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प्रेषिका : निशा भागवत
जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी तब मैं राहुल से बहुत प्यार करती थी।
मेरी एक हमराज सहेली भी थी विभा… वो मेरी राहुल से मिलने में बहुत मदद करती थी। एक तो वो अकेली रहती थी और वो मेरे अलावा किसी से इतनी घुली मिली भी नहीं थी। जब मैं एम ए के प्रथम वर्ष में थी… मुझे याद है मैंने पहली बार अपना तन राहुल को सौंपा था। बहुत मस्त और मोटे लण्ड का मालिक था वो। विभा मुझसे अक्सर पूछा करती थी कि आज क्या किया… कितनी चुदाई की… कैसे चोदा… मजा आया या नहीं…
मैं उसे विस्तार से बताती थी तो वो बस अपनी चूत दबा कर आह्ह्ह कर उठती थी, फिर कहती थी- अरे देख तो सही…
अपनी चूत घिस घिस कर मेरे सामने ही अपना रस निकाल देती थी। मुझे तो राम जी ! बहुत ही शरम आती थी।
राहुल ने मुझे एम ए के अन्तिम वर्ष तक जी भर के चोदा था। कहते है ना वो… चोद चोद कर भोसड़ा बना दिया… बस वही किया था उसने। पहली बार उसने मेरी गाण्ड जब मारी थी तब मैं जितना सुनती थी कि बहुत दर्द होता है… तब ऐसा कोई जोर का दर्द तो नहीं हुआ था। बस पहली बार थोड़ा सा अजीब सा लगा था…
दर्द भी कोई ऐसा नहीं था… पर हाँ जब धीरे धीरे मैं इसकी अभ्यस्त हो गई तो खूब मजा आने लगा था।
पढ़ाई समाप्त करते करते मुझमें उसकी दिलचस्पी समाप्त होने लगी थी। पर चोदने में वो अभी भी मजा देता था… मस्त कर देता था। मैंने धीरे से अपनी मां से शादी की बात की तो घर में जैसे तूफ़ान आ गया। जैसा हमेशा होता आया है… मेरी शादी कहीं ओर कर दी गई। राहुल ने भी मुझसे शादी करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। बाद में मुझे पता चला था कि वो विभा से लग गया था और उसी को चोदने में उसे आनन्द आता था।
राहुल को न पाकर मैं बहुत रोई थी, बहुत छटपटाई थी। पर विभा की बात जब मैंने सुनी तो सारा जोश ठण्डा पड़ गया था। मैं पढ़ी लिखी, समझदार लड़की थी…
मैंने अपने आप को समझा लिया था। पर उसकी वो चुदाई और गाण्ड मारना दिल में एक कसक छोड़ गई थी। मेरी शादी हो गई थी। मुझे घर भी भरा पूरा मिला था। सास थी… ससुर थे… एक देवर अंकित भी था प्यारा सा, बहुत समझदार… हंसमुख… मुझे बहुत प्यार भी बहुत करता था।
पति सुरेश एक कॉलेज में सहायक प्राध्यापक था। बहुत अनुशासनप्रिय… घर को कॉलेज बना दिया था उसने… उसकी सारी प्रोफ़ेसरी वो मुझ पर ही झाड़ता था। आरम्भ में तो वो रोज चोदता था… पर उसके चोदने में एकरसता थी। कोई भिन्नता नहीं थी… बस रोज ही मेरे टांगों के मध्य चढ़ कर चोद कर रस भर देता था। झड़ तो मैं भी जाती ही थी पर झड़ने में वो कशिश नहीं थी।
एक दिन वो बाईक से गिर पड़े… फ़ुटपाथ के कोने से चोट लगी थी। रीढ़ की हड्डी में चोट आई थी। नीचे का हिस्सा लकवा मार गया था। अब वो अस्पताल में थे…
महीना भर से अधिक हो गया था… पता नहीं ये निजी अस्पताल वाले कब तक उन्हें वहाँ रखते… शायद उन्हें तो बस पैसे से मतलब था। मैंने ससुर से कह कर अंकित को अपने कमरे में सुलाने की आज्ञा ले ली थी। अकेले में मुझे डर भी लगता था।
पर इन दिनों में मुझे अंकित से लगाव भी होने लगा था। वो मुझे भाने लगा था। रात को मैं देर से सोती थी सो बस उसे ही चड्डी में पहने हुये सोते हुये निहारती रहती थी।
उफ़ ! बहुत प्यार आता था उस पर… पर शायद यह देवर वाला प्यार नहीं था… मैं उसके गुप्त अंगों को भी अन्दर तक से एक्सरे कर लेती थी।
एक दिन अचानक मैंने अंकित को देखा कि उसका लण्ड तना हुआ था, चड्डी में से सीधा उभरा हुआ नजर आ रहा था। उसका एक हाथ तभी अपने लण्ड पर आ गया और वो उसे दबाने लगा, शायद कोई मनमोहक सपना देख रहा था।
मैं उत्तेजित हो उठी… उसे ध्यान से देखने लगी। फिर मै उठ कर उसके बिस्तर पर उसके पास ही बैठ गई।
तभी मेरे कान खड़े हो गये… वो मुठ्ठ मारने के साथ मेरा नाम बड़बड़ा रहा था।
मेरे तो रोंगटे खड़े हो गये। मेरे नाम की मुठ्ठ ! हाय रे ! मेरा मुन्ना !
