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लेखिका : कमला भट्टी
दीपावली के लिए घर जाने के लिए जीजाजी और मैंने साथ ही बस लेने का सोचा और हम दोनों बस स्टैण्ड पर आ गए पर जीजाजी तो कुछ और ही योजना बना कर आए थे। वे मुझे वहाँ से होटल ले गए।
जीजाजी ने कमरे का दरवाज़ा खोला और हम कमरे में पहुँच गए।
कमरा ऐ.सी. था, ऐ.सी. टी.वी. सब चल रहे थे. बहुत ही शानदार कमरा था, बड़ा सा पलंग, मेज-कुर्सी, अलमारी, अटेच्ड लेट-बाथ !
मैं सीधे फ्रेश होने बाथरूम में घुस गई। मैं बाथरूम से वापिस आई तो…
जीजाजी पलंग के पास खड़े थे !
मेरे बाहर आते ही उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया और अपने सीने से चिपका लिया। मैं भी किसी बेल की तरह उनसे लिपट गई। हम खड़े-खड़े जैसे एक दूसरे में समाना चाह रहे थे। हम करीब दो मिनट ऐसे ही एक दूसरे से चिपके खड़े रहे, जीजाजी ने मुझे इतनी जोर से अपनी बाहों में भींच रखा था कि मेरी हड्डियाँ कड़कड़ाने लगी थी। आज हम पहली बार रोशनी में एक दूसरे की बाहों में समाये थे इसलिए मुझे उनसे शर्म आ रही थी, मैं अपना मुँह उनके सीने में छिपा रही थी और वे बार-बार मेरा मुँह ऊपर कर चूमने की कोशिश कर रहे थे।
हम दोनों को एक दूसरे से चिपक कर खड़े होने में असीम सुख मिल रहा था जैसे कई जन्मों के बिछड़े प्रेमी प्रेमिका मिले हों।
फिर हम अलग हुए, हमारे चेहरे से मिलने की ख़ुशी फ़ूट रही थी। अलग होकर हम दोनों ने लम्बी और गहरी सांसें ली यानि इतनी देर जैसे हमारी सांसें ही रुक गई थी हम दोनों मुस्कुरा रहे थे, कुछ शर्म आ रही थी तो नज़रें भी चुरा रहे थे और एक दूसरे को छिपी नजरों से देख रहे थे।
मेरे जीजाजी की नजरो में मेरे लिए प्रंशसा और चाहत का भाव था और मैं भी उन्हें खुश होकर देख रही थी। मेरा विचार था कि मैं थोड़ी देर रुक कर गाँव चली जाऊँगी !
फिर उन्होंने अपना बैग खोल कर अपनी लुंगी बाहर निकाली और अपने कपड़े उतारने लगे। उन्हें कपड़े उतारते हुए कुछ शर्म आ रही थी इसलिए मैंने टीवी चालू कर लिया और फिल्म देखने लगी, मेरी मनपसंद फिल्म ‘जब वी मेट’ आ रही थी।
जीजाजी ने अपने कपड़े हेंगर पर टांगें और बाथरूम में चले गए। थोड़ी देर में वापिस आये और मेरे पास आकर पलंग पर बैठ गए, मुझे फिर से बाहों में लेकर चूमने लगे।
मैंने शरारत से कहा- इतनी अच्छी फिल्म आ रही है, देखने दो ना !
वो मुझे अपनी तरफ झुकाते अभी इससे भी अच्छी फिल्म हम बनाते हैं !
मैंने कहा- रुको, मेरी साड़ी में सलवटें पड़ जाएँगी !
उन्होंने कहा- यह बात तो सही है, फटाफट उतार देते हैं और कुछ पलो में मेरी साड़ी जीजाजी के हाथ में थी।
जीजाजी मेरी साड़ी वार्डरोब में रख दी और मेरे बैग से मेरी सेक्सी मैक्सी निकाल कर मुझे देते हुए कहा- चलो, फटाफट यह पहन कर आओ !
