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प्रेषिका : स्लिमसीमा (सीमा भारद्वाज) चौथे भाग से आगे : ‘अरे मेरी सोन-चिड़ी ! मेरी रामकली ! एक बार इसका मज़ा लेकर तो देखो तुम तो इस्सस… कर उठोगी और कहोगी वंस मोर… वंस मोर…?’
‘अरे मेरे देव दास इतनी कसी हुई चूत मिल रही है और तुम लालची बनते जा रहे हो?’
‘चलो भई कोई बात नहीं मेरी बिल्लो पर उस आसन में चूत तो मार लेने दो…!’
‘ओह… मेरे चोदू-राजा अब आये ना रास्ते पर !’ मेरे होंठों पर मुस्कान फिर से लौट आई। मैं झट से अपने घुटनों के बल (डॉगी स्टाइल में) हो गई। अब वो मेरे पीछे आ गया। उसने पहले तो अपने दोनों हाथों से मेरे नितंबों को चौड़ा किया और फिर दोनों नितंबों को बारी बारी चूम लिया। फिर उसने उन पर थपकी सी लगाई जैसे किसी घोड़ी की सवारी करने से पहले उस पर थपकी लगाई जाती है। फिर उसने अपने लण्ड को मेरी फांकों पर घिसना चालू कर दिया। मैंने अपनी जांघें चौड़ी कर ली। उसने अपना लण्ड फिर छेद पर लगाया और मेरी कमर पकड़ कर एक जोर का धक्का लगाया। एक गच्च की आवाज़ के साथ पूरा लण्ड अंदर चला गया। धक्का इतना तेज था कि मेरा सर ही नीचे पड़े तकिये से जा टकराया।
‘उईईईईई… मा… म… मार डा…ला… रे… मादर चो…!!’ ‘मेरी जान अब देखना कितना मज़ा आएगा।’ कह कर उसने उसने दनादन धक्के लगाने शुरू कर दिए।
‘अबे बहन चोद जरा धीरे… आह…’ ‘बहनचोद नहीं भौजी चोद बोलो…’ ‘ओह… आह…धीरे… थोड़ा धीरे…’ ‘क्यों…?’ ‘मुझे लगता है मेरे गले तक आ गया है…’ ‘साली बहन की लौड़ी… नखरे करती है…यह ले… और ले…’ कह कर वो और तेज तेज धक्के लगाने लगा।
यह पुरुष प्रवृति होती है। जब उसे अपनी मन चाही चीज़ के लिए मना कर दिया जाए तो वो अपनी खीज किसी और तरीके से निकालने लगता है। जगन की भी यही हालत थी। वो कभी मेरे नितंबों पर थप्पड़ लगाता तो कभी अपने हाथों को नीचे करके मेरे उरोजों को पकड़ लेता और मसलने लगता। ऐसा करने से वो मेरे ऊपर कुछ झुक सा जाता तो उसके लटकते भारी टट्टे मेरी चूत पर महसूस होते तो मैं तो रोमांच में ही डूब जाती। कभी कभी वो अपना एक हाथ नीचे करके मेरे किशमिश के दाने को भी रगड़ने लगाता। मैं तो एक बार फिर से झड़ गई।
हमें इस प्रकार उछल कूद करते आधा घंटा तो हो ही गया होगा पर जगन तो थकने का नाम ही नहीं ले रहा था। वो 3-4 धक्के तो धीरे धीरे लगाता और फिर एक जोर का धक्का लगा देता और साथ ही गाली भी निकलता हुआ बड़बड़ा रहा था। पता नहीं क्यों उसकी मार और गालियाँ मुझे दर्द के स्थान पर मीठी लग रही थी। मैं उसके हर धक्के के साथ आह… ऊंह… करने लगी थी। मेरी चूत ने तो आज पता नहीं कितना रस बहाया होगा पर जगन का रस अभी नहीं निकला था।
मैं चाह रही थी कि काश वक्त रुक जाए और जगन इसी तरह मुझे चोदता रहे। पर मेरे चाहने से क्या होता आखिर शरीर की भी कुछ सीमा होती है। जगन की सीत्कारें निकलने लगी थी और वो आँखें बंद किये गूं..गूं… या… करने लगा था। मुझे लगा अब वो जाने वाला है। मैंने अपनी चूत का संकोचन किया तो उसके लण्ड ने भी अंदर एक ठुमका सा लगा दिया। अब उसने मेरी कमर कस कर पकड़ ली और जोर जोर से धक्के लगाने लगा। ‘मेरी प्यारी भौजी… आह… मेरी जान… मेरी न.. नीर…ररर..रू…’
मुझे भी कहाँ होश था कि वो क्या बड़बड़ा रहा है। मेरी आँखों में भी सतरंगी सितारे झिलमिलाने लगे थी। मेरी चूत संकोचन पर संकोचन करने लगी और गांड का छेद खुलने बंद होने लगा था। मुझे लगा मेरा एक बार फिर निकलने वाला है।
इसके साथ ही जगन ने एक हुंकार सी भरी और मेरी कमर को कस कर पकड़ते हुए अपना पूरा लण्ड अंदर तक ठोक दिया और मेरी नितंबों को कस कर अपने जाँघों से सटा लिया। शायद उसे डर था कि इन अंतिम क्षणों में मैं उसकी गिरफ्त से निकल कर उसका काम खराब ना कर दूँ। ‘ग…इस्सस्स स्सस… मेरी जान…’
