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जिसने कभी किसी पर-पुरुष को देखा नहीं, उसने 2010 जब 30 साल की थी तब जीजाजी जो 46 साल के थे उनको कैसे समर्पित हो गई। सब वक़्त की बात है।
अब तक मेरे कमरे का दरवाजा खुला ही था। पहले जीजाजी बाथरूम जाकर आये, फिर मैं बाथरूम गई, मैंने देखा मेरे मकान मालिक के और उनके बेटों के कमरों में कूलर चल रहे थे और उनके कमरे में नाईट बल्ब की रोशनी में देखा कि सब घोड़े बेच कर सो रहे थे।
मैं निश्चिंत होकर अपने कमरे में वापिस आई। कमरे में आने के बाद अब मैंने दरवाजा ढुका दिया। जीजाजी एक तरफ लेटे थे, मैं जाकर सीधा उनके सीने पर लेट गई। फिर उन्होंने मुझे अपनी बांहों में पकड़ लिया और मुझे चूने लगे, साथ ही साथ उनका हाथ मेरे पीठ पर भी फिर रहा था।
उन्होंने धीरे से मुझे नीचे लिटा दिया, मैंने उनको अपने ऊपर जोर से पकड़ लिया। वो नीचे होना चाहते थे और मुझे शर्म आ रही थी इसलिए मैं उन्हें अपने मुँह के पास पकड़े हुए थी। वो मेरे गालों पर चुम्बन देते, थोड़ा थोड़ा मेरे होंटों को भी चूस रहे थे। मुझे होंट चुसवाना कभी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि मेरी साँस नहीं आती थी, लेकिन जीजाजी थोड़ा सा चूसकर बार बार छोड़ देते थे इससे मुझे साँस लेने का अवसर भी मिल जाता था।
इस बीच वो नीचे सरक गए और मेरी मैक्सी पेटीकोट समेत ऊपर करने लगे, मैं भी अपनी गाण्ड उठा कर उनकी सहायता कर रही थी।
वो फिर मेरी धोई हुई चूत को सूंघ रहे थे और मैं फिर से उत्तेजित हो रही थी उनके चूत चाटने के ख्याल से।
पहले उन्होंने धीरे से अपनी जीभ मेरी पूरी चूत पर फेरना शुरू किया मैंने शर्म से अपनी मैक्सी को अपने मुँह पर ओढ़ लिया। अब मैक्सी और पेटीकोट कमर से लेकर मेरे मुँह पर ढका हुआ था और मेरी जमा-पूंजी खुली पड़ी थी, जिसे आज लुटना था और मेरा लुटाने का इरादा था।
अब वो अपनी जीभ मेरे चने पर फिरा रहे थे, कभी हल्का सा दांतों से काट रहे थे, कभी जीभ को जितना अन्दर ले जा सकते, ले जा रहे थे। मैंने अपनी तीस साल की जिन्दगी में जो आनन्द नहीं पाया, वो आज पा रही थी।
करीब दस मिनट तक वो चाटते रहे, मैं उनके स्वयम्-नियन्त्रण पर हैरान थी कि उन्हें यह पूर्व-क्रीड़ा करते करीब एक घंटा हो गया पर वो चुदाई की कोशिश नहीं कर रहे थे। मैंने आनन्द में अपनी टांगें पूरी ऊँची कर अपनी चूत को उभार दिया था, वो हाथों से कपड़ो के ऊपर से ही मेरे स्तन दबा रहे थे।
जीजाजी की लुंगी तो पहले ही हट चुकी थी, अब कपड़ों की सरसराहट सुन कर मैं समझ गई कि वो अपना अंडरवियर उतार रहे हैं। आने वाले वक़्त की कल्पना से ही मेरे कलेजा धड़क रहा था, मेरी जिन्दगी का एक महत्वपूर्ण मोड़ आ रहा था, आज पहली बार मेरे पति के अलावा कोई दूसरा मेरी सवारी करने की तैयारी में था।
मैं दम साधे आने वाले पलों का इन्तजार कर रही थी। मेरी दोनों टांगें पूरी तरह से ऊपर थी जो मेरे सर से भी पीछे जा रही थी, दुबला पतला होने का यही तो फायदा है।
