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लेखक : प्रेम गुरु
श्याम जिस प्रकार की बातें कर रहा है मैं इतना तो अनुमान लगा ही सकती हूँ कि वो प्रेम कला में निपुण हैं। किसी स्त्री को कैसे काम प्रेरित किया जाता है उन्हें अच्छी तरह ज्ञात है। जब मनीष को मेरी कोई परवाह नहीं है तो फिर मैं उसके पीछे क्यों अपने यौवन की प्यास में जलती और कुढ़ती रहूँ ?
प्रकृति ने स्त्री को रूप यौवन के रूप में बहुत बड़ा वरदान दिया है जिसके बल पर वो बहुत इतराती है लेकिन उसके साथ एक अन्याय भी किया है कि उसे अपने यौवन की रक्षा के लिए शक्ति प्रदान नहीं की। कमजोर क्षणों में और पुरुष शक्ति के आगे उसके लिए अपना यौवन बचाना कठिन होता है। पर मेरे लिए ना तो कोई विवशता थी ना मैं इतनी कमजोर थी पर मेरा मन विद्रोह पर उतर आया था। जब नारी विद्रोह पर उतर आती है तो फिर उन मर्यादाओं और वर्जनाओं का कोई अर्थ नहीं रह पाता जिसे वो सदियों से ढोती आ रही है।
और फिर मैंने सब कुछ सोच लिया ……
मैंने अपने आंसू पोंछ लिए और श्याम से पूछा, “ठीक है ! आप क्या चाहते हैं ?”
“वही जो एक प्रेमी अपनी प्रेयसी से चाहता है, वही जो एक भंवरा किसी फूल से चाहता है, वही नैसर्गिक आनंद जो एक नर किसी मादा से चाहता है ! सदियों से चले आ रही इस नैसर्गिक क्रिया के अलावा एक पुरुष किसी कमनीय स्त्री से और क्या चाह सकता है ?”
“ठीक है मैं तैयार हूँ ? पर मेरी दो शर्तें होंगी ?”
“मुझे तुम्हारी सभी शर्तें मंजूर हैं … बोलो … ?”
“हमारे बीच जो भी होगा मेरी इच्छा से होगा किसी क्रिया के लिए मुझे बाध्य नहीं करोगे और ना ही इन कामांगों का गन्दा नाम लेकर बोलोगे ? दूसरी बात हमारे बीच जो भी होगा वो बस आज रात के लिए होगा और आज की रात के बाद आप मुझे भूल जायेंगे और किसी दूसरे को इसकी भनक भी नहीं होने देंगे !”
“ओह मेरी मैना रानी तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान भी दे दूं !”
इतनी बड़ी उपलब्धि के बाद उसके चेहरे की मुस्कान देखने लायक थी। उसे भला मेरी इन शर्तों में क्या आपत्ति हो सकती थी। और फिर उसने मुझे अपनी बाहों में भर लेना चाहा।
मैंने उसे वहीं रोक दिया।
“नहीं इतनी जल्दी नहीं ! मैंने बताया था ना कि जो भी होगा मेरी इच्छानुसार होगा !”
“ओह … मीनू अब तुम क्या चाहती हो ?”
“तुम ठहरो मैं अभी आती हूँ !” और मैं अपने शयनकक्ष की ओर चली आई।
मैंने अपनी आलमारी से वही हलके पिस्ता रंग का टॉप और कॉटन का पतला सा पजामा निकला जिसे मैंने पिछले 4 सालों से बड़े जतन से संभाल कर रखा था। मैंने वह सफ़ेद शर्ट और लुंगी भी संभाल कर रखी थी जिसे मैंने उस बारिश में नहाने के बाद पहनी थी। यह वही कपड़े थे जो मेरे पहले प्रेम की निशानी थे। जिसे पहन कर मैं उस सावन की बरसात में अपने उस प्रेमी के साथ नहाई थी। बाहर रिमझिम बारिश हो रही थी। मैं एक बार उन पलों को उसी अंदाज़ में फिर से जी लेना चाहती थी।
बाहर श्याम बड़ी आतुरता से मेरी प्रतीक्षा कर रहा था।
मैंने उसका हाथ पकड़ा और कहा,”आओ मेरे साथ !”
