खुली आँखों का सपना-1

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एक बार फिर अपनी नई कहानी लेकर आया हूँ मैं राजवीर! यह घटना अभी हाल ही में घटी थी मेरा साथ. पर आपको फ्लैशबैक में लेकर जाता हूँ थोड़ी देर के लिए.

बात तब की है जब मैं बारहवीं में पढ़ता था. एक टीचर थी वहाँ, 22-23 साल की होगी, नाम था कविता! रंग तो सांवला था लेकिन देखने में इतनी सेक्सी कि देखते ही लंड सलामी देने लगे. सूट भी ऐसे ही टाइट पहन कर आती थी. कभी कभी उसे देख कर मन में लालच आ जाता था, कसे हुए चूतड़, मस्त चूचियाँ, जब झुकती थी तो बस आह निकल जाती थी.

पढ़ाने के लिए कभी कभी घर भी बुलाती थी वह तो वो अपने घर में खुला सा टॉप पहन कर रहती थी, उसमें तो उसके निप्पल और झुकते वक्त पूरी चूचियाँ दिख जाती थी क्योंकि वो ब्रा नहीं पहनती थी घर में.

स्कूल में क्लास के बाहर कविता का और मेरा दोस्तों जैसा रिश्ता बन गया था, बस खुली बातें नहीं करते थे. दिन बीतते गए, नया साल आने वाला था. नए साल से दो दिन पहले वो एक सफ़ेद सूट पहन कर आई जो पारदर्शी था. उसमें से उसकी काली ब्रा और पेंटी साफ़ दिखाई दे रही थी. सारा स्कूल उसे घूर रहा था. उसकी जांघों, पेट, पीठ सबका पूरा स्कूल मजा ले रहा था.

लंच टाइम में मैं कविता के साथ ही खाना खा रहा था. मैंने खा लिया था और वो खा रही थी.

मैं उसके बगल में ही बैठा था. और कोई तो था नहीं, सिर्फ मैं और वो थे. हंसी मजाक करते हुए मैंने उसकी जांघों पर हाथ रख दिया और सहलाने लगा. उसकी साँसें भी हल्की हल्की गर्म होने लगी, मेरा भी लंड खड़ा होने लगा था. बातों बातो में मैंने बोल दिया- कैसे कपड़े पहन कर आई हो? सब दिख रहा है. सब कैसे घूर कर देख रहे थे.

कविता ने बोला- अच्छा, सब?… तुम भी देख रहे थे क्यों? मैं क्या कहता- नहीं… वो… नहीं. तभी कविता बोल पड़ी- अच्छा, मतलब देख रहे थे. क्या देख रहे थे मेरे में? क्या दिख रहा था?

मैं कुछ नहीं बोला तो उसने कहा- नाम नहीं मालूम या बता नहीं रहे हो. मैंने कहा- नाम नहीं मालूम. उसने कहा- चलो रहने दो, अभी बच्चे हो. उसने खाना खा लिया था पर बातों से मेरा लंड खड़ा कर दिया था.

वो खड़ी हुई और मैंने अपना हाथ उसकी गांड की गोलाइयों पर रख दिया और मसल दिया. वो पीछे मुड़ी और मुझे डांट दिया- तमीज नहीं है क्या तुम्हें? जाओ यहाँ से. जैसे ही मैं खड़ा हुआ, मेरा खड़ा हुआ लंड उसने देख लिया और बोली- चले जाओ! तुम्हारी शिकायत करुँगी! जाओ यहाँ से.

अब लंड तो खड़ा था ही, मैं जल्दी से छुप कर बाथरूम में घुस गया, वहाँ अँधेरा था, लाइट ख़राब थी बाथरूम की. और पेंट से मैं लंड निकाल कर तेज तेज हिलाने लगा. स्कूल छोटा था इसलिए लेडीज की और जेंट्स का बाथरूम एक ही था. और जल्दी में मैं दरवाजा भी लगाना भूल गया था. यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं.

तभी कविता भी आई, उसने शायद मुझे देखा नहीं, मैंने भी नहीं देखा, मेरी तो आँखे बंद थी और हाथ चल रहे थे. वो आई और सलवार का नाड़ा खोल दिया अपनी काली पेंटी नीचे की ही थी कि मुझे देख लिया. उसने हलकी से आवाज की- अह हह! और मैंने भी आँखें खोल दी, वो मेरे लंड की तरफ देखे जा रही थी जो पूरे जोश में था और मेरे हाथ उसे हिला रहे थे.

उसकी साँसें भी तेज हो गई और हाथ पैर वहीं रुक गए जहाँ पर थे. पेंटी भी वहीं की वहीं थी, उसे शायद कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे, और मुझे भी नहीं आ रहा था, बस लंड हिलाए जा रहा था मैं.

मेरी नजर उसकी चूत वाली जगह पर गई, देखने में बिल्कुल चिकनी थी लेकिन ठीक से दिख नहीं रही थी, अँधेरा था, ऊपर से दरवाजा भी बंद था.