मैंने कहा- इसे पहननी क्या जरूरी है? ऐसे ही आ जाओ ना ! कुछ भी पहनो उसे तो उतरना ही है। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
पर उन्होंने कहा- नहीं, इसमें तुम बहुत सेक्सी लगती हो, इसे ही पहन कर आओ ! और नीचे पेटीकोट और चड्डी मत पहनना ! वैसे भी उनकी कोई जरुरत नहीं है।
ऐसा कहते हुए उन्होंने जबरदस्ती मुझे पलंग से नीचे खड़ा कर दिया। मैं मैक्सी लेकर बाथरूम में गई क्योंकि उनके सामने मुझे शर्म आ रही थी और अपने कपड़े बदले, पेटीकोट तो नहीं पहना पर चड्डी तो पहनी।
मैं बाहर आई तब तक वे पलंग पर लेट गए थे और बेसब्री से मेरा इंतजार कर रहे थे। मैं उनके पास गई तो उन्होंने अपनी बाहें उठा कर मेरा स्वागत किया। मैं भी उनकी बाहों में समां गई!
अब वे मुझे बुरी तरह से चूम रहे थे, उनके हाथ मेरे सारे शरीर पर घूम रहे थे। मेरी मैक्सी कुछ ही पलों में मेरी कमर पर पहुँच गई थी, मैं शरमा कर उसको बार-बार नीचे करने की असफल कोशिश कर रही थी !
वे मेरी पीठ की तरफ हाथ डाल कर मेरी ब्रेजरी के हुक खोलने की कोशिश कर रहे थे।
मैंने कहा- क्या हुआ? आपसे एक हुक भी नहीं खुला?
उन्होंने कहा- अभी खुल जायेगा, खुलेगा नहीं तो टूट जायेगा।
मैंने कहा- तोड़ना मत प्लीज ! नहीं तो आपको दूसरी दिलानी पड़ जाएगी।
मैं थोड़ी देर बिना हिले रही और उन्होंने उसे खोल दिया और मुझे सीधा करके मेरे स्तन दबाने लगे। उन्होंने मेरी मैक्सी काफी ऊपर कर मेरे स्तनों को नंगा कर दिया जो छोटे छोटे नारंगी के आकार के थे। वे उन्हें सहला रहे थे, उनकी भूरी घुन्डियों को अंगूठे और अंगुली से मसल रहे थे। मुझे भी आनन्द आ रहा था, मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी। मैंने उन्हें कहा- आपने कई बार मेरे स्तनों की मांग की थी, अब ये आपके सामने हैं, जो करना है कर लो इनका !
वे मसलते हुए बोले- हाँ, बहुत तड़फाया है इन्होंने ! इतना तो तेरी चूत ने भी नहीं तड़फाया।
तो मैंने हंस कर कहा- तो क्या करोगे इनका? कही उखाड़ मत ले जाना इनको !
वे बोले- इतनी प्यारी चीज को प्यार करूँगा !
और सीधे मेरे स्तनों पर मुँह लगा दिया और उन्हें चूसने लगे।
मैं सिहर गई, मेरे सारे शरीर में आनन्द की तरंगें उठने लगी !
वो बारी बारी से दोनों को चूस रहे थे, एक चूसते, तब तक दूसरे को हाथों से दबाते और फिर उन्होंने अपना मुँह पूरा खोल कर मेरे पूरे स्तन को मुँह में भर लिया और उसे साँस के साथ और अन्दर खींचने लगे। मेरा स्तन उनकी साँस के साथ उनके मुँह में खींचा जा रहा था और मुझे आनन्द आ रहा था।
आज हम दोनों बिना किसी डर से सेक्स कर रहे थे इसलिए बहुत ज्यादा आनन्द आ रहा था।
मैंने कहा- अब इन्हें छोड़ो, कोई और आपकी जीभ का इंतजार कर रहा है।
उन्होंने स्तन छोड़े, फटाफट मेरी चड्डी उतारी, मेरे पाव खड़े कर उन्हें थोड़ा चौड़ा किया और सीधे मेरी चूत में अपना मुँह घुसा दिया !