“क… कहाँ जा रही हो ?”
“ओह मैंने कहा था ना कि तुम वही करोगे जो मैं कहूँगी या चाहूंगी ?”
“ओह… पर बताओ तो सही कि तुम मुझे कहाँ ले जा रही हो ?”
“पहले हम छत के ऊपर चल कर इस रिमझिम बारिश में नहायेंगें !” मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा। उसकी आँखों में भी अब लाल डोरे तैरने लगे थे। अब उसके समझ में आया कि मैं पहले क्या चाहती हूँ।
हम दोनों छत पर आ गए। बारिश की नर्म फुहार ने हम दोनों का जी खोल कर स्वागत किया। मैंने श्याम को अपनी बाहों में भर लिया। मेरे अधर कांपने लगे थे। श्याम का दिल बुरी तरह धड़क रहा था। उसने अपने लरजते हाथों से मुझे अपने बाहुपाश में बाँध लिया जैसे। उसके मुख से एक मधुर सी सुगंध मेरी सांसों में घुल गई। धीरे धीरे मैं अपने आप को उसको समर्पण करने लगी। हम दोनों एक दूसरे के होंठों का रस चूसने लगे। मैं तो उस से इस तरह लिपटी थी जैसे की बरसों की प्यासी हूँ। वो कभी मेरी पीठ सहलाता कभी भारी भारी पुष्ट नितम्बों को सहलाता कभी भींच देता। मेरे मुँह से मीठी सीत्कार निकालने लगी थी। मेरे उरोज उसके चौड़े सीने से लगे पिस रहे थे। मैंने उसकी शर्ट के ऊपर के दो बटन खोल दिए और अपना सिर उसके सीने से लगा कर आँखें बंद कर ली। एक अनोखे आनंद और रोमांच से मेरा अंग अंग कांप रहा था। उसके धड़कते दिल की आवाज मैं अच्छी तरह सुन रही थी। मुझे तो लग रहा था कि समय चार साल पीछे चला है और जैसे मैंने अपने पहले प्रेम को एक बार फिर से पा लिया है।
अब उसने धीरे से मेरा चेहरा अपनी दोनों हथेलियों में भर लिया। मेरे होंठ काँप रहे थे। उसकी भी यही हालत थी। रोमांच से मेरी आँखें बंद हुई जा रही थी। बालों की कुछ आवारा पानी में भीगी लटें मेरे गालों पर चिपकी थी। उसने अचानक अपने जलते होंठ मेरे होंठों से लगा दिए। इतने में बिजली कड़की। मुझे लगा कि मेरे अन्दर जो बिजली कड़क रही है उसके सामने आसमान वाली बिजली की कोई बिसात ही नहीं है। आह … उस प्रेम के चुम्बन और होंठों की छुवन से तो अन्दर तक झनझना उठी। मैंने उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया और अपनी एक टांग ऊपर उठा ली। फिर उसने एक हाथ से मेरी कमर पकड़ ली और दूसरे हाथ को मेरी जांघ के नीचे लगा दिया। मेरी तो जैसी झुरझुरी सी दौड़ गई। मैंने अपने जीभ उसके मुँह में डाल दी। वो तो उसे किसी रसभरी की तरह चूसने लगा। कोई दस मिनट तक हम दोनों इसी तरह आपस में गुंथे एक दुसरे से लिपटे खड़े बारिस में भीगते रहे।
अब मुझे छींकें आनी शुरू हो गई तो श्याम बोला “ओह मीनू लगता है तुम्हें ठण्ड लग गई है ? चलो अब नीचे चलते हैं ?”
