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जब से मुझे पर जवानी आई है, मन चुदने को करने लगा है, रंगीन सपने आने लगे हैं।
हाय, मुझे पहले की तरह फिर से कोई ऊपर चढ़ कर चोद डाले। मेरी चूचियाँ मसल डाले…मेरे नरम नरम होंठों को चूस डाले। मैं जैसे ही मूतने जाती हूँ तो मूतने के अलावा मुझे वहाँ बड़ी नरमी से मीठी मीठी खुजली चलने लगती है, फिर तो बस मुझे लण्ड की तलब भी जोरों से होने लगती है। कभी कभी तो मुझे गाण्ड चुदवाने की इच्छा भी होने लगती है, फिर हाय रे…मैं तो अपनी ही सोच पर शर्म से पानी पानी होने लगती है।
जब मेरे इस छोटे से दिल में इस तरह की बातें जब घर करने लगी तो मैं रात में अकेले में जाने क्या क्या सोचने लगने लगती थी। मैं बाहरवी कक्षा में आ चुकी थी, मेरे अंगों में अब तक काफ़ी उभार आ चुका था। कुछ मौसमी के आकार की मेरी चूचियाँ हो चुकी थी। सहेलियाँ भी अब कभी कभी मस्ती में आकर मेरी मौसमी जैसी चूचियों को दबा देती थी, फिर हंसती भी थी- ‘अरे ये तो अभी और बड़े होंगे…जरा बड़े होने दे फिर दबाने में और भी आयेगा मजा !’
पहले तो उनके ऐसे दबाने से जलन होने लगती थी, पर आजकल तो दिल में एक मीठी सी टीस उठने लगती है। सपनों में या मन की सोच में कभी कभी लण्डों को मैं अजीब आजीब से आकार में देखने लगती थी। कोई तो मोटा होता था तो कोई लम्बा, कोई काला तो कोई गोरा। फिर मैं उन्हें पकड़ कर दबाने लगती थी, उन्हें चूसने की कोशिश करने लगती थी। उफ़…यह लण्ड कैसा मोहक होता है…काश मेरी चूत में मुझे कोई जानदार लण्ड घुसा देता तो मैं निहाल हो जाती।
उन्हीं दिनों मेरे जीजू और दीदी घर आये हुये थे। मैंने दीदी को देखा तो सन्न सी रह गई… दीदी की चूचियाँ कितनी बड़ी हो गई थी, जिस्म भरा भरा सा लगने लगा था। गर्दन लम्बी और सुन्दर सी हो गई थी। चाल में लचक आ गई थी, चूतड़ मांसल हो गये थे।
मैंने अपनी चूचियाँ देखी, दीदी की तो बहुत ही बड़ी चूचियाँ थी। क्या जीजू ने दीदी को चोद दिया होगा। कैसे चोदा होगा…लण्ड को चूत में घुसा दिया होगा…इस्स्स्स्स, कितना मजा आया होगा।
जीजू तो कितने अच्छे लगते हैं, प्यार से बातें करते हैं, लण्ड चूत की बातें कितनी दिल को छू लेने वाली होती हैं। जीजू सिर्फ़ दीदी को चोदने के लिये ही हैं क्या…मुझे नहीं चोद सकते।
मेरे पास वाला कमरा दीदी का था। मेरे दिल में कसक सी उठती और फिर रात को मैं छुप कर उनकी बातें सुनने का प्रयत्न करती थी। पर अधिकतर तो मुझे तो दीदी की सिसकारियाँ, या हल्की चीखें ही सुनाई पड़ती थी। जरूर दीदी चुद रही होगी। चुदने के बाद सवेरे दीदी बहुत खुश नजर आती थी। मेरे मन में भी चुदने की उत्सुकता बढ़ने लगी।
मैंने बगीचे में जीजू को अखबार पढ़ते देखा तो सोचा दीदी तो भीतर काम कर रही है, क्यों ना एक बार जीजू पर ट्राई मार ली जाये। हिम्मत करके मैंने जीजू से पूछ ही लिया- जीजू, एक बात कहूँ?
