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दिल तो मेरा भी है
प्रेषक : ठाकुर
नोट उड़ाए जा रहे हैं, रंगीली नाच रही है, छम-छम कर घुंघरू पैरों में बज रहे हैं, चारों ओर वाह-वाह हो रही है।
रंगीली फरहा मौसी के कोठे की सबसे सुन्दर और अदाकार कलाकार है या यूँ समझिए कि कोठा ही रंगीली के नाम से चलता है।
रंगीली नहीं तो कोठा नहीं। रंगीली न नाचे तो न कोई नाच गाना देखने आने वाला।
एक तरफ तो महफिल जमी हुई है वहीं दूसरी तरफ दूसरी तरफ कुछ गम के मारे और कुछ पीने के शौकीन बैठे हैं गोल मेज के चारों ओर वेटर से दारू और बीयर की मांग कर रहे हैं। कुछ शान्ति सी है यहाँ।
सुबह कोई नहीं कह सकता कि यह कोठा है, लगता है गर्ल्स हॉस्टल है, एकदम सादा सच्चा-सा जीवन है, कोई चोटी बना रही है तो कोई कपड़े धो रही है, कोई सब्जी काट रही है, कोई कपड़े सुखा रही है।
मौसी पान चबा रही है और लड़ रही रूही और रूबी को डांट रही है। रात के पहने उत्तेजक कपड़े और सब कुछ और सुबह तो ऐसा कुछ नहीं। सदा-सा सलवार कमीज।
अभी शाम को वर्दी में एक नया पुलिस वाला वहाँ पर नजर आया। मौसी को इस बात की सूचना दी गई। पता चला कि नई पोस्टिंग है इस काला बाजार में।
मौसी ने शागिर्द को भेज दिया उसकी जन्म कुण्डली निकलवाने के लिये। पता चला कि वो तो बण्डल की पूजा करता है और नर्कामृत (शराब) सेवन करता है।
फिर क्या था मौसी के एक इशारे पर वो मौसी का गुलाम हो गया। रोज सलाम ठोकता और बहुत-सी चेलियों से उसकी जान पहचान तथा आना जाना हो गया।
अगले दिन पुलिस वाले के साथ एक सुन्दर नवयुवक था। उसको वो समझा रहा था कि वो एक ईमानदार पुलिस है। तब ही तो इस स्थान पर उसको नियुक्त किया गया है। लड़का पुलिस वाले का बचपन का दोस्त था।
इतने में ही एक सुन्दर सी लड़की आई और उस युवक से बोली- तू मेरे को कोल्ड ड्रिंक पिलवा रहा है या मैं तेरे को पिलवाऊँ?
युवक सहमा सा बोला- आप ही पी लीजिये।
तब वो लड़की बोली- चाचा दो कोल्ड ड्रिंक देना।
एक लड़के के हाथ में दे दी और एक खुद पीने लगी। इतना में युवक चलता बना और पुलिस वाले से बोला- क्या ड्रामा है ये?
पुलिस वाला बोला- वरुण तू एक नंबर का घोंचू है। अप्सरा तेरे पास आई और तू पत्ता काट कर आ गया। कोई बात नहीं… बचपने में होता है कभी कभी। यह रंगीली है, जो ना तो आज तक किसी के पास सोई न आसानी से जाती। और तेरे पास आई तू पागल-पंथी कर वहाँ से खिसक लिया।
वरुण पूरा दिन अपना व्यापार देखता और उसके बाद शाम को समय व्यतीत करने गपशप करने अपने पुलिस वाले बचपन दोस्त मनोज के पास चला जाता।
दो तीन दिन भी नहीं बीते ये रंगीली फिर आ धमकी, बोली- कैसा है रे तू ??
वरुण बोला- मैं ठीक हूँ, आप कैसे हो?
उसे पता नहीं क्या हुआ, बहुत खुश-सी हो गई, कहा- चाचा, मेरे वाले दो पान लगवाना।
वो बोले- अभी लगवाता हूँ मेमसाहब।
एक पान खुद मुँह में रख कर बोली- तेरा नाम क्या है?
वो बोला- मेरा नाम वरुण है और तू क्यों है इस काला बाजार में… तेरी अभी तक व्यवस्था नहीं हुई?
वरुण ने कहा- मैं तो अपने दोस्त के साथ कुछ देर गपशप करने आता हूँ। फिर चला जाता हूँ।”
“हर कोई ऐसा नहीं होता जैसा पहली नजर में सोच लिया जाता है।”
बस इतनी ही तो बात हुई थी उस अँधेरे से में… वो इतना कहकर चला गया और रंगीली देखती रह गई।
मौसी मनोज को बुलाती है और पता नहीं क्या धंधे की बातें करती है।
अगले दिन स्काइप कोलिंग करते वरुण के फोन पर किसी का मेसेज आता है- हेल्लो वरुण
वरुण अपनी बचपन की दोस्त रेशम से बात कर रहा था। उसने भी पूछ लिया- किस का मेसेज है?
आखिर महीनों में तो बातें होती थी रेशम से।
उसने कहा- पता नहीं किसका है !
और फोन साइलेंट पर कर दिया। बातें खत्म हुई, फोन पर देखा, अंतिम सन्देश था- यू देयर???
