ससुर जी का महाराज-1

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मेरा नाम खुशी है और अब मेरी उम्र 22 साल है. मैं एक बहुत सुंदर और जवान स्त्री हूँ, मेरा कद 5 फुट 6 इंच है और मेरा रंग बहुत साफ़ है. मेरा जिस्म बिल्कुल किसी कारीगर की तराशी हुई संगमरमर की मूर्ति की तरह है, लोग मुझे इस डर से नहीं छूते कि मेरे शरीर पर कोई दाग ना लग जाए. मेरा फिगर 36-24-36 है और मेरी चूचियाँ मस्त गोल, सुडौल और सख्त हैं, गोरे रंग की चूचियों पर गहरे भूरे रंग की डोडियाँ बहुत सुंदर लगती हैं.

मेरी शादी हुए दो साल हो गए हैं और मेरा एक बेटा है, जो कि मेरी शादी के एक साल तीन माह बाद हुआ था और अब नौ माह का है. जब वह चार माह का था तब मेरे मेरे पति का तबादला अमरीका हो गया था. क्योंकि उनका कार्य आणविक क्षेत्र में था इसलिए वह परिवार को अपने साथ नहीं ले जा सकते थे. उन्हें हर ग्यारह माह के बाद एक माह के लिए भारत अपने परिवार के पास आने की इज़ाज़त थी. विदेश जाना उनकी एक मजबूरी थी, इसलिए मुझे और मेरे चार माह के बेटे को अकेला छोड़ के गए. हम अकेले ना रहें, इसके लिए मेरे पति ने मेरे ससुर (यानि पापाजी) को हमारे साथ रहने के लिए गांव से शहर बुला दिया था.

मेरे ससुर, जब हमारे साथ रहने के लिए आए तब उनकी उम्र 48 साल थी. वह हमसे अलग, गांव में रहते थे. मेरी सास की मृत्यु डेढ़ साल पहेले हो गई थे और पिछले एक साल से वह ज़्यादातर वहीं गांव वाले घर में अकेले ही रहते थे. पापाजी आर्मी में मेजर रह चुके थे और रिटायर्ड होने के बाबजूद वह बहुत फुर्तीले थे. आर्मी के तौर तरीके और तहज़ीब वह अभी तक नहीं भूले थे. गांव में रहने और खेतीबाड़ी करने तथा गांव के शुद्ध वातावरण के कारण उनका शरीर बहुत गठीला था और इस आयु में भी वह एकदम 28-30 साल के जवान लगते थे. पहले जब भी कभी वह सासू माँ के साथ हमारे पास आकर रहते थे तो मेरी पड़ोसनें उन्हें मेरे पति के बड़े भाई ही समझती थी.

पति के जाने के बाद, पिछले सात माह से वह हमारे साथ ही रह रहे हैं. पढ़े लिखे होने के कारण उनका उठना-बैठना और पहनावा भी शहर वासियों जैसा है, इसलिए मेरे साथ घर में बहुत जल्दी एडजस्ट हो गए हैं. घर के काम में और बच्चे की देखभाल में भी मेरा हाथ बटा देते हैं.

मुझे और मेरे पति को सेक्स बहुत पसंद है और शादी के बाद कोई दिन भी ऐसा नहीं था जब हम एक बार या उससे ज्यादा बार चुदाई ना करते हों. अब मेरे पति को अमरीका गए लगभग सात माह हो चुके हैं और इन सात माह में से पहले दो माह तो मुझे एक बार भी सेक्स करने को नहीं मिला था इसलिए मैं इतनी बेचैन रहती थी और सारा दिन सेक्स के लिए तड़पती रहती थी. चूत मरवाने की लालसा लिए किसी को ढूंढती रहती थी, पर कोई भरोसे का नज़र नहीं आता था. लेकिन पांच माह पहले मुझे अचानक ही एक ऐसा अवसर मिला जिससे मुझे जिंदगी में अत्यंत खुशी मिली और वह अभी भी ज़ारी है.

यह उस दिन बात है जब मैं घर का सफाई करती हुई पापाजी जी के कमरे गई तो मैंने पाया कि वह कमरे में नहीं हैं. मुझे समझ में नहीं आया कि वह कहाँ गए होंगे, इसलिए मैं इधर उधर देखने लगी और तभी मुझे उनके बाथरूम की लाइट जलती हुई नज़र आई, मैं जिज्ञासा वश उस तरफ चली गई. वहाँ मैंने देखा कि बाथरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ है और अंदर से उहं ऊँह की आवाज़ आ रही हा. मैं सुन कर घबरा गई और सोचा कि शायद पापाजी जी कि तबियत ठीक नहीं है या वह किसी तकलीफ में हैं.

मैं घबराहट में जल्दी से बाथरूम का दरवाज़ा खोल कर अंदर झांक के देखने लगी.

अंदर का नज़ारा देख के मेरे तो होश उड़ गए, पापाजी जी अपने नौ इंच लंबे और ढाई इंच मोटे लण्ड महाराज की बड़ी तस्सली से मालिश कर (मुठ मार) रहे थे. इससे पहले मैं अपने आप को संभालती तभी मैंने देखा कि पापाजी जी ने आह्ह्ह की आवाज़ निकाल कर अपने लण्ड महाराज से रस की पिचकारी छोड़ी जो कि दो फुट दूर दीवार पर जा पड़ी. पापाजी जी का ढेर सारा गाढ़ा रस, इतना ज्यादा और इतनी जोर से, निकलते हुए देख कर मेरी जोर से एक लंबी साँस निकल गई जिसे सुन कर पापाजी ने पलट कर देखा और मुझे देखते ही गुस्से में पूछा- तू यहाँ क्या कर रही है?

