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लेखक : प्रेम गुरु
प्रथम भाग आप अन्तर्वासना पर पढ़ ही चुके हैं, अब उससे आगे :
वो मुझे गोद में उठाये ही कमरे में आ गया।
अन्दर जीरो वाट का बल्ब जल रहा था। उसने मुझे बेड पर लेटा दिया पर मैंने अपने पैरों की जकड़न ढीली नहीं होने दी तो वो मेरे ऊपर ही गिर पड़ा। इस समय उसका भार तो मुझे फूलों की तरह लग रहा था। मेरे दोनों उरोज उसकी चौड़ी छाती के नीचे पिस रहे थे। उसने मेरे अधरों को चूसना चालू रखा। रोमांच के कारण मेरी आँखें बंद हो गई थी और मैं मीठी सीत्कारें भरने लगी थी। पता नहीं कितनी देर हम ऐसे ही आपस में गुंथे पड़े रहे।
थोड़ी देर बाद निखिल बोला,”नीरू तुमने तो मेरे राजा को देख लिया ! अब मुझे भी तो अपनी रानी के दर्शन करवाओ ना ?”
“मैंने तो खुद देखा था, तुमने थोड़े ही दिखाया था ?”
“क्या मतलब ?”
“ओह… तुम भी लोल (मिटटी के माधो) ही हो ? तुम भी अपने आप देख लो ना ?” मैंने तुनकते हुए कहा।
पहले तो उसे कुछ समझ ही नहीं आया। वो तो सोच रहा था मैं मना कर दूँगी। फिर वो झटके के साथ खड़ा हुआ और उसने मेरा कुर्ता उतार दिया। मेरी गदराये हुए अमृत कलश तो जैसे उस कुरते में घुटन ही महसूस कर रहे थे। अब तो वो किसी आजाद परिंदों की तरह फड़फड़ाने लगे थे। उनके चूचक तो नुकीले होकर सीधे तन गए थे।
फिर उसने मेरी सलवार का नाड़ा भी खींच दिया। मैंने अन्दर पेंटी तो पहनी ही नहीं थी। मैं बिस्तर पर चित्त लेट गई थी। हलकी रोशनी में भी मेरा दमकता और गदराया हुस्न देख कर वो तो भौंचका ही रह गया। मेरे गोल गोल उरोज, पतली कमर और छोटे छोटे रेशमी और घुंघराले बालों से ढकी छमक छल्लो के बीच कि गुलाबी और रस भरी गुफा को देख कर वो तो ठगा सा ही रह गया था। उसके मुँह से कोई बोल ही नहीं निकल पा रहा था।
कुछ देर बाद उसके मुँह से तो बस इतना ही निकला,”वाह कितनी प्यारी चूत है तुम्हारी … लाजवाब …..”
