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लेखक : जीत शर्मा
दोस्तो ! यह कथा मेरी कहानियों की एक पाठिका सिमरन कौर की है जिसकी अगले महीने शादी होने वाली है। उसने अपनी एक समस्या के बारे में मेरी सलाह माँगी है। मैंने इस सम्बन्ध में अपने मित्र प्रेम गुरु से चर्चा की थी, उन्होंने मुझे समझाया कि आजकल के पाठक बहुत गुणी और तज़ुर्बेदार हैं, तुम इस समस्या के बारे में उनसे ही सलाह लो !
इसलिए मैं चाहता हूँ सिमरन की कहानी पढ़ने के बाद आप अपनी अमूल्य राय सिमरन और मुझे जरूर बताएँ। चलो मैं पूरी बात सिमरन की जुबानी बताता हूँ :
मेरा नाम सिमरन है, मेरी उम्र 24 साल है, मैं खाते पीते परिवार की हूँ और लुधियाना में रहती हूँ। आप तो जानते ही हैं पंजाबी लड़कियाँ जितनी खूबसूरत होती हैं उतनी ही चुदक्कड़ भी होती हैं और चुदाई का भरपूर मज़ा लेती और देती हैं। फिर मैं तो पूरी पटोला हूँ।
एक खास बात आपको बता दूँ, मेरे नितम्ब बचपन से ही बहुत भारी और कामुक हैं। इसलिए मेरे पीछे लौंडे लपाड़ों ने घूमना शुरू कर दिया था। मैं जब अपने कूल्हों को खूब मटका मटका कर चलती थी तो लोगों के दिलों पर बिजलियाँ ही गिर जाती थी। मेरे मटकते कूल्हों की थिरकन देखकर कई तो अपने अंडरवीयर में ही घीया हो जाया करते थे।
मैंने अपनी स्कूल की पढ़ाई कन्या विद्यालय से की थी। उस समय भी क्लास के मास्टर किसी ना किसी बहाने मेरे नितंबों को दबाने से बाज नहीं आते थे। उस चश्मू मास्टर की तो बात ही छोड़ो। उसकी काइयां आँखें तो मेरी स्कर्ट के नीचे दोनों जांघों के बीच ही उलझी रहती थी।
दरअसल स्कूल की सभी लड़कियाँ स्कर्ट और छोटी कच्छी ही पहनती थी। मेरी जांघें और चूत की फाँकें थोड़ी मोटी हैं तो कच्छी मेरी चूत की फाँकों में फंस जाया करती थी। मैं कई बार अपना हाथ स्कर्ट के नीचे डाल कर कच्छी को थोड़ा बाहर खींचा करती थी। हरामी चश्मू तो बस इसी ताक में रहता था कि कब मैं अपनी जांघें थोड़ी चौड़ी करूँ और कब वो मेरी मखमली जांघों का दीदार कर पाए।
और जब भी कोई गलती हो जाती या होम वर्क में कोई गलती हो जाती तो वो मेरे गालों पर थप्पड़ भी लगता और नितंबों पर चिकोटी भी काटता। खैर ये पुरानी बातें हैं।
एक और घटना का जिक्र मैं जरूर करूँगी। मैं जब 12th में थी तब एक शादी में अपने ननिहाल गई थी। उस समय मेरे मामा के लड़के ने जो मेरी ही उम्र का था उसने मुझे अपनी बाहों में भर कर चूम लिया था। मेरे सारे शरीर में एक अनोखा रोमांच भर गया था। आज भी कई बार मैं उस प्रथम चुंबन को याद करके रोमांच में डूब जाती हूँ।
बात उस समय की है जब मैं बी.सी.ए. करने कॉलेज में नई नई गई थी। मेरी उभरे हुए बूब्स और मोटे नितंबों का तो पूरा कॉलेज ही दीवाना बन गया था। जैसे कि सब जवान होती लड़कियों के साथ होता है मेरे जेहन में भी बहुत से सवाल आते थे। जैसे सेक्स क्या होता है ? क्या उसमें लड़की को भी मज़ा आता है ? पहली चुदाई में दर्द तो नहीं होता ? । मैंने कई बार मम्मी पापा के कमरे से कामुक सिसकारियाँ और आवाज़ें सुनी हैं। पहले तो मुझे इन बातों का मतलब समझ नहीं आता था पर बाद में मुझे सब समझ आने लगा था।
