निगोड़ी जवानी-1

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सभी पाठकों को रोनी का प्यार भरा नमस्कार !

आज की कहानी विनीता की है जो उसने मुझे सुनाई थी, उसी को मैंने उसी के शब्दों की माला में पिरोकर आपके समक्ष पेश कर दी है।

मेरा नाम विनीता है उम्र 24 साल है। यह मेरी सच्ची कहानी है जिसे मैं रोनी सलूजा से लिखवाकर आप सभी के लिए भेज रही हूँ।

मेरा कद 5 फुट है, मेरा फिगर 30-24-32 है, रंग गोरा, चेहरा बहुत सुन्दर है। मुझे देख लड़के तो क्या बुड्ढे भी आहें भरते होंगे। स्कूल-कालेज के समय कई तो मेरे आगे पीछे घूमते रहते थे मगर मैंने किसी को घास नहीं डाली। क्यूंकि मैं गांव की रहने वाली हूँ जहाँ लड़कों से मिलना, बात करना सब निषेध होता है।

12वीं करने के बाद कालेज की पढ़ाई मैंने शहर के हॉस्टल में रह कर की। मैं बायो से स्नातक करना चाहती थी, दाखिला मिलते ही शहर आ गई, शहर का वातावरण अच्छा लगा।

पर हॉस्टल की कुछ लड़कियाँ बहुत फ्रेंक थी अक्सर लड़कों के साथ घूमती थी और अपनी फरमाइश का खर्च लड़कों से करवाती थी। कुल मिलाकर ऐश करती थी। वे मुझे भी अपने जैसा करने को कहती मगर मैं उनकी बातों पर ध्यान न देती, मुझे इन सबमें कोई रूचि नहीं थी, सिर्फ पढ़ाई मेरा मकसद था।

कालेज के कई लड़के मेरे को लाइन मारते थे पर मुझे तो अपनी पढ़ाई करके नर्सिंग का कोर्स करना था। स्नातक होने के बाद मैंने पिताजी से नर्सिंग में दाखिले के लिए कहा परन्तु पिताजी की जिद के कारण मेरी शादी पास के ही गांव में पढ़े लिखे लड़के राकेश से जो शहर में प्राइवेट नौकरी करता है, से कर दी।

पिताजी ने कहा- अब तुम्हें जो पढ़ना है, ससुराल में रहकर पढ़ते रहना।

शादी के बाद मैं ससुराल आई। मेरे पति राकेश बहुत सीधे और अच्छे इन्सान हैं। फिर वो पल भी आया जिसका इंतजार हर लड़की को होता है, सुहागरात की उस रात मेरे दिल की धड़कन बहुत तेज हो गई थी। हर आहट पर लगता था कि वो आ गए।

आधे घंटे बाद वो आये और अपने साथ लाई तोहफ़े की अंगूठी मुझे पहना दी। फिर मेरे साथ बात करने लगे। बातों ही बातों में मैंने अपने दिल की बात उन्हें बता दी तो उन्होंने नर्सिंग करने की अनुमति दे दी। मेरे लिए सही तोहफा अब मिला था। मैं दिलोजान से उनकी हो कर उनसे लिपट गई।

हम दोनों बिस्तर पर लेट गए। उन्होंने धीरे धीरे मेरे सारे कपड़े उतार दिए और अपने भी सारे कपड़े उतारकर फिर मुझे बेतहाशा चूमने लगे। उस दिन पहली बार किसी के सामने मैं बेपर्दा हुई थी और पहली बार किसी मर्द को बेपर्दा देख रही थी। उनका लिंग जो खड़ा हो चुका था, देखकर डर सा लग रहा था कि कैसे मेरी छोटी सी चूत में घुसेगा।

सुहागरात में होने वाली काम-क्रिया को सोच मैं बहुत उत्तेजित हो रही थी, राकेश ने मेरे को होंठों को चूमते हुए अपने हाथों से मेरे अनछुए संतरे जैसे स्तनों को मसलने लगे। मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी। उत्तेजनावश मैंने अपने पैरों को फैला दिया तो राकेश ने मेरी गीली हो चुकी चूत को सहला दिया फिर अपने खड़े लंड को मेरी चूत पर रखकर जोर का धक्का दे दिया।

उनका आधा लंड मेरी चूत में घुस गया। मेरी तो चीख निकल गई, आँखों में आँसू आ गए।

राकेश मेरी हिम्मत बढ़ाते हुए मेरे स्तन को मुँह में लेकर चूसने लगे तो मुझे कुछ राहत महसूस हुई। फ़िर उन्होंने एक जोर का झटका लगा दिया तो पूरा लंड मेरी चूत को फाड़कर अन्दर घुस गया।

मैंने राकेश को अपने ऊपर से धक्का देना चाहा मगर उनकी पकड़ से छुट न पाई। थोड़ी देर बाद मुझे कुछ अच्छा लगने लगा तो राकेश ने जो धक्के पर धक्के लगाये तो मेरी चूत का कचूमर ही निकल गया। थोड़ी देर बाद सांसों का तूफान थम गया, राकेश के वीर्य से मेरी चूत भर गई। फिर उनका लिंग सिकुड़कर बाहर निकल आया, मेरी चूत से सारा रस बहकर बाहर आने लगा, उसमें रक्त भी मिला हुआ था जो मेरी सील टूटने की कहानी कह रहा था। राकेश ने रात में फिर एक बार और किया उसके बाद हम सो गए।