अब वे घुटनों के बल बैठ गए थे और अपने मुँह से ढेर सारा थूक अपने लण्ड पर लगा रहे थे, थोड़ा मेरी पहले से गीली चूत पर भी लगाया और अपने लण्ड को मेरी छोटी सी चूत के छेद पर अड़ा दिया।
मुझे अपनी चूत पर उनके सुपारे का कड़ापन महसूस हो रहा था।
मैं सिहर गई।
उन्होंने हल्के से अपने लण्ड को मेरी चूत में ठेला, मेरी चूत ने उनके सुपारे पर कस कर उनका स्वागत किया। अब उन्हें पता चल गया कि यह किला इतनी आसानी से फ़तेह होने वाला नहीं है। मेरी चूत में संकुचन हो रहा था, आनन्द की अधिकता से मैं अपनी चूत को और ऊँचा कर रही थी पर अब तक सिर्फ उनका सुपारा ही अन्दर गया था। साँस भर कर फिर उन्होंने धक्का दिया, थोड़ा और अन्दर घुसा, आनन्द के मारे मेरी हल्की सी किलकारी मुँह से निकली तो उन्हें जोश आया और थोड़ा पीछे खींच कर फिर दांत भींच कर जोर से धक्का मारा। अब उनका आधे से ज्यादा लण्ड मेरी चूत में घुस चुका था, वो अपने माथे का पसीना पौंछ रहे थे और मेरे कान में बोले- तेरी चूत इतनी कसी कैसे है? लगता ही नहीं कि तुम दस साल के बेटे की माँ हो।
मैंने जबाब उनका कान काट कर दिया। मेरे कान काटने से उन्हें फिर जोश आया और धचाक से अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया। अब उनकी गोलियाँ मेरी गाण्ड से टकरा रही थी।
अब उन्होंने अपने हाथ मेरी गाण्ड के नीचे डाल कर मेरे चूतड़ कस कर पकड़ लिए और धक्के लगाने लगे। मेरी चूत की फांके बुरी तरह से उनके लण्ड से कसी हुई थी इसलिए वो जब ऊपर होते तो मेरी चूत भी उठ जाती इसलिए वो ज्यादा ऊँचा होकर धक्के नहीं लगा पा रहे थे। फिर थोड़ी देर में मेरी चूत गीली होने लगी और इतनी देर में उनका लण्ड भी चूत में सेट हो गया था। मेरी चूत में करीब दस महीने के बाद लण्ड घुस रहा था, दोस्तो, मैं सच कहती हूँ कि मैंने कभी अपनी चूत में अंगुली भी नहीं की थी इन दस महीनों में। अब उनका लण्ड आसानी से मेरी चूत में आ-जा रहा था पर जब मैं मजे में अपनी चूत भींच देती तो उनकी रफ़्तार धीरे हो जाती, फिर धक्के देने में जोर आता पर वो हचक हचक कर चोद रहे थे, उनके मुँह से लगातार मेरी तारीफ निकल रही थी- इतनी शानदार चूत मैंने आज तक नहीं देखी, आज जितना मजा कभी नहीं आया, आज मेरे जिन्दगी का मकसद पूरा हो गया, तुम मेरी सेक्स की देवी हो, तुम जो चाहे मुझसे ले लो ! आदि आदि।
और मैं उन बातों से मस्त होकर चुदवा रही थी। करीब दस मिनट ऐसे चोदने के बाद उन्होंने मेरी टांगें सीधी कर दी और मुझे रगड़ने लगे। 3-4 मिनट के बाद उन्होंने फिर से टांगें ऊँची कर दी। इस बार मैंने अपनी टांगें उनकी कमर में कस दी पर 4-5 धक्कों से ही वो थकने लगे तो मैंने फिर से ऊँची कर ली।
अब उनका लण्ड सीधा मेरी बच्चेदानी से टकरा रहा था और मुझे दर्द के साथ आनन्द भी आ रहा था। मैं झड़ने लगी, मेरे मुँह से गूँ गूँ की आवाजें आ रही थी और करीब एक मिनट तक मेरा शरीर ऐंठता रहा।
उन्हें पता चल गया था इसलिए वो जोर जोर से चोद रहे थे। फिर मैं अचानक ढीली पड़ गई और उन्होंने लण्ड बाहर निकाल लिया,
मैंने कहा- आपका आ गया क्या?
उन्होंने कहा- नहीं, अभी कहाँ आएगा !
