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प्रेषक : जितेन्द्र कुमार
हाय, मैं जितेन्द्र एक बार फिर एक नई कहानी के साथ आया हूँ।
तो कहानी पर आता हूँ !
आपको तो पता है कि मैं एक शेयर ब्रोकिंग कम्पनी का बिजनस करता हूँ, मेरा अपना दफ़्तर है। इस बार शनिवार का रक्षाबन्धन था और मेरे दफ़्तर की छुट्टी भी थी, और सोमवार 15 अगस्त तो लगातार छुट्टी तीन दिन थी। तो दीदी के ससुराल जाने का बहाना भी था और मौका भी ! मेरे और मेरी दीदी के लिये तो यह बस एक साथ समय बिताने का अच्छा मौका भर था।
मैंने शुक्रवार को ही अपनी दीदी के यहाँ की तैयारी कर ली और मेरी बीवी मेरा सामान पैक करते हुए काफ़ी खुश भी थी क्योंकि उसे मालूम था कि मैं जब भी जाता हूँ और वापस आता हूँ तो दीदी मेरी पत्नी रानी के लिये कुछ ना कुछ इम्पोर्टेड सामान देती है जिसके बहाने अक्सर दीदी मुझे बुलाती रहती हैं और रानी समझती है कि दीदी उसके लिये सामान देने के खतिर मुझे बुलाती हैं।
खैर मैं तो सब समझ और जानबूझ कर मना करता हूँ पर रानी जिद करके मुझे भेजती है। मैं कभी कभी रानी से कहता- दीदी मेरी है, और गिफ़्ट तुम्हें ही ज्यादा देती है?
तो वो भोली कहती- तो क्या दीदी मेरी भी तो हैं और उन्हें याद रहता है मेरी पसन्द का सामान !
खैर मेरी तैयारी हो गई और रानी मुझे दरवाजे तक छोड़ने आई। ना जाने क्यों कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता रहता है पर हिम्मत जबाब दे देती है कि सारी सच्चाइयों को बता दूँ, पर नहीं बता पाता हूँ, शायद उसके खोने का डर? और मिल रहे मजे का लालच भी तो है।
दीदी को पता था कि मैं आज आ रहा हूँ, जल्दी खाना बना कर फुर्सत से वो तैयार हुई थी।
जब उनके यहाँ पहुँचा तो दीदी ने ही दरवाजा खोला।
मेरा तो मुँह खुला का खुला ही रह गया, मैं पलके झपकाये बिना एक टक उसको ऊपर से नीचे तक निहारता ही रह गया- नीली साड़ी, कटवर्क ब्लाउज इतना झीना था कि शरीर साफ दिख रहा था, सीने की घाटी, पेट की नाभि की गोलाई !
क्या लग रही थी ! हल्का सा मेकअप भी कर रखा था !
मुझे ऐसे देख जरा मुस्कुरा कर एक तरफ़ हट गइ बोली- आओ ना, बाहर ही रहोगे क्या?
मैं घबरा गया, भले ही अब तक कई बार हम चुदाई कर चुके थे पर थी तो मेरी दीदी ! कभी कभी भूल जाता कि हमने सब कुछ कर रखा है। मेरे शरीर में झझनाहट सी हो गई और वो मुझे तिरछी नजर से देख मुस्कुराते हुए अन्दर के आई। आज हाथ पकड़ना करन्ट का काम कर रहा था। वैसे उनके साथ केवल उनकी दो ननद श्वेता (बी ए तीसरा साल), और प्राची (बी ए पहला साल) रहती हैं पर उनको शायद अभी मालूम नहीं था कि मैं घर आया हूँ क्योंकि उनके कमरे से किसी के फ़िल्मी गाना गाने की आवाज आ रही थी।
दीदी उनको बुलाने के लिये सोच ही रही थी कि मैंने कहा- रानी ने आपके और आपकी ननदों के लिये कुछ सामान भेजा है।
दीदी ने आवाज लगाई- सुनिये श्वेताजी प्राचीजी, बाहर आइये, देखिये कौन आया है !
दोनों जल्दी से बाहर आई, मैं सोफ़े पर बैठा था।
औपचारिकता के बाद दीदी ने उनका सामान उन्हें दिया और मेरे लिये कुछ खाने पीने का सामान ट्रे में लेकर आई।
अपना गिफ़्ट हाथों में लेकर बोली- कितनी चिन्ता करती है रानी ! इस सबकी कोई जरूरत नहीं थी, तुम्हें भेज दिया, मेरे लिए इससे बड़ा गिफ्ट क्या होगा।
और कहने के साथ ही सबसे नजर बचा कर मेरे पैन्ट के ऊपर देख मुस्कुरा दी।
मैं तो अचकचा कर उनकी दोनों ननदों को देखने लगा कि किसी ने देखा तो नहीं !
पर वे अपने कामों में लगी थी !