मैं पहले से ही स्तन चुसवा कर गर्म हो गई थी, अब मेरी किलकारियाँ निकल रही थी। कमरे में ए.सी. टी.वी. पंखे सब चल रहे थे, दरवाज़ा बंद था और साऊँड प्रूफ भी था इसलिए में खुल कर आ…ह आ..ह कर रही थी, उनकी सधी हुई जीभ मेरी संवेदना को जगा रही थी। उनके चूत चूसने का ढंग निराला है, वे काफी पूर्वक्रीड़ा करते हैं, अपने पर उनका गज़ब का काबू है।
थोड़ी देर में मैं स्खलित हो गई, मैंने उनको रोक दिया पर उनका मन अभी चूत चाटने से भरा नहीं था इसलिए थोड़ा रुक कर फिर से अपनी जीभ मेरी चूत में घुसा दी। मेरी सिसकारियाँ फिर शुरू हो गई। आज मुझे पता चला कि बिना डर के सेक्स में कितना मज़ा आता है।
वो फिर मेरी चूत को बुरी तरह से चूस रहे थे जैसे स्तन को मुँह में भरा वैसे मेरी सारी चूत को काफी हद तक मुँह में भर रहे थे ! मुझे फिर आनन्द की तरंगें मेरे बदन में महसूस हो रही थी, मैंने उन्हें कहा- जाओ अपन मुँह बाथरूम में धोकर आओ और कुल्ला भी कर आओ, बस बहुत हो गया यह चाटना और चूसना ! अब आगे की कार्यवाही करो !
मैंने जितनी देर चूत चटवाई, मैक्सी को शर्म से अपने मुँह पर रखी थी मुझे शर्म आ रही थी और जीजाजी आज तीन ट्यूबलाईट की रोशनी में आराम से मेरी चूत को देख रहे थे। हालाँकि मैंने उन्हें कई बार लाईट बंद करने कहा जिसे उन्होंने अनसुना कर दिया।
वे बाथरूम में मुँह धोने गए मैंने दीवार पर टंगी घड़ी में समय देखा तो एक बजकर पचास मिनट हुए थे।
कुछ ही पलों में जीजाजी आ गए, अपनी लुंगी और चड्डी खोली और मेरी टांगें अपने कंधे पर ली अपने लण्ड के सुपारे को थोड़ा थूक से चिकना किया, मेरी चिकनी चूत में सरका दिया।
मैं मैक्सी मुँह पर ढके ढके ही कराह उठी- आ…ह्ह्ह्हह थो…डा…धी…रे.. डालो दुखता है !
उन्होंने सहमति जताते हुए मेरी गाण्ड थपथपा दी और फिर उन्होंने मेरे चेहरे की तरफ देखा और बोले- यह चेहरा क्यूँ ढक रही हो? आज तो मैं चुदते हुए तेरे चेहरे के भाव देखूँगा। ऐसा कह कर मेरे चेहरे से जबरदस्ती मैक्सी को हटा दिया। मुझे उनके सामने देखने में शर्म आ रही थी इसलिए मैंने पलंग पर पड़े होटल वाले तौलिये को अपने मुँह पर ओढ़ लिया पर आज जीजाजी किसी समझौते के मूड में नहीं थे, उन्होंने मुझ से चोदते चोदते ही तौलिया छीना और दूर सोफे पर फेंक दिया। अब मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और जीजाजी मेरे गालों, आँखों की बंद पलकों और होटों को चूमने लगे।
कमर उनकी लगातार चल रही थी !
अब मेरी चूत ने भी उनका लण्ड अपने अन्दर खपा लिया था इसलिए मुझे दर्द नहीं हो रहा था और दनादन अन्दर-बाहर हो रहा था !