तभी मेरी पिचकारी निकल गई और मैं 5-6 झटके देकर शांत हो गया. तब दोनों को होश आया और दोनों ने कपड़े ठीक किये. कविता ने कहा- वाकई में पूरे बेशरम हो! मैं क्या कहता, चुप रहा. फिर उसने कहा- देखो बाहर कोई है तो नहीं?

मैंने देखा, कोई नहीं था. सो मैं बाहर आ गया. जैसे ही थोड़ी दूर आया एक और टीचर नाम आशा था, वो आ गई. आशा ने दरवाजा खोलने की कोशिश की पर नहीं खुला.

कविता ने थोड़ी देर बाद दरवाजा खोला तो आशा का मुँह खुला का खुला रहा गया, उसने बोल ही दिया- कविता, तू और राजवीर एक साथ बाथरूम में? अब कविता कहती भी क्या कहती, थोड़ी देर चुप रह कर बोली- नहीं, वो गलती से आ गई थी मैं. आशा ने मुस्कुरा कर कहा- कोई बात नहीं, होता है, मस्त लड़का है. अब चल, बहुत तेज लगी है कर लेने दे.

कविता भी क्लास में आ गई, आते ही मुझे घूर कर देखा. थोड़ी देर बाद आशा की क्लास भी साथ वाले कमरे में थी तो हमारी क्लास के सामने से होकर गई, कविता की तरफ देख कर मुस्कुराई और मेरी तरफ देख कर आँख मार दी.

अब होती है कविता और आशा की बात : आशा- कविता, मस्त मजा आया होगा न? मैंने भी एक बार बॉयफ्रेंड के साथ किया था पर अब ब्रेकअप हो गया. अब बहुत मन है तू कर न कुछ, उसके साथ की एक बार करवा दे. कविता- नहीं यार, ऐसी कोई बात नहीं है मेरे और उसके बीच. आशा- अच्छा वो जो स्मेल आ रही थी और माल भी गिरा हुआ था उसका? देख कुछ जुगाड़ करवा उससे नहीं तो सब टीचरों को बता दूंगी. कविता पसीने-पसीने हो गई. उसने थोड़ा सोचा फ़िर बोली- अच्छा ठीक है, थोड़ा वक्त दे. आशा- चल दिया पर नए साल वाले दिन पक्का उसका लंड मुझे अपने अंदर चाहिए?

कविता शर्म से लाल हो गई, 2 दिन तक उसने बात नहीं की, मैंने उसे कई एस एम एस किये पर रिप्लाई नहीं आया. 31 को सबने कविता को ग्रीटिंग कार्ड्स दिए मैंने भी दिया. कुछ शेर और गुलाब की पंखुड़ियों से सजा कर अच्छे से दिया था. और सॉरी भी लिखा था.

उसका शाम को कॉल आया, मैंने फोन उठाते ही सॉरी बोला. उसने कहा- कोई बात नहीं, हो जाता है जवानी में! अच्छा एक काम करो, अभी आ सकते हो तो आ जाओ, एक काम है.

लंड भी बार बार उसके बारे में सोच कर खड़ा हो रहा था, एक बार मुठ मार कर गया उसके घर. अकेली बैठी थी शॉर्ट्स और टॉप में, एकदम मस्त लग रही थी. फिर लंड हिलने लगा. मैं उसके पास ही जाकर बैठ गया. कुछ देर बातों के बाद उसने आशा वाली सारी बात बताई आँखें नीचे करके. मैंने सुनकर कहा- बताओ क्या करना है? उसने कहा- बस कल नया साल है, कल उसने कहा है.

मैं भी थोड़ा ड्रामे करने लगा कि कैसे कर लूँ, मुझे तो आप अच्छी लगती हो, और किसी के साथ कैसे कर लूँ. वो हैरानी से मुझे देख कर बोली- प्लीज कर लो! मेरे लिए ही नहीं तो वो सब तो कह देगी, मैं बदनाम हो जाऊँगी. मैंने थोड़ी देर बाद बोल दिया- ठीक है, उसे बोल देना. उसके बाद मैं चला आया.

अगले दिन तीनों एक साथ मिले, पहले अच्छा सा खाना खाया, घूमे फिरे, सब खर्च आशा ने किया, सब देख के जल रहे थे कि हमारे पास एक भी नहीं और यह दो लेकर घूम रहा है.

फिर मूवी देखने गए, मैं बीच में और वो दोनों आजू-बाजू में बैठी थी, ज्यादा लोग नहीं थे और आने की उम्मीद भी नहीं थी क्योंकि शो शुरू हो गया था. अंदर गए कुछ लोग पहले ही लगे पड़े थे, कोई किस ले रहा था तो कोई चूचियाँ दबा रहा था. हम भी बैठ गए, सबसे अलग.

कुछ देर बाद आशा ने मेरे लंड पर हाथ रख दिया और ऊपर से सहलाने लगी. कुछ देर बाद उसने कहा- शर्माओ मत, अपना ही माल समझो, जो करना है करो.