मैंने झट से अपना एक हाथ अपनी छमक छल्लो पर रख लिया। और फिर उसने भी अपना कुर्ता और पाजामा निकाल फेंका और मेरी जाँघों के बीच बैठ गया। उसने अपने हाथ मेरी जाँघों पर फिराने शुरू कर दिए। उसने होले से मेरे हाथ रानी के ऊपर से हटा दिया और अपना हाथ फिराने लगा। उसकी अँगुलियों का स्पर्श पाते ही मुझे अन्दर तक गुदगुदी और आनंद का अहसास होने लगा। जैसे ही उसने अपनी अंगुली मेरे चीरे पर फिराई मेरी मदनमणि तो मछली की तरह तड़फ उठी। उसने अपना मुँह नीचे करके मेरी छमक छल्लो के होंठों को चूम लिया। उसकी गर्म साँसें जैसे ही मुझे अपनी छमक छल्लो पर महसूस हुई उसने एक बार फिर से काम-रज छोड़ दिया।
फिर वो मेरी बगल में आकर लेट गया। और मैं भी अब करवट के बल उससे चिपक गई। उसका मोटा लण्ड मेरी जांघों से टकरा रहा था। उसने अपना एक हाथ मेरे सिर के नीचे लगा कर मुझे जोर से अपनी और भींच लिया। अब उसका दूसरा हाथ मेरे नितम्बों की गहरी खाई में फिरना चालू हो गया। मैंने अपना एक पैर उठा कर उसकी कमर पर रख दिया तो नितम्बों की खाई और भी चौड़ी हो गई। अब आसानी से उसकी अंगुलियाँ मेरी छमक छल्लो और फूल कुमारी का मुआयना करने लगी। अँगुलियों के स्पर्श मात्र से ही मुझे चूत के अन्दर तक गुदगुदी और आनद का अहसास होने लगा। मैं बहदवास सी होती जा रही थी। जैसे ही उसने छमक छल्लो की कलिकाओं को मसलना चालू किया, मेरा अब तक रुका हुआ झरना फूट पड़ा। उसका पानी निकाल कर मेरी फूल कुमारी (गांड) को भिगोने लगा।
जैसे ही उसकी अंगुलियाँ मेरी फूल कुमारी के छेद से टकराती तो उसके स्पर्श मात्र से ही मेरे सारे शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती। मेरी लिसलिसी चिकनी चूत की फांकों के बीच थिरकती हुई उसकी अंगुली जैसे ही मेरे दाने को छूती मेरा बदन झनझना उठता। जैसे ही उसकी अंगुली मेरी गुलाबी चीरे पर घुमती तो मैं बस यही सोचती कि अब इस कुंवारे छेद का कल्याण होने ही वाला है।
फिर उसने अपनी अँगुलियों से मेरी छमक छल्लो की फांकें खोलने की कोशिश की तो मैंने उसे ढीला छोड़ दिया। जैसे ही उसकी अंगुली मेरे दाने (भगान्कुर) से टकराई मेरी कामुक सीत्कार निकल गई। उसने अपने अंगूठे और तर्जनी अंगुली से मेरे दाने को पकड़ कर दबाना चालू कर दिया। मेरा सारा शरीर अनोखे रोमांच से झनझना उठा। मैंने भी उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और जोर से दांतों से दबा दिया। जैसे ही उसका तन्नाया लंड मेरी चिकनी जाँघों से टकराया मेरा सारा शरीर कसमसा उठा। मैंने अपना पैर उसकी कमर से हटा कर अपना हाथ थोड़ा सा नीचे किया और उसके बेकाबू होते मस्त कलंदर को पकड़ लिया। उसकी साँसें तेज होने लगी थी और लंड झटके पर झटके खाने लगा था।
“नीरू यार अब नहीं रुका जा रहा है !”
“ओह … निखिल … अब बस कुछ मत पूछो ! जो करना है कर डालो … आह ….. जल्दी करो नहीं तो मैं मर जाउंगी … आह ……”
मेरी रस भरी मीठी हामी सुनते ही वो मेरे ऊपर आ गया और अपने लंड को मेरी छमक छल्लो की गुलाबी फांकों के बीच रख दिया। धीरे धीरे उसने अपना लंड मेरी फांकों की दरार में रगड़ना चालू कर दिया। मैंने दम साध रखा था। उसने मेरे दाने को भी अपने लंड से रगड़ा और वहीं जोर लगाने लगा। बुद्धू कहीं का !