दूसरे दिन से फिर मुझे दर्द नहीं हुआ, सेक्स में आने वाले अभूतपूर्व आनन्द का ज्ञान मुझे हो गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

दस दिन ससुराल में रहकर खूब चुदाई करवाई, जैसे मुझे इसका चस्का लग गया हो। फिर मैं मायके अपने गाँव आ गई, राकेश ने शहर जाकर अपनी ड्यूटी ज्वाइन कर ली।

गांव में दिन तो कट जाता पर रात में करवट बदलती विरह में तड़पती रहती। फोन से हमारी बात होती रहती थी। मैंने उन्हें नर्सिंग एडमिशन के लिए याद दिलाते हुए कहा- मुझे अपने पास बुला लो, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती।

तो राकेश बोले- मैंने तुम्हारा नर्सिंग दाखिला करवा दिया है, अगले माह से तुम्हारी क्लास लगने लगेगी, अपनी तैयारी कर लेना ! मैंने अपने घर पर पिताजी से भी इजाजत ले ली है।

फिर मैं उनके पास शहर में आकर किराये के कमरे में रहने लगी। कालेज ज्वाइन कर लिया, राकेश दिन में सुबह से 8 बजे तक अपनी ड्यूटी करते, फील्ड वर्क के कारण कभी लेट भी हो जाते और बहुत थक जाते। मैं कालेज से 4 बजे आ जाती, फिर बोर होती रहती।

सोचा किसी अस्पताल में काम करुँगी तो नालेज बढ़ेगी।

राकेश ने भी अनुमति दे दी तो मैंने पास के ही एक नर्सिंग होम अस्पताल में जो एक डॉक्टर द्वारा संचालित है, उनका नाम नहीं लिख सकती, वहाँ जाकर बात की। मैंने अपना परिचय दिया बताया कि कोर्स करते हुए अपना नालेज बढ़ाना चाहती हूँ।

डॉक्टर ने मेरी बात मानते हुए अगले ही रोज से आने को बोल दिया पर पूछने लगे- वेतन क्या लोगी?

मैंने कहा- जो आपको उचित लगे दे देना ! मेरी कोई डिमांड नहीं है, मुझे काम सीखना हैl

मुझे बहुत ख़ुशी थी, जैसा मैं चाह रही थी, वैसा ही हो रहा था। अस्पताल में सारा स्टाफ अच्छा था, सभी मेरे से अच्छा बर्ताव करते ! स्टाफ में लड़के भी थे जो मेरी सुन्दरता के कारण मेरे से दोस्ती बढ़ाने के चक्कर में मेरे आगे पीछे घूमते रहते।

एक माह बाद मुझे 1500 रुपए वेतन मिला, मुझे बहुत ख़ुशी हुई। पति को गिफ्ट लेकर दी, अपने लिए शोपिंग की।

डॉक्टर भी मुझे अपने पास फुर्सत में बुलाकर बहुत बातें करते लेकिन कभी कोई गलत बात या हरकत नहीं की। मुझे लगता था जैसे वो मेरी ओर आकर्षित हों और मेरे से कुछ कहना चाहते हो, अक्सर मेरे कंधे पर हाथ रख देते थे, वो बहुत स्मार्ट, साफ दिल, शादीशुदा और उम्र में बड़े थे तो कभी मैंने बुरा नहीं माना, उनका यही गुण मुझे उनकी ओर आकर्षित करता था।

कम्पूटर पर नेट चलाना कालेज में सीख लिया था तो अस्पताल में कभी कभी नेट भी चलाती थी, यहीं अन्तर्वासना पर कहानियाँ पढ़ती रहती थी जिसकी जानकारी मुझे कालेज की लड़कियों से मिली थी।

मेरी ट्रेनिंग को 6 माह निकल गए, सब ठीक चल रहा था, बस एक बात मुझे परेशान कर रही थी कि राकेश घर आकर खाना खाकर जल्दी सो जाते, पूछो तो कहते- फील्ड वर्क के कारण थक गया हूँ।

मेरी प्यास का उन्हें कोई ध्यान न रहता, मैं प्यासी तड़पती करवट बदलती रह जाती, मेरी सेक्स की इच्छा हफ्ते में दो या तीन बार ही पूरी हो पाती।

इसी तरह एक साल निकल गया, अपनी उदासी के बारे में किसी से नहीं कह सकती थी, कभी कभी लगता कि मेरा कोई बॉयफ्रेंड होता तो उससे अपनी बढ़ती हुई हवस पूरी कर लेती।

मेरी उदासी डॉक्टर से न छिप सकी, उन्होंने कई बार पूछा मगर मैं टाल देती।

एक बार पति राकेश दो दिन के लिए गांव चले गए, मैं ट्रेनिंग क्लास के कारण नहीं जा पाई। उनके साथ बिना मेरा दिल किसी काम में नहीं लग रहा था, उस दिन मरीज भी बहुत कम थे। डॉक्टर ने फिर पूछा- विनीता, बताओ तुम्हारी क्या प्रोब्लम है? शायद मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूँ।