“श्याम थोड़ी देर और… रररर… रु…..को … ना… आ छी….. ईई ………………………”
“ओह तुम ऐसे नहीं मानोगी ?” और फिर उसने मुझे एक ही झटके में अपनी गोद में उठा लिया। मैंने अपनी नर्म नाज़ुक बाहें उसके गले में डाल कर अपना सिर उसके सीने से लगा दिया। मेरी आँखें किसी अनोखे रोमांच और पुरानी स्मृतियों में अपने आप बंद हो गई। वो मुझे अपनी गोद में उठाये ही नीचे आ गया।
बेडरूम में आकर उसने मुझे अपनी गोद से नीचे उतार दिया। मैं गीले कपड़े बदलने के लिए बेडरूम से लगे बाथरूम में चली गई। मैंने अपने गीले कपड़े उतार दिए और शरीर को पोंछ कर अपने बाल हेयर ड्रायर से सुखाये। फिर मैंने अपने आप को वाश बेसिन पर लगे शीशे में एक बार देखा। अरे यह तो वही मीनल थी जो आज से चार वर्ष पूर्व उस सावन की बारिश में नहा कर मैना बन गई थी। मैं अपनी निर्वस्त्र कमनीय काया को शीशे में देख कर लजा गई। फिर मैंने वही शर्ट और लुंगी पहन ली जो मैंने 4 सालों से सहेज कर रखी थी। जब मैं बाथरूम से निकली तो मैंने देखा की श्याम ने अपने गीले कपड़े निकाल दिए थे और शरीर पोंछ कर तौलिया लपेट लिया था। वैसे देखा जाए तो अब तौलिये की भी क्या आवश्यकता रह गई थी।
मैं बड़ी अदा से अपने नितम्ब मटकाती पलंग की ओर आई। मेरे बाल खुले थे जो मेरे आधे चहरे को ढके हुए थे। जैसे कोई बादल चाँद को ढक ले। कोई दिन के समय मेरी इन खुली जुल्फों और गेसुओं को देख ले तो सांझ के धुंधलके का धोखा खा जाए। श्याम तो बस फटी आँखों से मुझे देखता ही रह गया।
मैं ठीक उसके सामने आकर खड़ी हो गई। लगता था उसकी साँसें उखड़ी हुई सी हैं। मैंने अचानक आगे बढ़ कर उसके सिर के पीछे अपनी एक बांह डाल कर अपनी और खींचा। उसे तो जैसे कुछ समझ ही नहीं आया कि इस दौरान मैंने अपने दूसरे हाथ से कब उसकी कमर से लिपटा तौलिया भी खींच दिया था। इतनी चुलबुली तो शमा हुआ करती थी। पता नहीं आज मुझे क्या हो रहा था। मेरी सारी लाज और शर्म पता नहीं कहाँ ग़ुम हो गई थी। लगता था मैं फिर से वही मीनल बन गई हूँ। इसी आपाधापी में वो पीछे हटने और अपने नंगे बदन को छिपाने के प्रयास में पलंग पर गिर पड़ा और मैं उसके ठीक ऊपर गिर पड़ी। मेरे मोटे मोटे गोल उरोज ठीक उसके सीने से लगे थे और मेरा चेहरा उसके चहरे से कोई 2 या 3 इंच दूर ही तो रह गया था। उसका तना हुआ “वो” मेरी नाभि से चुभ रहा था।
अब मुझे जैसे होश आया कि यह मैं क्या कर बैठी हूँ। मैंने मारे शर्म के अपने हाथों से अपना मुँह ढक लिया। श्याम ने कोई जल्दी या हड़बड़ी नहीं दिखाई। उसने धीरे से मेरे सिर को पकड़ा और अपने सीने से लगा लिया। उसके सीने के घुंघराले बाल मेरे कपोलों को छू रहे थे और मेरे खुले बालों से उसका चेहरा ढक सा गया था। उसने मेरी पीठ और नितम्बों को सहलाना शुरू कर दिया तो मैं थोड़ी सी चिहुंक कर आगे सरकी तो मेरे होंठ अनायास ही उसके होंठों को छू गए। उसने एक बार फिर मेरे अधरों को अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा। मेरे उरोज अब उसके सीने से दब और पिस रहे थे। मेरा तो मन कर रहा था कि आज कोई इनको इतनी जोर से दबाये कि इनका सारा रस ही निकल कर बाहर आ जाए। मेरी बगलों (कांख) से निकलती मादक महक ने उसे जैसे मतवाला ही बना दिया था। मैं भी तो उसके चौड़े सीने से लग कर अभिभूत (निहाल) ही हो गई थी। पता नहीं कितनी देर हम लोग इसी अवस्था में पड़े रहे। समय का किसे ध्यान रहता है ऐसी अवस्था में ?