उनकी गुस्से से भरी आवाज़ सुन कर मैं डर गई और बिना जवाब दिए वहाँ से भाग गई.

इस घटना के दो घंटे बाद तक तो मैं उनके सामने भी नहीं गई. लेकिन दोपहर को खाना बनाने के समय बेटा तंग कर रहा था तो मुझे मजबूर हो कर उसे उनको देने के लिए जाना पड़ा, तब वह बिल्कुल सामान्य तरीके से पेश आए. इससे मेरी जान में जान आई और मैं भी उनके सामने आने जाने लगी तथा सामान्य तरीके से व्यहवार करने लगी.

लेकिन उस घटना के बाद अगले दिन भी मैं उस नज़ारे के बारे में ही सोचती रहती. मेरे पति का लण्ड तो केवल सात इंच लंबा और दो इंच मोटा है तथा अत्यंत आनन्द देता है, लेकिन पापाजी का यह लण्ड महाराज कैसे मज़े देगा मैं इसके सपने लेने लगी थी तथा अपनी चूत उस को डलवाने की योजना बनाती रही.

अगले दिन, रात को सोने के समय मेरा बेटा बहुत रोने लगा. जब वह चुप नहीं हुआ तो मैं उसे पापाजी के कमरे में ले गई और उन्हें देकर उनसे उसे चुप कराने का आग्रह किया. पापाजी ने उसे गोद में लिया और मुझे तेल लाने को कहा. मैंने उन्हें तेल ला कर दिया तो उन्होंने मेरे बेटे के पेट पर मलना शुरू कर दिया. कुछ ही देर में बेटा चुप होकर उनकी गोद में खेलने लगा.

पोते को दादा के पास छोड़ कर मैं अपने कपड़े बदलने चली गई. यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं.

तभी मेरे दिमाग में योजना आई कि अगर मैं पापाजी को अपने यौवन की झलक दिखाऊँ तो शायद कुछ बात बन जाए और मेरी लण्ड महाराज से चुदने की इच्छा भी पूरी हो जाए. मैंने झट से ब्रा और पेंटी सहित अपने सारे कपड़े उतारे और अपना गुलाबी रंग का पारदर्शी सा नाईट गाउन पहना. मैंने गाउन के ऊपर के दो और नीचे के तीन बटन खुले छोड़ दिए और बेटे को लेने पापाजी के कमरे में गई.

जब मैं चलती थी तो जांघों तक मेरी टाँगे नंगी हो रहीं थी और मेरी डोलती हुई चूचियों और उस पर खड़ी चूरे रंग की डोडियाँ गाउन में से झलक रहीं थी.

पापाजी ने मुझे उन कपड़ों में देखा और एकटक देखते ही रहे. उनकी आँखों की चमक बता रही थी कि वह मेरे बिछाये जाल में फँस जायेंगे, मुझे सिर्फ कुछ इंतज़ार करना पड़ेगा. जब मैंने पापाजी से बेटे को लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो उनका ध्यान मेरी चूचियों की तरफ गया और वह उन्हें देखते हुए एकदम स्थिर हो गए.

मैंने कहा- पापाजी, यह सो गया है, लाइए मैं इस इसके बिस्तर पर सुला दूँ. तब हड़बड़ा कर उन्होंने कहा- यह अभी-अभी सोया है, कच्ची नींद में है इसलिए इसे अभी यहीं सोने दे. मैं ‘हाँ जी’ कहती हुई अपने कमरे में चली गई. मुझे नींद नहीं आ रही थी इसलिए मैं बहुत देर तक ऐसे ही लेटी करवटें बदलती रही. तभी मुझे याद आया कि मैंने बेटे को दूध तो पिलाया ही नहीं.

मैं उठी और पापाजी के कमरे में गई तो पाया कि वह भी सो गए हैं. तब मेरे मन में आया कि मैं भी इसी कमरे में सो जाती हूँ और मैं उनके साथ वाले बेड पर लेट गई. बेटे को अपने पास खींचा और गाउन में से चूचियाँ निकाल कर उसे दूध पिलाने लगी. इतने में पापाजी ने नींद में ही करवट बदली और सीधे हो कर सोने लगे, तब मेरी नज़र उनकी लुंगी पर गई जो खुल कर अलग हो गई थी और वह बिल्कुल नग्न लेटे हुए थे, उनका लण्ड महाराज बड़े आराम से उनकी जांघों पर सोया हुआ था.

मेरा ध्यान बच्चे को दूध पिलाने में कम और लण्ड महाराज की ओर ज्यादा आकर्षित हो गया. मैं बहुत ध्यान से उसे और उसकी बनावट को देखती रही. पापाजी का लण्ड महाराज तो बहुत ही आकर्षक था. उसका आकार तो मैं ऊपर बता चुकी हूँ, पर उनके टट्टे भी तो कमाल के थे, लगभग तीन इंच साइज़ के गेंदों के बराबर होंगे. उनका लण्ड महाराज सोये होने के बाबजूद भी पांच इंच लंबा लग रहा था. ऊपर का सुपाड़ा तो ढका हुआ था लेकिन उसके आगे के आधा इंच भाग के ऊपर मांस नहीं था और उनका मूत्र और रस निकलने का छिद्र बिल्कुल साफ नज़र आ रहा था.

मेरे बेटे का पेट भर चुका था इसलिए उसने चूची को छोड़ दिया था और सो गया था, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी.

मैंने बच्चे को अलग से सुला दिया और वहीं बैठ कर पापाजी के उस हथियार को निहारती रही जो वहाँ लेटे लेटे मुझे चिढ़ा रहा था.

कहानी जारी रहेगी. [email protected]

कहानी का अगला भाग : ससुर जी का महाराज-2

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