मेरे सब्र का बांध फूट गया, मैंने सारी बात उनसे कह डाली, फिर उनके कंधे पर सिर रखकर रो पड़ी। वो मेरी पीठ सहलाते हुए कह रहे थे- सब ठीक हो जायेगा, चिंता मत करो, मैं राकेश से बात करूँगा।

तब भी उन्होंने कोई गलत हरकत नहीं की। उनके जैसा संयमी इन्सान के स्पर्श मात्र से मैं मदहोश हुई जा रही थी। जब मुझे होश आया तो मैं उनसे दूर हुई और सॉरी बोल छुट्टी लेकर कमरे पर आ गई।

अब मेरी आँखों में डॉक्टर का चेहरा दिख रहा था, मेरी पीठ पर उनका हाथ महसूस हो रहा था, इसी ख्याल में कब मेरी नींद लग गई पता नहीं लगा। मुझे जाने क्या हो गया, अब मैं ज्यादा से ज्यादा डॉक्टर से बात करती रहती। इसी तरह चार माह और निकल गए।

एक दिन शाम के वक्त डॉक्टर अस्पताल में नहीं थे, मैं अस्पताल के बगीचे में पानी डाल रही थी। तभी मुझे लगा कि डॉक्टर के चैम्बर के अटैच बाथरूम, जिसकी एक खिड़की बगीचे में खुलती है, में पानी गिरने की आवाज आ रही है।

मैंने सोचा कि पानी का नल तो खुला नहीं रह गया, यह देखने के लिए मैंने बगीचे से खिड़की से अन्दर झांक कर देखा तो मेरे होश उड़ गए, सारे बदन में सनसनी फ़ैल गई। मैंने देखा कि डॉक्टर अपना गोरा लम्बा लिंग पकड़े हुए पेशाब कर रहे थे।

मैं झट से वहाँ से हट गई।

यानि डॉक्टर अभी आये हैं और उन्हें बगीचे में किसी के होने का अंदेशा नहीं होगा, तभी तो इतने बिंदास होकर पूरा लिंग निकाल कर मूत रहे थे।

गनीमत थी कि उन्होंने मुझे नहीं देखा, पर मैंने जो उनका बड़ा लंड देखा, उससे मेरी बेचैनी बढ़ गई। फिर आठ बजे मैं अपने कमरे पर आ गई पर मेरी आँखों के आगे बार-बार डॉक्टर का लंड ही दिखाई दे रहा था। सेक्स के लिए मेरी इच्छा जागृत हो गई थी। आज राकेश से जी भर के चुदना चाहती थी।

रात 9 बजे राकेश आये, हमने साथ खाना खाया, फिर वो सोने लगे।

मैंने कहा- राकेश, प्लीज़ अभी मत सोओ, हम आ रहे हैं।

फिर सारा काम छोड़कर राकेश के साथ बिस्तर में आ गई, राकेश पहले न नुकुर करते रहे- मैं थक गया हूँ !

पर जैसे तैसे वो राजी हुए तो सीधे सीधे मेरी साड़ी ऊपर की, पेंटी निकाल कर अलग कर दी और अपना लिंग मेरी सूखी चूत में घुसा दिया। चूत को गीला होने का समय भी नहीं दिया, न ही मुझे फॉर प्ले वाला प्यार किया।

जब तक मैं गर्म हुई, उन्होंने अपना वीर्य मेरी चूत में छोड़ दिया था। मुझे प्यासी छोड़ खुद करवट बदल कर सो गए। मैं रोते हुए सोच रही थी कि क्या यही दिन देखने के लिए मैंने अपने आप को पति के लिए बचा कर रखा था। कालेज के दिनों में मैं भी तो ऐश कर सकती थी, कितने ही लड़कों के लंड ले चुकी होती। लंड का ख्याल आते ही डॉक्टर का लंड आँखों में झूलने लगा, मैं वासना में झुलस रही थी, अब मुझे किसी तरह उनका लंड पाने की लालसा जागने लगी।

मैंने कई बार डॉक्टर को लुभाने किसी न किसी बहाने से अपने स्तन भी दिखा दिए, जिन्हें वो चोरी छुपे देख भी रहे थे। एक बार उनके चेंबर में साड़ी में कीड़ा है, कहकर जांघें तक दिखा डाली परन्तु कैसे उन पर अपना जादू चलाऊँ, यह समझ नहीं आ रहा था।

अब मैं हरसंभव कोशिश में थी कि किस तरह डॉक्टर को इस काम के लिए राजी करूँ कि वो मुझे चरित्रहीन भी न समझने लगें और मेरी प्यास भी बुझा दें। पर मेरी बात को वो समझ नहीं पाते, मैं खुलकर कह नहीं पाती।

इसी पशोपश में एक माह और गुजर गया।

कहानी जारी रहेगी।

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प्रकाशित : 17 अक्तूबर 2013

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