ऑफिस का कार्य तो समाप्त हो ही गया था … वरुण ने कहा- हाँ जी, आप कौन?
जवाब आया- अक्षरा !
“अक्षरा? मैं तो किसी अक्षरा को नहीं जानता।”
मेसेज आया- रंगीली को तो जानते हो ना?
वरुण को याद आया- हाँ, यह तो वही है काला बाजार की सुंदर-सी लड़की।
उसने कहा- मेरा नंबर कहाँ से मिला?
तो बोली- पुलिस वाले से…
बहुत गुस्सा आया साले मनोज पर, मेरा नंबर एक नर्तकी को दे दिया।
“तुम भी क्या मेरे को ऐसा समझते हो?”
वरुण ने कहा- इसमें समझने की क्या बात है?
उसने याद दिलाया- …तुमने ही कहा था कि “हर कोई ऐसा नहीं होता जैसा पहली नजर में सोच लिया जाता है !”
उसको भी अपनी गलती-सी लगी, वरुण ने कहा- मैं व्यस्त हूँ।
“ठीक है।”
“बाद ने बात करता हूँ।”
“कोई बात नहीं !”
शाम होते ही पहुँच गया अपने दोस्त के पास और बोला- मनोज बेटा, तेरे से ऐसी उम्मीद नहीं थी।
मनोज बोला- एक तो तेरी सेटिंग करा दी, ऊपर से ऐसा और सुनने को मिल रहा है।
“तू साले है ही हमेशा से ऐसा। पर वो है कहाँ?” “मुझको क्या पता?” मनोज ने कहा।
मनोज अपने काम में लग गया और वरुण अपने काम में लग गया। दो तीन दिन भी नहीं पता चला कुछ उसका।
एक दोपहर को फोन बजा… कॉल थी… उठाते ही आवाज आई- वरुण, मेरी याद नहीं आई तुमको? हम्म?
एक प्यारी सी आवाज आई उधर की तरफ से। आवाज समझ में आ रही थी। नंबर देखते ही समझ आ गया कि यह रंगीली ही थी।
फिर भी वरुण ने पूछा- कौन है?
आवाज आई- इस नम्बर को सेव कर लो, मैं अक्षरा हूँ। कैसे हो???
अक्षरा की वरुण से कुछ बातें हुई … उसने वरुण से मित्रता प्रस्ताव रखा।अपनी बात को रखते हुए वरुण ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
अब अक्सर उनकी बातें होने लगी। थोड़ी बहुत बातें करने में परेशानी ही क्या थी ! पर लगता था जैसे अक्षरा को एक तरफा प्यार होने लगा था। दोस्ती धीरे धीरे गहराने लगी पर वरुण अभी भी कुछ परेशान सा था।
एक दिन वरुण ने कहा- मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ।
अक्षरा बोली- आ जाओ काला बाजार ! बहुत दिनों से आये भी नहीं हो। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।
वरुण ने कहा- नहीं ! अब मनोज का भी ट्रांसफर हो गया है, मैं आकर क्या करूँगा।
दोनों ने मिलकर एक समंदर किनारे रेस्तरां में मिलने का विचार किया।
अक्षरा बुरका पहन कर आई थी। बहुत सुन्दर लग रही थी वो।
बातों का दौर शुरू हुआ, कुछ खाया-पिया फिर अँधेरे के साथ वो चल दिए समंदर किनारे घूमने।
वहाँ पर वरुण ने कहा- बुरा ना मानो तो एक बात पूछ सकता हूँ?
अक्षरा बोली- हम दोस्त हैं, इसमें पूछना कैसा? पूछ लो यार।
तब वरुण ने कहा- तुम ऐसा काम क्यों करती हो?
अक्षरा पहले तो चुप हो गई, फिर बोली- तुमको क्या लगता है? मैं क्यों करती हूँ इस काम को? जब मैं छोटी थी तो मेरे सौतेले मौसा ने मेरे को बेच दिया था और मेरे को तो कुछ पता नहीं था… ना मैंने माँ देखी, ना बाप। मैं यहीं नाचती गाती बड़ी हुई हूँ। अभी ही नाचती हूँ। और नाचती हूँ… सब मेरे को ऐसी ही नजर से देखते हैं.. क्या मैं लड़की नहीं हूँ… क्या मेरे दिल नहीं है?? क्या वो पत्थर है जो कभी धड़कता नहीं है। आज तक मैं किसी के साथ नहीं सोई। क्या मेरा मन नहीं करता कि मेरा बॉय फ्रेंड हो… क्या मेरा मन नहीं करता कि मैं उस कोठरी से निकल कर कभी बाहर नीले आसमान के नीचे अपने प्रेमी के साथ घूमूँ। तुम मेरे को अच्छे लगे और तुम्हारे विचार भी शालीन थे। तुमने मेरे को एक लड़की की तरह देखा न कि नाचने वाली की तरह। तुम सच में देवता हो मेरे लिये।
और फफक कर वरुण की छाती से चिपक कर रोने लगी। वरुण की आँखों में आँसू आ चुके थे।
वरुण बोला- मैं हूँ ना तुम्हारा दोस्त…. रो मत प्लीज़ !
किसी तरह वरुण ने अक्षरा को चुप कराया और फिर उसको बाजार की ओर छोड़ कर घर चला गया।
कहानी जारी रहेगी।
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