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प्रेषिका : शालिनी
नए साल की पूर्व संध्या पर मैं अकेली ही थी क्योंकि रचना पिछली रात को ही अपने माता पिता के पास चली गई थी। मैंने अपने दो-तीन दोस्तों को फोन किया ताकि कुछ मज़ा कर सकूँ परन्तु सब का पहले से ही कुछ ना कुछ प्रोग्राम बना हुआ था। तब मैंने सुनील को फोन किया और उसका प्रोग्राम पूछा।
उसने कहा कि वो आ तो सकता है परन्तु जल्दी ही चला जाएगा क्योंकि उसे भी अपने परिवार के साथ कहीं जाना था।
थोड़ी देर के बाद सुनील ने मुझे फोन किया और कहा कि एक लड़का है अगर मैं चाहूँ तो वो परिचय करवा सकता है। मेरे पूछने पर उसने बताया कि वो लड़का उसके साथ ही काम करता है और मैंने उसे देखा भी हुआ है। चूँकि मैं वैसे भी अकेली थी इसलिए मैंने हामी भर दी।
शाम को कोई 05.00 बजे सुनील एक लड़के के साथ मेरे घर आया। मैंने उस लड़के को पहचान लिया, वह सुनील के साथ ही काम करता था और एक बार सुनील के साथ मेरे ऑफिस में भी आया था।
सुनील ने दलवीर से मेरा परिचय करवाया। दलवीर एक ऊँची कद काठी का लड़का था, 5’11” कद फूली हुई छाती और चौड़े कंधे।
मैं सोचने लगी कि कहीं ऐसा ना हो कि लंड के मामले में दलवीर फिसड्डी हो। फिर सोचने लगी कि एक बार तो चोद ही लेगा परंतु मैं नहीं जानती थी कि नव वर्ष की यह पूर्व संध्या मुझे हमेशा याद रहने वाली थी।
बातों बातों में सुनील ने दलवीर से कहा कि जल्दी में वो जूस भूल गया है तो दलवीर जूस लेने चला गया। मैं रसोई में गई तो सुनील भी पीछे पीछे आ गया और कहने लगा- शालिनी, तुम जैसा चाहो दलवीर के साथ वैसा ही मज़ा कर सकती हो। मैं सिर्फ एक बात बताना चाहूँगा कि दलवीर का लंड जल्दी से खड़ा नहीं होता परंतु एक बार खड़ा हो जाए तो जब तक तीन चार बार झड़ ना जाए तब तक इसका लंड ठण्डा भी नहीं होता। मैं तो कई बार टूअर पर देख चुका हूँ, आखिर में लड़की ही इसको हाथ जोड़ कर कहती है कि छोड़ दो अब तो शरीर में जान नहीं रही ! इसलिए अगर तुम चाहो तो मैं अभी भी उसको साथ में वापिस ले जा सकता हूँ।
मैंने कहा- नहीं ! दलवीर को यहीं रहने दो और अगर कुछ लगा तो मैं तुम्हें फोन कर दूँगी।
तभी दलवीर वापिस आ गया और सुनील ने उसको कहा- यार दलवीर, फटाफट दो पैग पिला दे, मैंने जाना है। तुम दोनों आपस में मज़ा करते रहना।
मैंने दलवीर को गिलास दिए तो उसने अपने और सुनील के लिए वोदका के पैग बनाये और मेरी ओर देखने लगा।
मैंने कहा- नहीं, अभी आप दोनों लो, सुनील के जाने के बाद देखेंगे।
कुछ ही देर में सुनील चला गया।
तब दलवीर ने मुझसे पूछा- कहीं चलने का प्रोग्राम है या घर पर ही रहना है?
