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आपने मेरी कहानी का पहला भाग
वक़्त से पहले और किस्मत से ज्यादा
पढ़ा होगा।
वो रात कैसे गुजर गई पता ही नहीं चला। कॉलेज के बाद पहली बार पूरी रात जागते हुए गुजरी थी, परीक्षा के दिनों की याद ताज़ा हो गई जब पूरी पूरी रात जागते हुए गुजर जाती थी और सुबह अगर पेपर ठीक से हो जाए तो एक मीठा मीठा सा एहसास पिछली रात की सारी थकान दूर कर देता था, यहाँ भी लगभग वैसा ही था, फर्क सिर्फ इतना था कि मेरी दोस्ती परीक्षक से हो गई थी इसलिए किसी बात का डर नहीं लग रहा था।
उस एक रात से जीवन में बदलाव सा आ गया था, मेरा यूरोप में लम्बे समय तक रहने का कोई इरादा नहीं था, हमेशा सोचा था कि चालीस की उम्र तक काम करूँगा, उसके बाद आराम और वापस अपने देश।
उस एक रात के साथ के बाद ऐसा लगा कि जीवन की दिशा बदल गई है। एक बार को लगा कि यह सब सिर्फ दोस्ती तक ही सीमित रहने वाला है और विदेशी लोग वैसे भी इस तरह के अनुभवों को ज्यादा महत्व नहीं देते।
तभी मुझे क्रिस्टीना ने हिलाया और उठने को कहा, उसने बाहर छोटे से किचन गार्डन की तरफ इशारा किया और मैं उसके पीछे पीछे एक जर-खरीद गुलाम की तरह चल पड़ा। सब कुछ विस्मित करने वाला था, दो कुर्सियाँ, एक सुन्दर सी तिपाई ! अखबार और चाय की केतली से निकलती हल्की-हल्की भांप।
उसने चाय बना कर दी और मैं चुपचाप उसको देखते हुए पीने लगा, शायद चाय के साथ-साथ उसको पीने की एक नाकाम कोशिश भी हो रही थी। वह अखबार पढ़ रही थी और बीच बीच में मुझे देख रही थी, शायद बिना कुछ कहे ही हम दोनों बीती रात के बारे में बातें कर रहे थे।
कुछ समय गुजरने के पश्चात उसने मुझसे पूछा- नाश्ता करना है या नहीं?
तब पता लगा कि चाय तो कब की ख़त्म हो चुकी थी और मैं काफी समय से हाथ में खाली मग लिए बैठा था।
इस समय मुझमें और मुझे से आधी उम्र के एक लड़के में कोई फर्क नहीं था। सब कुछ पहली बार हो रहा था और लगता था कि कोई किसी तरह से समय को रोक कर यहीं बिठा ले और कुछ भी न बदले।
उसने कहा- पहले नहा लो, फिर मैं नाश्ता तैयार करती हूँ।
यह कह कर उसने एक तौलिया मुझे पकड़ा दिया। मुझमें ऐसा करने की हिम्मत तो नहीं थी पर पता नहीं कैसे मैंने क्रिस्टीना का हाथ पकड़ लिया और उसको अपनी तरफ खींच लिया।
उसने कुछ नहीं कहा और ख़ामोशी से मेरा साथ देने लगी, हमारे होंठ मिले और बात फिर से चल निकली। हम दोनों कब बाथरूम में घुसे और कब कपड़े उतरे, पता ही नहीं चला। हम लोग बाथटब में उतर गये और मैं फिर से उसके शरीर के हर हिस्से को टटोलने लगा, कुछ ऊँचाइयाँ और कुछ गहराइयाँ, हाथ जैसे रुकने नाम ही नहीं ले रहे थे और जिस जगह से हाथ गुजरते थे, होंठ पीछे पीछे अपनी मोहर लगाने पहुँच जाते थे।
इन सब हरकतों की वजह से क्रिस्टीना शायद दो या तीन बार अपने चरम पर पहुँच चुकी थी।
अचानक उसने पूरी ताकत से मुझे अपने ऊपर से हटाया और नीचे पटक दिया और बिना देर किये अपने होंठ मेरे अंग पर टिका दिए और पूरी तन्मयता से मुझे ख़ुशी देने में जुट गई। कुछ समय बाद उसने मुझे टॉयलेट सीट पर बैठने को कहा और मेरे ऊपर आ गई। एक मीठा सा गरम एहसास हुआ और जैसे चाकू मक्खन मे उतर जाता है वैसे ही मैं भी उसकी गहराई में उतरता चला गया।
इस वक़्त यह बताना मुश्किल था कि चाकू कौन है और मक्खन कौन !
