जिस्म से जान तक

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आप सभी पाठकों को प्रेमशीर्ष का प्रेम भरा नमस्कार !

सबसे पहले मैं प्रेमगुरु का दिल से आभार व्यक्त करता हूँ जिन्होंने मुझे अपने दिल में जगह दी और मेरी कहानी को सम्पादित किया। मैं जमशेदपुर शहर से हूँ और आप सबने मेरी पहली कहानी जमशेदपुर की गर्मी पढ़ी होगी। कहानी के बाद आप सभी के ढेर सारे प्यार भरे मेल मिले जिनके लिए आप सभी का दिल से आभार व्यक्त करता हूँ।

ज्यादा वक़्त लेने के लिए क्षमा चाहता हूँ पर अपने वादे के अनुसार मैं आगे की कहानी लेकर हाजिर हूँ लेकिन इस कहानी में मैंने गंदे शब्दों का प्रयोग नहीं किया है क्यूंकि यह मेरे सच्चे प्यार की कहानी है, इसमें प्यार है, मिलन है और विरह-वेदना भी है इसलिए इसे भावनात्मक रूप से पढ़ें और दिल से महसूस करें।

कभी कभी जिंदगी अचानक इतनी मेहरबान हो जाती है कि एक एक पल खुशियों से भर देती है और कभी कभी इतनी नाराज़ हो जाती है कि गम से दामन भर देती है। पिछले दो वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है, प्यार की सुखद शुरुआत के बाद अंतहीन दर्द मेरा नसीब बन गया, प्यार और सेक्स दो अलग अलग विषय हैं और दोनों की अलग महत्ता है। मैंने जो कहानी में लिखा था वो सिर्फ सेक्स पर केन्द्रित था, पर प्यार की शुरुआत थी। जब प्यार गहरा हो जाता है तो सेक्स शब्द अपनी परिभाषा खो देता है और वो बस प्रेम की पावन अनुभूति बन जाता है, यह दो शरीरों का मिलन नहीं अपितु दो आत्माओं का मिलन होता है।

एक दूसरे को जकड़े हुए रात को कब नींद आ गई, पता नहीं चला। सुबह 4.30 बजे मोबाईल के अलार्म ने उठाया, 5 बजे मुझे मेरे परिवार के बाकी चार सदस्यों को स्टेशन छोड़ना था। वो लोग दो दिन के लिए कोलकाता जा रहे थे। हांलाकि मेरे लिए यह अच्छी बात थी पर एक समस्या भी थी।

मेरी माँ ने मेरे पड़ोस वाली एक भाभी जो कि उम्र में मुझसे 8-9 साल बड़ी हैं, उन्हें रात को कोमल के साथ सोने के लिए कह दिया था, पर पूरा दिन तो हमारा था। मैंने कोमल की तरफ देखा, सुबह की ताजगी में वो और भी खूबसूरत लग रही थी। मैंने उसके होठों को चूम लिया। फिर मैंने कोमल को छत से नीचे जा कर कमरे में सोने के लिए कहा और मैं भी नीचे चला आया।

लगभग 6 बजे मैं स्टेशन से वापस लौटा तो देखा कि कोमल अभी भी सो रही थी, मैंने उसे उठाया नहीं और धीरे से उसके बगल में आकर लेट गया और उसे निहारने लगा।

मैं बीती रात की सुखद अनुभूति बारे में सोचने लगा, सहसा लगा कि यह सपना है, अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हो पा रहा था मुझे ! एक अंतहीन सी लगने वाली प्यास अमृत से तृप्त हुई थी जिसे मैं हमेशा से पसंद करता था पर उसे जताने से डरता था वो आज मेरी हो चुकी है, अपना सब कुछ अर्पण कर चुकी है, फिर कब नींद आ गई पता भी न चला।

सुबह देर से जब नींद खुली तो देखा कोमल बिस्तर पर नहीं थी। आँखें बेसब्री से कोमल को खोज रही थीं, बाहर मौसम का मिजाज कुछ नर्म था, शायद मानसून की पहली बारिश का आगाज़ था और हमारे प्यार का भी !

मैं कोमल को आवाज देने वाला ही था कि दरवाजे पर आहट हुई, स्वतः ही नजरें दरवाजे की तरफ गयीं और फिर जो नजर आया वो शब्दों बयां नहीं किया जा सकता, तौलिये में लिपटी हुई एक खूबसूरत परी ! कोमल अभी अभी नहा कर आ रही थी।

गुलाबी तौलिये में लिपटा गुलाबी संगमरमर सा बदन, गीली और उलझी लटें ! बदन पर मोती सरीखी पानी की बूंदें ! मदहोश करने वाला मंजर था !