मुझे बड़ा अचरज हुआ।
उन्होंने कहा- पहले तुम्हें दोबारा गर्म करता हूँ।
उन्होंने थोड़े चुम्बन दिए, स्तन दबाये। उन्होंने मेरी चोली खोलने की कोशिश क़ी तो मैंने मना कर दिया और कहा- ऊपर से दबा लो, यहाँ पराये घर में हैं।
फिर उन्होंने कुछ नहीं कहा और ऊपर से ही मेरी चूचियाँ दबाने लगे। एक हाथ से मेरे चूत के चने को हल्के हल्के छेड़ रहे थे, उसे गोल गोल घुमा रहे थे।
मुझे आज पता चला कि कोई आदमी इतनी काम कला में निपुण भी हो सकता है !
आज तक मेरे पति ने ऐसा मुझे तैयार नहीं किया था।
मुझे मेरे जीजाजी बहुत प्यारे लग रहे थे कि उन्हें मेरे आनन्द की कितनी चिंता है और उनमें रुकने का कितना स्टेमिना है।
उनके थोड़ी देर के प्रयास से मैं फिर से गर्म हो गई थी, मैं तब तक तीन बार झड़ चुकी थी जो मेरी जिन्दगी में पहला मौका था एक रात में। मेरे पति के साथ तो कभी कभी ही चरम सुख मिलता था।
अब मैं जीजाजी को अपने ऊपर खींचने की कोशिश करने लगी, वे समझ गए, उन्होंने मेरी सूखी चूत को थूक से गीला किया और अपना लण्ड मेरी चूत में सरका दिया एक ही झटके में !
मैं थोड़ा उछली फिर शांत हो गई। मेरी टांगें मेरे सिर के ऊपर थी। मेरे जीजाजी मेरी टांगों नीचे से हाथ डाल कर मुझे दोहरी कर अपने हाथ मेरे वक्ष तक ले आये और वे धक्के के साथ स्तन भी दबा रहे थे, मेरे आनन्द की कोई सीमा नहीं थी।
करीब दस मिनट की चुदाई के बाद मैं फिर झड़ने के करीब थी। अब लगातार चुदाई से मेरी चूत में जलन भी होने लगी थी, चूत कुछ सूज भी गई थी।
मैंने जीजाजी को कहा- आपको कोई बीमारी है क्या? आधे घंटे से चोद रहे हो और आपके एक बार भी पानी नहीं निकला?
यह सुनकर हँसे और कहा- मेरा अपने दिमाग पर काबू है, चाहूँ तो 5-7 मिनट में पानी निकाल सकता हूँ और चाहूँ तो 30-40 मिनट तक भी चोद सकता हूँ।
मुझे बड़ा अचम्भा हुआ !
फिर मैंने कहा- मैं थक गई हूँ, ऐसा लगता है कि मुझे 3-4 जनों ने मिलकर चोदा है, अब आप अपना पानी निकाल लो !
उन्होंने कहा- ठीक है, तुम दो मिनट तक पड़ी रहो।
फिर उन्होंने तूफानी रफ़्तार से धक्के मारने शुरू किये। मैं दांत भींच कर सहन कर रही थी राम राम करते।
फिर उनका पानी छूटा तो उन्होंने मुझे इतनी जोर से भींचा कि मेरी हड्डियाँ बोल उठी।
आज मुझे पता चला कि मेरे जीजाजी में रीछ जैसी ताकत थी, मन ही मन में उनके प्रति प्रंशसा का भाव जगा।
कुछ देर मेरे बदन पर लेटे रहने के बाद वो उठ कर बाथरूम में चले गए, मैं उठी तो मुझे लगा मेरी चूत सुन्न हो गई है, टटोल कर देखा तो पता चला कि है तो सही।
फिर उनके आने के बाद मैं बाथरूम गई और वहा बैठ कर जब मैंने मूतना शुरु किया तो मेरी चूत जल उठी, मुझे पता चल गया कि आज मेरी चूत का बजा बज गया है।
पर अभी तो साढ़े तीन ही बजे थे, अभी रात बाकी थी और मेरी चूत का तो बाजा और बजना था।
मैं जब बाथरूम से वापिस आई तो जीजाजी लेटे हुए थे, लुंगी तो नहीं लगी हुई थी पर अंडरवियर पहना हुआ था।
मैं भी जाकर पास में लेट गई और अपनी एक टांग उनकी कमर पर रख दी।
उन्हें शायद नींद आ रही थे, वे कसमसाए और मुझे बांहों में भर कर बोले- अब सो जाओ।
कहानी चलती रहेगी।
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