हद तो तब हो गई जब उसने ऊपर नीचे होना शुरू किया। मैं इस अचानक हमले के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था और लगभग मिनट दो मिनट में ही शहीद हो गया।
कुछ देर हम उसी अवस्था में बैठे रहे और एक दूसरे तो सहलाते रहे। क्रिस्टीना और मैंने फिर नहाना ख़त्म किया। तब तक सुबह के लगभग गयारह बज चुके थे यानि कि हम पूरे दो घंटे से बाथरूम में ही थे।
नाश्ता किया और सोचा कि सप्ताहांत है, कुछ देर बाहर घूम कर आते हैं, नींद या थकावट बिल्कुल नहीं थी।
क्रिस्टीना के घर से लगभग चालीस किलोमीटर की दूरी पर कुछ हेरिटेज खदानें थी, वहीं जाने का मन बनाया और निकल पड़े।
वहाँ का नज़ारा बहुत सुन्दर था, रखरखाव अच्छा होने के कारण लगता नहीं था कि यहाँ पर खनन का काम बंद हुआ एक अरसा गुजर चुका है।
क्रिस्टीना उस दिन रोजाना से ज्यादा सुंदर लग रही थी, उसकी चाल देख कर लग रहा था कि वो खुश थी।
हम दोनों एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चल रहे थे, कोई नहीं कह सकता था कि हम लोगों का साथ सिर्फ कल रात से ही था।
घूमते हुए शाम हो गई और फिर हमने एक साथ खाना खाया। खाना खाने के बाद मुझे लगा कि अब बहुत हुआ और उसको उसके घर छोड़ कर लौट जाना चाहिए।
हम रेस्तराँ से बाहर निकले और उसके घर के सामने मैंने कार रोक दी, हिम्मत नहीं हुई कि उसको इस एक दिन के लिए धन्यवाद दूँ और विदा लूँ।
कुछ देर हम ऐसे ही बैठे रहे, उसने मेरी तरफ देखा तो मैं अपने ख्यालों में खोया हुआ सर नीचे किये हुए बैठा था। उसने हल्के से मेरी पेशानी पर एक चुम्बन दिया और कहा- सोमवार को ऑफिस में मिलते हैं।
एक बार को मुझे बुरा लगा क्योंकि शायद मुझे उम्मीद थी कि आज की रात भी क्रिस्टीना के साथ गुजारनी चाहिए, फिर लगा नहीं यह उसकी मर्ज़ी पर है और मैं उसकी इच्छा का आदर करते हुए भारी मन से अपने छोटे से अपार्टमेन्ट में वापस आ गया।
भारत में अपने माता-पिता को छोड़ने के बाद पहली बार किसी का साथ इतना अच्छा लगा था। सिर्फ एक कमरे का स्टूडियो अपार्टमेन्ट होने के बाद भी आज मुझे सब कुछ खुला खुला लग रहा था, सब काटने को दौड़ रहा था।
बमुश्किल जूते ही उतार पाया और बिस्तर पर गिर गया, नींद कब आई पता नहीं चला।
पिछली लगभग पूरी रात जागा था और आज पूरे दिन भी नहीं सोया था, इसी वजह से नींद आ गई, वरना लगता नहीं था कि क्रिस्टीना के खयालों से बाहर निकल पाता।
क्योंकि अब मैं भी सो रहा हूँ, आप लोग भी थोड़ा आराम करें।
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