‘हूंअ, कहो…’
‘दीदी को आप रात को मारा मत करो।’
‘आपसे दीदी ने कहा क्या?’
‘नहीं, पर दीदी के चीखने की आवाजें जो आती हैं ना।’
‘उसे जब मजा आता है ना तभी तो वो चिल्लाती है…’ जीजू ने शरारत से कहा।
‘अरे जीजू, मारने से मजा आता है क्या…’
‘नेहा जी, एक बार मरवा कर तो देखो !’ जीजू ने अपना तीर चला दिया। मेरा दिल अन्दर तक घायल हो गया।
मैंने शरमा कर जीजू को तिरछी निगाह से देखा। जीजू ने मुझे आँख मार दी। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैं शरमा कर अन्दर भाग गई, दिल जोर जोर से धड़कने लगा था, आह…ये जीजू ने क्या कह दिया ! क्या जीजू ने मेरे दिल की बात पहचान ली थी।
मेरा दिल मचल उठा। रात के लगभग ग्यारह बज रहे थे और दीदी की सिसकारियो और मस्त चीखों की आवाजें उभरने लगी थी। मेरा दिल मचल उठा।
मैं जल्दी से उठी और उनके कमरे के दरवाजे की दरार में से झांकने लगी। जीजू दीदी की मोटी मोटी चूचियाँ दबा रहे थे, दीदी सिसकारियाँ भर रही थी।
मेरे तो रोंगटे खड़े हो गये, अरे मर गई मेरे राम जी ! जीजू का लण्ड है या कोई लोहे का डण्डा, यह तो…इतना बड़ा…उईईई…फिर जीजू ये क्या कर रहे है…वो तो दीदी के बोबे दबा दबा कर उसकी गाण्ड में वही लोहे जैसा लण्ड डाल उसकी गाण्ड मार रहे थे।
मुझे बहुत जोर से शरम आने लगी। पर देखे बिना रहा भी नहीं जा रहा था। दिल जैसे उछल कर गले में आ गया था। मैं बस मंत्र मुग्ध सी आँखें फ़ाड़े देखती रह गई। मेरी चूत पनियाने लगी थी। बिना पैन्टी के मेरी जांघें भीगने लगी थी। मैं भी अपनी चूत दबा दबा कर मस्त सी होने लगी थी। मुझे जब होश आया तो वो दोनो झड़ चुके थे और एक दूसरे के ऊपर चढ़ कर चूमा-चाटी कर रहे थे।
मैं धीरे से अपने कमरे में लौट आई। पर मेरी आँखों में नींद कहाँ थी। बस जीजू और दीदी की गाण्ड मारने का दृष्य आँखों में घूम रहा था। मेरी नरम सी चूत की हालत बड़ी नाजुक हो रही थी। तेज खुजली सी मची हुई थी। मैंने धीरे से अपनी गाण्ड के छेद में अंगुली घुसाई तो आनन्द के मारे मेरे मुख से सिसकी निकल गई। दूसरे हाथ से मैंने अपनी चूत को दबा लिया। चूत को मसलते मसलते मैं दबी हुई सिसकारी के साथ मैं जोर से झड़ गई।
अब तो जीजू मुझे किसी सेक्सी फ़िल्मी हीरो जैसे लगने लगे थे, वो तो मेरे लिये कामदेव की तरह हो चुके थे। दिन को भी मैंने अन्जाने में दो बार हाथ से चूत को घिस घिस कर, जीजू के नाम से अपना पानी निकाल दिया था।
मेरी नजरें बदल गई थी, जीजू ने भी मेरी हालत जान ली थी, वो इस मामले में बहुत तेज थे, उनकी मस्त निगाहें मुझे बार बार चुदने का निमंत्रण देने लगी थी, उनकी नजरें भी प्यार बरसाने लग गई थी।
मेरी नजरों में भी वो चुदाई का आमंत्रण वो पढ़ चुके थे।
कहानी जारी रहेगी।
नेहा वर्मा कहानी का अगला भाग: कैसे कन्ट्रोल करूँ-2
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