अब मैंने उसको कन्धों से पकड़ कर एक पलटी मारी। अब उसका लगभग आधा शरीर मेरे ऊपर था और उसकी उसकी एक टांग मेरी जाँघों के बीच फंस गई। मेरी लुंगी अपने आप खुल गई थी। ओह… मारे शर्म के मैंने अपनी मुनिया के ऊपर अपना एक हाथ रखने की कोशिश की तो मेरा हाथ उसके 7″ लम्बे और 1.5 इंच मोटे “उस” से छू गया। जैसे ही मेरी अंगुलियाँ उससे टकराई उसने एक ठुमका लगाया और मैंने झट से अपना हाथ वापस खींच लिया। उसने मेरी शर्ट के बटन खोल दिए। मेरे दोनों उरोज तन कर ऐसे खड़े थे जैसे कोई दो परिंदे हों और अभी उड़ जाने को बेचैन हों। वो तो उखड़ी और अटकी साँसों से टकटकी लगाए देखता ही रह गया। मेरी एक मीठी सीत्कार निकल गई। अब उसने धीमे से अपने हाथ मेरे उरोजों पर फिराया। आह … मेरी तो रोमांच से झुरझुरी सी निकल गई। अब उसने मेरे कड़क हो चले चुचूकों पर अपनी जीभ लगा दी। उस एक छुवन से मैं तो जैसे किसी अनोखे आनंद में ही गोते लगाने लगी। मुझे पता नहीं कब मेरे हाथ उसके सिर को पकड़ कर अपने उरोजों की और दबाने लगे थे। मेरी मीठी सीत्कार निकल पड़ी। उसने मेरे स्तनाग्र चूसने चालू कर दिए। मेरी मुनिया तो अभी से चुलबुला कर कामरस छोड़ने लगी थी।
अब उसने एक हाथ से मेरा एक उरोज पकड़ कर मसलना चालू कर दिया और दूसरे उरोज को मुँह में भर कर इस तरह चूसने लगा जैसे कि कोई रसीला आम चूसता है। बारी बारी उसने मेरे दोनों उरोजों को चूसना चालू रखा। मेरे निप्पल तो ऐसे हो रहे थे जैसे कोई चमन के अंगूर का दाना हो और रंग सुर्ख लाल। अब उसने मेरे होंठ, कपोल, गला, पलकें, माथा और कानों की लोब चूमनी चालू कर दी। मैं तो बस आह… उन्ह… करती ही रह गई। अब उसने मेरी बगल में अपना मुँह लगा कर सूंघना चालू कर दिया। आह … एक गुनगुने अहसास से मैं तो उछल ही पड़ी। मेरी बगलों से उठती मादक महक ने उसे कामातुर कर दिया था।
ऐसा करते हुए वो अपने घुटनों के बल सा हो गया और फिर उसने मेरी गहरी नाभि पर अपनी जीभ लगा कर चाटना शुरू कर दिया।
रोमांच के कारण मेरी आँखें स्वतः ही बंद होने लगी थी। मैंने उसके सिर को अपने हाथों में पकड़ लिया। मेरी जांघें इस तरह आपस में कस गई कि अब तो उसमें से हवा भी नहीं निकल सकती थी।
जैसे ही उसने मेरे पेडू पर जीभ फिराई मेरी तो किलकारी ही निकल गई। उसकी गर्म साँसों से मेरा तो रोम रोम उत्तेजना से भर उठा था। मेरी मुनिया तो बस 2-3 इंच दूर ही रह गई थी अब तो। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि वो मेरी मुनिया तक जल्दी से क्यों नहीं पहुँच रहा है। मेरे लिए तो इस रोमांच को अब सहन करना कठिन लग रहा था। मुझे तो लगा मेरी मुनिया ने अपना कामरज बिना कुछ किये हो छोड़ दिया है। मैंने अपनी जांघें थोड़ी सी खोल दी। मेरा विश्वास था जब उसकी नज़र मेरी चिकनी रोम विहीन मुनिया पर पड़ेगी तो उसकी आँखें तो फटी की फटी ही रह जायेगी। मेरी मुनिया का रंग तो वैसे भी गोरा है जैसे किसी 14 साल की कमसिन कन्या की हो। गुलाबी रंग की बर्फी के दो तिकोने टुकड़े जैसे किसी ने एक साथ जोड़ दिए हों और बस 3-4 इंच का रक्तिम चीरा। उस कमसिन नाजनीन को देख कर वो अपने आप को भला कैसे रोक पायेगा। गच्च से पूरी की पूरी अपने मुँह में भर लेगा। पर अगले कुछ क्षणों तक न तो उसने कोई गतिविधि की ना ही कुछ कहा।
अचानक मेरे कानों में उसकी रस घोलती आवाज़ पड़ी,”मरहबा … सुभान अल्लाह … मेरी मीनू तुम बहुत खूबसूरत हो !”
और उसके साथ ही उसने एक चुम्बन मेरी मुनिया पर ले लिया और फिर जैसे कहीं कोयल सी कूकी :”कुहू … कुहू …”
हम दोनों ही इन निशांत क्षणों में इस आवाज को सुन कर चौंक पड़े और हड़बड़ा कर उठ बैठे। ओह… दीवाल घड़ी ने 12:00 बजा दिए थे। जब कमरे में अंधरे हो तो यह घड़ी नहीं बोलती पर कमरे में तो ट्यूब लाइट का दूधिया प्रकाश फैला था ना। ओह … हम दोनों की हंसी एक साथ निकल गई।
उसने मेरे अधरों पर एक चुम्बन लेते हुए कहा,”मेरी मीनू को जन्मदिन की लाख लाख बधाई हो- तुम जीओ हज़ारों साल और साल के दिन हों पचास हज़ार !”
मेरा तो तन मन और बरसों की प्रेम की प्यासी आत्मा ही जैसे तृप्त हो गई इन शब्दों को सुनकर। एक ठंडी मिठास ने मुझे जैसे अन्दर तक किसी शीतलता से लबालब भर सा दिया। सावन की उमस भरी रात में जैसे कोई मंद पवन का झोंका मेरे पूरे अस्तित्व को ही शीतल कर गया हो। अब मुझे समझ लगा कि उस परम आनंद को कामुक सम्भोग के बिना भी कैसे पाया जा सकता है। श्याम सच कह रहा था कि ‘मैं तुम्हें प्रेम (सेक्स) की उन बुलंदियों पर ले जाऊँगा जिस से तुम अभी तक अपरिचित हो।‘
श्याम पलंग पर बैठा मेरी और ही देख रहा था। मैंने एक झटके में उसे बाहों में भर लिया और उसे ऐसे चूमने लगी जैसेकि वो 38 वर्षीय एक प्रोढ़ पुरुष न होकर मेरे सामने कामदेव बैठा है। मेरी आँखें प्रेम रस से सराबोर होकर छलक पड़ी। ओह मैं इस से पहले इतनी प्रेम विव्हल तो कभी नहीं हुई थी। सच में एक पराये मर्द का स्पर्श में कितना मधुर आनन्द आता है। यह अनैतिक कार्य मुझे अधिक रोमांचित कर रहा था। उसके अधर मेरे गुलाबी गोरे गालों को चूमने लगे थे।
“ओह… मेरे श्याम … मेरे प्रियतम तुम कहाँ थे इतने दिन … आह… तुमने मुझे पहले क्यों नहीं अपनी बाहों में भर लिया ?”
“तुम्हारी इस हालत को मैं समझता हूँ मेरी प्रियतमा … इसी लिए तो मैंने तुम्हें समझाया था कि सम्भोग मात्र दो शरीरों के मिलन को ही नहीं कहते। उसमें प्रेम रस की भावनाएं होनी जरुरी होती हैं नहीं तो यह मात्र एक नीरस शारीरिक क्रिया ही रह जाती है !”
