कमर पर रगड़ना जारी रखा। उसने मेरा हाथ जिससे मैं उसका लण्ड सहला रहा था, पकड़ लिया। लेकिन रोकने के लिए नहीं। उसने सिर्फ मेरा हाथ थामा था। उसे मेरा उसका लौड़ा सहलाना बहुत अच्छा लग रहा था।
मन तो कर रहा था कि साले को बिस्तर पर पटक कर उसकी गाण्ड में अपना लौड़ा घुसेड़ दूँ … बहुत दिनों से गाण्ड नहीं मारी थी। मेरा दोस्त जिसे मैं चोदता था, इलाहाबाद चला गया था। लेकिन विनय की गाण्ड मारने में अभी देर थी।
मैंने विनय की कमर अब दोनों हाथों से दबोच ली और मस्त होकर उसके चूतड़ों पर अपना लण्ड रगड़ने लगा। मैंने उसके गाल भी चूम लिए।
विनय को भी मज़ा आ रहा था। वो मेज़ पर हाथ टिकाये मुझसे अपनी गाण्ड पर लौड़ा रगड़वा रहा था। मेरे शरीर के बोझ से वो थोड़ा झुक गया था जिससे उसकी गाण्ड और सामने आ गई थी। कद में भी वो मुझसे तीन-चार इन्च नाटा था।
मेरा मन किया कि उसे गले लगा कर उसके होठ चूस लूँ।
मैंने उसे कन्धों से पकड़ा और घुमा कर अपने होंठ उसके होटों पर रख दिए। तभी मेरे घर के दरवाज़े की घंटी बजी। बहुत कोसा, आ गया कोई रंग में भंग डालने।
दरवाज़ा खोला तो देखा मम्मी-पापा बाज़ार वापस आ गए थे।
मैंने फटा-फट लैपटॉप बंद किया। यह तो अच्छा हुआ कि हम दोनों ने कपड़े पहने हुए थे।
विनय ने मम्मी पापा से नमस्ते करी और चला गया।
कुछ दिन यूँ ही बीत गए। मेरे और विनय में बातचीत और हँसी मज़ाक चलता रहा।
फिर एक दिन की बात है, हमारे घर पम्प ख़राब होने की वजह से पानी नहीं आ रहा था। मैं नहाने के लिए विनय के घर गया। उस समय घर में उसके मम्मी पापा थे।
“पिंकू बेटा, हम लोग बैंक के काम से जा रहे हैं, लेकिन तुम नहा लो। विनय थोड़ी देर में आता होगा, पास की दुकान तक गया है।”
उसके मम्मी पापा निकल गए और मैं उनके बाथरूम में नहाने लगा। अभी नहा ही रहा था कि किसी के आने की आहट हुई। विनय था, किसी से मोबाईल फोन पर बात कर रहा था।
मेरा लौड़ा विनय के बारे में सोच-सोच कर फुदकी मार रहा था। मन कर रहा था कि अभी उसे दबोच लूँ कि तभी उसकी आवाज़ आई … “अरे पिंकू भैया, हमारी टंकी खाली कर देंगे क्या? हमें भी नहाना है।”
उसे मालूम था कि मैं अंदर हूँ। शायद मिश्रा जी बता गए होंगे।
मैं लगभग नहा चुका था। मैंने अपने भीगे-नंगे बदन पर तौलिया लपेटा और झट से बाहर आ गया। मेरे बदन पर कपड़े के नाम पर सिर्फ कमर पर एक तौलिया था।
विनय बाथरूम के दरवाज़े पर ही खड़ा था। उसने सिर्फ बनियान और बॉक्सर शॉर्ट पहनी हुई थी। चेहरे पर बड़ी सी मुस्कराहट लेकर अपना गोरा-गोरा चिकना बदन दिखा रहा था।
“आओ साथ में नहा लेते हैं, तुम्हारे घर का पानी बच जायेगा !” मैंने मुस्कुरा कर उसकी आँखों से आँखें मिलाकर कहा।
विनय की नज़र सीधे मेरे लौड़े पर चली गई, और जाती भी क्यूँ न, मेरा साढ़े दस इंच का खीरे जैसा मोटा लण्ड पूरा तन कर खड़ा था। मेरे लौड़े के उभार को मोटा तौलिया भी नहीं छिपा पा रहा था। जैसे किसी ने तौलिये अंदर बड़ा सा तम्बू गाड़ दिया हो।
मैंने विनय को गले लगा लिया। विनय भी मेरे भीगे बदन से लिपट गया, वो भी कामोत्तेजित हो गया था।
करीब तीन-चार मिनट तक हम यूँ ही लिपटे रहे। फिर मैंने अगला कदम उठाया, मैंने विनय का बदन सहलाना और उसके गोरे-गोरे गाल चूमने शुरू किये। विनय हल्के-हल्के आहें भरने लगा- अह्ह्ह !! हा … आहह … पिंकू भैया … अहह !”
