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लेखिका : कामिनी सक्सेना
यह कहानी नेहा वर्मा की एक सच्ची कहानी है, जिसे उन्होंने मुझे लिखने को कहा है। यह एक साधारण सी कहानी है जो किसी की जिन्दगी में भी घट सकती है। बस मैं इसे सजा कर आपके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ।
नेहा और सुनील पति पत्नी है। उनकी शादी हुये तब कोई सात-आठ माह ही हुये थे। सुनील एक सरकारी भू वैज्ञानिक अधिकारी था और उस समय किसी तेल कम्पनी में जैसलमेर में पदस्थापित था। इस बार उसने नेहा को उसके साथ जैसलमेर चलने को भी कहा। वो एक अपने आप में अनोखी जगह है रेत का समन्दर और उड़ती हुये रेत की लहरें, बहुत लुभावने लगते हैं। पति की फ़रमाईश को वो ठुकरा नहीं सकी।
सुनील की छुट्टियाँ समाप्त होते ही वो दोनों जैसलमेर पहुंच गये थे। वहां उसका खास दोस्त स्पर्श कुमार जो एक भू भौतिकविद था, उन्हें लेने स्टेशन लेने आया था।
स्पर्श ने सुनील के घर की सफ़ाई पहले से करवा दी थी। यहां तो शहर में भी रेत उड़ती रहती थी। सवेरे सफ़ाई करने पर बहुत सी रेत निकल आती थी। कम्पनी का एक नौकर उसके यहां भोजन आदि का प्रबन्ध करता था। तीनों ने चाय वगैरह पी। नेहा की नजर स्पर्श पर स्टेशन पर ही पड़ गई थी। स्पर्श एक गोरा, सुन्दर, स्वस्थ्य लम्बा गठीला युवक था। उसके रेशम जैसे बाल उसे खास तौर पर अच्छे लगे थे।
नेहा भी एक सुन्दर युवती है… वो भी गोरी चिट्टी, लम्बी है। उसके बाल खास तौर पर बहुत ही लम्बे थे, कूल्हों तक के…… उसकी सुंती हुई नाक, सलोने उभार उसे एक मनभावन लड़की बनाते थे।
स्पर्श भी उसकी सुन्दरता से प्रभावित हुये बिना ना रह सका। कहते हैं ना कि पहली नजर में ही दिल पर तीर चल गये, आँखें चार हो गई… दिल धड़क सा गया। बस नयनों के तीर ने दिलों को घायल कर दिया। यूं तो नेहा सुनील से बहुत प्यार करती थी और सुनील भी उसे जी जान से चाहता था। पर इस दिल का क्या करे। उसे बहकते देर थोड़े ही ना लगती है, बस बहक ही गया।
सुनील का रूटीन सर्वे का काम शुरू हो गया। वो जैसलमेर से कई किलोमीटर दूर पेट्रोल जीप से रेतीले इलाके में चले जाते थे। जहां सुनील अपना सर्वे का कार्य करता था रेत के टीलों पर चढ़ना, पैदल चलते रहना, अपनी सर्वे बुक पर कुछ कुछ लिखते रहना। गहरे कुओं के पास घण्टों बैठे रहना और कुछ कुछ लिखते रहना, उसके सर्वे का एक हिस्सा था।
नेहा तो दो दिन में ही उसके कार्य से परेशान हो गई। उसने तीसरे दिन उसके साथ जाने से मना कर दिया, उसने कहा कि वो स्पर्श के साथ ही घूमने ही जायेगी।
स्पर्श का सर्वे उसे अच्छा लगा, वो एक स्थान पर अपने बिजली के तार बिछा कर बैठ जाता और मशीनों में से कुछ आंकड़े एक कागज पर लिखता रहता था। वो नेहा को उसकी पसन्द की चीजें खाने को जरूर देता रहता था। उसके कैम्प में चाय वगैरह का भी प्रबन्ध था।
पर दिल के शैतान को कब तक कैद रखा जा सकता है। दिन बीतते-बीतते दोनों में अच्छी मित्रता हो गई। औपचारिक बाते समाप्त हो गई और वे दोनों हंसी मजाक पर उतर आये थे। दोनों के हृदय प्रफ़ुल्लित थे। उन्हे मन चाहा साथी मिल गया था। पर जब सब कुछ सरलता से मिल जाता है तो मन कुछ आगे बढ़ने को करने लगता है।
तभी नेहा ने अपना पुराना हथियार काम में लिया- स्पर्श, यार मुझे जाना है, पर यहाँ तो दूर दूर तक रेत ही रेत है।
“कहां जाना है, यहां पर कुछ नहीं है, बैठ जाओ।”
“अरे समझो ना… मुझे लगी है… जाना है !’