और फिर गर्म गाढ़े काम-रस की फुहारें निकलने लगी और मेरी चूत लबालब उस अनमोल रस से भरती चली गई। जगन हांफने लगा था। मेरी भी कमोबेश यही हालत थी। मैंने अपनी चूत को एक बार फिर से अंदर से भींच लिया ताकि उसकी अंतिम बूँदें भी निचोड़ लूँ। एक कतरा भी बाहर न गिरे। मैं भला उस अमृत को बाहर कैसे जाने दे सकती थी।
अब जगन शांत हो गया। मैं अपने पैर थोड़े से सीधे करते हुए अपने पेट के बल लेटने लगी पर मैंने अपने नितंब थोड़े ऊपर ही किये रखे। मैंने अपने दोनों हाथ पीछे करके उसकी कमर पकड़े रखी ताकि उसका लण्ड फिसल कर बाहर ना निकल जाए। अब वो इतना अनाड़ी तो नहीं था ना। उसने मेरे दोनों उरोजों को पकड़ लिया और हौले से मेरे ऊपर लेट गया। उसका लण्ड अभी भी मेरी चूत में फंसा था। अब वो कभी मेरे गालों को चूमता कभी मेरे सर के बालों को कभी पीठ को। रोमांच के क्षण भोग कर हम दोनों ही निढाल हो गए पर मन बही नहीं भरा था। मन तो कह रहा था ‘और दे…और दे…’
थोड़ी देर बाद हम दोनों उठ खड़े हुए। मैं कपड़े पहन कर बाहर कम्मो को देखने जाना चाहती थी। पर जगन ने मुझे फिर से पकड़ कर अपनी गोद में बैठा लिया। मैंने भी बड़ी अदा से अपनी बाहें उसके गले में डाल कर उसके होंठों पर एक जोर का चुम्मा ले लिया।
उसके बाद हमने एक बार फिर से वही चुदाई का खेल खेला। और उसके बाद 4 दिनों तक यही क्रम चलता रहा। कम्मो हमारे लिए स्वादिस्ट खाना बनाती पर हमें तो दूसरा ही खाना पसंद आता था। कम्मो मेरे गालों और उरोजों के पास हल्के नीले निशानों को देख कर मन्द-मन्द मुस्कुराती तो मैं मारे शर्म के कुछ बताने या कहने के बजाय यही कहती,’कम्मो तुम्हारे हाथ का यह खाना मुझे जिंदगी भर याद रहेगा।’
अब वो इतनी भोली भी नहीं थी कि यह ना जानती हो कि मैं किस मजेदार खाने की बात कर रही हूँ। आप भी तो समझ गए ना या गणेश की तरह लोल ही हैं?
बस और क्या कहूँ चने के खेत में चौड़ी होने की यही कहानी है। मैंने उन 4 दिनों में जंगल में मंगल किया और जो सुख भोगा था वो आज तक याद करके आहें भरती रहती हूँ। उसने मुझे लगभग हर आसान में चोदा था। हमने चने और सरसों की फसल के बीच भी चुदाई का आनंद लिया था।
मैं हर चुदाई में 3-4 बार तो जरुर झड़ी होऊंगी पर मुझे एक बात का दुःख हमेशा रहेगा मैंने जगन से अपनी गांड क्यों नहीं मरवाई। उस बेचारे ने तो बहुत मिन्नतें की थी पर सच पूछो तो मैं डर गई थी। आज जब उसके मोटे लंबे लण्ड पर झूमता मशरूम जैसा सुपारा याद करती हूँ तो दिल में एक कसक सी उठती है। बरबस मुझे यह गाना याद आ जाता है :
सोलहा बरस की कुंवारी कली थी घूँघट में मुखड़ा छुपा के चली थी हुई चौड़ी चने के खेत में…
काश मुझे दुबारा कोई ऐसा मिल जाए जिसका लण्ड खूब मोटा और लंबा हो और सुपारा आगे से मशरूम जैसा हो जिसे वो पूरा का पूरा मेरी गांड में डाल कर मुझे कसाई के बकरे की तरह हलाल कर दे तो मैं एक बार फिर से उन सुनहरे पलों को जी लूँ।
मेरे लिए आमीन… तो बोल दो कंजूस कहीं के…
ए प्रेम ! मेरे मिट्ठू ! मुझे मेल करोगे ना? तुम्हारी नीरू उर्फ मैना: [email protected]
बस दोस्तो ! आज इतना ही। पर आप मुझे यह जरूर बताना कि यह कहानी आपको कैसी लगी। प्रेम गुरु की लिखी कुछ और कहानियाँ जल्दी ही अन्तर्वासना पर भेजने की कोशिश करुँगी। एक और बात आप सभी प्रेम को भी मेल करना और समझाना कि उस छमिया सिमरन के पीछे पागल ना बने, उस जैसी बहुत मिल जायेंगी। वो कहानियाँ लिखना बंद ना करे, पाठक उनकी कहानियों का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं : [email protected] ; [email protected] धन्यवाद सहित वास्ते प्रेम गुरु आपकी स्लिमसीमा (सीमा भारद्वाज) 1722
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