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शगन कुमार
मैंने चुपचाप अपने छेद को 3-4 बार ढीला करने का अभ्यास कर लिया।
“याद रखना… हम एक समय में छेद को एक-आध सेकंड के लिए ही ढीला कर सकते हैं… फिर वह अपने आप कस जायेगा… तुम करके देख लो…”
वह सच ही कह रहा था… मैं कितनी भी देर ज़ोर लगाऊं…छेद थोड़ी देर को ही ढीला होता फिर अपने आप तंग हो जाता। मुझे अपनी गांड की यह सीमित क्षमता समझ में आ गई।
“देखा?”
“हाँ !”
“तो हमारा तालमेल ठीक होना चाहिए… नहीं तो तुम्हें दर्द हो सकता है… तैयार हो?”
“हाँ !”
भोंपू ने प्यार से अपनी उंगली मेरी गाण्ड में डालने का प्रयास किया और थोड़ी कश्मकश के बाद उसकी पूरी उंगली अंदर चली गई। मुझे थोड़ा अटपटा लगा और कुछ तकलीफ़ भी हुई पर कोई खास दर्द नहीं हुआ।
“कैसा लग रहा है? दर्द हो रहा है?” उसने पूछा।
“नहीं… ठीक है…” मैंने कहा। मेरे जवाब से वह प्रोत्साहित हुआ और मेरे चूतड़ पर एक पुच्ची कर दी।
“अच्छा… एक बार और करेंगे… ठीक है?” और मेरे उत्तर के लिए रुके बिना उसने उंगली धीरे से बाहर निकाल ली और तेल लगाकर दोबारा अंदर डाल दी। इस बार हमारा तालमेल बेहतर था। मुझे कोई तकलीफ़ नहीं हुई बस थोड़ी असुविधा कह सकते हैं…।
भोंपू ने धीरे धीरे उंगली अंदर-बाहर की… ज़्यादा नहीं… करीब एक इंच।
“याद रखना… हर बार अंदर डालने के लिए तुम्हें ढील छोड़नी होगी… ऐसा नहीं है कि एक बार से काम चल जायेगा… समझी?”
“ठीक है… समझी ..”
भोंपू ने उंगली बाहर निकाल कर फिर से उंगली और छेद के अंदर बाहर तेल लगाया। पर इस बार बिना मुझे बताये उंगली अंदर डालने का प्रयास किया। वह शायद मेरी परीक्षा ले रहा था कि मैं समय पर ढील देती हूँ या नहीं। मैं चौकन्नी थी… सो आसानी से पास हो गई। उसने उंगली अंदर बाहर की और उसे छेद के अंदर घुमाकर भी देखा।
“कैसा लग रहा है?” उसने मेरी प्रतिक्रिया बूझी।
“अब बिलकुल ठीक है…” मैंने सजहता से कहा। मेरी गाण्ड उसकी उंगली की अभ्यस्त हो गई थी… कोई तकलीफ नहीं हो रही थी… बल्कि मुझे तो अच्छा भी लगने लगा था।
“शाबाश… अब दो उँगलियों से करेंगे…” उसने घोषणा की… और अपनी तर्जनी और बीच की उंगली पर तेल लगा लिया… मेरी गाण्ड को भी अच्छे से तेल लगा दिया। फिर पहले उसने एक उंगली अंदर डाली और बाद में दूसरी उंगली अंदर डालने लगा। मुझे थोड़ा दर्द हुआ और मैं आगे की ओर मचक गई…|
“तुम ढील नहीं छोड़ रही हो…” उसने कहा और मेरे पठ्ठों पर दो-तीन चपत जड़ दीं।
उसने दो-तीन बार कोशिश की और उसकी दूसरी उंगली भी अंदर चली गई। मुझे गाण्ड भरी-भरी लगने लगी। उसने अपनी उँगलियों गोल गोल घुमानी शुरू कीं। शायद वह मेरी गाण्ड को ढीला कर रहा था।