थोड़ी देर में उन्होंने आसन बदल लिया, मेरी टांगें सीधी कर दी और मेरे पैरों पर अपने पैर जमाकर कूद-कूद कर मुझे चोदने लगे। थोड़ी देर के बाद मुझे घोड़ी बना दिया और पीछे से मेरी रगड़पट्टी करने लगे। फिर पलंग के किनारे पर घोड़ी बनाया और पंलग से नीचे खड़े हो कर पीछे से चोदने लगे।
फिर वापिस मुझे पलंग पर लिटा दिया। मुझे पता था आज इनको कोई डर नहीं है इसलिए मेरी चुदाई लम्बी चलेगी।
मैं भी शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार थी इसलिए मैं उनको कुछ नहीं कह रही थी, बस चुदा रही थी, जैसे वे मुझे इधर-उधर कर रहे थे, मैं हो रही थी। और वो लगातार बस चोद रहे थे, और चोद रहे थे।
ए.सी. चल रहा था, तो भी उन्हें पसीने आ रहे थे जिसे वे बार बार पास पड़ी लुंगी से पौंछ रहे थे, खासकर उनके ललाट और गर्दन के पास ज्यादा पसीना आ रहा था।
ना जाने कितने आसन बदले, उन्होंने मुझे जैसे रुई की गुड़ीया समझ लिया हो पर मैं भी उन्हें मज़ा दिलाना चाहती थी इसलिए मैंने उन्हें रोका नहीं ! मेरा पानी ना जाने कितनी बार निकला था, मुझे याद नहीं ! कम से कम 7-8 बार तो निकला ही होगा !
थोड़ी देर बाद मुझे फ़िर मज़ा आने लगता और मेरी चूत गीली हो जाती ! ऐसा कई बार हुआ और फिर उनका स्खलन हुआ !
उनके मुँह से भैंसे के डकारने जैसी आवाज़ें निकली और स्खलन होते होते उन्होंने धीरे धीरे 15-20 झटके और लगाये, फिर हटे, अपना कंडोम हटाया।
मैंने घड़ी की तरफ देखा 2 बज कर 40 मिनट !
इसका मतलब इन्होने पूरे 50 मिनट मेरी चुदाई की ! आसन बदलने में कोई 5 मिनट बिताये होंगे तो भी 45 मिनट मेरी चुदाई हुई थी, जो कभी धीरे, कभी मंथर गति से और कभी खूब तेज़ चली थी।
मैं अर्ध बेहोशी में पहुँच गई थी।
वे बाथरूम से वापिस आये और मुझे खड़ा करके कहा- बाथरूम जा कर आओ।
मैं बाथरूम में चूत धोकर आई और पलंग पर लेट गई और कहा- मेरा गाँव जाने का पूरा कार्यक्रम खराब कर दिया ! आपने इतनी देर चुदाई की कि मेरी गाड़ी भी चली गई और मुझे चलने लायक नहीं छोड़ा।
वे हंसने लगे, कहा- आज मेरे मन माफिक चुदाई हुई है, हम गाँव कल चलेंगे, आज की रात अभी बाकी है जान। तुम आराम करो, मेरे मोबाईल में सेक्सी फिल्में देखो, मैं अपने एक दोस्त से मिलकर आ रहा हूँ !
मैंने कहा- ठीक है !
वे बाहर गए, मैंने दरवाज़ा बन्द किया, कुण्डी लगाई और पलंग पर लेट गई और थोड़ी देर बाद सामान्य होने के बाद मोबाईल में सेक्सी फिल्में देखने लगी और जीजाजी के स्टेमिना के बारे में सोचने लगी कि इतनी मैराथन चुदाई कर वे बाहर चले गए और मैं उठ भी नहीं पा रही हूँ !
वे बिल्कुल तरोताज़ा बाहर गए हैं।
कहानी तो चलती ही रहेगी !
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