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मेरा नाम जूही परमार है, मैं मुरैना की रहने वाली हूँ, पढ़ने में होशियार और होनहार लड़की हूँ। मैं एक छोटे से कस्बे से ताल्लुक रखती हूँ इसलिए एक बड़े शहर इंदौर में पढ़ने आई हूँ। इस शहर में मेरा कोई जान-पहचान वाला नहीं है तो मेरे पापा ने मुझे हॉस्टल में रुकने की आज्ञा दे दी थी।
बड़े शहर के बड़े कॉलेज में मैं पहली बार आई थी, तो मैं काफी डरी हुई थी। हॉस्टल के बारे में सभी लोग काफी बातें किया करते थे लेकिन इन सबको नज़रन्दाज करते हुए मेरे पापा ने मुझे अकेले हॉस्टल में भेजा और बोला- मुझे अपनी बेटी पर पूरा विश्वास है।
ख़ैर, सब बातें होते हुए भी मैं हॉस्टल आ गई और मुझे एक और लड़की के साथ हॉस्टल में कमरा मिल गया।
वो लड़की शहर की ही थी और माँ-बाप की टोका-टाकी से तंग होकर हॉस्टल आई थी। वो एक खुले और आजाद विचारों वाली लड़की थी।
शुरू में तो हम दोनों की नहीं बनी क्योंकि हम दोनों के विचार नहीं मिलते थे लेकिन हम दोनों ने धीरे-धीरे एक-दूसरे को समझना शुरू किया तो हम दोनों अच्छी सहेलियाँ बन गई।
उस समय मेरी उम्र 19 साल थी और मेरा बदन काफी कसा हुआ और मस्त था। कस्बों में खान-पान शहरों से अच्छा होता है और आबो-हवा भी शहरों से साफ़ होती है तो मेरा बदन काफी गठीला और स्वस्थ था। मेरी रूममेट भी कम सेक्सी नहीं थी। वो बहुत ही खूबसूरत और कसे हुए बदन की लड़की थी और स्वछंद विचारों के कारण हमेशा कॉलेज में उसके चर्चे होते थे, उसके पीछे काफी लड़कों की काफी लम्बी कतार होती थी।
लेकिन वो केवल कुछ ही लड़कों से पटी थी और उनके भी दिन मुक़र्रर थे, एक लड़का एक हफ्ते में एक दिन और एक बार।
मैं हमेशा उसको बोलती थी- तुम थक नहीं जाती?
वो बोलती थी- डार्लिंग, इसी का नाम तो जिन्दगी है, और इसी में मज़ा है।
मैं हमेशा उसकी बातों को मजाक में उड़ा देती थी, मुझे नहीं मालूम था कि एक दिन मैं भी इसका शिकार बन जाऊँगी।
मेरी रूममेट का एक प्रेमी था सुनील। वो कॉलेज का बोक्सिंग चैम्प था, उसका शरीर बहुत ही तगड़ा और कसा हुआ था। जब वो कमरे में आता था तो उसे देख कर मुझे कुछ-कुछ होने लगता था, सुनील भी इस बात को जानता था।
मेरी दोस्त उससे बहुत खुश थी क्योंकि वो उसको सबसे ज्यादा मज़ा देता था और मेरी दोस्त यह बात मुझे कई बार बोल चुकी थी।
बार-बार सुनने के कारण मुझे भी उसमें मज़ा आने लगा था।
एक दिन सुनील मेरे कमरे में आया और आकर लेट गया।
मैंने उसको बोला कि मेरी रूममेट तो नहीं है।
उसने कहा- जानता हूँ, आज मैं सिर्फ तुमसे मिलने आया हूँ।
मेरा दिल धक-धक करने लगा और मैं ख़ुशी से पागल हो रही थी।
मैंने थोड़ा अनजान बनते हुए पूछा- क्यों, आज मैं क्यों?