“तुम फिर से कस रही हो… अपने बदन को ढीला छोड़ो और चिंता मत करो…” उसने हिदायत दी।
मैंने अपने आप को ढीला छोड़ने का निश्चय किया और मज़े लूटने की ठान ली… फालतू में संकोच क्या करना।
“हाँ… ऐसे…” भोंपू ने मेरी सराहना करते हुए कहा। अब वह घुमा घुमा कर और अंदर-बाहर करके दो उँगलियों से मेरी गाण्ड मार रहा था… धीरे धीरे मुझे मज़ा आने लगा। वह दूसरे हाथ से मेरी चूत सहलाने लगा। मेरा बदन गरम हो रहा था।
उसने एक-दो बार दोनों उँगलियाँ बाहर निकाल कर वापस अंदर पेल दीं। बीच बीच में वह मेरे गालों, होटों और मम्मों को चूम रहा था। कुछ देर बाद भोंपू ने दोनों उँगलियाँ बाहर निकाल लीं। अब उसने पास रखे बेलन के एक मूठ को तेल लगा कर मेरी गाण्ड के छेद पर रख दिया और अपनी उँगलियों से मेरी चूत को गुदगुदाने लगा।
मैं उसके दबाव के लिए तैयार थी… जैसे ही उसने बेलन का मूठ अंदर दबाया मैंने गाण्ड ढीली की और मूठ थोड़ा अंदर चला गया। मूठ की शुरू की गोलाई उसकी दो उँगलियों से कम थी पर वह कहीं ज़्यादा सख्त और लंबा था… और उसकी गोलाई निरंतर बढ़ती हुई थी। उसने एक-दो बार मूठ थोड़ा अंदर बाहर किया और फिर धीरे धीरे गहराई बढ़ाता गया। मेरी गाण्ड धीरे धीरे खुल रही थी… बेलन का मूठ मेरी गाण्ड में ठुंसा जा रहा था। मुझे ताज्जुब हुआ कि मुझे कोई दर्द नहीं हो रहा था… बस एक गहरे दबाव का अहसास हो रहा था। भोंपू को जब तसल्ली हो गई कि मेरी गाण्ड उसके लंड के लिए तैयार है उसने बेलन को धीरे धीरे बाहर निकाल लिया और मेरे पीछे आ गया।
उसने मेरे सिर को हाथ रखकर नीचे दबा दिया जिससे मेरा सिर बिस्तर पर टिक गया। मेरे घुटनों को थोड़ा और खोल दिया और मेरी गाण्ड की ऊंचाई को अपने हिसाब से ठीक किया। मेरे ऊपरी बदन को नीचे की तरफ दबाकर मेरे स्तन और पेट को बिस्तर के नज़दीक कर दिया और गाण्ड का रुख जितना ऊपर हो सकता था, कर दिया। उसके लंड पर गोली का असर होने लगा था… उसका पप्पू कड़क हो गया था। उसका आकार देखकर मेरी जान मुंह को आ गई… वह तो बेलन के मूठ से कहीं ज़्यादा चौड़ा था।
मैं उठने लगी…
“डरो मत… कुछ नहीं होगा… तुम्हारी गाण्ड तैयार है…” उसने मेरी हिम्मत बढ़ाई और मुझे फिर से सही अवस्था में कर दिया। मैंने भी अपना जी कड़ा कर लिया… आखिर मैं भी गाण्ड मरवाना चाहती थी… नहीं तो भोंपू का उपहास सुनना पड़ता जो मुझे मान्य नहीं था।
भोंपू ने लंड के सुपारे को मेरी गाण्ड के छेद पर रखा और दोनों हाथों से मेरी कमर पकड़ कर उसकी ऊँचाई ठीक की… फिर थोड़ा पीछे होकर उसने गाण्ड पर और तेल लगा दिया।
“तैयार हो?” उसने सुपारे को निशाने पर टिकाते हुए पूछा।
“हाँ… धीरे से करना…” मैंने सहमी सी आवाज़ में कहा।
“डरो मत… दर्द नहीं होगा… अपने आप को ढीला छोड़ना… गाण्ड को भी और दिमाग को भी…” उसने दबाव डालते हुए कहा।
