मेरे मॉम-डैड

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लेखिका : शीनू जैन

एक बार मेरे मौसी की शादी में हम सभी गए थे। जिस होटल में शादी हुई थी, उसी होटल में सबके लिए कमरे बुक थे। मेरे चाचा, पापा, मॉम और मैं होटल के एक ही कमरे में सोए थे। सर्दियों के दिन थे, चाचा फेरों से पहले ही कमरे में आ कर सो गए थे। मुझे याद है चाचा छुप कर ड्रिंक्स वगैरह ले कर रहे थे शायद इसीलिए टुन्न हो कर जल्दी ही कमरे में आकर सो गए थे। रात एक बजे के आसपास मैं भी फेरों से उठ कर कमरे में आ कर सो गई थी।

सुबह करीब तीन बजे जब कमरे में खटपट हुई तो मेरी नींद टूटी, लेकिन मैं रजाई में ही मुँह दबा कर सोती रही क्योंकि मॉम-डैड फेरों के बाद कमरे में आये थे और धीरे धीरे बातें कर रहे थे। उनकी एक एक बात आज भी मेरे कानो में गूँजती है।

मॉम- सब कुछ ठीक ठाक हो गया, अब तो बस जल्दी से सो जाओ ! सुबह 6 बजे विदाई है ! दो घंटे भी नींद आ गई तो फ्रेश हो जायेंगे।

डैड धीमी आवाज में- मुझे तो नींद जब तक नहीं आएगी जब तक तुम मेरा काम नहीं करोगी !

मॉम- कुछ तो ख्याल करो, शीनू और अमर(चाचा) सो रहे हैं यहाँ ! कहाँ करोगे?

डैड- अरे अमर को तो नगाड़े बजा कर उठाना पड़ेगा, पूरा टुन्न होकर सोया था रात को और सीनू तो छोटी है, इसकी नींद भी पक्की ही है और फिर सीनू के होते हुए हमने कितने बार किया है… आओ ना !

मॉम- देख लो यार ! कहीं कुछ गड़बड़ ना हो जाये !

डैड- कुछ नहीं होगा… आ जाओ !

फिर मैंने महसूस किया कि मॉम और डैड बिस्तर पर आ गए, चाचा तो सोफे पर सोये हुए थे, बिस्तर एक ही बड़ी रजाई थी।

मुझे महसूस हुआ कि डैड मेरी तरफ है और मॉम दूसरे किनारे पर !

मॉम- रजाई छोटी पड़ेगी हम तीनों के लिए, मैं तो ठण्ड में नहीं रह सकती, आप इस किनारे पे आ जाओ, मुझे बीच में आने दो !वैसे भी आपको गर्मी मिल ही जाएगी चाहे आप बीच में रहो या किनारे पे !

यह कह कर मॉम बीच में आ गई।

डैड- यार, तुम कपड़े तो बदल लेती !

मॉम- दो घंटे की ही तो बात है, फिर उठना है, फिर से कपडे बदलने पड़ेंगे और अगर तुम ज्यादा मस्ती करोगे और सारे कपड़े ख़राब कर दोगे तो फिर भी चेंज करने पड़ेंगे… इसलिए जो कुछ करना हो कर लो पर मेरे कपड़े ना ख़राब करना !

डैड- यार शादी में तुम इतनी खूबसूरत लग रही थी कि मन कर रहा था ही बस वहीं स्टेज़ पर ही लिटा कर चोद दूँ।

मॉम- चुप रहो ! दोनों में से कोई उठ जाएगा और मत बोलो, जो करना है जल्दी से कर लो !

डैड- हे भगवान् ! कितना डरती हो तुम !

और फिर दोनों चुप हो गए, मुझे रजाई में हलचल महसूस होने लगी।

डैड धीरे से- चूतड़ उठाओ, साड़ी ऊपर करनी है।

मॉम- ऊपर आओगे क्या?

डैड- तुम बताओ?