सुनील ने कहा- जल्दी मेरे साथ चलो, पता लग जाएगा।
मैंने कहा- अच्छा, मैं तैयार हो कर आती हूँ।
उसने बोला- ठीक है। ढीला पजामा पहनना।
मुझे सब कुछ समझ आ गया और मैं सुनील के साथ चली गई। मैंने शहर के पुराने किले के बारे में बहुत सुना था, पर कभी गई नहीं थी।
सुनील मुझे वहीं लेकर गया और अपनी मोटरसाइकिल पार्क के बाहर लगा कर मुझे अन्दर ले गया।
वहाँ पर कुछ लोगों को देख कर मुझे डर लगने लगा तो सुनील ने बोला- डरो मत, सब ठीक है।
वो उन लोगों के पास गया और हँसते-हँसते बात करने लगा। उसने उनको कुछ पैसे दिये और उन्होंने सुनील को इशारा करके कोई जगह बताई।
सुनील ने मुझे पीछे आने को कहा। मैं भी सुनील के पीछे चल पड़ी।
जैसे-जैसे मैं अन्दर जा रही थी, मुझे झाड़ियों में से लड़के-लड़कियों की सिसकारियों की आवाज़ें आ रही थी।
मैंने सुनील से आवाजों के बारे पूछा, तो वो सिर्फ मुस्कुरा दिया।
एक झाड़ी में ध्यान से देखा तो मैं हैरान रह गई, खुले-आम चुदाई चल रही थी, चारों तरफ लड़के-लड़कियाँ चुदाई में लगे थे, किसी को किसी की परवाह नहीं थी, सब मज़े लूट रहे थे।
सुनील ने पूछा- तुम्हें डर तो नहीं लग रहा? यह सब तुम्हारे साथ भी होने वाला है।
मैंने कहा- नहीं !
लेकिन मेरा दिल काँप रहा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना पर पढ़ रहे हैं।
एक ठीक सी जगह जाकर सुनील रुक गया और थोड़ी से जगह साफ़ करके बैठ गया। मैं भी चुपचाप उसके बराबर में आकर बैठ गई।
सुनील बिना देर करता हुआ मेरे ऊपर आ गया और अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिये।
मेरे साथ यह सब पहली बार हो रहा था। उसके होंठ बड़े गर्म थे।
धीरे-धीरे मैं पूरी लेट गई और सुनील मेरे ऊपर आ गया। उसका लंड खड़ा हो चुका था और मेरी चूत को छूने की कोशिश कर रहा था।
सुनील मुझे पागलों की तरह चूमे जा रहा था कभी मेरे गालों पर, होंठों पर, गर्दन पर।
मुझे भी मज़ा आना शुरू हो गया और मैं भी उसके होंठों को चूसकर उसका साथ देने लगी।
अब उसने अपने हाथ मेरे शरीर पर चलाने शुरू कर दिये, मुझे गुदगुदी के साथ सिहरन होने लगी और मेरी चूत में खुजली होने लगी।
सुनील ने फटाफट अपने कपड़े उतार दिये और मेरे भी।
अब हम दोनों एकदम नंगे थे और एक-दूसरे के शरीर की तारीफ़ कर रहे थे।
उसने मुझे पेड़ के सहारे से बिठाया और अपने आप को मेरे ऊपर गिरा लिया।
अब उसके हाथ मेरे चूचों को दबा रहे थे और उसका मुँह मेरे खड़े हुए निप्पल का रस चूस रहा था। वो इन सब में इतना माहिर था कि मेरी चूत से पानी आने लगा था, मेरे होठ पानी के लिए सूख रहे थे।
मैंने सुनील से पानी माँगा तो उसने अपना हथियार बाहर निकाला, सच में क्या लंड था बड़ा-मोटा सा !