“ओह… यहां तो कोई जगह ही नहीं है। ड्राईवर से कहो कि वो तुम्हें उधर दूर ले जाये…”
तुम भी ना स्पर्श… तुम ले चलो…
उफ़्फ़, चलो मेरी अम्मा… उसने अपने सहायक को अपनी जगह बैठा दिया।
उसने जीप ली और चल दिया। थोड़ी दूर जाकर स्पर्श ने पीछे देखा। अभी भी सब कुछ साफ़ नजर आ रहा था, वो और आगे बढ़ गया।
अब ठीक है जाओ और सू सू कर लो…
वो दोनों जीप से उतर गये। नेहा कुछ दूर गई और जानबूझ कर मैदान में अपनी कुर्ता ऊपर और पजामा नीचे करके बैठ गई। स्पर्श ने उसके सुन्दर चूतड़ों की एक एक झलक अपनी नजरों में कैद कर ली, उसे देखने का लालच छोड़ नहीं पाया। नेहा जानकर के उसे अपने सुन्दर गोलों को देखने का निमन्त्रण दे रही थी। सू सू करने के बाद वो खड़ी हो गई।
तभी उसने जानबूझ कर अपना पजामा छोड़ दिया और वो लहराता हुआ उसके पैरों पर गिर पड़ा। वो धीरे से झुकी ताकि स्पर्श उसके सुन्दर चूतड़ों को ठीक से देख सके।
स्पर्श तो जैसे घायल हो गया। स्पर्श को तो उसकी गाण्ड की गोलाईयों के मध्य छेद तक नजर आ गया था। वो तड़प सा उठा। उसने कभी किसी स्त्री की नंगी गाण्ड नहीं देखी थी …
नेहा ने अपना अपना पाजामा ऊपर उठा लिया और नाड़ा बांधने लगी।
नेहा ने पीछे मुड़ कर स्पर्श को देखा तो मुस्करा उठी। वो बुत बना हुआ एकटक उसे ही देख रहा था।
“क्या हुआ स्पर्श… कहां खो गये…?”
वो हड़बड़ा सा गया… उसकी चोरी पकड़ी गई थी।
“वो… वो… कुछ नहीं… आपने सू सू कर ली?”
“हूं हूं… अब तुम भी कर लो… हल्के हो जाओ…”
नेहा का दिल गुदगुदा उठा था। स्पर्श घायल सा आगे बढ़ गया और थोड़ी दूर जाकर जाने किस ख्याल में अपना लण्ड निकाल कर सू सू करने को खड़ा हो गया। उसका पूरा लण्ड नेहा को स्पष्ट दिख रहा था। नेहा ने एक गहरी सांस ली और लण्ड को अपने मन में बसा लिया। जैसे ही स्पर्श के लण्ड से सू सू की धार निकली नेहा की नजर उस पर जम कर रह गई।
मूत्र की मोटी सी धार… उसका लम्बा और मोटा लण्ड… नेहा का दिल धाड़ धाड़ करके धड़कने लगा। स्पर्श ने मूत्र त्यागने के बाद अपने लण्ड को ऊपर नीचे हिला कर उस पर लगी बून्दो को झटक कर हटा दिया।
नेहा ने अपना दिल दिल थाम लिया।
तभी स्पर्श को ध्यान आया कि नेहा तो उसके लण्ड को बहुत ही घूर घूर कर निहार रही है। उसने जल्दी से अपना मुख फ़ेर लिया और लण्ड को पैंट में घुसा कर जिप ऊपर खींच ली। नेहा तो स्पर्श को मन्त्र मुग्ध सी उसे देखती रही।
स्पर्श उसके समीप आ गया, नेहा की कमर पकड़ कर उसे अपने शरीर से भींच लिया तभी नेहा का ध्यान भंग हुआ।
“अरे रे… ये क्या कर रहे हो…?”