उसे शायद छमिया का छेद मिल ही नहीं रहा था। मेरी छमिया तो वैसे भी बिल्कुल कुंवारी थी और छेद तो बहुत कसा हुआ और छोटा था इतना मोटा लंड उस छेद में बिना किसी सहारे के अन्दर जाता भी कैसे। उसने दो तीन धक्के ऐसे ही लगा दिए। लंड ऊपर नीचे फिसलता रहा जैसे कुछ खोज रहा हो। मुझे उसकी इस हालत पर हंसी भी आ रही थी और तरस भी आ रहा था। इसे पंजाबी में कहते हैं “अन्नी घुस्सी, डांग फेरना !” मुझे डर था कहीं वो कुछ किये बिना ही शहीद ना हो जाए। मैंने सुना था कि कई बार बहुत उत्तेजना और पहली बार अन्दर डालने के प्रयाश में ही आदमी का कबाड़ा हो जाता है। मैं कतई ऐसा नहीं चाहती थी।
(पंजाबी में ! अन्नी= अन्धी, घुस्सी=चूत, डांग=लाठी)
मैंने उसका लंड अपने हाथ में पकड़ा और थोड़ा नीचे करके ठीक गंतव्य (निशाने) पर लगाया। अब मैंने दूसरे हाथ से उसकी कमर को नीचे करने का इशारा किया। अब वो इतना फुद्दू (अनाड़ी) भी नहीं था कि मेरे इशारे को न समझता। मेरी गीली छमिया पर घिसने और प्री-कम के कारण उसका सुपारा भी गीला हो चुका था। उस अनाड़ी ने मेरी कमर पकड़ कर एक जोर का धक्का लगा दिया। धक्का इतना जबरदस्त था कि उसका 7 इंच का लंड मेरी कौमार्य झिल्ली को फाड़ता हुआ अन्दर बच्चेदानी से जा लगा। मुझे लगा जैसे किसी नाग ने मुझे डंक मार दिया है। मैंने अपने आप को रोकने की बहुत कोशिश की पर मेरी घुटी घुटी सी चीख निकल गई। यह तो निखिल ने अन्दर आते समय दरवाजा बंद कर लिया था नहीं तो मामा मामी को जरुर सुनाई दे जाता।
मुझे लगा जैसे लोहे की कोई गर्म सलाख मेरी मुनिया में घुसा दी है। मैंने बहुत सी कहानियों और फिल्मों में कमसिन लड़कियों को बड़े मज़े से मोटे मोटे लंड अपनी चूत और गांड में लेते पढ़ा और देखा था पर मेरी हालत तो इस समय बहुत खराब थी। मेरी आँखों से आंसू निकालने लगे थे और मुझे लग जैसे मेरी प्यारी मुनिया को किसी ने चाकू से चीर दिया है। कुछ गर्म गर्म सा भी मुझे अन्दर महसूस हुआ यह तो जब मैंने सुबह चादर देखी तब पता चला कि मेरी कुंवारी छमक छल्लो की झिल्ली फटने से निकला खून था। अब वो कुंवारी नहीं रही सुहागन बन बैठी थी।
खैर जो होना था, हो चुका था। निखिल बिल्कुल चुपचाप अपना लंड अन्दर डाले मेरे ऊपर अपनी कोहनियों के बल लेटा था। उसे डर था कहीं मैं दर्द के मारे बेहोश ना हो जाऊं। मैं जानती थी कि यह दर्द तो बस थोड़ी ही देर का है, बाद में मुझे भी मज़े आने लगेंगे। निखिल ने मेरे आंसुओं को अपनी जीभ से चाट लिया और मेरे गालों और होंठों को चूमने लग। उसका एक हाथ मेरे सर के नीचे था वो दूसरे हाथ से मेरा माथा और सर सहलाने लगा। उसका प्यार भरा स्पर्श मुझे अन्दर तक प्रेम में भिगो गया। उसकी आँखों में झलकते संतोष को देख कर मेरा दर्द जैसे हवा ही हो गया। वो बेचारा तो कुछ बोलने की स्थिति में ही नहीं था।
थोड़ी देर बाद मैं भी कुछ सामान्य हो चली थी। मेरा दर्द अब कम हो गया था और मेरे कानों में अब जैसे मीठी सीटियाँ बजने लगी थी। मैं सब कुछ भुला कर दूसरे लोक में ही पहुँच गई थी।
उसने डरते डरते पूछा,”नीरू ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा ?”