मॉम- पीछे से कर लो ! ऊपर मत आओ.. कपडे ख़राब होंगे।

डैड- ठीक है शीनू की तरफ़ मुँह कर लो।

एक बार फिर रजाई में हलचल हुई और मुझे महसूस हुआ कि मॉम ने मेरी ओर मुंह किया है।

मै उल्टी लेटी हुई थी और मेरा मुँह भी उन दोनों की ओर था लेकिन मैं डर के मारे आँखें खोलने की हिम्मत नहीं कर सकी। मेरा सर तो रजाई में ढका हुआ था लेकिन मॉम का और का बाहर था।

रजाई में फिर हलचल हुई और मुझे लगा कि डैड मॉम की साड़ी और पेटीकोट पीछे से उठा रहे हैं। थोड़ी देर तक कुछ नहीं हुआ।

मॉम- अब इन पर हाथ फिराना छोड़ कर कुछ कर भी लो।

डैड- यार सारी शादी में लोग सिर्फ तुम्हारे कूल्हे ही देख रहे थे कितने सेक्सी चूतड़ हैं तुम्हारे !

मॉम- हाँ हाँ ! कुछ और तो था नहीं शादी में देखने को… है ना…!?!

डैड- था तो सही लेकिन वो तुमने पल्लू से ढक रखा था।

मॉम- कितने बेशरम हो तुम !

डैड- अरे यार, तुम्हारे सामने ही तो कह रहा हूँ, कौन सा लाउडस्पीकर लेकर बोल रहा हूँ… अच्छा यह बताओ कि गीली हो गई हो क्या तुम?

यह सुनते ही मम्मी की गीली हुई या नहीं पर मेरी जरूर गीली हो गई।

मॉम- यार आप भी कमाल करते हो… इतनी जल्दी कैसे हो जाऊँगी?

डैड- फिर मैं करता हूँ।

यह कहते ही रजाई में थोड़ी से जोर की हलचल हुई और जो मैं समझ पाई थी कि डैड ने अपना मुंह मॉम के चूतड़ों के बीच उनकी फुद्दी पर लगा दिया था और वो शायद मॉम की चाट रहे थे।

मॉम- अब ये कच्छी क्यों उतार रहे हो मेरी… साइड पे करके चाट लो ना !

डैड- यार अच्छी तरह से गीली नहीं हो पायेगी !

मॉम- ये काम करने ज़रूरी हैं अभी… टाइम तो है नहीं और फिर शीनू और अमर..!! आप कभी नहीं सुधरोगे !

और मैंने महसूस किया कि मॉम कमर के बल हो गई, उनकी टाँगे खुल रही थे डैड को बीच में करने के लिए ! मॉम की एक टांग मुझ से छू रही थी, कभी जोर से दब जाती तो कभी धीरे से ! शायद डैड के चाटने से हो रही थी !

मॉम- आह… अम्म… थोड़ा धीरे करो ह्ह्ह्ह… उफ्फ्फ्फ़… थोड़ा और नीचे… यहाँ… सुनो… एक बार दाना भी रगड़ दो।

उस समय मुझे नहीं पता था कि दाना क्या होता है लेकिन शायद डैड ने रगड़ा और मॉम ने अपनी टाँगें इकठ्ठी कर ली और शायद डैड का मुँह अपनी जांघों में दबा लिया।

मॉम- ऊऊओ…आह्ह्ह्ह… म्मम्म… हो गई मैं तो… आह्ह ह… निकल गया…!!!

और ऐसा लगा कि मॉम कांप रही हैं…मॉम का जो हाथ मेरी तरफ था उससे चादर भी शायद कस के पकड़ी हुई थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

ये शब्द आज भी ताज़ा हैं मेरे दिमाग में “आह… अम्म… थोड़ा धीरे करो ह्ह्ह्ह… उफ्फ्फ्फ़… थोड़ा और नीचे… यहाँ… सुनो… एक बार दाना भी रगड़ दो। ऊऊओ…आह्ह्ह्ह… म्मम्म… हो गई मैं तो… आह्ह ह… निकल गया…!!!”

और फिर रजाई में एक बार फिर हलचल हुई और मॉम ने अपना चेहरा मेरी ओर कर लिया और डैड ने उनके पीछे पोजीशन ले ली।

डैड- यार, जगह नहीं मिल रही एक बार पकड़ के लगा लो ना !

मॉम- रुको …!!!

और फिर ऐसा लगा कि मॉम ने अपना हाथ अपनी जांघों के बीच में से ले जाकर डैड का लंड पकड़ के अपनी योनि के मुँह पे लगा लिया… और फिर मॉम हल्के से बोली- …चलो !