मैं बस एकटक उसे देख रहा था, वो मुस्कुराते हुए मेरे करीब आई और झुककर अपना चेहरा मेरे चेहरे के पास ले आई।उसके उलझे बालों से कुछ शीतल बूदें मेरे चेहरे पर बिखर गईं ! बहुत अद्भुत एहसास था !

सुहाना मौसम, नींद से जागना और ऐसा रोमान्टिक दृश्य, यही लग रहा था कि बस ये पल यूँ ही ठहर जाएँ !

मुझे एक ग़ज़ल याद आ गई जिसका एक-एक अंश अभी ऐसा सच लग रहा था जैसे यह हमारे इसी मिलन पे लिखा गया हो !

‘किसने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी,

झूम के आई घटा, टूट के बरसा पानी !’

मैंने लेटे लेटे अपना हाथ उसकी कमर पर रखा और उसे थोड़ा और करीब झुका लिया। हमारे होठों के बीच बहुत कम का फ़ासला था, हम दोनों एक दूसरे को एकटक निहार रहे थे !

‘टकटकी बांधे वो फिरते हैं, मैं इस फिक्र में हूँ,

कहीं खाने लगे चक्कर न यह गहरा पानी !’

फिर होठों का एक दूसरे से स्पर्श हुआ, मैंने उसके निचले होठों को मुँह में ले लिया और अमृत पान करने लगा, वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी, हम लगातार तीन चार मिनट तक ऐसे ही रहे !

‘कोई मतवाली घटा थी, के जवानी की उमंग,

जी बहा ले गया बरसात का पहला पानी !’

चुम्बन के दो दौर चलने के बाद कोमल वापस सीधी खड़ी हुई और मेरी आँखों में देखते हुए बड़े ही प्यार से कहा- प्रेम, मैं तुम्हारे प्रेम में दीवानी हुई जा रही हूँ, I am really going mad in your love..!!

‘बात करने में वो उन आँखों से अमृत टपका,

आरजू देखते ही मुँह में भर आया पानी !’

मैं उठ कर बैठा ओर उसे खींच कर सीने से लगा लिया, पूरी ताकत से हमने एक दूसरे को जकड़ लिया, दोनों की सांसें तेज हो गई, मैं लेट गया और वह मेरे ऊपर थी, मैंने उसके होठों को चूसना शुरू किया, एक हाथ से उसकी पीठ सहलाता रहा और दूसरे हाथ से उसकी उलझी भीगी जुल्फों को !

कोमल मेरा पूरा साथ दे रही थी, उसकी सांसें और तेज हो गईं, मैं पहले से सिर्फ निकर में ही था। उसने अपना चेहरा मेरे सीने में छुपा लिया और मैं उसके गालों पर और कंधे पर चुम्बन देने लगा।अब दोनों के लिए नियंत्रण रखना मुश्किल था, मैंने अपने हाथों से उसका तौलिया सरका दिया।

कोमल ने शरमा कर अपनी आँखें बंद कर ली और मुझसे लिपटी रही। मैंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा, गोरी मखमली पीठ के स्पर्श का एहसास अद्भुत था, मेरे हाथ जैसे ही उसके नितम्ब तक पहुँचे वह कसमसाने लगी।

मैंने हाथ ऊपर खींच लिए और उसकी उसकी पीठ के किनारे पर से उसके स्तन तक सहलाने लगा, उसके स्तन मेरे सीने पर दबे हुए थे इसलिए बगल से उसके स्तन अर्ध गोलाकार से उभर गए थे जिसे सहलाने में बहुत मजा आ रहा था, बारी बारी से दोनों स्तनों को मैंने सहलाया।

फिर एक झटके मैं मैंने उसे पकड़े हुए ऐसे करवट बदली कि वो मेरे नीचे आ गई और मैं उसके ऊपर !

उसकी सांसें बहुत तेज हो चलीं थी और चेहरा शर्म से एकदम लाल ! गुलाब की पंखुड़ियों से उसके होंठ इस कदर रक्तिम हो गए थे कि लगता था कि छू लो तो खून छलक आये !