“अब जो होना था हो गया। तुम चिंता मत करो मैं सब सहन कर लूँगी !”
“ओह मेरी प्यारी नीरू ! मेरी मैना … तुम कितनी अच्छी हो ” और उसने मेरे होंठों को एक बार फिर से चूम लिया। मैं भला पीछे क्यों रहती, मैंने भी उसके होंठों को इतना जोर से काटा कि उसके होंठों से खून ही झलकने लगा। पर अब इस मीठे दर्द की उसे कहाँ परवाह थी। हाँ दोनों अपने प्रेम युद्ध में जुट गए। अब उसे भी जोश आ गया और वो उछल उछल कर धक्के लगाने लगा। वो कभी मेरे होंठों को चूमता, कभी मेरे उरोजों को चूसता। कभी उनकी छोटी छोटी घुंडियों को दांतों से दबा देता। मेरी छमिया अब रवां हो गई थी और लंड आराम से अन्दर बाहर होने लगा था। अब तो फिच्च फिच्च का मधुर संगीत बजने लगा था जिसकी धुन पर उसका मिट्ठू और मेरी मैना थिरक रहे थे। मैं तो अब सातवें आसमान पर ही थी।
सच कहूं तो इस चुदाई जैसी मधुर और आनंद दायक चीज दुनिया में दूसरी कोई हो ही नहीं सकती। इस नैसर्गिक सुख के तो सभी दीवाने हैं। और जो सुख और फल चोरी के होते हैं उनका मज़ा और स्वाद तो वैसे भी कई गुणा ज्यादा होता है। लोग झूठ कहते हैं कि मरने के बाद स्वर्ग मिलता है। अगर स्वर्ग जैसी कोई कल्पना या जगह है भी तो बस यही है…. यही है….
हमें कोई 10-12 मिनट तो हो ही गए थे। निखिल की साँसें अब तेज़ होने लगी थी। वो तो निरा अनाड़ी ही था बिना रुके धक्के लगाये जा रहा था। चलो धीरे धीरे उसे चुदाई के सही तरीके आ ही जायेंगे। मेरी छमिया ने तो इस दौरान दो बार पानी छोड़ दिया था। हम दोनों की कामुक और आनंदमयी सीत्कारें कमरे में गूँज रही थी। वो कभी मेरे उरोजों को चूसता कभी उनके चूचकों पर जीभ फिरता। कभी मेरे होंठों को कभी गालों को चूमता। एक हाथ से मेरे एक उरोज को कभी मसलता कभी होले से दबा देता। उसका दूसरा हाथ मेरे नितम्बों पर फिर रहा था। जाने अनजाने में जब भी उसकी अंगुली मेरी फूल कुमारी को छू जाती तो मेरी छमिया के साथ ही फूल कुमारी भी संकोचन करने लगती।
अब मुझे लगने लगा था कि निखिल ज्यादा देर अपने आप को नहीं रोक पायेगा। उसकी साँसें तेज होने लगी थी और उसके धक्कों की गति बढ़ गई थी। उसका चेहरा तमतमाने लगा था और उसके मुँह से गुर्रर्रर…. गुर्रर्रर… की आवाजें आने लगी थी। उसने मुझे इशारा किया कि वो झड़ने वाला है। मैंने उसे जोर से अपनी बाहों में जकड़ लिया।
मेरी स्वीकृति पाकर तो उसके चहरे की रंगत देखने लायक हो गई थी। जैसे किसी बच्चे को कोई मन पसंद खिलौना मिल जाए और उसे मर्ज़ी आये वैसे खेलने दिया जाए तो कहना ही क्या। मैंने कहीं पढ़ा था कि वीर्य को योनि में ही निकालने की चाह कुदरती होती है। इसका एक कारण है। नर हमेशा अपनी संतति को आगे बढ़ाने की चाहत रखता है इसलिए वो अपना वीर्य मादा की योनि में ही उंडेलना चाहता है। मेरी भी यही इच्छा थी कि निखिल अपना प्रथम वीर्यपात मेरी योनि में ही करे। मुझे पता था कि माहवारी ख़त्म होने के 5-7 दिन बाद तक गर्भ का कोई खतरा नहीं होता।
