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हम बचपन से ही एक बात हमेशा सुनते आये हैं.. जीवन एक नदी की धारा की तरह है जिसने कभी रूकना नहीं जाना..
उस नदी की एक बूंद जिसका सफ़र कहीं पहाड़ियों की चोटी से शुरू होता है और अंत में न जाने कितने ही अवरोधों को पार करते हुए कितने ही खूबसूरत जन्नत सरीखे रास्तों से होते हुए.. महासागर में समर्पित हो जाती है।
मेरा जीवन भी अभी उन्हीं मोड़ों से गुज़र रहा है.. जब भी ये जीवन किसी खूबसूरत जन्नत से लगने वाले गंतव्य से गुजरती है तो वो मैं आपके सामने एक कहानी के तौर पर लिख देता हूँ.. मेरी पिछली कहानियाँ आप सभी पाठकों द्वारा काफी सराही गई, उसके लिए आप सभी को धन्यवाद !
यह कहानी शुरु होती है जब मेरी कहानी सच्चे प्यार की तलाश प्रकाशित हुई थी। मैं अपने मेल पर आप सभी पाठकों के मेल का जवाब दे रहा था, तभी मेरी नज़र एक मेल पर पड़ी, मेल था: IASpreyashi….
मुझे थोड़ा अजीब सा लगा, फिर सोचा कि क्या प्यार की ज़रुरत और तलाश तो सभी को होती है। तो प्रशाशनिक अधिकारी हो या आम मध्यम वर्ग, प्यार की ज़रुरत सभी की एक जैसी ही होती है, हम भले ही अपने दिल को यह कह कर बहला लें कि अगर जिस्म का सुख हैं, मेरे पास तो प्यार की क्या ज़रुरत ! पर असल में हम अन्दर ही अन्दर खोखले हुए जाते हैं। प्यार बिना यह सारी दुनिया जैसे उजाड़ सी लगती है।
मैंने उसका मेल खोला, बड़ा ही संक्षिप्त संवाद था, लिखा था: ” मैंने अपने सारे अरमान अपनी मंजिल और अपने परिवार की खुशियों के लिए कुर्बान कर दिए थे। ऐसा लगता था कि अब मैं कभी उसे याद नहीं करुँगी पर जब मैंने आपकी कहानी पढ़ी तो खुद को रोक न पाई। मैं पहली बार किसी से इस तरह बात कर रही हूँ, काश आप जैसा कोई मेरी जिंदगी में होता जो मेरी जिंदगी में प्यार ही प्यार भर सकता क्यूँकि जो इंसान इतने दिनों तक किसी के साथ बिताए पलों को अपनी जिंदगी बनाए हुए है और उसका इंतज़ार अब तक कर रहा है वही मुझे प्यार भी दे सकता है..”
मैंने इस मेल को एक बार पढ़ा फिर दोबारा पढ़ा, फिर कम से कम सात बात पढ़ा और मैं सोच में पड़ गया कि क्या जवाब दूँ इसका..
फिर मैंने उसका जवाब भेजा.. “मैडम मैं क्या कहूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा, पर मैं आपका अकेलापन समझ सकता हूँ, मुझे तो लगता था कि दुनिया में मैं सबसे अकेला हूँ, पर जितना आपको जाना है उससे तो मुझे ऐसालगता है कि जैसे मैंने खुद को ही शीशे में देख लिया हो। मैं वीडियो चैट और ऑनलाइन बातों में यकीन नहीं रखता हूँ क्यूंकि आज सच्चाई कम और धोखे ज्यादा मिलते हैं। अगर सच में आप ऊब गई हैं ऐसी जिंदगी से तो मुझसे मिलिए, शायद यह मुलाक़ात हम दोनों की जिंदगी को किसी खूबसूरत मुकाम तक पहुँचा सके।”
और फिर मैंने वो मेल भेज दिया..
वहाँ से जवाब आया, “आपने तो आइना देख लिया पर अब मैं भी देखना चाहती हूँ, सब कुछ भूल कर बस अपने होने का एहसास करना चाहती हूँ, मैं एक सफ़र पे जाना चाहती हूँ जहाँ बस आप हो, और मैं हूँ और कुछ भी नहीं ! अपना नाम और उम्र मुझे भेजें ताकि मैं अपने सफ़र की टिकट करवा सकूँ..”
मैंने उसे निशांत, उम्र 26 लिख कर भेज दिया।उसने एक हफ्ते बाद की बुकिंग कराई थी और बुकिंग की एक कॉपी मुझे भेज दी उसने।
अब मुझे सच में डर लग रहा था, मैंने तो उसे अब तक देखा भी नहीं था न ही उसकी आवाज़ सुनी थी, और तो और उसका नाम भी नहीं जानता था मैं.. तभी मेरे दिमाग में एक बात आई, मैंने फ़ौरन अपना मेल बॉक्स खोला और टिकट को चेक किया। पटना से दिल्ली तो मेरे अकेले की थी पर दिल्ली से बागडोगरा के लिए हम दोनों की फ्लाइट थी। उसमें उसका नाम लिखा था राज प्रेयसी (बदला हुआ) उम्र 33 वर्ष !