उसने खड़े होकर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया और मेरे मुँह को चोदने लगा।
उसका लंड मेरे मुँह में फस गया और मैं उसे किसी लॉलीपोप की तरह चूस रही थी।
अचानक, मुझे अपने गले में कुछ गर्म-गर्म सा महसूस हुआ, सुनील हँसते हुए बोला- तुम्हें प्यास लगी थी न, इसलिए पानी (सुसु) पिला दिया।
ख़ैर, मुझे अब मज़ा आने लगा था तो मैंने सुनील को कुछ नहीं बोला।
अब सुनील ने अपने होंठों मेरी चूत पर रख दिया और बच्चों की तरह चाटने लगा।
मेरे मुह से सी-सी-अह-ओह करके आवाज़ें निकलने लगी और मैं बेचैनी से बिलबिला उठी।
सुनील कुत्तों की तरह मेरी चूत को चाट रहा था- आआअ…….ऊऊऊ।
तभी मुझे अपने अंदर से कुछ आता हुआ महसूस हुआ और धार के साथ मेरा पेशाब सुनील के मुंह में निकल गया।
सुनील बहुत हिम्मती था और मेरा पूरा का पूरा पेशाब पी गया और बेशरमों की तरह बोला- मज़ा आ गया।
अब मुझसे और नहीं सहा जा रहा था, मैंने सुनील को बोला- अब बस मेरी चूत को अपने प्यारे लंड के दर्शन करवा दो।
फिर सुनील ने मुझे इस तरह से बिठाया कि मेरी चूत सामने आ जाये। उस भी मालूम था कि मेरी चूत अभी जवान नहीं हुई है।
उसने अपने बहुत सारे थूक से मेरी चूत और लंड को गीला किया और अपना लंड मेरी चूत पर रख कर जोर धक्का मारा।
मैंने सुना था कि पहली चुदाई में लंड कभी भी पहली बार में अन्दर नहीं जाता।
मुझे भी यही लग रहा था लेकिन सुनील ने ये सब ध्यान में ही रखकर मुझे बिठाया था, उसके एक धक्के में ही उसका लंड मेरी चूत को फाड़ता हुआ पूरा अन्दर घुस गया। ऐसा लगा जैसे पूरे तन बदन में आग लग गई हो, मुझसे दर्द सहा नहीं जा रहा था अब ज़रा सा भी।
मैं तो दर्द के मारे जोर से चिल्ला उठी- आआ आ… मर गई… ममम्म…
लेकिन सुनील तो मुझे पागल सांड की तरह लगातार चोदे जा रहा था।
वो जोर-जोर अपनी गांड को ऊपर नीचे कर रहा था और हर धक्के के साथ उसका लंड और अंदर घुसता जा रहा था!
यही कहानी लड़की की आवाज में सुनें.
क्या लंड था!
थोड़ी देर में मैं झड़ चुकी थी, मुझे आज इतना मज़ा आया कि मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती।
सुनील ने अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकाल लिया और हस्तमैथुन करने लगा और झड़ने के समय अपना लंड मेरे मुँह पर लाकर सारा वीर्य मेरे चेहरे पर गिरा दिया। उसके बाद सुनील अपना लंड हाथ से पकड़ कर मेरे मुँह पर गिरे हुए वीर्य को मेरे चेहरे पर मलने लगा। थोड़ी देर बाद उसने अपना लण्ड मेरे मुँह में डाला और जोर जोर से धक्के देने लगा। मुझसे ठीक से सांस लेते नहीं बन रहा था पर साथ ही साथ मज़ा भी बहुत आ रहा था।
अब सुनील तो सब कुछ करके कपड़े पहन कर खड़ा हो गया लेकिन मैं खड़ी भी नहीं हो पा रही थी, मुझे बहुत ज्यादा दर्द हो रहा था इसलिए मैंने सुनील को मेरी मदद करने को कहा। सुनील ने मेरे कहने पर कपड़े पहनने में मेरी मदद की और साथ ही साथ मुझे सहलाता भी रहा, इससे मुझे काफी राहत मिली और मुझे आराम से हॉस्टल छोड़ के गया।
इस सांड ने आज मेरी खूब सेवा की। आज मुझे यकीन हुआ कि सच में मर्द क्या होते हैं, असली मज़ा क्या होता है और असली सांड किसे कहते हैं। उस दिन उसने मुझे कई बार चोदा।
मैंने सोचा अगर रोज़ मुझे लंड का स्वाद मिले को कितना मज़ा आयेगा और यही सोचकर मैं खूब खुश थी।
शाम को जब मेरी दोस्त वापस आई तो मैंने उसे सब कुछ बताया तो वो खुश होते हुए बोली- अब मेरी दोस्त जवान हो गई।
यह तो बस एक शुरुआत भर थी, अभी तो कितने बड़े बड़े सांडों से मुझे मिलना था जिसका मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था।
दोस्तो, आपको मेरी पहली कहानी कैसी लगी, जरूर बताना, मुझे आपके मेल का इंतज़ार रहेगा।
मेरी मेल आईडी है
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