मैंने एक हाथ उसके सर के नीचे लगाया और उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया। एक लम्बे चुम्बन के बाद मैंने अपनी अवस्था बदली और बगल में करवट लेट गया, मैं उसकी गर्दन पर और गालों पर चुम्बन कर रहा था और मेरे हाथ उसके स्तनों को सहला सहे थे। उसके स्तन बहुत नर्म थे, बीच बीच में मैं अपनी उँगलियों को उसके स्तनों की परिधि में घुमा रहा था जिससे उसकी उत्तेजना और बढ़ रही थी। फिर मैं उसके चुचूकों के चारों तरफ अँगुलियों को घुमाने लगा और फिर जैसे ही उसके स्तनाग्र को चुटकी में पकड़ कर हल्का सा दबाया, कोमल सिहर सी गई और उसने मेरा हाथ ही पकड़ लिया। मैंने उससे हाथ छुड़ाया और थोड़ा नीचे सरक कर उसका स्तनपान करने लगा।

वह अपने हाथों से मेरा सर सहलाने लगी, मैं बारी बारी से उसके दोनों स्तनों को जोर जोर से चूसने लगा, उसके दोनों चुचूक कड़क हो गए थे जिन पर जीभ फिराने पर बहुत मजा आ रहा था। फिर मैं अपने दांयें हाथ को उसके पेट पर और उसकी नाभि के आस पास फिराने लगा। फिर धीरे धीरे मेरे हाथ उसकी योनि की तरफ बढ़ने लगे।

जैसे ही मेरे हाथ उसकी कमर से नीचे गए, उसकी सिहरन बढ़ने लगी। उसने अपनी योनि के बाल साफ़ किये हुए थे। फिर मेरे हाथ उसकी योनि के पृष्ठों को सहलाने लगे, उसकी योनि बहुत ज्यादा गीली हो चुकी थी।

मैंने अपने हाथ की बीच की उंगली से उसके योनि के पृष्ठों को अलग किया, कोमल के लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल था, उसने फिर से अपने हाथ से मेरा हाथ पकड़ किया और अपनी योनि पर दबाने लगी। मैं उठ कर उसके जांघों के बीच बैठ गया और अपने होंठ उसकी योनि के होठों से मिला लिए।

गीली योनि का नमकीन मादक स्वाद मुझे पागल बना रहा था। उत्तेजना से कोमल अपने हाथों में तकिया लेकर मसलने लगी। मैं जोर जोर से उसकी योनि को चूसने लगा। रह रह कर कोमल अपनी कमर को ऊपर उठा लेती थी जिससे मेरे मुंह और उसकी योनि के बीच दबाव बढ़ जाता। मैंने अपनी जीभ उसकी योनि के बीच डाल दी। कोमल का हाल बुरा था, वह उठी और मेरी दोनों बाँहों को पकड़ कर खींचा और मुझे बगल में पीठ के बल लिटा दिया।

फिर मेरे पैरों की तरफ गई और खींच कर मेरा निकर निकाल दिया। मेरा लिंग इतना कड़क हो गया था कि उसमें अब दर्द सा हो रहा था। निकर से आजाद होने के बाद लिंग लम्बवत खड़ा था। कोमल मेरे पैरों के बीच आई और मेरे लिंग को हाथ में लेकर चूसने लगी। वो पूरा लिंग मुंह में लेना चाह रही थी।

पर मुझे ऐसा लगा कि अगर मैंने और ज्यादा देर की तो कोमल के मुह में ही झड़ जाऊँगा और सम्भोग का मजा अभी नहीं मिल पायेगा। इसलिए मैंने कोमल का सिर पकड़ा और उसे अलग कर दिया। कोमल शायद मेरी भावना समझ गई और वह उठ कर थोड़ा ऊपर आ गई। उसके दोनों घुटने मेरी कमर के अगल बगल थे और चेहरा मेरी तरफ।

कोमल ने मेरे लिंग को हाथ से पकड़ा और अपनी योनि के मुख पर लगा लिया। उसने अपने दूसरे हाथ से अपनी योनि के पृष्ठों को अलग किया और मेरे लिंग के सुपारे को उनके बीच रख कर अपना दबाव बढ़ाया। उसकी योनि के ज्यादा गीला होने की वजह से सुपारा अन्दर चला गया, पर योनि के कसाव से महसूस हुआ उसकी योनि में सूजन थी। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा लिंग आग के बीच घुस गया हो।

कोमल की सिसकारियाँ बता रही थी कि उसे दर्द हो रहा था, पर मीठा दर्द !

मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी कमर को थाम लिया और नीचे की ओर दबाने लगा।

मैं अधीर हो रहा था कि कब मेरा लिंग पूरा का पूरा अन्दर चला जाये। मैं अपनी कमर को भी ऊपर के तरफ उठाने लगा पर कोमल को दर्द हो रहा था इसलिए वो अपनी कमर को नीचे आने से रोक रही थी।

लिंग आधा अन्दर घुस चुका था। फिर मैंने अपना एक हाथ उसकी कमर की परिधि पर गोल घुमा कर जकड़ा और दबाव बढ़ा कर पूरा लिंग अन्दर भेज दिया।

कोमल की आँखें बंद थीं। वह धीरे धीरे अपनी कमर को ऊपर नीचे करने लगी और हम दोनों मदहोश होते चले गए। मुश्किल से दो मिनट बीते होंगे और मुझे लगा कि मैं झड़ जाऊँगा तो मैंने कोमल की कमर पकड़ कर उसे रोक लिया।

अगले दो मिनट तक मैं धीरे धीरे लिंग उसकी योनि में अन्दर बाहर करता रहा। मुझे जब भी लगता कि मेरा वीर्य निकल जायेगा, मैं रुक जाता था।

पर अब मुझे लगने लगा था कि अब रोकना मुश्किल हो रहा है इसलिए मैंने आसन बदला, कोमल को पीठ के बल लिटा दिया और मैं उसके पैरों के बीच आ गया, लिंग को योनि पर रखा और एक से दो झटके में ही पूरा अन्दर उतार दिया और झटके देने शुरू कर दिये। मेरी रफ़्तार बढ़ती चली गई।

कोमल आँखें बंद कर सिसकारियाँ ले रही थी। और फिर मैंने उसे और जोर से जकड़ लिया और कुछ झटकों के बाद निढाल हो गया।अद्भुत तृप्ति का एहसास हो रहा था।

थोड़ी देर ऐसे ही लेटे रहने के बाद हम उठे, कोमल नाश्ता बनाने चली गई और मैं फ्रेश होने चला गया।

11 बजे से कोमल की परीक्षा थी। मैं उसे लेकर उसके एक्जाम सेंटर गया और उसके गाल पे किस्सी देकर उसे परीक्षा के लिए ऑल दि बेस्ट कहा। वो अन्दर चली गई और मैं उधर ही उसके लौटने का इंतजार करने लगा।

घर पर हमारे पास ज्यादा समय बचे इसलिए मैंने खाने की कुछ चीजें पैक करवा लीं।

दोपहर 3 बजे थे और मैं कॉलेज के गेट पर कोमल का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। पहली बार ऐसा हुआ कि मुझे 3 घंटे बहुत ज्यादा महसूस हो रहे थे। ऐसा लग रहा था मैंने लम्बे समय से उसे देखा नहीं है। हालाँकि मुझे मन में बहुत डर भी लग रहा था कि कहीं उसके पेपर ख़राब न हुए हों क्यूंकि मैंने तो उसे घर पर किताब खोलने तक का मौका नहीं दिया था।

5 मिनट के इंतजार के बाद मुझे दूर से कोमल आती हुई दिखाई दी। नजरें मिली तो वो मुस्कुराने लगी, मैं देखता रहा।

फिर मेरे करीब आकर कोमल ने मेरा हाथ थामा और बहुत खुश होकर मुझे बताया कि उसकी परीक्षा बहुत अच्छी हुई है।

फ़िर हम लोग घर की तरफ चल पड़े। घर आते आते लगभग 4 बज गए।

हमने साथ में खाना खाया फिर टीवी पर गाना देखने लगे। बाहर घने बादल छाये हुए थे और ऐसा लग रहा था कि कभी भी बारिश आ सकती है। मैं अपने कमरे में आकर कंप्यूटर पर कुछ काम करने लगा।

कोई 6 बजे का वक़्त रहा होगा, मैं अपने काम में व्यस्त था कि तभी चुपके से वो मेरे कमरे में आई। उसके आने का मुझे आभास भी नहीं हुआ। कोमल आकर मेरे पीछे से मेरे गले में बाहें डाल कर मुझसे कहने लगी- बाहर मौसम बहुत अच्छा है, चलो न बाहर।

फिर हम लोग दोनों छत पर चले आये।

दोस्तो, उस दिन छत पर मानसून की तेज बारिश में हमने जो अनुभव लिया वो शायद हम लोग जिंदगी भर नहीं भूल सकते। अगली कहानी में इसके बारे में लिखूंगा। कहानी पर अपनी प्रतिक्रिया भेजें। आपके मेल का इंतजार रहेगा।

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