स्पर्श भी एकाएक चौंक सा गया।
“ओह… सॉरी नेहा… बहक गया था…”
नेहा खिलखिला कर हंस दी।
“स्पर्श जी, भगवान करे रोज ही बहको…”
स्पर्श ने शर्म से सर झुका लिया।
“सॉरी, प्लीज सुनील से ना कह देना…”
नेहा ने बड़े ही आकर्षक हंसी से उसे देखा- …तो क्या बहकना बन्द कर दोगे…?
दोनों ही हंस पड़े और अपने कार्य स्थल की ओर बढ़ चले। स्पर्श ने अपनी जीप भोजन लाने को भेज दी और अपने कार्य में लग गया। करीब दो बजे उनका भोजन समाप्त हुआ। थोड़ा सा आराम करने के बाद उसका काम फिर से शुरू हो गया। पर नेहा का मन तो बहक रहा था। उधर स्पर्श भी कुछ कुछ खोया खोया सा लगने लगा था।
तभी नेहा से फिर से इशारा किया। स्पर्श समझ गया। उसने अपना काम अपने सहायक को दिया और जीप लेकर चल दिया।
कुछ दूर आने के बाद उसने एक धोरे के पीछे गाड़ी रोक दी।
“जाओ… कर लो…!”
स्पर्श और नेहा जीप से उतर गये थे।
“सू सू किसे करना है बुद्धू…?” ‘
तो फिर…?”
“बहकने का मूड नहीं है क्या…?”
स्पर्श का दिल बाग बाग हो गया। वो धीरे धीरे नेहा की बढ़ा। वो खिलखिला कर भागने लगी। पर स्पर्श ने उसे रेत पर चढ़ते ही पीछे से पकड़ लिया। उसे लेकर वो रेत पर गिर पड़ा।
दोनों एक दूसरे से लिपटे हुये थे, दोनों की नजरें मिली, दोनों एक दूसरे को प्यार भरी नजरों से निहारने लगे। दिल धड़क उठे, दोनों के होंठ थरथराये… दोनों ने एक दूसरे को समर्पित करते हुये अपने लबों को आपस में मिला दिये जैसे भवंरा फ़ूल का रस पी रहा हो।
नेहा ने अपनी एक टांग उठा कर स्पर्श की कमर पर लपेट दी। उसे वो अपनी ओर कसती गई। अन्जाने में स्त्री के कोमल अंगों से छू जाने जाने से स्पर्श का लण्ड कठोर होने लगा। जब नेहा ने उसका सख्त होता लण्ड का दबाव अपनी कोमल चूत पर हुआ तो उसके लण्ड पर उसने अपनी चूत का दबाव बढ़ा दिया।
स्पर्श ने जाने अन्जाने में अपने हाथ नेहा के भारी स्तनों पर रख दिये और दबा दिये।
नेहा सिहर उठी। वो वासना में डूबी जा रही थी। स्पर्श भी अपने आपे में नहीं था। नेहा ने अपना आपा खोते हुये स्पर्श का लण्ड पकड़ लिया और उसे दबाने लगी।
“स्पर्श, मुझे ऊपर आने दो प्लीज…!”
स्पर्श जल्दी से रेत पर नीचे आ गया और नेहा उसके ऊपर आ गई। नेहा तो खूब चुदी चुदाई लड़की थी। शादी के पहले भी उसने काफ़ी लण्ड खाये थे सो वो इस काम में बहुत अनुभवी और निपुण थी। उसने ऊपर आते ही स्पर्श की पैंट नीचे खींच दी और चड्डी नीचे सरका कर उसका लण्ड बाहर निकाल लिया।
उफ़्फ़्फ़… कठोर होकर तो उसका लण्ड दिल को चीर रहा था। नेहा ने उसके लण्ड की चमड़ी को धीरे से ऊपर खींच दी। उसका लाल सुर्ख सुपारा फ़ूल कर टमाटर सा हो गया था। उसने उसे अपने हाथों से हिलाया और फिर उसे अपने मुख के हवाले कर दिया।
“नेहा जी, आप यह क्या कर रही हैं… इसे मुख में मत लीजिये।”
“इसका स्वाद तुम क्या जानो…?” यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
कह कर नेहा उसे लपड़ लपड़ कर चाटने लगी और अपने मुख को गोल करके उसे अन्दर बाहर करके पुच्च पुच्च करके घिसने लगी। स्पर्श की गोरी गोरी नीचे लटकती हुई गोलियों से खेलते हुये उसे भी चाट चाट कर स्पर्श को मस्त करती रही।
“अब स्पर्श, तुम भी ऐसा ही करो…!”