इस पर मैंने कहा- चलो बाज़ार से कुछ सामान ले कर आते हैं।
फिर मैं उसके साथ उसकी मोटरसाइकिल पर चल पड़ी। बाहर बहुत ही ठिठुरन वाली ठण्ड थी। मैंने अपने दोनों हाथ उसकी कमर पर लपेट लिए और उससे चिपक कर बैठ गई। हम दोनों एक सार्वजनिक मनोरंजन स्थल पर चले गए। वहाँ बहुत सारे लड़के लड़कियाँ मस्ती के मूड में घूम रहे थे। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
हमने पिज्ज़ा आदि खाया और फिर कुछ खाने का सामान खरीद कर घर आ गए। आते ही मैंने जल्दी से हीटर चला दिया ताकि ठण्ड से कुछ आराम मिले। दलवीर ने अपनी जैकेट उतार कर रखी और बाथरूम में घुस गया। मैंने जल्दी से मेज़ साफ़ करके नए गिलास इत्यादि रख दिए और वोदका की बोतल उठा कर रसोई में रख दी। दलवीर ने बाहर आकर इधर उधर बोतल के लिए देखा तो मैंने उसे एक आयातित वोदका की बोतल देकर कहा कि हम दोनों अपने नव वर्ष की पूर्व संध्या का मज़ा इसके साथ करेंगे।
दलवीर बोतल को बड़े ध्यान से देखता हुआ कुछ पढ़ रहा था कि मैंने उसके साथ बैठ कर उसकी बाँह पकड़ कर हँसते हुए पूछा- क्या देख रहे हो कि सील कैसे तोड़नी है?
इस पर दलवीर बोला- सील तो बहुत तोड़ीं हैं और अभी भी तोड़ सकता हूँ। फिलहाल तो देख रहा हूँ कि यह कहाँ की बनी हुई है?
फिर दलवीर ने बोतल को एक झटके में खोला और पूछा- शालिनी, तुम्हारे लिए भी डाल दूँ क्या?
“हाँ, बस थोड़ी सी डालना !” मैंने कहा और मैं साथ के लिए काजू चिप्स नमकीन आदि लेने रसोई में चली गई।
हम दोनों आमने सामने बैठ कर बातें करते हुए पीने लगे। मैंने अभी तक अपना पहला गिलास खत्म नहीं किया था और दलवीर तीन पैग पी चुका था।
तभी दलवीर ने कहा- शालिनी, तुम इतनी दूर क्यूँ बैठी हुई हो? यहाँ मेरे साथ आ कर बैठ जाओ।
मैं उसके सामने से उठ कर उसके साथ आकर बैठ गई- आज ठण्ड भी बहुत है !
मेरे मुँह से निकला।
उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर मुझे अपने साथ खींच कर सटा लिया और बोला- अब ठीक है और अब ठण्ड भी कम लगेगी।
हालाँकि हीटर चलने से कमरा अच्छा गरम था फिर भी मैंने दलवीर से और भी चिपकते हुए कहा- हाँ अब ठीक लग रहा है।
“अगर अभी भी ठण्ड लगे तो और भी तरीका है मेरे पास !” उसने कहा।
“और क्या तरीका अपनाओगे?” मैंने पूछा।
“तुम्हें अपनी गोद में बिठा कर अपने साथ चिपका लूँगा फिर ठण्ड बिल्कुल भी नहीं लगेगी” दलवीर बोला।
“फिर तो मुझे अभी भी ठण्ड लग रही है, अब मुझे अपनी गोद में बिठाओ !” मैंने कहा।
इस पर दलवीर ने मुझे हाथ से पकड़ कर उठाते हुए अपनी गोद में बिठा लिया और जोर से अपने साथ दबा लिया। मैंने अपनी बाहें उसके गले में लपेट दीं और उसके सीने में अपना मुँह छिपा कर उसकी छातियों को चूमने लगी। मैं उत्तेजित होने लगी थी।
कुछ समय बाद दलवीर ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए पूछा- अब ठीक लग रहा है या और गरमी दूँ?