बाप रे… उसका सुपारा तो कुछ ज़्यादा ही बड़ा था। उसने लंड हटाकर अपनी उँगलियों से मेरे छेद को थोड़ा खोला और फिर सुपारा वहाँ लगा दिया। उसने फिर से अंदर की ओर दबाव लगाया… मुझे पहली बार थोड़ा दर्द हुआ।
“अआआ ऊऊऊऊओ !” मेरे मुंह से निकल गया।
“तुम अपने आप को ढीला नहीं छोड़ रही हो… डर रही हो…” उसने सुपारा हटाते हुए कहा।
“अच्छा…” मैंने अविश्वास के साथ कहा।
“घबराओ मत… और मेरा साथ दो… मैं तुम्हें दर्द नहीं होने दूंगा…”
उसने नीचे से हाथ डाल कर मेरी चूचियों, पेट और चूत को प्यार से सहलाया और मेरे चूतड़ों पर पुच्चियाँ कीं।
“अच्छा… अब मैं अंदर डालने की कोशिश नहीं करूँगा… तुम जब ठीक समझो अपनी गाण्ड पीछे दबा कर तुम खुद ही लंड अंदर करवाओगी… अब तो खुश?” उसने अपने लंड और मेरी गाण्ड पर और तेल लगाते हुए कहा।
“हाँ… ठीक है…” मैंने तुरंत जवाब दिया। मुझे उसकी यह बात अच्छी लगी। अब लगाम मेरे हाथ में थी… मेरा डर जाता रहा।
भोंपू ने एक बार फिर से अपने भाले की मोटी नोक को मेरे मासूम छेद पर रखा और हल्का सा दबाव लगा कर रुक गया… फिर उसने मेरे नितंब पर एक उत्साहित तमाचा लगा कर मुझे अपनी तैयारी का इशारा दिया।
मैंने बिना किसी विलम्ब के पीछे दबाव बढ़ाना शुरू किया… तेल के कारण लंड अपने लक्ष्य से रपट रहा था। भोंपू लंड को हाथ में लेकर उसे फिर से सही रास्ता दिखा रहा था। जब मेरे कई प्रयास असफल रहे तो मुझे लगा मैं भरपूर कोशिश नहीं कर रही थी। मैंने इस बार अपने दांत भींच लिए और अपने दर्द की परवाह किये बिना अपने छेद को ढीला करते हुए एक ज़बरदस्त धक्का पीछे लगा ही दिया। मुझे एक मिर्चीदार दर्द हुआ और लंड का सुपारा छेद में घुस गया। मुझे दर्द से ज़्यादा अपनी सफलता महसूस हुई। मेरी गाण्ड चौड़ी हो गई थी और सुपारा उसमें मानो फँस गया था।
मैं सोच ही रही थी कि अब क्या करूँ कि भोंपू ने सराहना में मेरी पीठ सहलाई और मुझे रुके रहने का संकेत किया। मैं सांस सी रोक कर रुक गई। कुछ देर रुकने के बाद उसने हलकी सी हरकत करके सुपारा थोड़ा सा पीछा किया जिससे पूरा बाहर ना निकल जाये और फिर आगे की ओर दबाव बनाते हुए मेरे नितंब पर तमाचा लगाया। जैसे एक समझदार घोड़ी अपने सवार की हर एड़ का इशारा समझती है, मैं भी उसकी चपत का मतलब समझने लगी थी। मैंने भी गाण्ड ढीली करते हुए उसके सुपारे को और अंदर लेने के लिए ज़ोर लगाया। जिस तरह एक अजगर किसी बड़े शिकार को धीरे धीरे निगलने की कोशिश करता है, मैं भी उस भीमकाय लंड को अपनी तंग गुफा में निगलने का प्रयास कर रही थी।
धीरे धीरे ही सही पर मुझे निश्चित सफलता मिल रही थी। उसका सुपारा लगभग पूरा अंदर घुस गया था।