मेरा तौलिया जाने कब को खुल कर फर्श पर गिर गया। मैं अब उससे अलफ नंगा लिपटा हुआ था। मैंने झट उसकी बॉक्सर नीचे खींच दी। उसका छः इंच का गुलाबी सुपाड़े का गोरा गोरा लौड़ा तन कर खड़ा था। मेरा लौड़ा तो अब काला पड़ने लगा था और उसका सुपाड़ा गहरे गुलाबी रंग का था।
” इतना बड़ा … !!!” विनय मेरा लण्ड देख कर हैरत में था- पिंकू भैया, आपका तो बहुत बड़ा है!?!
“इसे हाथ में लेकर सहलाओ !” मैंने उसे बोला।
विनय विस्मित हो कर मेरा लौड़ा सहलाने लगा। जैसे उसे कोइ बहुत अद्भुत चीज़ मिल गई हो।
“इसे अपने मुँह में लेकर चूसो !” मैंने थोड़ा संकोच के साथ कहा।
उसने ‘ना’ में सर हिला दिया। शायद उसे घिन आ रही थी।
“अरे घिन मत करो, तुम्हें भी अच्छा लगेगा इतना बड़ा लौड़ा चूसकर !” मैंने उसे उकसाने की कोशिश की।
“नहीं !” उसने नाक भौं सिकोड़ते हुए कहा।
“अच्छा…एक काम करो, एक मिनट के लिए चूस कर देखो। अगर अच्छा न लगे तो मत करना !”
“छी… मुझे घिन आती है !” उसने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा।
“यार … एक बार मुंह में लेकर के तो देखो। तुम्हारी घिन चली जायेगी !” मैंने समझाया। मेरा तो मन था आज कायदे से विनय से अपना लौड़ा चुसवाने का लेकिन साला नौटंकी कर रहा था।
उसने एक मिनट के लिए कुछ सोचा फिर अपने घुटनों झुक कर बैठ गया और मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया। उसके मुँह की गर्मी से मेरे लौड़े का सुपाड़ा फूल कर कुप्पा हो गया।
मैंने उसका सर थाम लिया लेकिन अगले ही पल वो अपना सर झटक कर खड़ा हो गया।
“क्या हुआ?”
“मुझसे नहीं होगा !” विनय ने गन्दा सा मुंह बनाते हुए कहा जैसे कोई बहुत कड़वी चीज़ चख ली हो और झट से खड़ा हो गया।
मैंने ज्यादा ज़ोर-ज़बरदस्ती करना ठीक नहीं समझा- कोई बात नहीं। आओ तुम्हारे ऊपर अपना लौड़ा रगड़ लूँ !
मैंने उसे बाँहों में भरा और उसके लण्ड पर अपना लण्ड रगड़ने लगा। विनय भी मुझसे लिपट गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैं थोड़ी देर तक यूँ ही उसके कटि-प्रदेश पर अपना लौड़ा रगड़ता रहा लेकिन मुझे मज़ा नहीं आ रहा था। मेरा मन था या तो विनय की गाण्ड मार लूँ या फिर उसके मुँह में अपना लण्ड घुसेड़ दूँ। लेकिन मैं यह सब नहीं कर सकता था।
“चलो, सड़का मारते हैं !” मैं विनय को बाथरूम में ले गया और हम दोनों सड़का मारने लगे। विनय थोड़ी देर बाद झड़ गया और जब मैं झड़ने लगा तब मैंने विनय को कंधों से पकड़ कर उसके मुँह में अपना मुँह डाल दिया और अपने जीभ उसकी जीभ से लड़ाने लगा।
मन तो कर रहा था कि काश उसे चोद रहा होता। वैसे मैं जब चोद रहा होता हूँ, तब ऐसे ही मुँह में मुँह डाल कर जीभ हिलाता हूँ।
अगले ही पल मैं भी झड़ गया।
मित्रों यूँ तो ये प्रकरण यहीं खत्म हो जाता है- उसके बाद मैंने अपना शरीर पोंछा, कपड़े पहने और घर आ गया। लेकिन आगे चलकर मैंने विनय से अपना लौड़ा भी चुसवाया, और उसकी गाण्ड भी खूब चोदी।
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