“दलवीर आज अपनी सारी गरमी मुझे दे दो !!” मैंने धीरे से कहा।
“झेल पाओगी मेरी गरमी?” मेरे माथे को चूमते हुए उसने कहा।
“कोशिश करूँगी !” मैंने भी उसके गालों को चूमते हुए कहा।
कुछ देर के बाद उसने मुझे अपने से अलग किया और बाथरूम होकर आया। उसने अपने और मेरे लिए पैग बनाया तो मैंने उसको पूछा कि अगर वो कुछ खाना चाहता हो। इस पर उसने कहा कि जब जरूरत होगी तो वो बता देगा।
तभी उसके मोबाइल पर सुनील का फोन आया उसने कुछ बात की और फोन मुझे दे दिया। सुनील पूछ रहा था कि सब कुछ ठीक है या नहीं। मैंने फोन का स्पीकर चालू कर दिया और कहा कि सब कुछ बढ़िया चल रहा है। इसी समय दलवीर वहाँ से बाहर जाने लगा तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसको रोक लिया। तभी दूसरी ओर से सुनील ने पूछा कि कुछ चुदाई का प्रोग्राम किया या नहीं। मैंने इसे सही समय समझा और दलवीर के लंड पर हाथ फेरते हुए कहा कि अभी तक तो लंड महाराज के दर्शन भी नहीं हुए, प्रसाद तो बाद में मिलेगा।
मुझे उसके चेहरे पर कुछ शर्म सी लग रही थी। फिर मैंने फोन का स्पीकर बंद कर दिया और फोन दलवीर को बात करने के लिए दे दिया। जब दलवीर बात कर रहा था तो मैंने उसका एक हाथ अपने एक मोम्मे पर रख कर दबा दिया। उसने झटके से हाथ हटाया तो मैंने फिर से उसका हाथ पकड़ कर दोबारा अपने मोम्मे पर दबा दिया और अपना दूसरा हाथ उसके लंड पर रगड़ने लगी।
फोन बंद होने पर उसने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और धीरे धीरे मुझे अपने साथ दबाने लगा।
मैंने कहा- अब ज़रा अपने लंड महाराज के भी दर्शन करवा दो।
तब उसने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपना लंड बाहर निकाल लिया। मैंने देखा उसका लंड कोई पांच इंच लंबा था और बहुत नरम था।
मैंने उसके लंड की चमड़ी ऊपर की और उसको आगे पीछे करने लगी। मुझे चूमते हुए दलवीर ने मेरा स्वेटर उतारना शुरू किया तो मैंने अपना स्वेटर उतार दिया और अब उसका स्वेटर उतारने की कोशिश करने लगी। फिर उसने भी अपना स्वेटर उतार कर अपनी कमीज़ भी उतार दी।
दलवीर ने मेरे होठों को अपने होठों में दबा लिया और मेरे मोम्मे दबाने लगा। एक एक करके हम दोनों के सारे कपड़े उतर गए और हम एक दूसरे के सामने नंगे खड़े थे।
उसने मुझे अपनी चौड़े सीने से लगा लिया तो मैं उसके गले में बाहें डाल कर अपने पंजों के बल ऊपर हो कर उसके होठों को चूमने लगी। तब दलवीर ने मेरे चूतड़ों के नीचे से हाथ डाल कर मुझे अपनी गोद में उठा लिया और मैंने अपनी टांगें उसकी कमर पर लपेट दीं।
“अब बताओ कितनी गरमी दूँ तुम्हें?” दलवीर ने मुझे चूमते हुए पूछा।
“जितनी चाहो दे दो !” मैंने भी उसके गले में अपनी बाँहों का दबाव बढ़ाते हुए कहा।
मुझे वैसे ही उठाये हुए दलवीर सोफे पर बैठ गया और हम दोनों एक दूसरे के होठों को चूसने लगे।
बहुत देर तक ऐसे ही चूमा चाटी करने और एक दूसरे शरीर को सहलाने के बाद मैं उसके ऊपर से हटी और उसके साथ में बैठ गई। दलवीर ने अपना पैग खत्म किया और मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर लगा कर बोला- अब ज़रा इसको भी प्यार से चूम दो !