“ओह मेरे श्याम अब कुछ मत कहो बस मुझे प्रेम करो मेरे प्रेम देव !” मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़े चूमती चली गई। मुझे तो ऐसे लग रहा था जैसे मैं कोई जन्म जन्मान्तर की प्यासी अभिशप्ता हूँ और केवल यही कुछ पल मुझे उस प्यास को बुझाने के लिए मिले हैं। मैं चाहती थी कि वो मेरा अंग अंग कुचल और मसल डाले । अब उसके होंठ मेरे पतले पतले अधरों से चिपक गये थे।
श्याम ने मेरे कपोलों पर लुढ़क आये आंसुओं को अपनी जीभ से चाट लिया। मैं प्रेम के इस अनोखे अंदाज़ से रोमांच से भर उठी। अब उसने मेरे अधरों को एक बार फिर से चूमा और फिर मेरे कोपल, नाक, पलकें चूमता चला गया। अब उसने मुझे पलंग पर लेटा दिया। वो टकटकी लगाए मेरे अद्वितीय सौन्दर्य को जैसे देखता ही रह गया। ट्यूब लाइट की दुधिया रोशनी में मेरा निर्वस्त्र शरीर ऐसे बिछा पड़ा था जैसे कोई इठलाती बलखाती नदी अटखेलियाँ करती अपने प्रेमी (सागर) से मिलाने को लिए आतुर हो।
श्याम मेरी बगल में लेट गया और उसने अपनी एक टांग मेरी कोमल और पुष्ट जाँघों के बीच डाल दी। उसका “वो” मेरी जांघ को छू रहा था। मैंने अपने आप को रोकने का बड़ा प्रयत्न किया पर मेरे हाथ अपने आप उस ओर चले गए और मैंने उसे अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया। उसने एक जोर का ठुमका लगाया जैसे किसी मुर्गे की गरदन पकड़ने पर वो लगता है। श्याम ने मेरे अधरों को चूमना चालू रखा और एक हाथ से मेरे उरोज मसलने लगा। आह उन हाथों के हलके दबाव से मेरे उरोजों की घुन्डियाँ तो लाल ही हो गई। अब श्याम ने अपना एक हाथ मेरी मुनिया की ओर बढ़ाया।
आह … मेरा तो रोमांच से सारा शरीर ही झनझना उठा। सच कहूं तो मैं तो चाह रहा थी कि श्याम जल्दी से अपना “वो” मेरी मुनिया में डाल दे या फिर कम से कम अपनी एक अंगुली ही डाल दे।
उसने मेरी मुनिया की पतली सी लकीर पर अंगुली फिराई। मेरी तो किलकारी ही निकल गई,”आऐईईइ …… उईई … माआआआ …….” और मैंने उसके होंठों को इतने जोए से अपने मुँह में लेकर काटा कि उनसे तो खून ही झलकने लगा।
श्याम ने अपना काम चालू रखा। उसने मेरी मुनिया की फांकों को धीरे धीरे मसलना चालू कर दिया और मेरे अधरों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा। ऊपर और नीचे के दोनों होंठों में राई जितना भी अंतर नहीं था। अब उसने अपनी अंगुली चीरे के ठीक ऊपर लगा कर मदनमणि को टटोला और उसे अपनी अँगुलियों की चिमटी में लेकर दबा दिया। मेरे शरीर एक बार थोड़ा सा अकड़ा और मेरी मुनिया ने अपना काम रस छोड़ दिया। आह … इस चरमोत्कर्ष तो मैंने आज तक कभी अनुभव ही नहीं किया था। शमा कहती थी कि वो तो सम्भोग पूर्व क्रिया में ही 2-3 बार झड़ जाती है। मुझे आज पता लगा की वो सच कह रही थी।
आपके मेल की प्रतीक्षा में ……
प्रेम गुरु और मीनल (मैना रानी)
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