अब तो बस एक हफ्ता काटना था, आखिर वो दिन आ ही गया, मैं पटना हवाई अड्डे पर पहुँचा, दो घंटे बाद की मेरी फ्लाइट थी। नियत समय पर मैं दिल्ली पहुँचा।
दिल्ली हवाई अड्डे पर पहुँचते ही मुझे अजीब सी बेचैनी हो रही थी, मैं उसे पहचान भी तो नहीं सकता था, पता नहीं वो आई है या नहीं, उसका फ़ोन नंबर भी नहीं था मेरे पास, बस उसकी सीट मेरे बगल में थी, यही जानता था।
अब तीन घंटों के इंतज़ार के बाद मेरी अगली फ्लाइट का समय हुआ, मैं अपनी सीट पर बैठ गया और अपनी आँखें बंद कर ली मैंने ! करीब दस मिनट के बाद मुझे एहसास हुआ कि कोई मेरे बगल में बैठा है। अब तो बस कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि आँखें खोलूँ या नहीं।
फिर मुझे महसूस हुआ कि उसने अपना सर मेरे कंधे पे रख दिया है, मैंने धीरे से अपनी आँखें खोली। काफी लम्बे और घने बाल थे उसके.. मैंने धीरे से उसके सर को चूम लिया, उसने चौंक कर अपना सर ऊपर किया, हमारी नज़रें मिली, आँखें भूरी थी उसकी पर चमक ऐसी कि कोई भी सम्मोहित हो जाए, निचला होंठ ऊपर के होंठ से हलके भारी था, गुलाबी और चमकदार। रंग सांवला और शरीर भरा पूरा था।
जब मैं उसका मुआयना कर रहा था, तभी उसने मेरे चेहरे को अपने हाथों में लेकर मुझसे कहा- क्या देख रहे हो जनाब?
मैंने कहा- कोशिश कर रहा हूँ कुछ देखने की ! शायद कुछ दिख जाए..
वो हंसने लगी ! वो सच में बहुत खुश लग रही थी उस वक़्त !
वो मेरी आँखों में देख रही थी थी मैं उसकी.. मुझे एक ग़ज़ल याद आ रही थी..
कोई फ़रियाद मेरे दिल में दबी हो जैसे,
तूने आँखों से कोई बात कही हो जैसे,
जागते जागते इक उम्र कटी हो जैसे…
मेरे हाथों में उसका हाथ था और हम दोनों में से कोई भी अपनी नज़र नीचे करने को तैयार ही नहीं था। पता नहीं क्या हुआ मुझे, मैंने अपने होंठ उसके होंठों से मिला दिए। उसके होंठ कोई हरकत नहीं कर रहे थे पर जैसे जैसे कुछ लम्हे बीते, उसने साथ देना शुरू कर दिया।
मैं खिड़की की तरफ था, उसने मुझे किनारे पर लाकर मेरे होंठों को खा जाने सा यत्न करने लग गई। बड़ी मुश्किल से मैं उसे खुद से अलग कर पाया।
हमारी ज्यादा बातें नहीं हुई, हम बागडोगरा पहुँच गए, हमने एक टैक्सी किराये पे ली और भूटान की तरफ चल दिए। यान से उतरने के दौरान मैं उसके बदन पर गौर कर पाया- 5’6″ की लम्बाई.. भरा पूरा बदन और उस पर हल्के नारंगी रंग की सलवार कमीज !
पता नहीं क्यों पर चलते वक़्त मेरे हाथ उसकी कमर पर चले गए और उसने भी अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया।मैंने उससे पूछा- क्या मैं तुम्हें पारो बुला सकता हूँ..?
उसने हाँ कहा।
टैक्सी के अन्दर वहाँ के नज़ारे और ठंडी ठंडी हवा ने मुझे नींद की आगोश में भर सा दिया।
अब मैं अपने स्वप्न में था.. मैं एक कमरे के अन्दर था और सामने घूँघट में पीहू थी.. मैं धीरे से उसके पास पहुँचा.. और घूँघट उठाते हुए उससे कहा-
छुपाती क्यों हो अपने हुस्न को?
कि आज तो प्यार की रात है,
यूँ नज़रें नीचे ना करो,
मुझे देखो और मुझमे खो जाओ
कि आज इकरार की रात है.. !
उसने मुझसे कहा-
शर्म और हया भी कोई चीज़ होती है मेरे सनम,
कैसे समा जाऊँ तुझमें मेरे सनम
कि नखरे और अदा भी कोई चीज़ होती है..
फिर मैंने कहा-
ठीक है दूर ही रहो फिर मुझसे,
कि अब पास कभी न आना,
मर जाऊँगा तुमसे दूर जा के
तब मेरे ज़नाज़े से शरमाना…
मैंने इतना कहा ही था कि वो मुझसे कस के लिपट गई, उसके आंसुओं की बूंदें मुझे मेरे गाल पर महसूस हो रही थी..
आगे की कहानी अगले भाग में….
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