“वाह… तुम बहुत होशियार हो… बस अब और तकलीफ़ नहीं होगी !” भोंपू को मज़ा आने लगा था… उसके हाथ मेरे बदन पर इधर-उधर चलने लगे थे। मैं उसकी बात सुन कर खुश हो गई… मैं तो मन ही मन बहुत ज़्यादा दर्द के लिए तैयार हो गई थी… जब उसने कहा अब और दर्द नहीं होगा तो मेरा तन-मन निश्चिन्त हो गया। मुझे कोई खास दर्द नहीं हुआ था… बस एक तीखा चिरने का सा अहसास हुआ था जब सुपारा पहली बार अंदर घुसा था। तब मैंने सोचा था कि जब यह पूरा अंदर जायेगा तब तो मेरी जान ही निकल जायेगी। मुझे तो गाण्ड फटने और खून निकलने का भी अंदेशा था।
अंत में ‘खोदा पहाड़… निकली चुहिया’ सा अहसास हुआ। जब किसी बड़े दर्द की आशंका हो और थोड़ा ही दर्द मिले तो वह महसूस ही नहीं होता।
मुझे भी ऐसा ही लगा… और मेरी गाण्ड में दर्द के बजाय फ़तेह की खुशी लहर गई।
उधर, भोंपू जो बड़े धीरज से इतनी देर से अपने आप को रोके हुआ था, अब हरकत में आया। उसने यकीन किया सुपारा पूरा अंदर जा चुका है… फिर बिल्कुल धीरे से लंड थोड़ा पीछे किया और फिर से अंदर की ओर ज़ोर लगाया। अब उसे मेरे सहयोग की ज़रूरत नहीं थी… मेरा काम पूरा हो चुका था… गाण्ड का रास्ता खुल गया था। लंड का सुपारा गाण्ड के मुंह की रुकावटें पार कर चुका था और आगे की सुरंग उसकी खोजबीन के लिए तैयार थी। भोंपू ने उंगली पर तेल लगाकर लंड के डंडे को तेल लगाया और धीरे धीरे लंड का आवागमन करने लगा।
हर आगे के धक्के के साथ उसका मूसल मेरी ओखली में और अंदर जा रहा था। मेरी सांस रुक सी रही थी… लग रहा था उसका लंड मेरी गाण्ड में नहीं मेरे मुंह में घुस कर मेरा दम घोट रहा है। उसके लंड की हर हरकत से गाण्ड में खुशी की फुलझड़ियाँ फूट रहीं थीं। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था मुझे गाण्ड ठुसाने में इतना मज़ा आएगा। कहाँ मुझे गाण्ड फटने और खून निकलने की कल्पना थी और कहाँ मैं खुशी से आत्मविभोर हो रही थी। मुझे लगा उसका पूरा लंड मेरी गांड में घुस चुका है क्योंकि उसके पेट का निचला हिस्सा मेरे चूतड़ों से छू रहा था।
अब भोंपू बड़े सब्र के साथ, अपनी हवस पर काबू रखते हुए, धीरे धीरे मेरी गांड मारने लगा… शुरू में लंड को करीब आधा इंच बाहर निकाला और धीरे से वापस अंदर डाल कर थोड़ी देर रुक गया… ऐसा 3-4 बार करने के बाद उसने लंड को करीब एक इंच तक अंदर-बाहर करना शुरू किया। पहले वह हर बाहर और अंदर करने पर कुछ देर रुक जाया करता था…
अब धीरे धीरे उसने बिना रुके, एक सुगम लय में, लंड अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया। मुझे उसकी इस ताल में चुदाई बहुत अच्छी लग रही थी… वह बड़े इत्मीनान से और मेरे सुख, सुविधा, दर्द और संतुष्टि का बराबर ध्यान रखते हुए मेरी गांड मार रहा था। बीच बीच में मेरी तरफ देख कर यकीन कर रहा था कि मुझे कोई तकलीफ तो नहीं हो रही।
