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मेरी कहानी मेरी जीवन-यात्रा का आरम्भ
अन्तर्वासना पर जब आई तो मुझे 400 से अधिक पाठकों ने मेल की और कहानी को बहुत पसंद किया।
गुरूजी ने मुझे सुझाव दिया कि मैं और विस्तार के साथ लिखूँ।
इसलिए अब जो सेक्स यात्रा एक साथ बयां की थी उसके कुछ यादगार घटनाओं को सुनती हूँ.
जब मामा मुझे चालू करने लगे थे और मैं उनके साथ ही सोया करती थी तो मैं जानते हुए भी अनजान सी बनी हुई उनकी सब हरकतों का मज़ा तो लेती थी पर शामिल नहीं हुई थी।
एक दिन मामा ने रात को मेरे नंगे बदन से खेलते हुए मेरे हाथ में अपना लण्ड पकड़ा दिया और बोले- इसको मुँह में लेकर चूस।
लण्ड को मामा ने अच्छा साफ किया हुआ था तो मैंने बिना हिचक लण्ड को अपने मुँह में लिया और उसका सुपारा चूसने लगी।
मामा ने मेरा सर पकड़ा और नीचे को दबाते हुए बोले- थोड़ा और अंदर तक जाने दे।
मैं मामा के नंगे बदन पर नंगी ही लेटी हुई थी नीचे उनकी टांगों की तरफ। उस दिन पहली बार मैंने लण्ड चूसने का स्वाद चखा, वाह ! क्या गिलगिला सा अहसास था।
ऐसा लगता था कि जैसे लण्ड चुम्बक की तरह खुद ही मेरे मुँह की तरफ खिंच कर आ रहा हो।
जैसे यदि मैं उसे हाथ से पकड़े न रहूँ तो गले में घुस जायेगा।
मामा अब बहुत उत्तेजित हो गये थे और अपने चूतड़ ऊपर को उछाल रहे थे। मामा ने मेरी गाण्ड को अपने हाथों से चौड़ा किया और उंगली से सहलाने लगे फिर मुझसे पूछा- क्या थोड़ी सी क्रीम तेरी गाण्ड में लगा दूँ?
तो मैंने हाँ कह दिया।
अब तो मामा को मज़ा आ गया। लगभग आधे से ज्यादा उंगली उन्होंने मेरी गाण्ड में ऊपर से घुसा दी क्रीम में लपेट कर।
और इधर मैं खूब जम कर उनके लण्ड को चूसने का आनन्द ले रही थी।
मामा ने मुझे घोड़ी जैसी अवस्था में किया और बिना अन्दर घुसाए ही अपना लण्ड मेरी चिकनी हो चुकी गाण्ड पर ऊपर से ही रगड़ने लगे।
मैं डर रही थी, दिल धक् धक् कर रहा था पर मामा पर भरोसा भी था। वे कभी ऐसा नहीं करते थे जिससे मुझे दर्द हो।
मुझे मज़ा बहुत आ रहा था और चूत में कुछ कुछ हो रहा था पर हिम्मत तो अभी भी नहीं थी कि इतना मोटा लण्ड चूत में आयेगा या नहीं।
मामा को कुछ ऐसा लगा कि मैं तैयार हो सकती हूँ तो उन्होंने मुझे हिम्मत और आने वाले मज़े की बातों में लपेटा।
मैंने कहा- अच्छा करके देखो, जाता है या नहीं।
मैं सीधी लेट गई।
मामा ने मेरी चूत में भी खूब क्रीम लगाई और अपने लण्ड पर भी।
मुझे कहा कि मैं मन से तैयारी करूँ उनके लण्ड को भीतर लेने की।
मैंने सांस रोक कर और चूत को ढीली छोड़ कर मामा को इशारा किया कि आ जाओ।
मामा ने पहले ही समझाया था कि कभी कभी पहली बार की चुदाई में खून भी निकलता है, क्योंकि एक झिल्ली सी ऊपर वाली फटती है और यह भी कि कभी किसी को नहीं भी आता खून, पर डरने की कोई बात नहीं, यह तो होता ही है, आज नहीं तो कल।
लेकिन फिर भी मेरा डर तो ख़त्म नहीं हुआ था। पर चुदाने की चाहत भी बहुत दिनों से इकट्ठी होती जा रही थी और आज तो लण्ड चुसाई से लेकर गांड में लण्ड की गर्माहट से मुझे सब कुछ झेलकर भी चुदवाने की भूख हावी हो रही थी। मुझे अपनी हिम्मत मामा के लण्ड से भी बड़ी लग रही थी उनके लौड़े को अपनी चूत में घुसा कर आने वाले आनन्द ने मुझे दीवानी कर रखा था। मैं सोच रही थी कि आज तो ले ही लूँ, जो होगा देखा जायेगा।
