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सुबह साढ़े नौ बजे किसी के दरवाजे की घंटी बजाए जाने पर नींद खुली तो मैंने पाया कि मेरा पूरा बदन दर्द कर रहा था। मैंने अपने शरीर का जायजा लिया। मैं बिस्तर पर आखरी चुदाई के वक़्त जैसे लेटी थी, अभी तक उसी तरह ही लेटी हुई थी। इंग्लिश के X अक्षर की तरह।
सन्नी शायद सुबह उठकर जा चुका था। आनन्द ने उठकर दरवाजा खोला।
तेज़ी से शीतल अंदर आई। बिस्तर पर मुझ पर नज़र पड़ते ही चीख उठी- आनन्द, रेखा की क्या हालत बनाई है तुमने? तुम पूरे राक्षस हो। बेचारी के फूल से बदन को कैसे बुरी तरह कुचल डाला है?
वो बिस्तर पर बैठ कर मेरे चेहरे पर और बालों पर हाथ फेरने लगी। ‘टेस्टी माल है!’ आनन्द ने होंठों पर जीभ फिराते हुए बेहुदगी से कहा।
शीतल मुझे सहारा देकर बाथरूम में ले गई। बाथरूम में मैं उससे लिपट कर रो पड़ी। उसने मुझे नहलाया। मैं नहा कर काफ़ी तरोताजा महसूस कर रही थी। कपड़े बाहर बिस्तर पर ही पड़े थे। ब्रा और पेंटी के तो चीथड़े हो चुके थे। सलवार का भी नाड़ा उन्होंने तोड़ दिया था। हम उसी हालत में कमरे में आए।
अब इतना सब होने के बाद पूरी नंगी हालत में उसके सामने आने में कोई शर्म महसूस नहीं हो रही थी।
वो बिस्तर के सिरहाने पर बैठ कर मेरे बदन को बड़ी ही कामुक नज़रों से देख रहा था। जैसे ही मैंने अपने कपड़ों की तरफ हाथ बढ़ाया, उसने मेरे कपड़ों को खींच लिया। हम दोनों की नज़र उसकी तरफ उठ गई।
‘नहीं, अभी नहीं!’ उसने मुस्कुराते हुए कहा- अभी जाने से पहले एक बार और! ‘नहींई ईईई!’ मेरे मुँह से उसकी बात सुनते ही निकल गया।
‘अब क्या जान लोगे इसकी? रात भर तो तुमने इसे मसला है। अब तो छोड़ दो इसे!’ शीतल ने भी उसे समझाने की कोशिश की। मगर उसके मुँह में तो मेरे खून का स्वाद चढ़ चुका था। ‘नहीं, इतनी जल्दी भी क्या है। तू भी तो देख तेरी सहेली को चुदते हुए!’ आनन्द एक भद्दी सी हँसी हंसा।पता नहीं शीतल कैसे उसके चक्कर में पड़ गई थी।
अपने ढीले पड़े लंड की ओर इशारा करके शीतल से कहा- चल इसे मुँह में लेकर खड़ा कर!’ शीतल ने उसे खा जाने वाली नज़रों से देखा लेकिन वो बेहूदे तरह से हंसता रहा। उसने शीतल को खींच कर पास पड़ी एक कुर्सी पर बिठा दिया और अपना लंड चूसने को कहा। शीतल उसके ढीले लंड को कुछ देर तक ऐसे ही हाथ से सहलाती रही, फिर उसे मुँह में ले लिया।
आनन्द ने शीतल की कमीज़ और ब्रा उतार दी। जिंदगी में पहली बार हम दोनों सहेलियाँ एक दूसरे के सामने नंगी हुई थी। शीतल का बदन भी काफ़ी खूबसूरत था। बड़े बड़े उभार, पतली कमर किसी भी लड़के को दीवाना बनाने के लिए काफ़ी था।
आनन्द मेरे सामने ही उसके उरोजों को सहलाने लगा, एक हाथ से शीतल का सिर पकड़ रखा था दूसरे हाथों से उसके निपल्स मसल रहा था, चेहरे से लग रहा था कि शीतल गर्म होने लगी है। मैं बिस्तर पर बैठ कर उन दोनों की रास लीला देख रही थी और अपने को उसमे शामिल किए जाने का इंतज़ार कर रही थी।
मैंने अपने बदन पर नज़र दौड़ाई, मेरे दोनों चुचों पर उनके दाँतों के निशान थे, मेरी चूत सूजी हुई थी, जांघों पर भी दाँतों के निशान थे, दोनों चुचूक भी सूजे हुए थे।शीतल ने कोई पेन किल्लर खिलाया था बाथरूम में, उसके कारण दर्द कुछ कम हुआ था। दर्द कुछ कम होते ही मैं उन दोनों का खेल देख देख कर कुछ गर्म होने लगी।
आनन्द का शिश्न खड़ा होने लगा। आनन्द लगातार शीतल के मुँह को चोद रहा था, उसे देख कर लगता ही नहीं था कि उसने रात भर मेरी चूत में वीर्य डाला है। मुझे तो पैरों को सिकोड़ कर बैठने में भी तकलीफ़ हो रही थी और वो था की सांड की तरह मेरी दशा और भी बुरी करने के लिए तैयार था। पता नहीं कहाँ से इतनी गर्मी थी उसके अंदर।
उसका लंड कुछ ही देर में एकदम तन कर खड़ा हो गया। अब उसने शीतल को खड़ा करके उसे पूरी तरह नंगी कर दिया। शीतल को वापस कुर्सी पर बिठा कर उसकी चूत में अपनी ऊँगली डाल दी। ऊँगली जब बाहर निकली तो वो शीतल के रस से गीली हो रही थी। आनन्द ने उस ऊँगली को मेरे होंठों से छुआ- ले चख कर देख! कैसी मस्त चीज़ है तेरी फ्रेंड!