मेरा बेबी… मेरा प्यारा अंकित… मैंने धीरे से हाथ बढ़ा कर लण्ड के नीचे के भाग को छुआ… उफ़्फ़ कैसा कड़क… कठोर था। मैंने धीरे से उसका नाड़ा खोल दिया और उसकी चड्डी धीरे से हटा दी… अंकित ने बाकी चड्डी को हटा कर अपना लण्ड पकड़ लिया।
उसका लाल सुर्ख सुपारा… सुपारे के मध्य में एक छोटी सी लकीर… उसमें से वीर्य की दो बूंदें निकल कर सुपारे पर फ़ैली हुई थी। मैंने
उसके सुपारे पर उंगली से चिकनाहट को स्पर्श किया।
तभी उसके लण्ड ने जोर से पिचकारी निकाल दी। मैंने अपनी आदत के अनुसार अपना मुख खोल लिया और उसकी वीर्य की पिचकारियों को मुख में जाने की अनुमति दे दी।
उफ़ कुवांरा, जवान मस्त गाढ़ा शुद्ध माल… कितना स्वाद लग रहा था। तभी अंकित की सिसकारी ने मेरा ध्यान भंग कर दिया और मैं तेजी से उठ गई।
हुआ कुछ नहीं बस वो करवट ले कर सो गया। मैं अपने बिस्तर से उसे देखती रही…
फिर बत्ती बुझा कर लेट गई। रात भर मुझे अंकित का लण्ड ही दिखता रहा… उसके वीर्य का स्वाद मुँह जैसे में आने लगा।
फिर मजबूरन मुझे उठ कर नीचे बैठना पड़ा और चूत में अंगुली फ़ंसा कर मुठ्ठ मार ली… मेरा सारा पानी छूट गया। फिर मुझे गहरी नींद आ गई।
अंकित को मैं बार बार चोर नजर से देखने लगी, मन में चोर जो घुस आया था।
मेरे मन में तरह तरह के विचार आने लगे। तब मेरे दिमाग में एक बात आई। मेरे पास सुरेश की नींद की गोलियाँ बची हुई पड़ी थी। मन का शैतान जाग उठा… रात को मैंने उसे कैसे करके वो गोलियाँ अंकित को खिला दी। खाना खाने के कुछ ही देर बाद उसे नींद सताने लगी। वो जल्द ही आज सो गया। आधे घण्टे के बाद मैंने उसे हिलाया ढुलाया… वो गहरी नींद में था।
मैंने उसके पास बैठ कर उसकी चड्डी को नाड़ा खोल कर ढीला कर दिया। फिर उसे ऊपर से खींच कर नीचे करके उसका लण्ड बाहर निकाल लिया। सोया हुआ लण्ड छोटा सा हो गया था। मैंने उसे बहुत हिलाया… पर वो खड़ा नहीं हुआ। मैंने अपने मुख में लेकर उसे चूसा भी पर वो टस से मस नहीं हुआ। मुझे बहुत निराशा हुई।
मैंने उसकी चड्डी ऊपर सरका दी। पर मैं उसे बांधना भूल गई। सुबह जब वो उठा तो उसे शायद कुछ महसूस हुआ। मैंने उसे देख तो झेंप गई।
भाभी… माफ़ करना… जाने कैसे ये चड्डी का नाड़ा रात को अपने आप कैसे खुल जाता है।
“जरूर तुम कुछ रात को कोई शरारत करते हो?” मैंने मजाक किया।
वो शरमा सा गया। उसने जल्दी से नाड़ा बांध लिया। पर शायद उसे शक हो गया था। पर फिर वो दिन भर सामान्य रहा। मैंने सावधानी बरती और आज कुछ नहीं किया। बस उसके सोते ही मैं भी लेट गई। पर नींद कहां थी? तभी मुझे अंकित के उठने और चलने की आवाज आई। मैं सतर्क हो गई… यह अंकित मेरे बिस्तर के पास क्या कर रहा है?