मेरी ज्यादातर सहेलियों ने अपने अपने पप्पू (बॉय फ्रेंड) बना रखे थे और वो अक्सर अपने पप्पुओं के बारे में मज़े ले ले कर बताती थी कैसे उनको पपलू बनाया। वो ब्लू फिल्मों के बारे में भी बताया करती थी और कई तो चुदाई के किस्से भी सुनाया करती थी। पिया (मेरी एक सहेली) तो अपने मोबाइल पर ब्ल्यू फिल्म भी देखती थी। एक दो बार मुझे भी उसने क्लिप दिखाई थी। उसके बाद तो मेरी चूत में भी खुजली होने लगी थी। मैंने भी अपनी चूत में अंगुली करनी शुरू कर दी थी। पर अब मुझे भी एक अदद लंड की सख्त जरूरत महसूस होने लगी थी।
फिर मैंने भी अपना एक पप्पू बना ही लिया। वो मेरे से एक क्लास आगे था। नाम था सुमित। उसका रंग गोरा था, गालों में लड़कियों की तरह डिंपल, चाल लड़कियों की तरह। मोटी मालदार आसामी की औलाद था, सोचा कि माँ बाप का दहेज बचा लूं। मैंने उसके साथ सपने देखने शुरू कर दिए थे।
उसके ज्यादा दोस्त नहीं थे बस एक पहलवान टाइप का लड़का हर समय उसके साथ चिपका रहता था। उसका रंग थोड़ा सांवला सा था और चहरे पर छोटी छोटी दाढ़ी रखता था। पहले तो उसने मेरी ओर ध्यान ही नहीं दिया पर मेरे नितम्बों की थिरकन और आँखों की चंचल चितवन से कब तक बचता।
फिर हम दोनों में दोस्ती हो गई और हम कई बार कॉलेज से बंक मारकर सिनेमा या पार्क में चले जाते कभी रेस्टोरेंट में। पर मैंने महसूस किया कि वो बेकार की बातें ज़्याद करता था। पहला किस भी मेरे बहुत जोर देने पर हमारी दोस्ती के लगभग 3 महीने बाद लिया था। कई बार तो मुझे उसके इस लल्लूपने पर गुस्सा भी आता था पर फिर उसकी मासूमियत देख कर प्यार भी आ जाता था। आपको तो पता ही है ऐसे पप्पू बहुत अच्छे पति साबित होते हैं। इनको अपनी चूत से चिपका कर सारी उम्र पपलू बनाकर रखा जा सकता है। अपने मालदार माँ बाप की अकेली औलाद था। मैंने सोच लिया था की अपने माँ बाप का दहेज का कुछ बोझ हल्का कर दूँ। मैंने सोच लिया था कॉलेज की पढ़ाई के बाद हम शादी कर लेंगे।
मुझे बड़ी हैरानी होती थी कि जब भी मैं कोई रोमाँटिक या सेक्स के टॉपिक पर बात करती तो वो किसी बहाने से बात को बदल दिया करता था। सच कहूँ तो इसकी जगह कोई पंजाबी गबरू होता तो कभी का मेरी चूत और गांड दोनों की ठुकाई कर चुका होता। पर मैं उसके शर्मीलेपन को जानती थी।स
फिर मैंने एक दिन अपनी सहेली को इस बात के लिए मना लिया कि जिस दिन उसके घर वाले कहीं बाहर गये होंगे, वो मुझे अपने घर पर बुला लेगी और फिर मैं अपने इस पप्पू के साथ मजे से गुटरग़ूँ कर लूंगी।
आखिर एक दिन हमें वो मौका मिल गया। मेरी सहेली के माँ बाप दोनों किसी शादी में गये थे। आप तो जानते ही हैं कि पंजाब में शादियाँ दिन में भी होती हैं। घर पर कोई नहीं था। इससे अच्छा मौका फिर कहाँ मिलता। हम दोनों उसके घर पहुँच गये। पिया (मेरी सहेली) ने हमें अपने कमरे में अकेला छोड़ दिया और बाहर चली गई।
हमने चूमा चाटी शुरू कर दी। पर सुमित तो उसे आगे ही नहीं बढ़ रहा था। पता नहीं क्या बात थी। वो डर रहा था या कोई और बात थी। मैं बहुत गर्म हो चुकी थी। मेरी चूत तो बेचारी रोने ही लगी थी। मैंने पैंट के उपर से उसका लंड पकड़ना चाहा तो वो कुनमुनाने लगा और बोला- नहीं सुम्मी, यह सब ठीक नहीं है।
मुझे लगा उसका खड़ा ही नहीं हुआ है वरना ऐसी हालत में तो लंड पैंट फाड़कर बाहर आ जाता है।
फिर वो चलने को बोलने लगा। इतनी मुश्किल के बाद मौका मिला था और ये लल्लू उस रसीले फल को वर्जित फल समझ कर खाने से इनकार कर रहा है जो इस संसार को अमरता देता है। मुझे तो इतना गुस्सा आ रहा था कि इसकी गांड पर जोर से एक लात ही लगा दूँ।