मेरे प्रति उसकी यह चिंता मुझे प्रभावित कर रही थी और मुझे दोहरा मज़ा आने लगा था, मुझे यकीन हो चला था कि भोंपू के हाथों या उसके लंड से मुझे कभी कोई चोट, दर्द या नुकसान नहीं होने वाला। उस पर मेरा प्यार और भरोसा बढ़ गया और मैंने अपने आप को पूरी तरह उसे समर्पित कर दिया। अब मेरे बदन और दिमाग में किसी तरह की शंका या संदेह नहीं रह गया था। मेरा बदन खुद-ब-खुद तनाव छोड़ कर आराम से शिथिल सा हो गया और मैं गांड मरवाने का आनन्द उठाने लगी। मुझे महसूस हुआ कि मेरी गांड में भोंपू के लंड की घर्षण से मुझे योनि चुदाई से भी ज्यादा मज़ा आ रहा था। गांड की तंगी भोंपू के लंड को और मोटा और लंबा महसूस करा रही थी। मुझे बहुत नज़दीकी और तगड़ा घर्षण महसूस हो रहा था।
उधर, भोंपू को भी सामान्य चुदाई के बनिस्पत मेरी गांड मारने में ज्यादा मज़ा आ रहा था। उसके चेहरे पर असीम उन्माद और एक गहरी संतुष्टि झलक रही थी। उसने जो गोली खाई थी उसके असर से उसका लंड अच्छी तरह से तन्नाया हुआ था और काफी मोटा लग रहा था… हो सकता है मेरी गांड की संकरी गुफा के कारण भी उसका लंड मुझे विशाल लग रहा था।
अब उसने धीरे धीरे अपने आघात और लंबे और तेज़ करने शुरू कर दिए। उसका लंड लगभग सुपारे तक बाहर आने और मूठ तक अंदर जाने लगा। उसकी गति भी थोड़ी तेज़ हो गई। कभी वह अपने हाथों का कुप्पा बनाकर मेरे चूतड़ों पर हलके या जोर के चपत लगाता जिसकी आवाज़ से उसका जोश और बढ़ जाता… तो कभी उसकी उँगलियाँ मेरी चूचियों और योनि कपोलों पर घूम रही होतीं।
वह हर तरह से मज़े ले भी रहा था और मुझे दे भी रहा था।
मैं कुतिया मुद्रा में, सिर बिस्तर पर टिकाये, काफी देर से थी सो अब मेरा शरीर थकने लगा था। आराम लेने के लिए जैसे ही मैंने अपने बदन को थोड़ा हिलाया भोंपू को पता चल गया कि मैं थक गई हूँ।
“थक गई?” उसने पूछा।
“नहीं तो !” मैंने झूटमूट कहा।
“सोच लो… अभी तो मेरी गाड़ी देर तक चलने वाली है… एक बार पानी छोड़ने के बाद जब मैं दूसरी बार चोदता हूँ तो… बस चोदता ही रहता हूँ… और फिर उस गोली से मेरा लंड भी मुरझाने वाला नहीं है… मैं तो काफी देर तक तुम्हारी गांड मारूंगा !” उसने घोषणा की। मैं चुप रही… मुझे भी मज़ा तो आ रहा था पर एक ही आसान में रहने से बदन थकने लगा था।
“चलो आसन बदलते हैं !” कुछ देर बाद वह खुद ही बोला।
“ठीक है !” मैंने राहत की सांस लेते हुए कहा।
“तुम्हें पलटना होगा… यानि पलटकर पीठ के बल लेटना होगा !”
“ठीक है !” कहकर मैं उठने लगी।
“अरे ऐसे नहीं… गांड मरवाते मरवाते ही पलटना होगा… लंड बाहर नहीं निकलना चाहिए… बड़ा मज़ा आएगा !”
“मैं समझी नहीं?”