मैं मुँह नहीं खोल रही थी मगर उसने ज़बरदस्ती मेरे मुँह में ऊँगली घुसा दी। अजीब सा लगा शीतल के रस को चखना।
‘पूरी तरह मस्त हो गई है तेरी सहेली!’ उसने मुझ से कहा। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
उसने अब अपना लंड शीतल के मुँह से निकाल लिया, उसका बड़ा लंड शीतल के थूक से चमक रहा था। फिर मुझे उठा कर उसने शीतल पर झुका दिया, कुछ इस तरह कि मेरे दोनों हाथ शीतल के कंधों पर थे, मैं उसके कंधों का सहारा लिए झुकी हुई थी, मेरे बूब्स शीतल के चेहरे के सामने झूल रहे थे। आनन्द ने मेरी टाँगों को फैलाया और मेरी चूत में अपना लौड़ा डाल दिया।
लंड जैसे जैसे भीतर जा रहा था ऐसा लग रहा था मानो कोई मेरी चूत की दीवारों पर रेगमार घिस रहा हो। मैं दर्द से ‘आ आआ आआह ह!’ कर उठी।
पता नहीं कितनी देर और करेगा? अब तो मुझ से रहा नहीं जा रहा था। वो मुझे पीछे से धक्के लगाने लगा तो मेरे कबूतर झूल झूल कर शीतल के चेहरे से टकराने लगे। शीतल भी मस्ती में आ गई थी और मस्ती में कसमसा रही थी, वो पहली बार मुझे इस हालत में देख रही थी। हम दोनों बहुत पक्की सहेलियाँ ज़रूर थी मगर लेज़्बीयन यानि समलिंगी नहीं थी।
आनन्द ने मेरा एक निप्पल अपनी ऊँगलियों में पकड़ कर खींचा। मैंने दर्द से बचने के लिए अपने बदन को आगे की ओर झुका दिया। उसने मेरे निप्पल को शीतल के होंठों से छुआया- ले चूस…चूस मेरी रांड़ के बोबे को!’ शीतल ने अपने होंठ खोल कर मेरे निप्पल को अपने होंठों के बीच दबा लिया। आनन्द मेरे बूब को ज़ोर ज़ोर से मसलने लगा। कुछ इस तरह मानो वो उनसे दूध निकाल रहा हो।
मेरी चूत में भी पानी रिसने लगा, मैं ‘आ आआ आअहह हह ऊऊऊओह ह उूउउइई ईई माआआअ ऊओफफ्फ़’ जैसी आवाज़ें निकाल रही थी।
आनन्द कभी गान्ड में कभी चूत में लंड पेल रहा था, मेरी गान्ड की धज्जिया उड़ रही थी और चूत भोंसड़ा बन रही थी, कमरे में सकिंग और फक्किंग की ‘फच फच’ की आवाज़ गूँज रही थी।
वो बीच बीच में शीतल के बूब्स को मसल देता.. उसने मेरे बालों को अपनी मुट्ठी में भर लिए और अपनी तरफ खींचने लगा जिसके कारण मेरा चेहरा छत की ओर उठ गया। कोई पंद्रह मिनट तक मुझे इसी तरह चोदने के बाद उसने अपना लंड बाहर निकाला और हमें खींच कर बिस्तर पर ले गया। बिस्तर पर घुटनों के बल हम दोनों को पास पास चौपाया बना दिया। फिर वो कुछ देर शीतल को चोदता कुछ देर मुझे!
हम दोनों की गान्ड पर, पीठ पर थप्पड़ मारता, काटता, कितने दर्द दे रहा था और चोद रहा था। हम दोनों कुतिया की तरह उससे चुद रही थी, मुझे दर्द हो रहा था लेकिन आनन्द से चुदने में अब मज़ा भी आ रहा था।
काफ़ी देर तक इसी तरह चुदाई चलती रही। मैं और शीतल दोनों ही झड़ चुकी थी। उसके बाद भी वो हमें चोदता रहा।
काफ़ी देर बाद जब उसके पानी का निकलने का समय हुआ तो उसने हम दोनों को बिस्तर पर बिठा कर अपने अपने मुँह खोल कर उसके पानी को मुँह में लेने को कहा, ढेर सारा पानी मेरे और शीतल के मुँह में भर दिया। हम दोनों के मुँह खुले हुए थे, उनमें वीर्य भरा हुआ था और मुँह से छलक कर हमारे बूब्स पर और बदन पर गिर रहा था।
वो हमें इसी हालत में छोड़ कर अपने कपड़े पहन कर कमरे से निकल गया। कई घंटों तक शीतल मेरी तीमारदारी करती रही, जब तक मैं चल सकने लायक हो गई। फिर हम किसी तरह घर लौट आए।
कहानी जारी रहेगी।
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