मैंने भी उसकी चूचियाँ पकड़ ली. दोनों ने जींस टॉप पहना हुआ था, मैंने उसका टॉप ऊपर उठा दिया और ब्रा खिसका कर चूचिया चूसने लगा और दबाने लगा.

उसने भी मेरा लंड बाहर निकाल लिया और हिलाने लगी. यह देख कविता भी गर्म होने लगी, उसका जिस्म कह रहा था कि लंड पकड़ लूँ पर मन कह रहा था नहीं.

अब आशा ने मेरा लंड मुँह में ले लिया और चूसने लगी. मैं एक हाथ से उसकी चूचियाँ दबा रहा था और एक हाथ कविता की चूचियों पर था, उसने एक दो बार आना कानी की, फिर मान गई, आराम से दबवाने लगी.

फिर मैं उसकी जींस खोलने लगा तो उसमें भी आना कानी की पर बटन और ज़िप खोल दिया, नीचे नहीं कर रही थी, मैंने भी ऐसे ही उसकी पेंटी में हाथ डाल दिया सीधा और चूत पर हाथ रख दिया. वाकई में चूत एकदम चिकनी थी, गीली भी हो रही थी.

15 मिनट में मेरा माल निकल गया और सारा माल आशा ने मुँह में ले लिया.

इस बीच मैं भी कविता की जींस और पेंटी गांड से नीचे ले आया था और मेरे साथ उसका भी पानी निकल गया, वो भी लम्बी लम्बी साँसें ले रही थी.

आशा ने उसे देख के मुझे कहा- अच्छा बच्चू, एक साथ दो से मजे ले रहे हो! चलो अब आगे का काम करना है.

फिर सबने कपड़े ठीक किये और चल दिए.

आशा ने कहा- यार मेरे घर पर तो फॅमिली है, कविता तेरे घर वाले बाहर गए हैं न, चल वहीं पे!

कविता ने मना किया पर और कोई रास्ता भी नहीं था, हम कविता के घर चले गए.

आशा ने कविता के घर जाते ही पैंट खोल दी और लंड चूसने लगी, उसके दोनों हाथ मेरी गांड पकड़े हुए थे और पूरा लंड उसके गले के अंदर तक.

मैंने भी अपनी टी-शर्ट उतार दी, अब मैं पूरा नंगा खड़ा था, कविता सोफे पे बैठ गई थी और बुरा सा मुँह बना कर कभी हमें देखती तो कभी टीवी.

उसके बाद मैंने उसके कपड़े उतार दिए और उसके उरोज चूसने लगा, दोनों हाथों से पकड़ कर मस्त मसल रहा था और चूस रहा था, दांतों के निशान भी बना दिए थे.

फिर थोड़ी देर बाद मैं उसकी चूत चाटने लगा तो आशा कहने लगी- बस अब चोद दो मुझे.

मैं उसकी टांगों के बीच आ गया और अपना लंड उसकी चूत पर रगड़ रहा था. यह करते हुए मैं कविता की तरफ देख रहा था. वो भी वही देख रही थी कि मैं कैसे क्या करता हूँ.

और फिर एक धक्का लगा दिया मैंने. आशा की आवाज तो निकली ही निकली, कविता भी साथ में बोल पड़ी- आअह्ह्ह्ह. मैं बोला- अभी तो आधा भी नहीं गया और आप चीख पड़ी? और कविता मिस आप में तो हल्का सा भी नहीं गया, आप क्यों चीखी? कविता झेंप गई और बोली- जो कर रहे हो, चुपचाप करो.

मैंने एक और धक्का दिया फिर चूची चूसते चूसते एक आखिरी धक्का दिया और लंड आशा की चूत में घुस गया पूरा. इस बार वो थोड़ी तेज चीख पड़ी. शायद बाहर भी आवाज पहुँच गई हो. मैं थोड़ी देर रुक कर धक्के लगाने लगा और आशा को भी मजा आने लगा.

दस मिनट बाद आशा का पानी निकल गया, मैं उसे चोदता रहा और 10 मिनट बाद मैंने भी अपना माल उसकी चूत से लंड निकाल कर बाहर गिरा दिया, कुछ उसके पेट पर गिरा तो कुछ चूचियों पे और एक दो बूँद मुँह पर भी चला गया.

फिर थोड़ी देर ऐसे ही लेटे रहे, तो आशा ने कविता से कहा- चल तू भी कर ले. उसने मना कर दिया- मुझे यह नहीं पसंद. तो आशा ने कहा- वहाँ तो बड़ी अपनी चूत में उंगली करवा रही थी और यहाँ शरीफ बन गई? कविता कुछ न बोली. आशा ने ही कहा- चलो वीरू जी, एक बार और चोद दो. मैंने कहा उसे- गांड दे दे! पर वो नहीं मानी और चूत ही चोदनी पड़ी.

तो यह तो था कि कैसे मैंने आशा मिस की चूत मारी थी स्कूल टाइम में. अगले भाग में यह बताऊँगा कि 4 साल बाद अब कविता की चूत और गांड कैसे मारी. कहानी जारी रहेगी. [email protected] [email protected]

खुली आँखों का सपना-2

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