और फिर मुझे महसूस हुआ कि मॉम को मेरी तरफ हल्का सा धक्का लगा।

मॉम- उह्ह.. गया क्या पूरा?

डैड- हाँ गया पूरा का पूरा !

मॉम- थोड़ा धीरे करना… शीनू बिल्कुल साथ लेटी हुई है..!!

डैड- चिंता मत करो.. इतनी चिकनी हुई हो कि अभी निकलवा दोगी मेरा…!!!

और फिर बेड पर हल्की हल्की हलचल महसूस होने लगी।

डैड- ऊपर वाली टांग थोड़ी सी उठाओ…थोड़ा सा तो तेज़ करूं…!!!

मॉम- यार मान जाओ शीनू जाग जाएगी… रहने दो…

और फिर मुझे लगा कि डैड ने जबरदस्ती मॉम की ऊपर वाली टांग थोड़ी सी उठाई और धक्के तेज़ कर दिए।

मॉम- धीरे…! …अहह… उफ़…म्मम्मम हाय माँ…!!! यार धीरे करो…

डैड तेज़ सांस लेते हुए- क्यों, मज़ा नहीं आ रहा क्या… लाओ ब्लाउज भी खोल लो… कम से कम मुझे तो देख लेने दो इन चूचों को !

मॉम- इतने साल से देख रहे हो ! अभी भी मन नहीं भरा तुम्हारा…कोई भी जगह हो, ये ज़रूर खुलवाते हो… रुको पल्लू पे पिन लगी हुई है… अरे बाबा रुको, मैं ही खोलती हूँ ब्लाउज के हुक तो तुम ब्रा का हुक खोल लेना…

हे भगवान्….!!!!!! यह मैं क्या सुन रही हूँ… मेरे मॉम-डैड मेरे साथ एक ही बेड पर हैं और मेरी ही उपस्थिति में चुदाई का प्रोग्राम चल रहा है और ये लोग यह सोच रहे हैं कि मैं सो रही हूँ… लेकिन एक बात माननी पड़ेगी मेरे मॉम-डैड की… कि अभी तक बड़े ही शालीन ढंग से काम चल रहा था… कोई गाली-वाली नहीं, कोई चूत लंड जैसा शब्द उनके मुंह से नहीं निकला था। सिर्फ मेरे डैड ने ‘चोद’ शब्द ही बोला था।

मॉम- सुनो ..!! मैं फिर से होने वाली हूँ… अब कर ही रहे हो तो 5-6 झटके थोड़ी जोर से मार दो… या फिर ऐसा करते हैं कि बाथरूम में चलते हैं…

डैड- नहीं सविता…!!! बस मेरा भी निकलने वाला है…..यहीं रुको !!!

मॉम धीरे से- अरे यार यहाँ कहाँ करोगे सब कुछ भर जायेगा… कंडोम भी नहीं लगाया हुआ आपने !!!

डैड- यार एक मिनट रुको !

और फिर ऐसा लगा कि वो दोनों अलग हुए।

डैड- तुम्हारी कच्छी कहाँ है?

मॉम- हे भगवान्… कच्छी में करोगे?

डैड- यार दे दो ना…

मॉम- मुझे नहीं पता तुमने ही उतारी थी रजाई में ही होगी।

डैड- हाँ मिल गई… चलो सीधी लेट जाओ !

और मॉम शायद कमर के बल लेट गई

डैड- ला यार चूची ही चूस लूँ थोड़ी तुम्हारी !

और फिर मुझे छोटी-छोटी चुस चुस की आवाजें आने लगी।

मॉम- सारा मोशन तोड़ दिया कच्छी के चक्कर में !

डैड- सिर्फ 20 झटकों में अपना और तुम्हारा दोनों का निकलवा दूंगा… और फिर चैन से सो जाना… बस एक बात मान लो !

मॉम- क्या?

डैड- मेरे ऊपर आ जाओ मैं नीचे से करता हूँ तुम्हें..

मॉम- यार क्या कर रहे हो आप… यह स्टाइल बदल बदल के करने की जगह नहीं है, बस ऐसे ही कर लो ! घर जाते ही जो कहोगे वो कर दूँगी…लेकिन यहाँ नहीं।

डैड ने शायद मॉम की चूची मुँह में ली और फिर से मॉम को चोदना शुरू कर दिया।

मॉम- अह्ह अम्म… अहह ! अह !