कुछ देर इधर उधर की बातें होती रही, फिर जल्दी ही खाने का नम्बर आ गया क्योंकि आज सप्ताह का आखिरी ‘कौन बनेगा करोड़पति’ आने वाला था। इसलिये सबने जल्दी जल्दी खाना खा लिया, श्वेता-प्राची दोनों बहनें बोली- हम लोग जा रही हैं अपने कमरे में प्रोग्राम देखने !
दीदी भी तो चाहती थी कि अब सोने का भी जल्दी कार्यक्रम बने पर ऊपर से शरीफ बनने का नाटक करते हुए बोली- क्यों आप लोग भी साथ में ही देखिये मेरे ही कमरे में !
श्वेता बोली- भाभी, हमें और आप लोगों को भी डिस्टर्ब होगा !
“वो कैसे?” दीदी ने पूछा तो बोली- आपने बहुत सारी बातें करनी होंगी और हमें टीवी देखना है, तो एक साथ तो होने से रहा !
अरे बाप रे ! (टाईम देखते हुए) भाभीजी, सॉरी हम चलीं अपने काम पर !
(और जाते हुए) आप लोग खूब-खूब सारी बातें करिये और रात छोटी पड़ जाए तो कल भी करिये !
जाते जाते उसने हमारी मन की बात कह दी, नादानी में ही सही पर मेरा दिल धाड़ धाड़ बजने लगा।
और हम लोग भी दीदी वाले कमरे में सोफ़े पर बैठ टीवी देखने लगे।
मैं जिस अवस्था में था, मेरे पीछे दरवाजा था जो हमने जानबूझ कर अभी खुला छोड़ रखा था। जब तब दीदी मेरे लण्ड को हौले से सहला देती जिससे मेरा लण्ड सोते से जाग जाता।
इसी तरह हमने पूरा प्रोग्राम खत्म किया और उसके बाद दूसरा दूसरा चैनल बदल देते जिससे उन दोनों को अगर इस कमरे की आवाज मिल रही हो तो समझें कि दीदी और मैं टीवी ही देख रहे हैं।
इसी तरह रात के बारह बज गये तो दीदी ने इशारे से उंगली को गोल कर उसमें दूसरी लम्बी उंगली डाल कर चुदाइ का इशारा बनाकर पूछा तो मैंने ओके का इशारा दिया।
तो दीदी रुकने का इशारा कर बाहर निकल उनके कमरे के पास जाकर सामान्य आवाज में कहा- श्वेता, लाइट बुझा देना !
और कुछ देर रुक कर अपने कमरे में आकर फ़ाइनली दरवजा बन्द कर नाइट बल्ब जला मेन लाइट बुझा दी और अपनी सारे कपड़े उतार फेंके, यहाँ तक कि एक धागा तक ना छोड़ा।
मैंने आलिंगन में लेकर दीदी को चूमा तो वो तड़प उठी। समय की परवाह किए बिना मैंने उसे ख़ूब चूमा। उसका बदन ढीला पड़ गया। मैंने उसे पलंग पर लेटा दिया और हौले हौले सारे बदन को चूम चूम कर ऊपर से नीचे तक चुम्बन छाप दिए। मेरा मुँह उसके एक चुचूक पर टिक गया, एक हाथ स्तन दबाने लगा, दूसरा भग के साथ खेलने लगा।
दीदी मुझे बेतहाशा चूमने लगी, थोड़ी ही देर में वो गर्म हो गई, उसने ख़ुद टांगें उठाई और चौड़ी करके अपने हाथों से पकड़ ली। मैं भी काफ़ी कुछ सोचा था, मैं बीच में आ गया। एक दो बार चूत की दरार में लण्ड का मटका रग़ड़ा तो मेरी प्यारी दीदी के नितम्ब डोलने लगे।
इतना होने पर भी उसने बदन की आग की आँच से अपनी आँखें बन्द की हुई थी। ज़्यादा देर किए बिना मैंने लण्ड पकड़ कर चूत पर टिकाया और हौले से अंदर डाला। दीदी की चूत रानी की चूत जितनी सिकुड़ी हुई ना थी लेकिन काफ़ी कसी थी और लण्ड पर उसकी अच्छी पकड़ थी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
आख़िर जब वो पूरा घुस गया तब मैंने दीदी के पाँव अपने कंधों पर लिए और तल्लीनता से उसे चोदने लगा। दीदी संकोचन करके लण्ड को दबाने की कला अच्छी तरह जानती थी।बीस मिनट की चुदाई में वो दो बार झड़ी। मैंने भी पिचकारी छोड़ दी और कुछ देर बाद दीदी के बदन से नीचे उतर गया।
कुछ ही देर बाद दुबारा चुदाई के लिये दीदी को तैयार करने के लिए मैं उसके बदन से खेलने लगा। इस तरह हम बाकी की पूरी रात चुदाइ करते रहे।
कहानी जारी रहेगी।
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