“अरे… लंड को गांड में रखते हुए ही तुम्हें घूमना होगा… मैं बताता जाऊँगा और तुम वैसे वैसे करती जाना… बोलो कर पाओगी?”
“क्यों नहीं !” मैंने तो ना कहना मानो सीखा ही नहीं था।
“ठीक है… तो अब ठीक से घोड़ी बन जाओ।” मैं अगला शरीर उठा कर घोड़ी बन गई।
उसने अपने आप को मेरे और नजदीक लाते हुए अपना लंड पूरी तरह मेरी गांड में डाल दिया और अपने हाथों से मेरी कमर मजबूती से पकड़ ली।
“अब अपना वज़न बाएं घुटने और बाएं हाथ पर रख कर धीरे धीरे अपनी दाहिनी टांग और हाथ घुमा कर उलटे हो जाओ !”
मैंने उसके कहे अनुसार करना शुरू किया… अपनी दाहिनी टांग उठाकर उसके सिर के ऊपर से घुमा दी और दाहिना हाथ भी उठा लिया। अब मेरा सारा वज़न बाएं हाथ और घुटने पर था। ऐसा करने से भोंपू का लंड मेरी गांड में एक पेंच की तरह घूम गया… हम दोनों को एक नई और मजेदार अनुभूति हुई।
उसने अपने दोनों हाथ लंबे करके मेरे चूतड़ और पीठ के नीचे रखे और सहारा देकर बोला,” अब पूरा घूम जाओ !”
मैं पूरा घूम गई… एक बार फिर मुझे उसके लंड का मेरी गांड में घूमने का ज़ोरदार अहसास हुआ। इस दौरान हम एक दूसरे से थोड़ा दूर होने लगे तो भोंपू ने बड़ी सतर्कता से अपनी कमर को आगे धक्का देते हुए लंड गांड में कायम रखा।
अब उसने अपने हाथों के सहारे से धीरे धीरे मुझे बिस्तर पर पीठ के बल लिटा दिया। ऐसा करते हुए एक हाथ से उसने मेरे चूतड़ों के नीचे दो तकिये लगा दिए जिससे मेरे कूल्हे ऊपर उठ गए। अब उसने मेरी टांगें घुटनों से मोड़ कर मेरी छाती पर लगा कर अच्छी तरह से खोल दीं। अब वह मेरी चूत और गांड दोनों को अच्छी तरह से देख सकता था। उसने अपने सिर को नीचा करके मेरे मम्मों और होठों को प्यार किया।
“वाह ! तुम तो बड़ी लचीली हो… बड़े आराम से घूम गई?”
“तुमने जो मदद की !” मैंने अपनी सादगी दिखाई।
“अच्छा हुआ तुम योग में माहिर हो !!… कैसा लगा तुम्हें यह घूमना?”
“बहुत मज़ा आया !” मैंने सच में कहा।
“अब तो आराम से हो ना?”
“बिल्कुल !”
“ठीक है तो अब मुझे मज़े लूटने दो !” कहकर उसने अपना पिस्टन चलाना शुरू किया। इस पूरी प्रक्रिया में उसका लंड हल्का सा ढीला पड़ गया था.. पर 2-4 स्ट्रोक मारने के साथ ही उसकी खोई हुई शक्ति वापस आ गई और वह मज़े ले ले कर गांड मारने लगा।
हम दोनों की आँखें मिली हुई थीं और हम एक दूसरे के चेहरे पर आनन्द देख सकते थे। उसके हाथ अब मेरे पेट, मम्मे, चूत, भगनासा आदि पर आसानी से पहुँच रहे थे। कभी कभी वह दण्ड पेलते हुए नीचे झुक कर मेरे होठों की चुम्मी भी ले लेता था। वह बड़े प्यार से मुझे प्यार कर रहा था। मैं आनन्द से सराबोर हो रही थी और कृतज्ञता से मेरे आँसू निकल रहे थे।
भोंपू यकायक रुका और उसने धीरे से लंड पूरा बाहर निकाल लिया। इस अचानक रोक से मैं सकते में आ गई… क्या हो गया?