और शायद 20-25 धक्कों के बाद डैड ने कहा- सविता, कितनी देर लगेगी तुमको?

मॉम- बस.. बस… अहह… बस… 2-3 जोर से… अह्हह्म्म… गई…गयी… ऊऊओ…ह्ह्ह्हह… गई… गई मैं…

डैड- मेरी जान, मेरा भी आ गया.. अह्ह्ह… मम्म…

मॉम शायद जल्दी से हिली और डैड का लंड बाहर निकलवा दिया और बोली- कच्छी में.. कच्छी में… मेरे अन्दर नहीं और रजाई के अन्दर तेज़ हलचल हुई और शायद डैड ने सारा वीर्य मॉम की पैन्टी में निकाल दिया।

डैड उठ कर बाथरूम चले गए, मॉम शायद अपने कपड़े ठीक करने लग गई।

दो मिनट बाद जब डैड बाथरूम से बाहर आये तो मॉम ने पूछा- अन्दर तो नहीं किया ना?

डैड- नहीं यार… सारा का सारा तुम्हारी कच्छी पी गई… तुम्हारी गरमागर्म और तपती हुई चूत के साथ लगी रहती है ना हरदम ! इसलिए उसी ने सारा सोख लिया। अब रखूँ कहाँ इसको?

मॉम- धत्त…!!! शरारती कहीं के… अपने तकिये के नीचे रख लो, रात को नींद अच्छी आएगी !

और फिर वो दोनों सो गए।

सुबह जब मेरी आँख खुली तो मॉम मुझे जगा रही थी।

मॉम- शीनू… बेटे जल्दी से उठो ! छः बज गए हैं, विदाई का टाइम हो रहा है… मैं और तुम्हारे डैड नीचे जा रहे हैं, चाचा के साथ सारा सामान गाड़ी में रख लो !

मैंने उठ कर देखा तो सारे सामान के साथ तैयार थे।

चाचा ने कहा- शीनू, मैं सामान कार में रख कर 2 मिनट में आ रहा हूँ… तैयार मिलना !

जैसे ही सारे कमरे से गए मैंने झट से डैड की तरफ के तकिये के नीचे देखा तो… मॉम अपनी कच्छी पहनना भूल गई थी… ओह्ह गॉड ! गुलाबू पैंटी पर छोटे छोटे लाल फूल बने हुए थे, बिल्कुल मुचड़ी हुई एक छोटी सी गेंद जैसी दबी हुई थी।

मैंने झट से मॉम की कच्छी उठाई और हाथ में लेकर देखी जो कि कुछ जगह से एकदम कड़क थी… शायद मेरे डैड के वीर्य की वजह से !

तभी मुझे याद आया कि चाचा बोल के गए हैं कि तैयार मिलना ! मैंने जल्दी से वो कच्छी वैसे ही तकिये के नीचे छुपा दी, मैं बाथरूम में चली गई। वापिस आई तो चाचा कमरे में थे, बोले- चलें?

मैंने कहा- जी चाचा चलो !

जैसे ही कमरे का दरवाज़ा खोला मॉम खड़ी थी, वो बोली- एक मिनट ! अभी आई !

और बिना सोचे समझे कि मैं और चाचा खड़े हैं, डैड की साइड वाला तकिया उठाया और मैं, यह सोच कर कि मॉम हमारे सामने अपनी कच्छी ले रही हैं, कि मेरी फट गई, उस तकिये के नीचे कुछ नहीं था !

मॉम ने इधर उधर देखा और परेशान सी दिखने लगी।

तभी चाचा बोले- भाभी अब क्या रह गया..??

मॉम सकपकाते- कुछ नहीं एक चाबी थी, शायद तुम्हारे भैया ले गए।

नीचे आकर मैंने देखा कि मॉम सीधी डैड के पास गई और कुछ पूछा।

डैड ने ना में सर हिलाते हुए कुछ कहा और दोनों हैरान-परेशान से दिखने लगे।

मॉम की कच्छी न मेरे पास… ना डैड के पास, न खुद मॉम के पास तो फिर बचा कौन?

मैंने कनखियों से देखा तो चाचा की पैंट की जेब कुछ उभरी थी !

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