जोश जोश में उसने 4-5 धक्के और भी तेजी से लगा दिए। उसका घोड़ा तो जैसे बे-लगाम होकर दौड़ने लगा था। मेरे अन्दर तेज़ और मीठी आग भड़कने लगी थी और फिर अन्दर जैसे पानी की गर्म फुहार सी महसूस हुई और मेरा काम-रज छूट पड़ा। मेरी छमिया लहरा लहरा कर प्रेम रस बहाने लगी और उसका लंड उसे हलाल करता रहा।
फिर उसने मुझे जोर से अपनी बाहों में भींच लिया और उसके साथ ही उसकी भी पिचकारी फूट गई। मेरी छमिया तो उसके अमृत को पाकर नाच ही उठी, उसका मिट्ठू तो धन्य होना ही था। उसने मेरे गालों, होंठों और मम्मों (उरोजों) पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी। हम दोनों ही मोक्ष को प्राप्त हो गए जिसे प्रेमीजन ब्रह्मानन्द कहते हैं। कोई भी गुणी आदमी इसे चुदाई जैसे घटिया नाम से तो संबोधित कर ही नहीं सकता। हम दोनों ने एक साथ जो अपना कुंवारापन खोया था वो तो अब कभी लौट कर वापस नहीं आएगा पर उसके साथ ही हमने इस संसार का सबसे कीमती सुख भी तो पा लिया था।
कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है। फिर यह तो यह तो प्रेम की बाजी थी।
खुसरो बाजी प्रीत की खेलूं ’पी’ के संग,
जीतूं गर तो ’पी’ मिलें हारूँ ’पी’ के संग !
बस अब आगे और मैं क्या बताऊँ अब तुम इतने अनाड़ी तो नहीं हो की तुम्हें यह भी बताना पड़े की हमने बाथरूम में जाकर सफाई की और कपड़े पहन कर निखिल बाहर हाल में सोने चला गया और मैं दूसरे दिन की चुदाई (सॉरी प्रेम मिलन) के मीठे सपनों में खोई नींद के आगोश में चली गई।
“बस मेरे मिट्ठू मेरी पहली चुदाई की तो यही दास्ताँ है !”
“बहुत खूब … वाह मेरी रानी मैना तुमने तो जवानी में कदम रखते ही मज़े लूटने शुरू कर दिए थे।”
“धन्यवाद प्रेम ! मेरी इस पहली चुदाई के किस्से को कहानी का रूप देकर जल्दी प्रकाशित करवा देना भूलाना मत। तुम हर काम धीरे धीरे करते हो ?” कह कर वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
“इस बार से मैं जल्दी जल्दी काम को निपटाया करूंगा ?”
“धत्त ! मैं उस काम की बात नहीं कर रही ? ओह.. मैं मतलब की बात हो भूल ही गई … हाँ … वो किसी चिकने लौंडे का फ़ोन नंबर और आई डी भी जरुर देना … अब मुझ से देरी सहन नहीं हो रही है। मुझे इन नौसिखिए और चिकने लौंडों का रस निचोड़ना बहुत अच्छा लगता है।”
“ठीक है मेरी मैना “
“बाय…. मेरे मिट्ठू ………”
दोस्तो ! तो यह थी नीरू बेन की पहली चुदाई। आपको कैसी लगी? इसके
बारे में उसे जरुर मेल करना और अपनी राय अन्तर्वासना पर भी भेजना उसे ख़ुशी होगी !
क्या मुझे नहीं बताएंगे कि आपने नीरू को क्या लिखा ?
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