मैं उसके लंड को सहलाने लगी। मैंने सोचा कि अभी ढीला है तो पाँच इंच का है जब खड़ा होगा तो कितना लंबा होगा? मैंने उसके लंड पर झुक कर उसके सिरे को चूम लिया। फिर उसके सीने को चूमने चाटने लगी। उसके कंधों और बाँहों की मांसपेशियों को चूम चूम कर चाटने लगी। और धीरे धीरे नीचे की ओर आने लगी। उसके लंड को चाटती और काट भी लेती।
दलवीर के मुँह से हल्की हल्की सिसकारियाँ निकल रहीं थीं। मैंने उसके लंड को अपने मुँह में भर लिया। उसके टट्टों को दूसरे हाथ से सहलाती हुई उसके लंड से खेलने लगी। मैंने देखा कि उसका लंड अब खड़ा हो रहा था और उसमें कड़ापन आने लगा था। मैं अपनी जीभ उसके लंड के सिरे पर फिरा रही थी और उसको चूम चाट रही थी, अपने हाथों में अपनी थूक लगा कर उसके लंड पर मलती हुई ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर उसका लंड चाट रही थी। मैं कभी उसके लंड को अपने चेहरे पर मारती अभी अपने मुँह को खोल कर उसके अंदर मारती। उसकी जाँघें चाटते हुए उसके लंड को हिला रही थी।
धीरे धीरे उसका लंड पूरी तरह खड़ा हो गया। उसका लंड बहुत तगड़ा और लंबा था। आज तक मैंने जितने भी लड़कों के लंड लिये हैं उन सबसे लंबा और मोटा लंड था। मैं दलवीर को कहने लगी- दलवीर, तुम्हारा लंड कितना मोटा है ! यह तो मेरे मुँह में पूरा घुसेगा ही नहीं!!
“मुँह में ना सही चूत में तो घुस ही जाएगा !!” मेरे सिर को अपने लंड की ओर दबाते हुए दलवीर ने जवाब दिया, फिर मुझे हटा कर मेरे सामने खड़े होकर अपने चपटे लंड को पकड़ कर उसकी मुठ मारता हुआ दलवीर कहने लगा- शालिनी, मेरा लंड पूरा नौ इंच लंबा है। इसकी चौड़ाई ढाई इंच है मोटाई तीन इंच। तुम चाहो तो नाप सकती हो !!!
मैंने दोनों हाथों से उसके लंड को पकड़ा और चाटने लगी। दलवीर अपना लंड मेरे मुँह में डालना चाहता था। मैंने उसके लंड को अपने मुँह में लिया तो उसने मेरा सिर पकड़ लिया और मेरे मुँह में धक्के मारने लगा। उसका लंड मेरे गले के अंदर तक जा कर मेरा मुँह चोद कर रहा था।कुछ सेकंड तक तो मैंने झेला पर फिर अपने सिर को ना ना की तरह हिलाते हुए गूँ गूँ की आवाजें निकलने लगी तब उसने अपना लंड मेरे मुँह से बाहर निकाला और उसे मेरे मुँह पर मारने लगा। मैं जोर जोर से साँसे ले रही थी। फिर मैंने उसके लंड को थोड़ा सा अपने मुँह में लिया और अपने सिर को जोर जोर से आगे पीछे करते हुए उसके टट्टों को सहलाने लगी। कोई आधे घण्टे तक उसके लंड को चूसने के बाद उसके लंड से मेरे मुँह में वीर्य की पिचकारी निकली जो सीधी हलक से मेरे अंदर उतर गई।
मैंने उसका लंड अपने मुँह बाहर निकाला और जोर जोर से हिला कर उसके वीर्य को अपने मुँह पर गिराने लगी। दलवीर मुझे खड़ा कर के मेरे होठों को चूसने लगा और हम दोनों के मुँह में उसके वीर्य का स्वाद था।
कहानी अगले भाग में समाप्त होगी।
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