और यदि नहीं घुसा या ज्यादा दर्द हुआ तो मामा को रुकने का बोल दूंगी।
मामा ने मेरी टाँगे चौड़ी करके फैलाई और अपने हाथों से थोड़ी सी खोली, चूत के होंठ खूब मोटे हो रहे थे, फांकों को अलग-अलग खींचा और जो जगह बनी उसमें मामा ने अपना लौड़ा सटा दिया था। अब तक कोई बात नहीं हुई सिवाय मेरी कंपकंपी और भारी चुदास की उत्तेजना के।
अब मामा ने धीरे से अपना सुपारा मेरी चूत में थोड़े जोर के साथ अंदर करना चाहा तो मुझे बहुत दर्द हुआ, मैंने मामा को रोक दिया।
वे मान भी गए पर सुपारे का मुंह मेरी चूत के द्वार पर ही ठहरा हुआ था।
थोड़ी देर रुक कर मामा ने मुझे पुचकार कर प्यार से समझाया- आज ले ही ले और स्वर्ग की सवारी कर ले।
उन्होंने मुझे कई एक महिलाओं और खुद मेरी माँ-पापा के सेक्स के आनन्द की बातें कई बार बताई थी। एक बार तो मम्मी की चुदाई करते हुए भी पापा को दिखाया था और दोनों चुदाई के दौरान कितने खुश थे और मजा ले रहे थे वह भी दिखाया था।
अर्थात मुझे पक्का पता था कि चुदने में मज़ा तो आएगा, हिम्मत कर ही लूँ।
तभी मामा ने पूछा- धीरे धीरे डालूँ क्या?
मैंने हामी भर दी।
मामा ने थोड़ा सा जोर लगाकर अपने लण्ड का सुपारा मेरी कुंवारी और पतली सी चूत में धकेल दिया।
लण्ड का चूत में घुसना था और मेरी जान निकल गई। मैं ऐंठ कर दुहरी होने लगी और जोर से चीखी न चाहते हुए भी।
मामा बहुत चतुर थे, उन्हें मुझको रोज़ चोदना था केवल आज ही तो नहीं, इसलिए फट से अपना लण्ड थोड़ा वापस निकाल लिया। अभी तक भी उनका सुपारा ही घुसा था पर लण्ड की बनावट भगवान ने सांड जैसी नहीं बनाई, जो सामने से पतला नुकीला होता है और पीछे मोटा। मामा का तो सुपारा ही इतना मोटा था कि यदि वो अन्दर चला गया तो फिर बाकी भी जा सकता था।
मेरे चीखने के बाद मामा ने आज मुझे बस इतनी सी चुदाई के बाद मेरी चूत की अच्छी तरह सफाई की और खून को पोंछ कर साफ़ किया, मुझे सुस्ताने दिया।
अब जब मेरे पसीने भी सूख गए तो दुबारा उन्होंने मेरी चूत को सहलाया और यह कह कर कि बस उंगली से ही मज़ा देंगे तो उंगली चूत में डाल-डाल कर खूब उत्तेजित किया और मेरी यह हालत कर दी कि मैंने ही एक बार फिर से लण्ड डालने की कोशिश करने को कहा।
बस मामा को और क्या चाहिए था, यही तो उनकी इतने दिन की योजना चल रही थी। फिर से तेल लगा कर चूत को खूब चिकनी किया और मेरी चौड़ी टांगों के बीच बैठ कर चूत को हाथ से चौड़ी करके इस बार मेरी चिंता किये बिना ही पहला ही धक्का ऐसा मारा कि मेरी चूत तो जैसे ब्लेड से चिर गई हो !
और दर्द !!!
दर्द की तो कुछ मत पूछो !
मुझे लगा कि मैं बेहोश होने वाली हूँ।
पर तभी अनुभवी मामा ने सब संभाल लिया और इधर उधर की सब बात छोड़कर लगे चोदने जोर जोर से। मुझे पहले 3-4 धक्के तो मुश्किल वाले वाले लगे, फिर तो जो आनन्द चुदाई का आने लगा, वो तो किसी स्वर्ग से कम नहीं था।
मामा ने 15-20 मिनट तक चोदा और मैं जब झड़ी तो पूरी तरह निढाल हो गई थी।
आधी रात के बाद मामा को फिर जोश आया और मैंने भी उनका पूरा साथ दिया, अच्छी जोरदार चुदाई हुई।
यह सिलसिला तो अब चल ही निकला था और मैं रोज़ ख़ुशी ख़ुशी मामा से चुदवाया करती थी।
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