मैंने सोचा, मैंने कोई गलती की?
भोंपू ने मेरी तरफ देखकर कहा,” एक मिनट !”
और वह पास रखी कटोरी से तेल लेकर अपने लंड और मेरी गांड में अच्छे से लगाने लगा।
“बीच बीच में तेल या क्रीम लगाते रहना चाहिए !” उसने हिदायत देते हुए कहा “वर्ना सूखा हो जाता है और मज़ा नहीं आता।”
मुझे भी ऐसा लग ही रहा था। सामान्य चुदाई में ऐसी कोई समस्या नहीं होती क्योंकि चूत से रिसाव होता रहता है और चुदाई आसानी से होती है पर गांड में रिसाव का प्रावधान नहीं है सो गांड मारने के समय तेल / क्रीम लगाना ज़रूरी होता है।
भोंपू ने तेल लगा कर एक बार फिर गांड में लंड डालना शुरू किया। मेरी गांड का छेद अब तक पूरी तरह बंद हो चुका था सो सुपारा अंदर डालने में हम दोनों को वही मशक्कत करनी पड़ी जो पहले की थी। पर इस बार मैंने एक अनुभवी गंडूवाई की तरह सहयोग किया और बिना ज्यादा दर्द के भोंपू का लंड गांड में घुसवा लिया।
एक बार फिर भोंपू ने धीरे धीरे गांड मारना शुरू किया और कुछ ही देर में उसका लंड पिस्टन की तरह गांड में आगे-पीछे होने लगा। वह मेरे स्तनों को दबा रहा था और चूचियों को मसल रहा था। उसकी एक उंगली मेरी योनि की फांकों के बीच और उसके शीर्ष-मुकुट पर मंडरा रही थी। नीचे मेरी गांड पर उसके प्रचंड लंड के लंबे वार हो रहे थे तो ऊपर मेरे बाकी बदन पर उसके पोले हाथों का कोमल स्पर्श ममेरा तानपुरा बजा रहा था। मैं सुख में तल्लीन, आँखें मूंदे मज़ा ले रही थी।
धीरे धीरे मेरी योनि में कसाव आना शुरू हुआ और वह भीगने लगी। मेरी स्तन सूजने से लगे और चूचियाँ कड़ी हो गईं। मेरी साँसें उठने लगीं और तेज़ हो गईं। मेरे तन-बदन में वैसा ही भूचाल सा आने लगा जैसा कल चुदाई में आया था। मैं स्वतः भोंपू के लंड की लय से लय मिलाकर कूल्हे उचकाने लगी… मुझे उसका लंड और भी गहराई से अपनी गांड में लेना था… अब मैं उसके वार और लंबे, गहरे और तगड़े चाह रही थी।
भोंपू का शायद इसकी भनक लग गई और वह नए जोश के साथ मुझे छोड़ने लगा। उसने अपना पूरा वज़न अपनी हथेलियों पर ले लिया और पूरे वेग से अपने कूल्हे ऊपर-नीचे करके मुझे पेलने लगा। अब उसका लंड लगभग पूरा गांड के बाहर तक आकर पूरा अंदर जा रहा था…
मैं भी उचक उचक कर उसका पूरा सामना कर रही थी। मेरी भौतिक और जिस्मानी खुशी अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच रही थी और मेरे मुंह से अनायास अनाप-शनाप शब्द और आवाजें निकलने लगी थीं। फिर मेरे बदन में एक बिजली की लहर सी दौड़ गई और मेरा शरीर थरथराने लगा।
मैंने भोंपू के बदन को अपने साथ चिपका लिया और उसे हिलने नहीं दिया। मैं रह रह कर फुदक रही थी और मेरे बदन में मानो आग और बरफ एक साथ लग रहे थे। कुछ देर में मेरा बदन स्थिर और शांत हुआ। मैंने भोंपू पर अपनी पकड़ ढीली की और निढाल सी लेट गई। भोंपू ने नीचे झुक कर मेरा चुम्बन लिया और एक बार फिर मुझे कुतिया आसन लेने के लिए इशारा किया।
कुतिया आसन लेने के बाद तीसरी बार भोंपू को मेरी गांड में लंड डालने का मौक़ा मिला।
“पता है, गांड मारने में सबसे ज्यादा मज़ा मुझे कब आता है?” उसने पूछा।
“मुझे क्या मालूम !”