इससे पहले कि मैं कुछ करती, पिया ने दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया। उसने बताया कि उसका भाई कॉलेज से आ गया है। मज़बूरन हमें बिना कुछ किए धरे वापस आना पड़ा। मेरा मूड खराब हो गया, मैंने 2-3 दिन उससे बात नहीं की। लेकिन फिर मैं अपने आप को नहीं रोक पाई।
सुमित ने एक बार मुझे अपने एक दोस्त (शमशेर) के बारे में बताया था कि वो किसी किराए के मकान में अकेला ही रहता है। मुझे पता है सुमित कई बार उसके साथ जाया करता था। मैंने सुमित को इस बात के लिए मना लिया कि किसी दिन हम दोनों उसके कमरे में जाकर अपने मन की मुराद पूरी कर लेते हैं। सुमित बड़ी मुश्किल से तैयार हुआ।
सुमित अपने दोस्त से उसके कमरे की चाबी ले आया और हम दोनों बाइक से उसके कमरे में आ गये। हमने अंदर से कुण्डा (सांकल) लगा लिया। कमरे में एक बेड पड़ा था। कमरे में आते ही मैं उसे चिपक गई। फिर हम दोनों एक दूसरे की बाहों में लिपटे बेड पर आ गये।
मैं चाहती थी वो अपने हाथों से मेरे कपड़े उतारे। पर वो तो पता नहीं क्या सोचे जा रहा था। मेरे चुंबनो का भी कोई उत्तर नहीं दे रहा था। मैंने अपनी सलवार और कुर्ती उतार दी। अब मैं सिर्फ ब्रा और पेंटी में ही थी। मैंने उसकी पेंट की जीप को खोलने की कोशिश की तो वो फिर से कुनमुनाने लगा। मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने बूब्स पर लगा लिया। मेरी चूत इस समय पूरी गीली हो चुकी थी। साँसें बहुत तेज़ हो गई थी।
“ओह… सुमित… प्लीज मुझे कसकर अपनी बाहों में भर लो ना?” मेरा अंग अंग रोमांच में डूबा था।
मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और आने वाले सुनहरे पलों के इंतज़ार में डूब गई। मैं चाहती थी आज सुमित मुझे बाहों में भरकर मेरे और अपने सारे अरमान पूरे कर ले। सुमित ने मेरी ब्रा खोल दी और मेरे उरोजों को चूमने लगा। मेरी चूत फिर से टसुवे बहाने शुरू कर दिए थे।
“आ … वो… सु…. सु… सुम्मी…”
“ह्म्म…?”
“वो … दरअसल यह सब ठीक नहीं है… कोई आ जाएगा ? सुम्मी…. चलो अब चलते हैं…”
“ओहो… थोड़ी देर रुको ना !” मैंने आँखें बंद किए हुए ही कहा।
“नहीं मैं जा रहा हूँ… तुम्हें चलना हो तो चलो… नहीं तो मैं जा रहा हूँ…”
वो अचानक बेड से उठा और कमरे से बाहर जाने लगा। मैंने सोचा शायद मज़ाक कर रहा है। अभी वापस आकर मुझे अपने आगोश में ले लेगा।
मैं इसी तरह बेड पर पड़ी रही। एक हाथ से अपने बूब्स मसल रही थी और एक हाथ से अपनी पेंटी के ऊपर से अपनी गीली चूत को सहला रही थी। अचानक मुझे अपने चेहरे पर गर्म साँसें महसूस हुई। मैं जानती थी वो जरूर आएगा। मैंने आँखे बंद किए हुए ही अपनी बाहें फैला दी। वो मेरे बाहों में आ गया और अपने होंठों को मेरे होंठों से लगा कर चूमने लगा।
मैंने उसे कस कर अपनी बाहों में भींच लिया। उसका एक हाथ मेरे बूब्स को दबाने लगा और एक हाथ मेरी पेंटी पर लगा कर मेरी चूत को मसलने लगा। मैंने महसूस किया उसने केवल अंडरवीयर ही पहना है। उसके लंड का अहसास मुझे पहली बार हुआ। मैंने हाथ बढ़ा कर अंडरवीयर के ऊपर से ही उसका लंड पकड़ लिया। मेरा अंदाज़ा था वो 6 इंच से कम नहीं होगा। मोटा भी लग रहा था। मेरा तो मन कर रहा था जल्दी से इसे पकड़ कर खुद ही अपनी कुलबुलाती चूत में डाल लूँ।
अचानक मुझे…
कहानी जारी रहेगी।
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प्रकाशित : 15 जनवरी, 2013
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