“अरे नहीं… मुझसे यह सब नहीं होगा…!”
“प्लीज, बस एक बार…!”
नेहा नेएक तरफ़ आकर अपना कुर्ता और पाजामा खोल कर अपनी टांगें धीरे से फ़ैला दी। स्पर्श उसकी चूत देख कर दंग रह गया। जिन्दगी में किसी की जवान चूत पहली बार उसने देखी थी। उसकी गीली, रस भरी चूत उसको अपनी तरफ़ खींच रही थी। नेहा ने शर्मा कर अपनी आँखें बन्द कर ली थी। कुछ ना होते देख कर उसने अपनी आँखें खोली तो देखा स्पर्श टकटकी लगा कर उसकी चूत को ही घूर रहा था। फिर उसने धीरे से अपना मुख नीचे किया और उसकी चूत की भीनी भीनी खुशबू को गहरी सांसें लेकर सूंघता रहा। फिर उसने धीरे से उसकी चूत को खोला और अपनी जीभ से उसकी चूत के गीलेपन को चाट कर साफ़ कर दिया। नेहा के तन बदन में जैसे आग सी लग गई।
“सीऽऽऽऽ सीऽऽऽऽऽ आह्ह, स्पर्श चूस डालो प्लीज… अईईईईई रीऽऽऽऽऽ…!”
स्पर्श ने अपनी नाक उसकी चूत में रगड़ दी, नेहा वासना की मीठी मीठी गुदगुदी से तड़प उठी। उसे बहुत सालों के बाद किसी पराये मर्द से यह सुख मिल रह था। स्पर्श की मधुर चूत चुसाई से नेहा कुछ ही देर में झड़ गई। उसने स्पर्श को आगे कुछ करने से रोक दिया।
“अब बस भी करो, बहुत रगड़ लिया, अब कुछ मुझे भी रगड़ लेने दो…”
नेहा ने स्पर्श का लण्ड थाम लिया और उसका लाल सुपारा बाहर निकाल कर उसे हल्के हाथों से रगड़ने लगी। उसका लण्ड बहुत कठोर होता चला गया। नेहा को उसका लण्ड हिला हिला कर मसलना बहुत अच्छा लग रहा था। सुनील उसे यह सब नहीं करने देता था। बस लण्ड खड़ा हुआ और चोद डाला, खेलने तो वो देता ही नहीं था। आज नेहा को मौका मिल गया था। वो स्पर्श को बार बार चूमती और उसका लण्ड कस कर हिला हिला कर मुठ्ठ मार देती थी। स्पर्श भी रह रह कर कभी नेहा की चूचियाँ दबा देता था या फिर उसकी गाण्ड में अंगुली कर देता था।
कुछ ही देर में नेहा ने उसका लण्ड दबाया और जोर जोर से घिसने लगी। स्पर्श मारे जोश के जोर जोर से आह्ह्ह आह्ह्ह करने लगा।
“अरे मार डालोगी क्या नेहा, बस करो… उफ़्फ़्फ़ मैं तो मर गया… हिस्स्स्स… जोर से रगड़ डाल लण्ड को…!”
नेहा के हाथों की गति तेज होती जा रही थी… और फिर स्पर्श ने एक तेज चीख सी निकाली और उसके लण्ड ने जोर से पिचकारी छोड़ दी।
नेहा तो जानती ही थी यह सब… उसने लपक कर नल से अपना मुख लगा लिया और उसका पानी पीने लगी।
“निकालो… और निकालो… आह्ह्ह्ह !”
और नेहा उसे पीती गई। वो अपना रस पिचकारियों के रूप में छोड़ता रहा।
अगले भाग में समाप्त !
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