“जब लंड गांड में डालना होता है !!”
“अच्छा ! तो इसीलिए बार बार आसन बदल रहे हो !”
“तुम्हारे आराम का ख्याल भी तो रखता हूँ…”
“मुझे भी लंड घुसवाने में अब मज़ा आने लगा है ! तुम जितनी बार चाहो निकाल कर घुसेड़ सकते हो !” मैंने शर्म त्यागते हुए कहा।
“वाह !… तो यह लो !!” कहते हुए उसने लंड बाहर निकाल लिया और एक बार फिर उसी यत्न से अंदर डाल दिया। हर बार लंड अंदर जाते वक्त मेरी गांड को अपने विशाल आकार का अहसास ज़रूर करवा देता था। ऐसा नहीं था कि लंड आसानी से अंदर घुप जाए और पता ना चले… पर इस मीठे दर्द में भी एक अनुपम आनन्द था। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
अब भोंपू वेग और ताक़त के साथ मेरी गांड मार रहा था। कभी लंबे तो कभी छोटे वार कर रहा था। मुझे लगा अब उसके चरमोत्कर्ष का समय नजदीक आ रहा है। अब तक तीन बार मैं उसका फुव्वारा देख चुकी थी सो अब मुझे थोड़ा बहुत पता चल गया था कि वह कब छूटने वाला होता है।
मेरे हिसाब से वह आने वाला ही था। मेरा अनुमान ठीक ही निकला… उसके वार तेज़ होने लगे, साँसें तेज़ हो गईं, उसका पसीना छूटने लगा और वह भी मेरा नाम ले ले कर बडबडाने लगा। अंततः उसका नियंत्रण टूटा और वह एक आखिरी ज़ोरदार वार के साथ मेरे ऊपर गिर गया…
उसका लंड पूरी तरह मेरी गांड में ठंसा हुआ हिचकियाँ भर रहा था और उसका बदन भी हिचकोले खा रहा था। कुछ देर के विराम के बाद उसने एक-दो छोटे वार किये और फिर मेरे ऊपर लेट गया। वह पूरी तरह क्षीण और शक्तिहीन हो चला था। कुछ ही देर में उसका सिकुड़ा, लचीला और नपुंसक सा लिंग मेरी गांड में से अपने आप बाहर आ गया और शर्मीला सा लटक गया।
भोंपू बिस्तर से उठकर गुसलखाने की तरफ जा ही रहा था कि अचानक दरवाज़े पर जोर से खटखटाने की आवाज़ आई। हम दोनों चौंक गए और एक दूसरे की तरफ घबराई हुई नज़रों से देखने लगे।
इस समय कौन हो सकता है? कहीं किसी ने देख तो नहीं लिया?
हम दोनों का यौन-सुरूर काफूर हो गया और हम जल्दी जल्दी कपड़े पहनने लगे।
दरवाज़े पर खटखटाना अब तेज़ और बेसब्र सा होने लगा था… मानो कोई जल्दी में था या फिर गुस्से में। जैसे तैसे मैंने कपड़े पहन कर, अपने बिखरे बाल ठीक करके और भोंपू को गुसलखाने में रहने का इशारा करते हुए दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खोलते ही मेरे होश उड़ गए…
दरवाज़े पर महेश, रामाराव जी का बड़ा बेटा, अपने तीन गुंडे साथियों के साथ गुस्से में खड़ा था।
कहानी जारी रहेगी।
शगन
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