मैं दिल थाम कर कुछ होने का इन्तजार करने लगी।
ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ा। वो मेरी बगल में लेट गया, फिर उसने मेरे पेटीकोट के ऊपर से ही मेरे कूल्हे पर हाथ रख दिया। मैं कांप सी गई। उसने हौले से हाथ फ़ेर कर मेरे सुडौल चूतड़ों का जायजा लिया।
अन्दर ही अन्दर मुझे झुरझुरी छूट गई। उसे रोकने का मतलब था कि आने वाले सुख से वंचित रह जाना। मैं सांस रोके उसकी मधुर हरकतों का आनन्द लेने लगी। अब वो मेरे चूतड़ के गोले एक एक करके दबा रहा था। उसकी हरकत से मेरा दिल लहूलुहान हो रहा था। चूत बिलबिला उठी थी। उसका हाथ गाण्ड के गोले सहलाते हुये चूत तक पहुँच रहा था…
मेरा मन बुरी तरह से डोलने लगा था। तब शायद उसने उठ कर मेरा चेहरा देखा था। मुझे गहरी नींद में सोया देख कर उसके हाथ मेरी चूचियों पर आ गये, मेरे ढीले ढाले ब्लाऊज के ऊपर से ही उसने उन्हें सहला दिया, मेरी निप्पल उसने उंगलियों के पौरों में लेकर मसल दिए।
मेरा मन चीख उठा… चोद दे रे… हाय राम इतना तो मत तड़पा… !
मैंने सोचा कि यदि मैं सीधे लेट जाऊँ तो शायद यह मेरे ऊपर चढ़ जाये और चोद दे मुझे।
मैं धीरे से सीधे हो गई… पर वो चुप से किनारे हो गया। तभी मैंने खर्राटे लेने जैसी आवाज की… तो वो समझ गया कि मैं अभी भी गहरी नींद में ही हूँ।
उसने ध्यान से मेरे पेटीकोट की तरफ़ देखा और पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया।
मेरा दिल अब खुशी के मारे उछलने लगा… लगा बात बन गई। पर नहीं ! उसने बस मेरा पेटीकोट धीरे से नीचे किया और मेरी चूत खोल दी, उस पर अपनी अंगुली घुमाने लगा।
चूत पूरी भीग कर चिकनी हो चुकी थी। मैंने भी जान कर अपनी टांगें चौड़ा दी। उसने सहूलियत देख कर अपनी एक अंगुली मेरी चूत में पिरो दी।
मुझे अचानक महसूस हुआ कि उसका लण्ड बेतहाशा तन्ना रहा था, बहुत ही सख्त हो गया था। वो मेरे कूल्हों से बार बार टकरा रहा था। फिर वो उठा और धीरे से उसने मेरा मुख चूमा… और बिस्तर से धीरे से सरक कर नीचे उतर गया।
मेरा मन तड़प उठा। उफ़्फ़्फ़… मेरी तरसती चूत को छोड़ कर वो तो जा रहा था। अब क्या करूँ?
पर वो गया नहीं… वहीं नीचे बैठ गया और अपनी मुठ्ठ मारने लगा।
मेरा दिल तो पहले ही पिंघल चुका था। उसे मुठ्ठ मारते देख कर मुझसे रहा नहीं गया, मैंने उसकी बांह पकड़ ली- यह क्या कर रहे हो देवर जी… उठो !
वो एकदम से घबरा गया- वो तो भाभी… मैं तो…
“श्…श्… भाभी का पेटीकोट उतार दिया… चूत में अंगुली घुसेड़ दी… अब और क्या देवर जी?”
“वो तो… मैं तो…”
“चुप… चल ऊपर आ जा…”
मैंने उसे अपने बिस्तर पर लेटा लिया और उससे चिपक गई।
“अरे भाभी सुनो तो…! यः क्या कर रही हैं आप…?”
यह सुन कर मुझे एकदम होश आ गया, मैंने आश्चर्य से उसे देखा- क्या हो गया देवर जी? अभी तो आप…
“पर यह नहीं… आप भाभी हैं ना मेरी… मैं यह सब नहीं कर सकता… प्लीज !”
उसने स्पष्ट रूप से मेरा अपना रिश्ता बता दिया। मुझे कुछ शर्मिंदगी सी भी हुई… बुरा भी लगा, गुस्सा भी आया…
पर मैंने अपने आप को सम्भाला…
ओह अंकित… ऐसा कुछ भी नहीं है… बस तुझे नीचे देखा तो ऊपर ले लिया… अब सो जा…
देखेंगे आगे क्या हुआ !
निशा भागवत
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